परिक्षित के जीवन में क्यों हुई ऐसी घटनाएं

परिक्षित के जीवन में क्यों हुई ऐसी घटनाएं
Published On: May 16, 2023

भगवान श्रीकृष्ण के सामने ब्रह्मास्त्र भी असफल है

श्रीकृष्ण से ज्यादा शक्तिशाली भगवान कोई नहीं है भगवान श्रीकृष्ण चाहें तो मरे हुए को भी जिंदा कर सकते हैं और अमर व्यक्ति को भी मार सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म लिए ब्रह्मास्त्र के असर को भी खत्म कर दिया था। श्रीकृष्ण ने कैसे एक मरे हुए बालक को फिर से जीवित कर दिया था।

राजा परीक्षित जो जन्म लेने से पहले ही मर गए थे लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से वो जीवित हो कर संसार के एक बड़े राजा बने। परिक्षित का जीवन क्यों था इतना महत्वपूर्ण, कौन थे परीक्षित और क्या था भगवान श्रीकृष्ण से उनका रिश्ता?

परीक्षित की कहानी तब आती है जब महाभारत का युद्ध खत्म हो गया तो द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने अपने मित्र दुर्योधन की मृत्यु का बदला लेने की ठानी, उसने ये प्रतीज्ञा की थी कि वो पांडवों और उनके पूरे वंश का खात्मा कर के ही दम लेगा। सो उसने चुपके से पांडवों की छावनी में रात को हमला कर दिया। उसका इरादा सभी पांडवों का वध करने का था। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ये जानते थे इसलिए उन्होंने पांडवो को उस रात को उस छावनी में ठहरने से रोक दिया था और अपने साथ कहीं दूर ले गए थे। अश्वत्थामा ने जब पांडवों की छावनी पर हमला किया उस वक्त द्रौपदी के पांच पुत्र वहाँ सो रहे थे। अश्वत्थामा ने कायरता से द्रौपदी के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी।

अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और भीम के पुत्र घटोत्कच की हत्या तो पहले ही हो चुकी थी। तो अश्वत्थामा को लगा कि द्रौपदी के पांचों पुत्रों को मार देने के बाद पांडवों का वँश समाप्त हो गया है। लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में अभिमन्यु का पुत्र पल रहा है और पांडवों का वँश अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। तो उसने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया।

ये ब्रह्मास्त्र उतरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की तरफ बढ़ने लगा। अब उस बच्चे की माँ के गर्भ में ही मौत होनी तय थी। अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र तो था लेकिन साथ ही में वो भगवान श्रीकृष्ण का भांजा भी था और श्रीकृष्ण अपने भांजे अभिमन्यु को बहुत प्यार करते थे।

पुराणों की कथाओं के अनुसार जैसे ही अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु पर ब्रह्मास्त्र चलाया उसी वक्त उस शिशु के गर्भ में श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ। उस बच्चे ने देखा कि श्रीकृष्ण अपनी गदा से उसकी ब्रह्मास्त्र से रक्षा कर रहे हैं। गर्भ के बाहर खड़े लोगो ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने एक हाथ से ब्रह्मास्त्र को रोक दिया और उस शिशु की रक्षा करने लगे। बाद में वो शिशु जब मरा हुआ पैदा हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपनी गोद में लेकर जीवित कर दिया। उस बच्चे का नाम विष्णुरात रखा गया।

लेकिन जैसे जैसे वो बच्चा बड़ा होता गया वो उस दिव्य पुरुष को खोजा करता था और हर एक मनुष्य में उसी दिव्य पुरुष की परीक्षा करता रहता था। इस वजह से अभिमन्यु के पुत्र विष्णुरात का नाम परीक्षित पड़ा।

परीक्षित बड़े होकर युधिष्ठिर की जगह हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे। वो द्वापर युग के आखिरी राजा थे जिनके काल में कलियुग की शुरुआत हुई। कलियुग की शुरुआत परीक्षित ने कलियुग का दमन किया और उसे सिर्फ सोना, जुए, वेश्याघर, शराब और हिंसक लोगों तक सीमित कर दिया था।

राजा परीक्षित ने लंबे समय तक न्याय के साथ शासन किया। बाद में एक बार वो जंगल में शिकार करने गये थे तो भूलवश उन्होंने एक ऋषि के गले में मरे हुए सांप की माला डाल दी थी। जब ऋषि शमिक के बेटे को ये पता चला तो उसने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया था कि सात दिनों के अंदर तक्षक नाग उन्हें डसेगा और इसी से उनकी मृत्यु हो जाएगी।

सात दिनों के अंदर परीक्षित ने खूब सारे यज्ञ किए। सातवें दिन उनके महल में एक ब्राह्मण आया जिसने उन्हें खाने के लिए एक फल दिया। उस फल से एक कीड़ा निकला जिसे राजा परीक्षित ने अपने गोद में रख लिया। वो कीड़ा अचानक तक्षक नाग में बदल गया और उसने परीक्षित को डंस लिया जिससे राजा परीक्षित की मौत हो गई।

राजा परीक्षित के बाद उनका बेटा जनमेजय सिंहासन पर बैठा और उसने सारे संसार से सांपो को खत्म करने के लिए यज्ञ शुरु किया। बाद में एक ऋषि के समझाने पर उसने ये यज्ञ बंद कर दिया और सांपो का वंश नष्ट होने से बच गया। इन्हीं जनमेजय के यज्ञ में व्यास जी ने महाभारत की कथा सुनाई जिसे आज हम और आप सभी पढ़ते हैं।

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