कैसे शिवधाम से विष्णुधाम बन गया बदरीनाथ धाम

कैसे शिवधाम से विष्णुधाम बन गया बदरीनाथ धाम
Published On: May 13, 2023

कैसे शिवधाम से विष्णुधाम बन गया बदरीनाथ धाम

नीलकंठ पहाड़ की वादियों में मौजूद बद्रीनाथ धाम पहले एक शिवधाम था। क्या आपको मालूम है कि भगवान श्रीहरि विष्णु का परमधाम बदरीनाथ धाम जिसे पृथ्वी पर वैकुंठ का दर्जा मिला हुआ है। वो एक समय भगवान शंकर की साधना स्थली था। शिवधाम बना विष्णुधाम जहां भगवान शंकर मां पार्वती के साथ कुटिया बनाकर रहते थे। क्या भगवान विष्णु ने माता पार्वती से छल कर बदरीनाथ धाम को अपना धाम बना लिया। जिसके बाद भगवान भोलेनाथ को बदरीनाथ धाम छोड़कर केदारनाथ जाना पड़ा।

बद्रीनाथ विष्णु का नहीं पहले शिव का धाम था भगवान विष्णु द्वारा छल से बदरीनाथ धाम पाने की कहानी स्कंद पुराण के केदारखंड में दी गई है। स्कंद पुराण के साथ लोक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ नीलकंठ पर्वत क्षेत्र के बामणी गांव के पास रहते थे। एक बार भगवान विष्‍णु काफी लंबे समय से शेषनाग की शैया पर विश्राम कर रहे थे। इसी दौरान नारद जी वहां पहुंचे और भगवान विष्णु को जगा दिया। नारद जी ने भगवान विष्णु को प्रणाम करते हुए कहा कि भगवन आप लंबे समय से आराम कर रहे हैं। इससे लोगों के बीच आपके लिए गलत संदेश जा रहा है। आपकी मिसाल आलस के लिए दी जा रही है। ये तो ठीक नहीं है। नारद जी की बात सुनकर भगवान विष्‍णु मुस्कराए और शेषनाग की शैया छोड़ते हुए। तप और साधना के लिए जगह ढूंढ़ने लगे। उन्हें नीलकंठ पर्वत के पास रह रहे भगवान शिव का स्थान बहुत पसंद आया। यह तप और साधना के लिए अत्यंत मनोरम जगह थी। लेकिन दिक्कत ये थी भगवान शिव से ये स्थान छुड़ाया कैसे जाय। तब भगवान श्रीहरि के दिमाग में एक युक्ति सूझी और उन्होंने छल से ये जगह पाने का मन बना लिया।

बदरीनाथ को पाने के लिए भगवान विष्णु ने नवजात बालक का रूप बनाया और पहुंच गए उस स्थान पर जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ टहल रहे थे। उनके पास पहुंचने के बाद बालक बने भगवान विष्णु रोने लगे। जंगल में रोते हुए बच्चे को देखकर मां पार्वती को दया आ गई। उन्होंने बालक बने भगवान विष्णु को गोद में उठा लिया और उसे दुलार करने लंगी। लेकिन बच्चा था कि चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मां पार्वती ने शंकर भगवान से कहा इसे घर ले चलते हैं। भगवान शंकर श्री हरि विष्णु की लीला जान गए थे। उन्होंने पार्वती जी से कहा कि बच्चे को यहीं रहने दो थोड़ी देर में ये चुप हो जाएगा। लेकिन पार्वती जी का करुणा से भरा हृदय नहीं माना। वो बच्चे को लेकर अपनी कुटिया में आ गईं। घर में पार्वती जी ने बच्चे को दूध पिलाया फिर लोरी सुनाकर सुला दिया। बच्चे को सोने के बाद वो घर से बाहर आईं और भगवान शंकर के साथ विचरण करने लंगी। इधर जैसे ही बालक बने विष्णु ने देखा मां पार्वती और भोलेनाथ घर से बाहर हैं। उन्होंने तुरंत अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। जब भोलेनाथ और मां पार्वती वापस लौटे तो पार्वती जी ने उस बच्‍चे को जगाने की कोशिश करने लगीं। लेकिन बच्चे ने दरवाजा नहीं खोला। तब शंकर जी ने कहा अब उनके पास दो ही रास्ते बचे हैं। या तो यहां की हर चीज को भस्म कर दें या कहीं और अपना स्थान बनाएं। लेकिन साथ ही शिव जी ने पार्वती जी से यह भी कहा कि वह इस कुटिया को जला नहीं सकते हैं क्‍योंकि वहां सो रहे बालक को तुमने बहुत प्यार से सुलाया है। इसलिए भगवान भोलेनाथ को बदरीनाथ धाम छोड़कर जाना पड़ा और बदरीनाथ शिवधाम से विष्णुधाम बन गया।

शिव पार्वती से छीन कर विष्‍णु जी ने बद्रीनाथ को बनाया अपना। उसके बाद भगवान विष्णु ने यहां कठोर तपस्या शूरू कर दी। पर्वतीय इलाके में कठोर तपस्या के बीच भगवान विष्णु को बर्फीले तूफान से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने बेर के पेड़ के रूप में श्री हरि को आच्छादित कर दिया। ताकि उनको कष्ट ना हो। भगवान विष्णु ने जब लंबे काल की साधना के बाद आंख खोली तब माता लक्ष्मी के त्याग को देखकर अत्यंत प्रसन्न हो गए। उन्होंने माता लक्ष्मी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आज से मैं तुम्हारे नाम से भी जाना जाऊंगा। और मेरा एक नाम बदरीनाथ होगा। बेर को बदरी भी कहा जाता है चुंकि लक्ष्मी जी ने बेर का रूप धरा था इसलिए भगवान विष्णु बदरीनाथ कहलाए।

भगवान शंकर विष्णु जी के लिए बदरीनाथ से केदारनाथ तो जरूर चले गए। लेकिन आज भी ऐसी मान्यता है कि भगवान बदरीनाथ के दर्शन को तभी पूरा माना जाता है जब श्रद्धालु पहले केदारनाथ के दर्शन कर बदरीनाथ आते हैं। बदरीनाथ को शैव और वैष्णव संप्रदाय में मिलन कराने वाला स्थान भी माना जाता है।

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