भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में अंक 8 का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में अंक 8 का महत्व
Published On: May 10, 2023

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में अंक 8 का महत्व

कहने को 8 सिर्फ एक अंक है। लेकिन इसके पीछे बहुत सी कहानियां छुपी हुई हैं। ये 8 अंक भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का भी एक बहुत ही अहम हिस्सा रहा है। श्रीमदभागवत पुराण से लेकर हरिवंश पुराण तक में किस तरह श्रीकृष्ण और अंक 8 के बीच के गहरे संबंध को बताया गया है इसकी पूरी कहानी जाननी बहुत जरुरी है।

जन्माष्टमी के त्यौहार में है 8 अंक

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार यूं तो हम लोग हर साल अगस्त यानि की आठवें महीनें में मनाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि भगवान ने अगस्त के महीने में जन्म लिया था भगवान का जन्म उनकी माता के गर्भ से आठवें महीनें में हुआ था। दरअसल जब कोई स्त्री प्रसव धारण करती है यानि की प्रेगनेंट होती है तो उसके 9वें महीनें में वो संतान को जन्म देती है।

जबकि पुराणों में कहा जाता है कि प्रेगनेंट होने से ठीक 10 महीनें बाद संतान का जन्म होता है। माता देवकी ने जब आठवां गर्भ धारण किया तो उसके ठीक आठ महीने बाद श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसका प्रमाण श्रीहरिवंश पुराण में भी मिलता है

गर्भकाले त्वसम्पूर्णे अष्टमे मासि ते स्त्रियौ।
देवकी च यशोदा च सुषुवाते समं तदा।। 11
श्री हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, चौथा अध्याय

अर्थात् – गर्भ का समय पूर्ण होने से पहले ही आठवें मास में ऊन दोनों स्त्रियों – देवकी और यशोदा ने प्रायः एक ही साथ प्रसव किया।

यहां वैशम्पायनजी बता रहे हैं कि माता देवकी और यशोदा दोनों ने ही आठवें महीनें में संतान को जन्म दिया। माता देवकी ने श्रीकृष्ण को तो यशोदा मैय्या ने एक कन्या को जन्म दिया था।

माता देवकी की आठवीं संतान बने श्रीकृष्ण

8 अंक से भगवान श्रीकृष्ण का गहरा नाता है, इसका एक प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि वो देवकी-वसुदेव की आठवीं संतान थे। उनकी पहली पांच संतानों को कंस ने पैदा होते ही मार दिया था। और फिर जैसे ही माता देवकी ने आठवां गर्भ धारण किया तो उस गर्भ में भगवान विष्णु स्वयं विराजमान हो गए थे-

तं तु गर्भं प्रयत्नेन ररक्षुस्तस्य मन्त्रिणः।
सोsप्यत्र गर्भवसतौ वसत्यात्मेच्छया हरिः।। 8
श्री हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, चौथा अध्याय

अर्थात् – कंस के मंत्री उस आठवें गर्भ की रक्षा में यत्नपूर्वक लग गए। इधर भगवान विष्णु भी स्वेच्छा से ही उस गर्भ में निवास करने लगे।
पुराणों में इस बात का जिक्र साफ देखने को मिलता है कि जब कंस अपनी प्यारी बहन देवकी की शादी वसुदेव से करवाकर उन्हें रथ में बैठा कर ले जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां गर्भ उसका काल बनेगा और बतौर आठवीं संतान श्रीकृष्ण ने जन्म लेकर मामा कंस के अत्याचारों से पृथ्वी और प्रजा को मुक्ति दिलाई थी।

अष्टमी तीथि पर जन्में श्रीकृष्ण

माता देवकी के आठवें गर्भ बनकर,आठवें महीनें में जन्में भगवान श्रीकृष्ण और उनका ये जन्म भी हुआ अष्टमी तिथि को यानि की महीने की आठवीं तारीख को। श्री हरिवंश पुराण के विष्णुपर्व के इस श्लोक पर जरा गौर फरमाइए-

अभिजिन्नाम नक्षत्रं जयन्ती नाम शर्वरी।
मुहूर्तो विजयो नाम यत्र जातो जनार्दनः।। 17
श्री हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, चौथा अध्याय

अर्थात् – जब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए उस समय अभिजित नामक मुहूर्त था, रोहिणी नक्षत्र का योग होने से अष्टमी की वह रात जयन्ती कहलाती थी और विजय नामक विशिष्ट मुहूर्त व्यतीत हो रहा था।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म जिस वक्त हुआ उस वक्त अभिजित मुहूर्त था, रोहिणी नक्षत्र था और तिथि थी अष्टमी। गौर करें तो मुहूर्तों की लिस्ट में अभिजीत मुहूर्त का नंबर होता है 28 यानि की इसमें भी आठ का अंक आता है। हालांकि नक्षत्रों की लिस्ट में रोहिणी का नंबर 4 होता है फिर भी वो आठ अंक का आधा हिस्सा होता है। इस लिहाज से भी आठ अंक का नाता जुड़ जाता है।

साथ ही अष्टमी तिथि होने की वजह से महीने के आठवें दिन उनका जन्म हुआ ऐसा कहा जाता है ।दरअसल उस युग में इंग्लिश कैलेंडर तो होते नहीं थे, इसलिए महीने की अष्टमी तिथि को ही आठवां दिन माना जाता था और उसे ही आठ तारीख कहा जाता था।

अष्टमी को जन्मी श्रीकृष्ण की प्रिय सखी राधा

कहते हैं श्रीकृष्ण सिर्फ शरीर हैं उनकी आत्मा हैं राधा रानी। भगवान ने भले ही 16108 स्त्रियों से विवाह किया लेकिन उनका पहला प्यार हमेशा राधा रानी ही कहलाईं। आज भी कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाता है।

मंदिरों में भी राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा रानी को पूजा जाता है। इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भगवान को राधा रानी कितनी प्यारी थीं। लेकिन क्या आप जानते हैं राधा रानी का जन्म भी अष्टमी तिथि को ही हुआ था ?

इस लिहाज से भी श्रीकृष्ण का अंक 8 से काफी गहरा नाता जुड़ जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि जब गोलोक वासी श्रीदामा और देवी राधा ने एक दूसरे को शाप दे दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने आकर देवी राधा से कहा कि “पृथ्वी पर तुम्हें गोकुल में देवी कीर्ति और वृशभानु की पुत्री के रूप में जन्म लेना होगा।“

श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख रानियां

हालांकि श्रीकृष्ण की 16108 रानियाँ थीं लेकिन इनमें भी 8 रानियाँ सबसे ज्यादा प्रमुख थीं। इसको इस श्लोक के जरिए समझा जा सकता है-

बहूनां स्त्रीसहस्त्राणामष्टौ भार्याः प्रकीर्तिताः ।
अष्टौ महिष्यः पुत्रिण्य इति प्राधान्यतः स्मृताः।
श्रीहरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, अध्याय 103

अर्थात् – भगवान श्रीकृष्ण की कई हजार रानियों में से आठ को प्रमुख बताया गया है। प्रधानतः आठों पटरानियां पुत्रवती थीं, ऐसा माना गया है। उनकी सभी संतानें वीर थीं।

श्री हरिवंश पुराण के विष्णु पर्व में इस बात का जिक्र कई बार देखने को मिला है कि श्रीकृष्ण की हजारों रानियां थीं लेकिन उनमें से सिर्फ 8 को ही प्रमुख स्थान दिया जाता है

दरअसल श्रीकृष्ण के जब आठ विवाह हो गए थे तो एक बार देवताओं की विनती पर वो भौमासुर नाम के असुर का वध करने गए थे उस असुर ने 16100 राजकुमारियों को जबरन बंदी बनाया हुआ था। श्रीकृष्ण ने उन्हें भौमासुर के बंधन से मुक्त करा दिया तो उन्होनें श्रीकृष्ण को मन ही मन अपना वर मान लिया।

भगवान ने भी उनकी मनोकामना पूरी कर उनसे विवाह कर लिया। सबके साथ एक आदर्श पति रूप बनकर रहें भी लेकिन उनकी पहली आठ रानियों को उन्होनें हमेशा विशेष दर्जा दिया। हालांकि देखें तो 16000 में 16 अंक भी 8 का दो गुना होता है । इस प्रकार यहाँ भी आठ अंक आ ही जाता है।

हरिवंश पुराण में खुद वैशम्पायन जी कहते हैं कि देवी रूकमिणी, सत्यभामा, जाम्बवंती, सत्या, मित्रविंदा, भद्रा, लक्ष्मणा और कालिन्दी, भगवान की प्रमुख रानियां थीं। इन रानियों से भगवान को 80 संतानें भी हुई । गौर करें तो इसमें भी आठ का अंक शामिल हो गया है। हालांकि भगवान की 16108 रानियों से उन्हें 1 लाख 80 हजार पुत्र प्राप्त हुए थे, फिर भी प्रमुख 8 रानियों की 80 संतानों का जिक्र अकसर आपको सुनने को मिलता है।

गीता का प्रसिद्ध आठवां श्लोक

श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व हमारे ग्रंथों में काफी अहम माना जाता है ।इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश हैं । ये उपदेश उन्होनें कुंती पुत्र अर्जुन को कुरूक्षेत्र के मैदान में महाभारत युद्ध के दौरान दिए थे । उसी गीता के आठवें अध्याय के आठवें श्लोक को जरा गौर से देखिए

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।

अर्थात – “साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग युग में प्रकट होता हूं।“

गीता का ये श्लोक सबसे अहम श्लोक कहलाता है। इस श्लोक के जरिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि “जब जब धर्म का नाश होगा तब तब मैं आऊंगा। जब जब अधर्म बढ़ेगा मैं आउंगा ।“

इसलिए इसे बेहद महत्वपूर्ण करार दिया गया है ।यहां हम आपको एक बात जरूरी बात और बता दें। महाभारत युद्ध के दौरान कुरूक्षेत्र के मैदान पर जब अर्जुन विपक्षी दल में अपने ही परिवार के सदस्यों को देखकर विचलित हो रहे थे और युद्ध ना करने का विचार कर रहे थे, तब भगवान ने उन्हें गीता का उपदेश दिया था। गौर करने वाली बात ये है कि श्रीमद्भगवद् गीता में 18 अध्याय हैं ।मतलब यहां भी 8 का अंक शामिल हो गया और इस तरह भगवान का 8 के अंक से एक नाता और जुडा।

महाभारत के युद्ध में 8 अंक

महाभारत का युद्ध भी 18 दिन तक चला था। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण गांडीवधारी अर्जुन के सारथी बने। यहां भी 8 के अंक का शामिल होना और श्रीकृष्ण का एक साथ होना इस बात की तरफ इशार कर रहा है कि उनका इस अंक से गहरा नाता रहा है।

इसके अलावा पुराणों में कहा गया है कि श्रीकृष्ण पृथ्वी पर करीब 125 साल तक रहे। लेकिन अगर 125 साल की उम्र पर ही बात करें तो 125 का भी कुल जोड़ 8 बनता है। ऐसे में साफ है कि श्रीकृष्ण का 8 अंक से काफी गहरा नाता रहा है।

हालांकि भगवान का इस अंक से इतना गहरा नाता क्यों है इसका उल्लेख किसी पुराण में देखने को नहीं मिलता। फिर भी उनकी ज़िंदगी के काफी पहलुओं से ये अंक हमेशा जुड़ा रहा।

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