गांव की देवी के रूप में पूजी जाने वाली देवी कौन हैं

गांव की देवी के रूप में पूजी जाने वाली देवी कौन हैं
Published On: May 16, 2023

कौन हैं माता सप्तमातृका

आपके गांव की देवी कौन हैं? आपके गांव में एक देवी स्थान तो जरुर होगा जहाँ एक नहीं बल्कि सात पिंड स्थापित हैं। आखिर इन पिंडो का रहस्य क्या है। इन पिंडों में कौन सी देवी या देवता रहते है। ये सात पिण्ड सप्तमातृका देवी के रूप में पूजे जाते हैं इन देवियों को सप्तमातृका देवियाँ क्यों कहा जाता है,क्या है सप्तमातृका पूजन का महत्व और कैसे इन सातों देवियों में शुम्भ और निशुम्भ का वध करने में माँ दुर्गा की सहायता की थी।

वैसे तो सप्तमातृकाओं का जिक्र पहली बार ऋग्वेद में ही आता है और इन्हें सोमरस तैयार करने वाली देवियों के रुप में पूजा जाता है लेकिन देवी महात्म्य, अग्नि पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में सप्तमातृकाओं को तीन प्रकार से दिखाया गया है एक रुप में वो कार्तिकेय की माता के रुप में जानी जाती हैं और दूसरे वो चंडिका देवी की सहयोगी के रुप में दिखाई गई हैं तीसरे वो अंधकासुर राक्षस को मारने के लिए शिव की सहयोगी के रुप में दिखाई गई हैं।

महाभारत की कथा के अनुसार जब कार्तिकेय का जन्म हुआ तो देवताओं में एक अलग ही डर उत्पन्न हो गया क्योंकि कार्तिकेय बाल रुप में ही सबसे महान वीर थे और युद्ध के लिए सभी देवताओं को ललकार रहे थे ऐसे में देवताओं ने लोक मातृकाओं या सप्तमातृकाओं से प्रार्थना की कि वो स्कंद अर्थात कार्तीकेय को मार डालें। और सप्तमातृकाएं देवताओं की आज्ञा पाकर स्कन्द को मारने के लिए निकल पड़ीं-

अशक्योयं विचिन्त्यैवं तमेव शरणं ययुः।
ऊचुश्चैनं त्वमस्माकं पुत्रो भव महाबल ।।23
(महाभारत,वनपर्व,अध्याय-226)

सप्तमातृकाएं जैसे ही स्कन्द के पास पहुंची तो उन्होने बालक रूप में कर्तिकेय को देखकर माता के समान व्यवहार किया और स्कन्द को अपने पुत्र के समान मान लिया तथा स्कन्द ने भी सप्तमातृकाओं को अपनी माता मानकर स्तन पान भी किया।

महाभारत में ही नहीं बल्कि भगवान शिव की अन्धकासुर को मारने में भी सप्तमातृका देवी ने सहायता की थी भगवान शिव अंधकासुर से युद्ध कर रहे थे तब अंधकासुर के रक्त की जितनी भी बूंदे गिरती थीं उससे एक नया अंधकासुर पैदा हो जाता था इन अंधकासुरों को खत्म करने के लिए शिव के मुख से योगेश्वरी देवी का प्रागट्य हुआ इन योगेश्वरी देवी की सहयोगी के रुप में विष्णु, ब्रम्हा, इंद्र, कार्तिकेय आदि अपनी स्त्री शक्तियों अर्थात सप्तमातृकाओं को भेजते हैं। भगवान शिव योगेश्वरी और सप्तमातृकाओं के साथ मिलकर अंधकासुर का वध करते हैं सप्तमातृकाओं ने अंधकासुर के रक्त को ही धरती में नहीं गिरने दिया तो शिव ने उसका वध कर दिया।

श्री दुर्गा सप्तशती में महामाया, योगमाया, अंबिका, चंडिका और कालिका देवियों के स्वरुपों के अलावा एक अन्य देवी समूह का भी वर्णन आता है जिन्हें हम सप्तमातृका देवी कहते हैं।

इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान् ।
दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः ।।39
(दुर्रासप्तशती,अध्याय-8)

सप्तमातृकाओं ने रक्तबीज की सेना पर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से इस प्रकार आक्रमण किया, कि उसकी सेना युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगी सप्तमातृकाओं ने रक्तबीज के वध में भी चण्डिका की सहायता की थी कहा जाता है कि शुम्भ और निशुम्भ की सेना को मारने के लिए चंडिका देवी ने अपने शरीर से इन सातों माताओं को प्रगट किया था ये सातों माताएं चंडिका और कालिका देवी के साथ मिल कर शुम्भ और निशुम्भ की सेना का संहार करती हैं।

आज भी हर एक गांव में देवी स्थान नामक एक मंदिर होता है जहां पिंड के रुप में सात देवियां विराजमान रहती हैं इन्हें गांव की देवी भी कहा जाता है। सप्तमातृकाओं की चर्चा जैन धर्मों और बौद्ध धर्मों में भी आती है लेकिन इन माताओं की विशेष पूजा सनातन धर्म में ही की जाती है कहीं-कहीं सप्तमातृका देवियों के साथ एक आठवीं देवी भी दिखती हैं इन्हें योगेश्वरी देवी कहा जाता है जो भगवान शिव के मुख से उत्पन्न हुई हैं महाभारत के शल्य पर्व में ही कार्तिकेय की माता के रुप में सप्तमातृकाओं के अलावा 90 और भी देवियों का उल्लेख आया है-

एतश्चान्याश्च बहवो मातरो भरतर्षभ ।
कार्तिकेयानुयायिन्यो नानारूपाः सहस्त्रशः।।30
(महाभारत,शल्यपर्व,अध्याय-46)

सप्तमातृकाओँ के अतिरिक्त ये 90 माताएँ कार्तिकेय की है जो अजेय हैं और स्कन्द कार्तिकेय की हजारों माताएं हैं महाभारत में कई जगह बताया गया है कि सप्तमातृकाओं की पूजा उस समय हर घर में होती थी और उस वक्त सप्तमातृकाएं सबसे लोकप्रिय देवियों के रुप मे पूजी जाती थीं सामान्य और विशेष पूजा के दिनों में सप्तमातृकाओं की पूजा दिक्पालों और नवग्रहों की पूजा के साथ करने का नियम है इनकी पूजा विशेष शक्ति प्राप्त करने के लिए की जाती है सप्तमातृका का महत्व ये है कि राजाओं के द्वारा इनकी पूजा युद्ध के पहले करने की परंपरा रही है।

सप्तमातृका सृष्टि की शुरुआत से संहार तक पूजी जाती हैं और धर्म की स्थापना के लिए दुष्टों के संहार में सहायता भी प्रदान करती हैं।

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