नीच और दुष्ट व्यक्ति की पहचान कैसे करें

नीच और दुष्ट व्यक्ति की पहचान कैसे करें
Published On: May 10, 2023

नीच और दुष्ट व्यक्ति की पहचान कैसे करें

अक्सर हमसे कई लोग मिलते हैं। कोई हमारे पास आकर मीठी-मीठी बातें करता है। हम उस व्यक्ति पर विश्वास कर लेते हैं, लेकिन बाद में वो हमें धोखा दे देता है। हमें समझ नहीं आता कि आखिर कैसे हम दुष्ट व्यक्तियों की पहचान कर सकें। सवाल है दुष्ट व्यक्तियों और नीच व्यक्तियों के लक्षण क्या होते हैं। इस संबंध में प्राचीन भारतीय ग्रंथों में काफी लिखा है। प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी नीच और दुष्ट व्यक्ति की पहचान बताई गई है।

महाभारत के अनुसार नीच व्यक्ति की पहचान

महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 164 में युधिष्ठिर बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म से पूछते हैं कि नीच व्यक्ति के लक्षण क्या हैं

नृशंसो कूपमग्नि च वर्जयन्ति यथा नराः ।
तस्मात् त्वं ब्रूहि कौरव्य तस्य धर्मविनिश्चयम् ।।

अर्थात्- हे भारत ! कुरुनंदन ! नृशंस यानि नीच मनुष्य इस लोक और परलोक में भी सदा ही दुख की आग में जलता रहता है। अतः आप मुझे नीच मनुष्य और उसके धर्म-कर्म का यथार्थ परिचय दीजिए।

इसके बाद भीष्म नीच पुरुष की पहचान और कुछ लक्षण बताते हुए कहते हैं कि

स्पृहा स्याद् गर्हिता चैव विधित्सा चैव कर्मणाम् ।
आक्रोष्टा क्रुश्यते चैव वंचितो बुद्दयते स च ।।

इस श्लोक में नृशंस या नीच और दुष्ट व्यक्ति के लक्षण बताए गए हैं, जिनका एक-एक कर विस्तार से वर्णन इस प्रकार है-

  1. जिसके मन में बड़ी घृणित इच्छाएं रहती हैं

अगर आपसे कोई ऐसी बातें करता है जिसे सुन कर आपको घिन या घृणा आने लगे तो समझ जाइये कि वो व्यक्ति नीच है। जैसे कोई किसी को गाली दे रहा हो, अपशब्दों का लगातार प्रयोग कर रहा हो, या फिर किसी को सताने की बात कर रहा हो, तो वो व्यक्ति निश्चित तौर पर नीच है।

  1. कुत्सित कर्म करने की इच्छा रखने वाला

हिंसा प्रधान बुरे कर्म की इच्छा रखाना, जैसे आपका कोई परिचित आपसे किसी दूसरे को मारने-पीटने या हत्या की बात करे, तो आप समझ जाइये कि वो नीच व्यक्ति है।

  1. दूसरों की निंदा करे, दूसरे जिसकी निंदा करें

कोई आपका परिचित या मित्र जिसकी आदत हमेशा दूसरों की निंदा करने की है, या उसकी निंदा दूसरे करते रहते हैं, तो जान लीजिए कि वो नीच व्यक्ति है तथा अत्यधिक दुष्ट व्यक्ति की पर्यायवाची है क्योंकि अगर वो आज आपके सामने किसी दूसरे की चुगली कर रहा है तो निश्चित तौर पर वो आपके पीठ पीछे जरूर आपकी भी निंदा और चुगली करता होगा। ऐसे व्यक्ति को नीच समझ कर उससे सावधान रहिए।

4.जो अपने दिये गए दान का बखान करे

भीष्म पितामह नीच व्यक्तियों के और भी
दुर्गुण बताते हुए कहते हैं –

दत्तानुकीर्तिर्विषमः क्षुद्रो नैकृतिकः शठः ।
असंविभागी मानी च तथा संगी विकत्थनः।।

इसका मतलब है कि आपको बहुत सारे ऐसे लोग मिलेंगे जो अपने किए दान का दिन रात बखान करते रहेंगे। एक रुपया दान करेंगे और सौ रुपये दान करने की बात करेंगे। ऐसे लोगों को भी भीष्म पितामह ने नीच व्यक्ति बताया है क्योंकि हो सकता है कि अगर कभी जरुरत पड़ने पर आपने उनसे कोई मदद ली तो वो पूरी दुनिया को जा कर बताँएगे कि आप मुसीबत में थे तो उसने आपकी मदद की ।

5.जिसके मन में विषमता भरी हो

भीष्म पितामह नीच व्यक्ति का एक बड़ा दुर्गुण ये बताते हैं कि ऐसे व्यक्ति अमीर-गरीब, ऊंच–नीच में बहुत भेदभाव करते हैं। गरीबों को देख कर उनका अपमान करते हैं और अमीरों के तलवे चाटते हैं। ऐसे लोग महाभारत में नीच पुरुष माने गए हैं। ऐसे लोगों से सावधान ही रहना बेहतर है।

6.जो दूसरों की नौकरी खा जाए

भीष्म पितामह कहते हैं कि जो दूसरे लोगों की जीविका का नाश करने वाला व्यक्ति होता है वो नीच और पतित इंसान होता है। दफ्तरों में कई ऐसे लोग होते हैं जो बॉस के सामने दूसरे कर्मचारी की बुराई करते हैं, उसके खिलाफ साजिश कर उसे नौकरी से बाहर करवा देते हैं। ऐसे लोग दूसरों के परिवारों की आर्थिक स्थिति का ख्याल नहीं रखते। ऐसे लोगों को सनातन धर्म में नीच कहा गया है।

7.जिसे सिर्फ अपने खाने पीने की चिंता हो

भीष्म कहते हैं कि ऐसे लोग भी होते हैं जो सिर्फ खुद के खाने पीने की चिंता करते है और दूसरों के साथ शेयर करने में यकीन नहीं रखते हैं। महाभारत के अनुसार ऐसे लोग पतित या नीच ही कहे जाते हैं।

8.जो घमंडी हो

महाभारत के शांतिपर्व में भीष्म युधिष्ठिर को अहंकारी लोगों से दूर रहने की सलाह देते हैं। ऐसे अहंकारी लोग दूसरों की मान प्रतिष्ठा का ख्याल नहीं रखते और दूसरों को अपमानित करते रहते हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि वो ही इस संसार में श्रेष्ठ हैं, जबकि सनातन धर्म के अनुसार खुद को श्रेष्ठ समझने का अहंकार रखने वाला इंसान नीच प्रवृत्ति का होता है।

9.जो दिन रात अपनी डींग हांकता हो

भीष्म नीच पुरुषों की दुर्गुणों को बताते हुए कहते हैं –

सर्वातिशंकी पुरुषो बलीशः कृपणोSथवा ।
वर्गप्रशंसी सततमाश्रमद्वेषसंकरी ।।

इसका मतलब है कि आपके आसपास बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो दिनरात अपनी ही तारीफों के पुल बांधते रहते हैं। ऐसे लोग अपने छोटे से काम को भी बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं । आजकल ऐसे लोगों के बारे में ये कहा जाता है कि वो अपनी मार्केटिंग करने में माहिर है। लेकिन दरअसल ये लोग दूसरों के अच्छे कामों को ढंक कर सिर्फ अपनी तारीफ कर फायदे उठाते हैं। भीष्म ने युधिष्ठिर को ऐसे नीच लोगों से भी दूर रहने के लिए कहा है।

10.जो हर बात में शक करता है

आपके ऑफिस में, पड़ोस में या आपके रिश्तेदारों में बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जो हर किसी पर शक करते रहते हैं। ऐसे लोगों के साथ कुछ देर भी रहना कठिन हो जाता है। भीष्म ऐसे लोगों को भी नीच व्यक्ति मानते हैं। भीष्म ने ऐसे शक्की लोगों से सभी को दूर रहने का संदेश दिया है।

11.धर्मात्मा और गुणवान लोगों का तिरस्कार करने वाला

भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को कई और भी बातें बताई हैं जिनसे हम बुरे लोगों की पहचान कर सकते हैं। आगे के श्लोक में भीष्म कहते हैं कि –

धर्मशीलं गुणोपेतं पापमित्यवगच्छति ।
आत्मशीलप्रमाणेन न विश्वसिति कस्यचित् ।।

इस श्लोक के अनुसार नीच व्यक्ति सिर्फ खुद के स्वभाव को ही अच्छा मानता है और धर्मात्मा और गुणवान लोगों को पापी समझता है, दरअसल ऐसा व्यक्ति खुद ही नीच प्रवृति का होता है।

12.किसी की कमजोरी का फायदा उठाने वाला

हर इंसान में कोई न कोई बुराई होती ही है। कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता। सबके लाइफ का कोई न कोई सीक्रेट होता है जिसे वो किसी से शेयर नहीं करना चाहता। भीष्म पितामह कहते हैं-

परेषां यत्र दोषः स्यात् तद् गुह्यं संप्रकाशयेत् ।
समानेष्व दोषेषु वृत्त्यर्थमुपघातयेत् ।।

इस श्लोक के जरिए भीष्म ये बता रहे हैं कि नीच पुरुष जिससे दूसरों की बदनामी होती हो उस गोपनीय बात को प्रकट कर देता है। अपने तथा दूसरों के अपराध बराबर होने पर भी वह अपनी नौकरी या पैसे के लिए दूसरों का सर्वनाश कर देता है। कई बार लोग दफ्तरों में आपके किसी सिक्रेट या किसी मिस्टेक को बॉस के सामने उजागर कर आपकी नौकरी खा जाते हैं, भले ही यही गलती उस नीच पुरुष ने भी की हो। भीष्म ऐसे लोगों से हमेशा बच कर रहने की सलाह देते हैं।

13.भलाई को कमजोरी समझने वाला

भीष्म पितामह युधिष्ठिर को बताते हैं कि कई बार आप किसी नीच पुरुष की भलाई भी कर दीजिए लेकिन वो उल्टा आपको ही किसी जाल में फंसा हुआ समझता है। भीष्म कहते हैं –

तथोपकारिणं चैव मन्यते वंचितं परम् ।
दत्वापि च धनं काले संतपत्युपकारिणे।।

इस श्लोक का अर्थ ये है कि नीच पुरुष पर आप अगर कोई अहसान भी करते हैं तो वो आपको ही किसी जाल में फंसा हुआ समझता है। और अगर कभी किसी नीच पुरुष ने किसी को कोई पैसा उधार भी दे दिया तो उसके लिए वो बहुत दिनों तक परेशान रहता है।

आपको बता दें कि भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महान ज्ञानी पुरुष माने गए हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को भीष्म पितामह से ज्ञान लेने के लिए उनके पास भेजा था।

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