भगवान विष्णु के चरणों का महत्व

भगवान विष्णु के चरणों का महत्व
Published On: May 16, 2023

भगवान विष्णु के चरणों का महत्व

भगवान विष्णु के चरणों का महत्व तो कोई बता ही नहीं सकता लेकिन सनातन ग्रंथों में प्रभु चरणों की छोटी सी लीला के बारे में इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे तो भगवान विष्णु के चरणों में पहला अधिकार माता लक्ष्मी का है। भगवान विष्णु के चरणों में है मां लक्ष्मी ये तो हम सभी जानते हैं कि माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के चरणों में हमेशा विराजमान होती हैं। लेकिन विष्णु जी के चरणों की बात अगर आती है तो सीधे हमें राजा बली और भगवान विष्णु के वामन अवतार की बात सबसे पहले याद आती है। जब भगवान अदिति के गर्भ से प्रकट होकर राजा बली के यज्ञ में जाकर उनसे वचन लेकर सारी पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग आदि लोकों को अपने दो चरणों से नाप लिया था।

प्रमथ्य सर्वानसुरान् पादहस्ततलैर्विभु:।
कृत्वा रूपं महाकायं संजहाराशु मेदिनीम्। 62
तस्य विक्रमतो भूमिं चन्द्रादित्यौ स्तनान्तरे।
नभो विक्रममाणस्य सक्थिदेशे स्थितावुभौ। 63
(वामनपुराण, अध्याय- 31)

इस श्लोक के माध्यम से भगवान वामन ने अपने पैरों एवं हांथों के तलवों से सभी असुरों को रगड़ डाला। और बड़ा ही विशाल शरीर धारण करके सारी पृथ्वी को नाप लिया। भगवान का शरीर इतना विशाल था। कि जब वो अपने पैरों से पृथ्वी को नाप रहे थे। तो उनके शरीर के आधे भाग से ही सूर्य और चन्द्र उनके बगल में आ गए थे। इसी तरह से भगवान वामन ने बडे-बड़े असुरों का वध करके तथा तीनो लोकों को अपने पैरों से नापकर इन्द्र को सौंप दिया।

तो ये है भगवान विष्णु के वामन अवतार में किए गए चरणों का प्रभाव। लेकिन भगवान विष्णु के चरणों का प्रभाव यहीं खत्म नहीं होता बल्कि। भगवान वामन ने राजा बली को अपने चरणों करे प्रभाव से पाताल लोक का राजा बनाया और एक वादा भी किया।

सुतलं नाम पातालमधस्ताद् वसुधातलात्।
बलेर्दत्तं भगवता विष्णुना प्रभविष्णुना। 66
अथ दैत्येश्वरं प्राह विष्णु: सर्वेश्वरेश्वर:।
तत् त्वया सलिलं दत्तं गृहीतं पाणिना मया। 67
(वामनपुराण, अध्याय- 31)

भगवान विष्णु के अवतार वामन जी कहते हैं कि। पृथ्वी के नीचे स्थित पाताल लोक के एक भाग सुतल लोक को सौंप दिया। और बोले दैत्यराज बली तुम्हारी उम्र एक कल्प की होगी। और इस वैवस्वत मन्वन्तर खत्म हो जाने पर जो सावर्णिक मन्वंतर आएगा तो तुम उस मन्वंतर में इन्द्र के पद को प्राप्त करोगे। इस समय के लिए मैने सारी सृष्टी को वर्तमान के इन्द्र को सौंप दिया है।

वामन अवतार का ही एक प्रसंग जो कि भगवान विष्णु के चरणों में है मां लक्ष्मी हालाकि हम लोग गंगा जी के बारे में यही जानते हैं कि उनको राजा भगीरथ लेकर आए थे। वो बात तो ठीक है। लेकिन इनका जन्म भगवान विष्णु के चरणों से हुआ था। दरअसल जब भगवान वामन अपने चरणों से त्रिलोक को नाप रहे थे। तो ब्रह्मा जी ने उनके चरण धोकर उस जल को अपने कमण्डल में रख लिया था। उसके बाद से ही माता गंगा शिव जी के जटाओं में आ गईं। अर्थात माता गंगा भी भगवान विष्णु के चरणों के प्रभाव से ही उद्धृत हुई हैं।

तो ये थी भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार मे आकर अपने चरणों के प्रभाव से कितने विचित्र औऱ संसार कल्याण परक कार्य किए।

आद्यया गदया चासौ यस्माद्दैत्य: स्थिरीकृत:।
स्थित इत्येव हरिणा तस्मादादिगदाधर:।
(वायुपुराण,अध्याय-106)

यह श्लोक वायु पुराण के उस प्रसंग का है ब्रह्मा शिव समेत सभी देवता गयासुर के शरीर पर यज्ञ करते हैं। लेकिन इतने पर भी गयासुर बिल्कुल विचलित नहीं होता है। तभी भगवान विष्णु गदा,चक्र लेकर प्रकट होते हैं। औऱ गयासुर के सर पर अपने चरणों को रखते हैं तभी देवताओं का कार्य सिद्ध हो जाता है और सभी देवता गयासुर को वरदान देकर चले जाते हैं। भगवान विष्णु तभी से इस गया नगरी को मनुष्यों के पूर्वजों को स्वर्ग लोक भेजने के रास्ता बना देते हैं। अर्थात् जो भी अपने पितरों का श्राद्ध यहां करेगा उसके पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ती होगी।

हालाकि भगवान विष्णु के चरणों का महिमा जितनी की जाए उतनी कम है। लेकिन अभी तक हमने आपसे भगवान विष्णु चरणों की महिमा के बारे मे ही भी कहा है। उसके आगे चलें तो सीधे हम भगवान के अवतार श्रीराम की ओर चलते हैं। कि भगवान ने श्रीराम का अवतार लेकर अपने चरणों से तथा चरणों की धूल से क्या-क्या कार्य किया।

अब जब भगवान राम के चरणों की बात आती है तो सबसे पहले एक ही बात याद आती है कि उनके चरणों की धूल से हुआ अहिल्या का उद्धार तो यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में आता है। कथा है कि जब महर्षि विश्वामित्र श्रीराम औऱ लक्ष्मण सहित जनक मिथिला नगरी को जाते हैं। तो रास्ते में ही ऋषि गौतम का आश्रम मिलता है। और महर्षि विश्वामित्र गौतम ,अहल्या ,औऱ इन्द्र की कथा श्री राम को सुनाते हैं। कथा के अनुसार इंद्र ने अहल्या का शीलभंग किया था। जब अहल्या के पति गौतम को ये पता चलता है कि इंद्र ने अहल्या के साथ दुराचार किया है तो वो इंद्र के साथ साथ अहल्या को भी इस करतूत का दोषी बताते हुए उन्हें भी श्राप दे देते हैं –

वातभक्षा निराहारा तप्यन्ती भस्मशायिनी।
अदृश्या सर्वभूतानामाश्रमेस्मिन् वसिष्यसि। 30
यदा त्वेतद् वनं घोरं रामो दशरथात्मज:।
आगमिष्यन्ति दुर्धर्षस्तदा पूता भविष्यसि। 31
(वाल्मीकिरामायण,बालकाण्ड,सर्ग-48)

इस श्लोक के माध्यम से महर्षि शाप देते हुए कहते हैं। कि तू भी यहां कई हजार वर्षों तक केवल हवा पीकर या फिर उपवास करके कष्ट में राख में पड़ी रहेगी। कभी कोई सामान्य प्राणी तुम्हे देख भी नहीं पाएगा। जब भगवान विष्णु राजा दशरथ के यहां जन्म लेंगे तो उनके इस आश्रम में चरण मात्र पड़ जाने से तुम पवित्र हो जाओगी। उनका स्वागत-सत्कार करने से तुम सभी दोषों से मुक्त हो जाओगी। और अपने पुराने शरीर को धारण करके मेरे पास आ जाओगी

इसके बाद श्रीराम अहल्या के आश्रम में प्रवेश करते हैं। श्राप ग्रस्त अहल्या श्रीराम के चरण पड़ते ही अहल्या का उद्धार हो जाता है और वो शापमुक्त होकर अपने पति गौतम ऋषि के पास पहुंच जाती हैं।

लेकिन उनके चरणों का केवल इतना ही महात्म्य नहीं है।

हम सभी टी वी सीरियल्स में देखा ही होगा। कि भगवान राम के वन चले जाने पर अयोध्या में उनके चरणों की पादुका ने शासन किया था। जब श्रीराम वनवास में होते हैं तो भरत जी उनके पास आते हैं और उनसे वापस अयोध्या चलने के लिए कहते हैं। अपने पिता के वचनों का पालन करने वाले श्रीराम अपनी चरण पादुका भरत जी को दे देते हैं। भरत जी श्रीराम की चरण पादुकाओं को राज सिंहासन पर स्थापित कर अयोध्या का शासन अगले 14 वर्षों तक संभालते हैं।

देखा आपलोगों ने की भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के चरण मात्र पड़ जाने से आश्रम में हजारों सालों से शापित अहल्या भी मुक्त हो गई। और तो औऱ श्रीराम के चरणों को धारण करने वाली चरण पादुकाओं ने सारे संसार पर शासन किया।

अब बात करते हैं भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की महिमा की। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म तो मथुरा के कारागार में हुआ था। जब उनके पिता वासुदेव जी उन्हें अपने सिर पर टोकरी में बिठा कर नंदबाबा के घर ले जा रहे थे तो मार्ग में यमुना जी आ गईं और चरणों रज से यमुना का पानी हुआ पीछे। इसके बारे में इस श्लोक के जरिए जानते हैं-

मघोनि वर्षत्यसकृद् यमानुजा,गम्भीरतोयौघजवोर्मिफेनिला।
भयानकावर्तशताकुला नदी, मार्गं ददौ सिन्धुरिव श्रिय: पते:। 50
(श्रीमद्भागवत,स्कन्द-10,अध्याय-3)

इस श्लोक के माध्यम से शुकदेव जी कहते हैं। कि जैसे ही वसुदेव जी कारागार से निकलते हैं। तभी बड़ी जोरो की बारिश होती है। और यमुना में पानी तेजी से बढ़ने लगा था। दरअसल यमुना जी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों को छूने के लिए बेकरार हो रही थीं। जैसे ही उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श किया, उनका पानी तेजी से घटने लगा और उन्होंने श्रीकृष्ण को मार्ग दे दिया।

भगवान श्रीकृष्ण के चरणों का प्रताप से तो कालिया नाग भी पाप मुक्त हो गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार कालिया नाग और गरुड़ जी एक दूसरे के दुश्मन थे। गरुड़ जी एक श्राप की वजह से यमुना जी के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते थे। इसका फायदा उठा कर कालिया नाग ने यमुना जी के अंदर शरण ले रखी थी। लेकिन कालिया नाग की वजह से यमुना का जल जहरीला हो चुका था।

श्रीकृष्ण ने यमुना जी के जल को शुद्ध करने के लिए कालिया नाग का दमन किया और उसके फनों पर अपने चरण रख कर नृत्य करने लगे। जब कालिया नाग ने उन्हें ये बताया कि अगर वो यमुना छोड़ कर जाएगा तो गरुड़ उसे मार डालेंगे। तब श्रीकृष्ण ने कालिया नाग के फनों पर अपने चरणों के निशान बना दिये और कहा कि मेरे इन चरणों के निशान की वजह से गरुड़ उसे नहीं मार पाएंगे। कहते हैं तभी से नागों के सिर पर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के निशान पाए जाने लगे।

भगवान कृष्ण के चरणों के प्रभाव से और भी अनेक राक्षसों का कल्याण हुआ। तो कहने का मतलब सीधा सा है। कि भगवान विष्णु ने अपने अवतारों से तथा अपने चरणों से अनगिनत लोगों का उद्धार किया। और आगे भी करते रहेंगे।

किसी ने भगवान कृष्ण के चरणों पर बहुत अच्छा कहा है।

अविस्मृति: कृष्णपदारविन्दयो:,क्षिणोत्यभद्राणि शमं तनोति च।
सत्वस्य शुद्धिं परमात्मभक्तिं ज्ञानं च विज्ञानविरागयुक्तम्।

श्री कृष्ण के चरण कमलों का स्मरण सदा बना रहे तो उसी से पापों का नाश, कल्याण की प्राप्ति ,अन्त: करण शुद्धि, परमात्मा की भक्ति और वैराग्य युक्त ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति आपने आप ही हो जाती है। अर्थात् भगवान कृष्ण के चरणों का ध्यान मात्र करने से संसार की हर वस्तु को प्राप्त किया जा सकता है।

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