हंस | ऐसा पक्षी जिसमें होता है देवातओं का वास
हंस | ऐसा पक्षी जिसमें होता है देवातओं का वास
सनातन धर्म हमेशा से सभी जीवों को समानता का भाव प्रदान करता आया है कितना ही निकृष्ट प्राणी हो या कितना ही सर्वोच्च सबको अच्छे कर्मों के द्वारा मोक्ष की बात कही गई है,हंस के बारे मे तो हम सभी ने सुना ही है की वो सबसे शांत पक्षी है वो सबसे दूर एकांत में ही वास करता है,पर हम आपको बता दें की हंस के विषय मे हमारे पुराणों और वेदों मे भी लिखा गया है,पुराणों और वेदों मे हंस को शांति और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। वो पूरे जीवन एक ही पार्टनर के लाँयल रहता है वो उसके साथ रहे या
हिन्दू धर्म में सब को समानता के भाव से सम्मान प्राप्त है,उनमें ही एक पक्षी हंस है,कहा जाता है की हंस मे देव तुल्य आत्माओं का वास होता है ये उन आत्माओं का ठिकाना है जो अपने जीवन काल में अच्छे कर्मो के द्वारा जीवन जीया हो या पूरे जीवन काल मे खूब दान धर्म करके पुण्य अर्जित किया हो। ऐसी दिव्य आत्मायें कुछ काल तक हंस योनि में रहकर वो जीवआत्मा फिर एक बार मनुष्य योनि को प्राप्त करता है,या मोक्ष को प्राप्त करके देवलोक को चली जाती है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे।
प्यार का प्रतीक हंस
यह पक्षी दांपत्य जीवन के लिए आदर्श है। यह जीवन भर एक ही पार्टनर के साथ रहते हैं। यदि दोनों में से किसी भी एक पार्टनर की मौत हो जाए तो दूसरा अपना पूरा जीवन अकेले ही गुजार देता या देती है। जंगल के कानून की तरह इनमें मादा पक्षियों के लिए लड़ाई नहीं होती। आपसी समझ-बूझ के बल पर ये अपने साथी का चयन करते हैं। इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती है।
प्यार का प्रतीक हंस सफदे रंग के अलावा काले रंग का भी होता है जो ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। हिंदू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता,देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।
भगवान विष्णु का हंसावतार
श्रीमद्भागवतपुराण में कथा मिलती है कि एक बार लोकपितामह ब्रह्माजी अपनी दिव्य सभा में बैठे थे। तभी उनके मानस पुत्र सनकादि चारों कुमार दिगम्बर वेष में वहां आए और पिता को प्रणाम कर अपने पिता ब्रह्माजी से प्रश्न किया कि सांसारिक भोग मन में प्रवेश करते हैं या मन विषयों में प्रवेश करता है,इनका परस्पर आकर्षण है। इस मन को विषयों से अलग कैसे करें? मोक्ष चाहने वाला मन सांसारिक भोग-विलास से कैसे हटा सकता है; क्योंकि मनुष्य जीवन प्राप्त कर यदि मोक्ष की सिद्धि नहीं की गयी तो सम्पूर्ण जीवन ही व्यर्थ हो जाएगा।’ इन प्रश्नो को सुनकर जब ब्रम्हाजी की संकुचित से हुए तो उन्होनें श्रीहरि विष्णु का ध्यान किया भगवान विष्णु का हंसावतार हुआ हंस रूप भगवान के उत्तर से सनकादि कुमारों का संदेह दूर करते है,फिर उसके बाद सभी ने भगवान की स्तुति की और देखते-ही-देखते भगवान अंतर्ध्यान होकर अपने धाम को चले जाते है।
नल–दमयंती को मिलाया दिव्य हंस ने
नल-दमयंती को दिव्य हंस ने मिलाया दरअसल महाभारत महाकाव्य में एक कहानि का वर्णन मिलता है जब युधिष्ठिर जुए में अपना सब हार कर वन चले जाते है तो वन में एक ऋषि उनको नल दमयंती के प्यार की कहानी सुनाते है जिसमें एक हंस उनकी सहायता करता है। नल निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र होते है,जो बड़े वीर,साहसी,गुणवान और सुंदर होते है,साथ ही अस्त्र विद्या व अश्व संचालन में भी निपुण होते है। वही पर दमयंती विदर्भ के भीष्मक नरेश की पुत्री थी। दमयंती लक्ष्मी के समान सुन्दर,सुशील और सर्वगुण संपन्न थी। आने जाने वाले लोगों के मुंह से एक दूसरे की तारीफ सुनकर वो एक दूसरे को मन ही मन प्रेम करने लगते है।
एक दिन राजा नल महल के बगीचें मे घूम रहे होते है तभी एक सेवक सरोवर मे आये एक दिव्य हंस के बारे मे बताता है जिसको सुनकर नल भी देखने जाते है राजा को आता देख हंस उड़ने लगते है पर राजा उसको पकड़ लेते है,जिससे डरकर हंस कहता है की राजन! आप मुझे छोड़ दीजिए,अब मैं कभी नहीं आऊंगा। हंस की बातों को सुनकर राजा को दया आ गई। उन्होंने हंस को छोड़ दिया। हंस ने राजा से कहा महाराज आप बहुत दयालु हैं। विदर्भ देश की राजकुमारी दमयंती भी बहुत ही सुन्दर,सुशील,दयालु और सर्वगुण संपन्न है। मैं विदर्भ देश में जाकर राजकुमारी दमयंती के समक्ष आपके गुणों की चर्चा अवश्य करूँगा कि आप जैसा दयावान और सुन्दर और कोई नहीं है। राजन आप दमयंती से विवाह कीजिए। आप दोनों एक दूसरे के योग्य है। हंस के कहे अनुसार जब दमयंती का स्वयंबर होता है तो नल से ही विवाह करती हैं।
ज्ञान की देवी सरस्वती का वाहन हंस ही क्यों है
सरस्वती का वाहन हंस दरअसल मां सरस्वती का हंस पर विराजमान होना यह बताता है कि ज्ञान से ही जीवन में पवित्रता,नैतिकता,प्रेम और सामाजिकता का विकास किया जा सकता है। देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं। गुण व अवगुण को पहचानना तभी संभव है,जब आपमें ज्ञान हो। इसलिए माता सरस्वती का वाहन हंस है।
हंस का श्वेत रंग यह बताता है कि विद्या ग्रहण करने के लिए मन शांत और पवित्र रहे। इससे हमारा मन एकाग्र होता है,पढ़ाई में मन लगता है। आज अच्छे जीवन के लिए शिक्षा अति आवश्यक है और अच्छी के लिए हमें हंस की तरह विवेक रखने की जरूरत है।हंस पवित्र,जिज्ञासु और समझदार पक्षी होता है। यह जीवनपर्यन्त एक हंसनी के ही साथ रहता है। परिवार में प्रेम और एकता का यह सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है। इसके अलावा हंस अपने चुने हुए स्थानों पर ही रहता है। तीसरी इसकी खासियत हैं कि यह अन्य पक्षियों की अपेक्षा सबसे ऊंचाई पर उड़ान भरता है और लंबी दूरी तय करने में सक्षम होता है।