भगवान विष्णु का परशुराम अवतार सतयुग में ही हुआ था और वो आज भी

भगवान विष्णु का परशुराम अवतार सतयुग में ही हुआ था और वो आज भी
Published On: May 16, 2023

भगवान विष्णु का परशुराम अवतार

भगवान विष्णु का परशुराम अवतार सतयुग में ही हुआ था और वो आज भी एक अज्ञात स्थान पर तपस्या में लीन हैं। वो इंतजार कर रहे हैं कलियुग के अंत का जब भगवान कल्कि का अवतार होगा। कल्कि पुराण के अनुसार चिरंजीवी भगवान परशुराम जी ही कलि असुर का वध कराने के लिए भगवान कल्कि को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा देंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान परशुराम से ज्यादा बड़ा अस्त्र शस्त्रों का गुरु संसार में कोई नहीं हुआ। भगवान परशुराम ने ही भीष्म पितामह को भी अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी थी और उन्होंने ही कर्ण को भी ब्रह्मास्त्र का ज्ञान दिया था।

भगवान परशुराम इकलौते ऐसे विष्णु अवतार हैं संसार के सबसे बड़े गुरु भगवान परशुराम जिन्होंने श्रीराम और श्रीकृष्ण के विष्णु अवतार होने की बात को प्रमाणित किया था। भगवान श्रीराम ने जब शिव जी का धनुष तोड़ कर माँ जानकी से विवाह किया था तो उनका सामना भगवान परशुराम से भी हुआ था। भगवान परशुराम ने ही उन्हें अपना शारंग धनुष देकर श्रीराम के विष्णु अवतार होने की पहचान संसार को बताई थी।

महाभारत में भी श्रीकृष्ण और परशुराम जी के बीच मुलाकात का वर्णन है। भगवान परशुराम ने श्रीकृष्ण को भी भगवान विष्णु का अवतार होने की सत्यता को संसार को बताया था। लेकिन भगवान परशुराम ने क्यों अवतार लिया और उनके अवतार का उद्देश्य क्या सिर्फ सारे क्षत्रियों का संहार था तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। भगवान परशुराम चरित्र में परशुराम भगवान विष्णु के गुरु रुप अवतार हैं ठीक वैसे ही जैसे वेदव्यास भगवान विष्णु के अँशावतार हैं। जहां वेदव्यास ने वेदों और पुराणों की रचना कर सनातन धर्म को मजबूत किया उसी प्रकार भगवान परशुराम ने अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान भगवान शंकर से प्राप्त कर संसार को अस्त्रों और शस्त्रों के ज्ञान से समृद्ध किया।

क्या परशुराम जी ने सभी क्षत्रियों का संहार किया

परशुराम जी ने सभी क्षत्रियों का संहार किया ये तो कहीं नहीं लिखा है लेकिन भगवान परशुराम ने सिर्फ हैहय वँशी दुष्ट क्षत्रियों का संहार किया था। हैहय वँशी क्षत्रियों के राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने उनके पिता की हत्या कर दी थी और कार्तवीर्य अर्जुन के वंशजों ने ऋषियो और मुनियों की संपत्ति और भूमि पर कब्जा कर लिया था। परशुराम की लड़ाई सिर्फ हैहय वंश से थी ऐसे में भगवान परशुराम ने उस कार्तवीर्य अर्जुन का वध किया जिसे भगवान दत्तात्रेय ने एक हजार हाथ होने का वरदान दिया था। कार्तवीर्य अर्जुन को संसार में कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। कार्तवीर्य अर्जुन ने रावण को भी अपने कारागार में कैद कर लिया था। ऐसे कार्तवीर्य अर्जुन को जब अहंकार हो गया और उसने ऋषियों और मुनियों को सताना शुरु कर दिया था।

एक वक्त ऐसा आ गया जब कार्तवीर्य अर्जुन ने भगवान परशुराम की माँ रेणुका देवी का अपमान कर दिया था और बाद में भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमद्ग्नि का वध कर दिया था। अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए ही भगवान परशुराम ने रावण को पराजित करने वाले कार्तवीर्य अर्जुन का वध कर दिया। इसके बाद भी ये दुश्मनी समाप्त नहीं हुई और हैहय वंश के कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों और उनके वंशजों ने भगवान परशुराम के साथ युद्ध जारी रखा। इसी युद्ध के दौरान 21 बार भगवान परशुराम ने हैहयवंशी दुष्ट क्षत्रियों का विनाश कर दिया था।

भगवान परशुराम की किसी भी अन्य वंश के क्षत्रियों के कोई शत्रुता नहीं थी उन्होंने सिर्फ दुष्ट और अत्याचारी हैहयवंशी क्षत्रियों का ही नाश किया था।

संसार के सबसे बड़े गुरु भगवान परशुराम

भगवान परशुराम को अस्त्र शस्त्रों का सबसे बड़ा ज्ञाता माना जाता है। परशुराम के गुरु भगवान शंकर से उन्हें फरसा मिला था। जबकि वो भगवान विष्णु का शारंग धनुष भी धारण करते थे। संसार के सारे दिव्यास्त्रों का ज्ञान उन्हीं के पास था। भगवान श्रीराम ने जब शिव धनुष तोड़ा था तो उनका परीक्षा भी भगवान परशुराम ने ही ली थी। जब प्रभु श्रीराम ने परशुराम जी के शारंग धनुष को उठा लिया था तब परशुराम जी ने श्रीराम को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया था और वो महेंद्र पर्वत पर चले गए।

महाभारत के काल के तीन महान योद्धा भगवान परशुराम के ही शिष्य थे। भीष्म पितामह ने भगवान परशुराम से ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा ली थी। ये भगवान परशुराम की दी हुई शिक्षा ही थी कि भीष्म पितामह को महाभारत के युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सका। ये भगवान परशुराम की ही शिक्षा का परिणाम था कि भीष्म ने अपने ही गुरु परशुराम के साथ बराबरी का युद्ध किया था। भीष्म पितामह को उस वक्त कोई भी हरा नहीं सकता था। जब उनकी इच्छा हुई तभी शिखंडी को आगे कर अर्जुन ने भीष्म पितामह का वध किया था।

महाभारत के दूसरे महान योद्धा द्रोँणाचार्य भी भगवान परशुराम के ही शिष्य थे। ये भगवान परशुराम की दी हूई शिक्षा ही थी जिसे द्रोण ने अर्जुन सहित सारे पांडवो और कौरवो दी थी। ये भगवान परशुराम की ही शिक्षा थी कि गुरु द्रोणाचार्य को भगवान शंकर के अलावा कोई परास्त नहीं कर सकता था। द्रोणाचार्य को भी महाभारत के युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सका था।

महाभारत का तीसरा महान योद्धा कर्ण था जिसने गुरु परशुराम से शिक्षा पाई थी। लेकिन एक गलती की वजह से परशुराम जी को श्राप दे दिया था कि जब उसकी मौत करीब होगी तब वो सारी विद्या भूल जाएगा। ऐसा ही हुआ भी, पूरे महाभारत के दौरान भयंकर युद्ध करने वाला कर्ण अपने आखिरी वक्त में अपनी सारी विद्या भूल गया और अर्जुन को हाथों मारा गया।

भगवान परशुराम और गणेश जी का युद्ध

भगवान परशुराम ने अपनी सारी शिक्षा भोलेनाथ शिव से पाई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार अपने गुरु भगवान शंकर से मिलने के लिए परशुराम जी कैलाश पहुंचे। उस वक्त भोलेनाथ समाधि में लीन थे। उनके दरवाजे पर गणेश जी पहरा दे रहे थे। गणेश जी के रोकने पर भगवान परशुराम क्रोधित हो उठे और दोनों के बीच महाय़ुद्ध शुरु हो गया। कहा जाता है कि भगवान परशुराम जी ने उस युद्ध में गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया। तभी से भगवान गणेश एकदंत कहे जाने लगे।

भगवान परशुराम के फरसे से बना केरल राज्य

भगवान परशुराम और गणेश जी का युद्ध पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तब हुआ जब भगवान परशुराम जी ने हैहय वंशी क्षत्रियों से पृथ्वी को मुक्त करा दिया और उनका विनाश कर दिया तब उन्होंने सारी पृथ्वी ऋषि कश्यप जी को दान में दे दी। अब वो कहां रहें और कहाँ जाएं ये समस्या उत्पन्न हो गई। तब भगवान परशुराम जी ने भारत के दक्षिण दिशा की तरफ अपना फरसा फेंक कर मारा और वो समुद्र में जा गिरा। समुद्र ने भय से उस स्थान से अपना पानी हटा लिया जिस स्थान पर भगवान परशुराम का फरसा गिरा था। उस स्थान में भगवान परशुराम के फरसे से बना केरल राज्य।

कलरीपायपट्टु विद्या से जूडो कराटे तक

आज सारा संसार जिस ताइक्वांडो, कूंगफू और जूडो कराटे का दीवाना है उसे भी संसार को देने वाले भगवान परशुराम जी ही है। कलरीपायपट्टु विद्या से जूडो कराटे तक का ज्ञान भगवान परशुराम जी ने केरल में कलरीपायपट्टु नामक युद्ध विद्या को जन्म दिया जिससे आज के जूडो कराटे और ताइक्वांडो और कूंगफू बने हैं।

आप जान कर हैरान हो जाएंगे कि भगवान परशुराम की इस विद्या का ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण के पास भी था। इसी कलरीपायपट्टु युद्ध विद्या के कौशल से बालक से दिखने वाले दुबले पतले हमारे कोमल कन्हैया ने अपने हाथों से कंस का वध कर दिया था। कलरीपायपट्टु विद्या में अपने कोमल शरीर को वज्र जैसा शरीर बना कर शत्रु को पराजित किया जाता है।

भगवान परशुराम और कल्कि अवतार

भगवान परशुराम भगवान विष्णु के एकमात्र चिरंजीवी अवतार है। ऐसी मान्यता है कि वो आज भी महेंद्र पर्वत की किसी गुफा में समाधि में लीन हैं। और आज भी परशुराम की मृत्यु नहीं हुई है तथा जब कलियुग में पाप बढ़ जाएंगे और भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेकर पृथ्वी पर आएंगे तो एक बार फिर भगवान परशुराम आएंगे। और कल्कि भगवान के गुरु भगवान परशुराम ही भगवान कल्कि को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा देंगे जिसके द्वारा कल्कि भगवान कलि नामक असुर का वध कर कलियुग को समाप्त करेंगे और सतयुग की स्थापना करेंगे।

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