युधिष्ठिर यक्ष संवाद
भगवान ने हमें क्यों ये जीवन दिया है। इस जीवन का उद्देश्य क्या है। हम कौन हैं और कहाँ से आए हैं। ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके बारे में रामायण, महाभारत और वेदों में बहुत सारी बातें कही गई हैं। जीवन के उद्देश्य को लेकर महाभारत में एक ऐसा ही प्रश्न है युधिष्ठिर और यक्ष संवाद का। युधिष्ठिर तो धर्म के ज्ञाता थे ही लेकिन एक बार वो भी कुछ ऐसी मुसीबत में फंस गए जिसका हल एक ही था और वो था यक्ष के प्रश्नों के जवाब। लेकिन जो भी हो युधिष्ठिर और यक्ष के बीच हुए संवाद के अंदर जीवन का वो ज्ञान छिपा है यक्ष-युधिष्ठिर संवाद स्थल को अपने अन्दर बसा लेगा वह ज्ञान और उसकी पराकाष्ठा को समझ पाएगा। जो शायद ही आपको दुनिया के किसी ग्रंथ में मिले।
यक्ष कौन था और उसने युधिष्ठिर से जीवन से जुड़े कौन कौन से प्रश्न पूछे थे, उसे बताने से पहले हम आपको उस परिस्थिति के बारे में बता देते हैं जिसकी वजह से यक्ष और युधिष्ठिर संवाद हुआ और युधिष्ठिर को यक्ष के सवालों के जवाब देने पड़े थे।
महाभारत से युधिष्ठिर और यक्ष के बीच पूर्ण संवाद का प्रसंग तब आता है जब आरण्य पर्व के एक प्रसंग के अनुसार पांडव 13 वर्ष के वनवास के दौरान एक वन से दूसरे वन की यात्रा कर रहे थे तब उन्होंने एक वक्त अपना ठिकाना द्वैत वन को बनाया। उस वन में एक ब्राह्मण भी रहता था। एक दिन उस ब्राह्मण की आग जलाने वाली अरणी काष्ठ मंथन को एक हिरण लेकर भाग जाता है। पुराने जमाने में आग जलाने के लिए माचिस की तीली नहीं होती थी बल्कि एक लकड़ी का विशेष प्रकार का यंत्र होता था जिसमें एक लकड़ी को दूसरी लकड़ी से रगड़कर आग पैदा की जाती थी। हरेक व्यक्ति इसे अपने साथ लेकर चलता था। विशेषकर अग्निहोत्र ब्राह्म्णों को तो हमेशा आग जलाए रखने के लिए इस अरणी काष्ठ यंत्र की आवश्यकता पड़ती ही थी। सो उस ब्राह्मण ने तुरंत पांडवों से उस हिरण को पकड़ कर अरणी काष्ठ यंत्र वापस लाने की मांग कर दी। पांचो पांडव भाई उस हिरण के पीछे दौड़ पड़े। हिरण के सींगों के बीच वो अरणी काष्ठ यंत्र फंसी हुई थी। पांडवों को आते देख वो हिरण घने जंगल में भागने लगा और गायब हो गया। हिरण के पीछे भागते भागते पांचों पांडव भाई थक गए और एक वृक्ष के नीचे बैठ गए।
पांडवों को प्यास भी लगी थी इसलिए युधिष्ठिर ने सबसे पहले नकुल को पानी की तलाश में भेजा। नकुल जब पास के ही एक सरोवर के किनारे पहुंचे तो और वहाँ पानी पीने के लिए सरोवर के पास पहुंचे तभी एक आवाज़ गूंजी। यह आवाज के यक्ष की थी जो छिप कर एक पेड़ पर बैठा था। उस यक्ष ने कहा कि इस सरोवर पर मेरा अधिकार है। अगर तुमने पानी पीने की कोशिश की तो मारे जाओंगे। नकुल जी ने उस यक्ष की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसे ही पानी पीने की कोशिश की तो वो वहीँ बेहोश होकर गिर गए।
बहुत देर होने के बाद युधिष्ठिर ने सहदेव को नकुल की खोज और पानी लाने के लिए भेजा तो सहदेव भी उसी सरोवर के किनारे पहुंचे। जब उन्होंने अपने भाई नकुल को मरा हुआ देखा तो वो बहुत दुखी हुए लेकिन उन्हें भी तेज प्यास लगी थी तो वो भी पानी पीने की कोशिश करने लगे। तभी यक्ष ने उन्हें भी चेतावनी दी। सहदेव ने भी यक्ष की बात नहीं मानी और वो भी पानी पीने की कोशिश में मर गए।
इसके बाद युधिष्ठिर ने अर्जुन को वहाँ भेजा। जब अर्जुन ने अपने भाइयों को वहाँ मरा हुआ देखा तो वो भी रोने लगे। लेकिन उन्हें भी तेज प्यास लगी थी तो जैसे ही वो पानी पीने के लिए सरोवर के किनारे पहुंचे तो यक्ष ने उन्हें भी चेतावनी दी। अर्जुन ने गुस्से में हवा में बहुत सारे तीर चलाए लेकिन ये सभी तीर बेकार चले गए। आखिर में वो भी प्यास बुझाने के लिए सरोवर के तट पर पहुंचे और उनका भी हाल नकुल और सहदेव जैसा ही हो गया।
इसके बाद भीम को युधिष्ठिर ने भेजा तो भीम के साथ भी यही हुआ। आखिर में जब युधिष्ठिर वहाँ पहुंचे और अपने भाइयों को वहाँ मरे हुए देखा तो बहुत दुखी हुए। लेकिन बुद्धिमान युधिष्ठिर ने गौर किया कि न तो उनके भाइयों के शरीर पर किसी अस्त्र शस्त्र के निशान हैं और न ही वहाँ उनके भाइयो के अळावा किसी और के पैरों के निशान हैं। उन्हे ये समझ में आ गया कि ये किसी और ही शक्ति का काम है क्योंकि उनके भाइयों को मारने की ताकत तो किसी भी इंसान में नहीं है।
इसी सोच विचार के साथ जब वो सरोवर के तट पर पानी पीने के लिए उतरे तो यक्ष ने उन्हें भी चेतावनी दी। तब युधिष्ठिर रुक गए और उन्होंने उस आवाज से उसका परिचय पूछा। तब उस आवाज ने खुद को यक्ष बताया और कहा कि अगर तुमने मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया तो मैं तुम्हें सरोवर का पानी पीने दूंगा और तुम्हारे किसी एक भाई को जीवित भी कर दूंगा।
युधिष्ठिर यक्ष के सवालों का जवाब देते हैं यक्ष ने उनसे कई प्रश्न पूछे। जिनमें कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न कुछ इस प्रकार थे
यक्ष प्रश्न 1 – सूर्य को कौन ऊपर उठाता है?
सूर्य के चारों ओर कौन चलते हैं?
सूर्य को कौन अस्त करता है?
सूर्य किसमें प्रतिष्ठित है?
युधिष्ठिर का जवाब – सूर्य को ब्रह्म ऊपर उठाता है।
देवता सूर्य के चारों ओर चलते हैं।
धर्म सूर्य को अस्त करता है।
सत्य सूर्य में प्रतिष्ठित है।
यक्ष प्रश्न 2 – पृथ्वी से भारी क्या है?
आकाश से भी ऊंचा क्या है?
वायु से भी तेज कौन है?
तिनको से ज्यादा संख्या किसकी है?
युधिष्ठिर – माँ का गौरव सबसे भारी है।
पिता आकाश से भी ऊंचा है।
मन वायु से भी तेज है।
चिन्ताएं तिनकों से भी ज्यादा संख्या में हैं।
यक्ष प्रश्न 3 – कौन सोने पर भी आँखे नहीं मूंदता?
कौन जन्म लेने पर भी हरकत नहीं करता?
किसके अंदर दिल नहीं होता?
कौन वेग से आगे बढ़ता है?
यक्ष के इस प्रश्न का जवाब युधिष्ठिर ने कुछ यूँ दिया –
युधिष्ठिर – मछली सोने पर भी आँखे नहीं मूंदती।
अंडा जन्म लेने पर भी हरकत नहीं करता।
पत्थर में दिल नहीं होता।
और नदी वेग से आगे बढ़ती है।
युधिष्ठिर के इस जवाब पर पेड़ पर बैठे यक्ष ने कुछ और भी प्रश्न किये
यक्ष प्रश्न 4 परदेसी का दोस्त कौन होता है?
गृहस्थ का मित्र कौन होता है?
रोगी का मित्र कौन होता है?
मृत्यु के नजदीक पहुंचे व्यक्ति का साथी कौन है?
धर्मराज युधिष्ठिर ने यक्ष के इस सवाल का भी आसानी से जवाब देते हुए कहा कि –
युधिष्ठिर – परदेसी का दोस्त साथ में यात्रा करने वाला होता है।
गृहस्थ का मित्र उसकी पत्नी होती है।
वैद्य रोगी का सबसे खास मित्र होता है।
दान मृत्यु के पास पहुंचे व्यक्ति का साथी होता है।
युधिष्ठिर का सही जवाब सुनने के बाद यक्ष ने एक बार फिर प्रश्न किया
यक्ष प्रश्न 5 – समस्त प्राणियों का अतिथि कौन है?
सनातन धर्म क्या है?
अमृत क्या है?
यह सारा जगत क्या है?
यक्ष के इन प्रश्नों का भी जवाब धर्मराज युधिष्ठिर के पास था। युधिष्ठिर ने कहा कि –
युधिष्ठिर – अग्नि सभी प्राणियों का अतिथि है।
अविनाशी नित्य धर्म ही सनातन धर्म है।
गाय का दूध अमृत है।
और ये वायु ही सारा जगत है।
यक्ष युधिष्ठिर के इन जवाबों से हैरान हो गया और इसके बाद उसने फिर से प्रश्न पूछा कि–
यक्ष प्रश्न 6- अकेला कौन विचरता है?
दोबारा कौन जन्म लेता है?
ठंड की दवाई क्या है?
युधिष्ठिर – सूर्य अकेला ही विचरता है।
चंद्रमा एक बार जन्म लेकर दोबारा जन्म लेता है।
आग ठंड की दवाई है।
इसके बाद यक्ष ने एक बड़ा गहरा प्रश्न युधिष्ठिर से पूछ लिया जिसे सुन कर युधिष्ठिर भी सोच में पड़ गए –
यक्ष प्रश्न 7- किस व्यक्ति का त्याग कर मनुष्य प्रिय होता है?
किसको त्याग कर मनुष्य दुखित नहीं होता है?
किसको त्याग कर उसका जीवन अर्थवान होता है?
किसको त्याग कर मनुष्य सुखी होता है?
यक्ष के इन प्रश्नों को सुन कर युधिष्ठिर गंभीर हो गए और थोड़ी देर बात इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि –
युधिष्ठिर- अहंकार को त्याग देने पर मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है।
क्रोध को त्याग कर मनुष्य दुखित नहीं होता है।
काम वासना को त्याग कर मनुष्य का जीवन अर्थवान होता है।
लोभ को त्याग कर मनुष्य का जीवन सुखी हो जाता है।
यक्ष ने फिर युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के लिए कुछ और कठिन प्रश्न किये –
यक्ष प्रश्न 8- यह जगत किस वस्तु से ढका हुआ है?
यह जगत किसकी वजह से अंधेरे में रहता है?
मनुष्य मित्रों का त्याग क्यों कर देता है?
मनुष्य किन कारणों से स्वर्ग नहीं जा पाता है?
युधिष्ठिर ने यक्ष के इन गहरे सवालों का कुछ यूँ जवाब देते हुए कहा कि –
युधिष्ठिर – यह जगत अज्ञान से ढका हुआ है।
तमोगुण की वजह से जगत में अंधकार है।
लोभ की वजह से मनुष्य दोस्तों को छोड़ देता है।
मोह की वजह से मनुष्य पाप करता है और स्वर्ग नहीं जा पाता।
यक्ष युधिष्ठिर के सारे जवाबो से संतुष्ट था लेकिन फिर भी उसने अपने सवाल जारी रखे। उसके अगले प्रश्न कुछ इस प्रकार थे –
यक्ष प्रश्न 9- कौन इंसान जिंदा होकर भी मरे के समान है?
कोई देश किस प्रकार मरा हुआ माना जाता है?
संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर ने इन दो प्रश्नों का जवाब कुछ ऐसे दिया –
युधिष्ठिर – दरिद्र मनुष्य जिंदा होकर भी मरे के समान है।
राजा के बिना राष्ट्र मरे हुए के समान है।
सभी का मरना तय है फिर भी लोग सोचते हैं कि
वो नहीं मरेंगे यही सबसे बड़ा आश्चर्य है।
यक्ष ने एक बार फिर युधिष्ठिर से ऐसा सवाल किया जिसे सुन आप भी हैरान रह जाएंगे –
यक्ष प्रश्न 10- मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कौन है ?
लाइलाज बीमारी कौन सी है?
साधु किसे कहते हैं?
दुष्ट व्यक्ति किसे माना जाता है?
युधिष्ठिर ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि हे यक्ष –
युधिष्ठिर – क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
लोभ की बीमारी का कोई इलाज नहीं है।
जो सबका कल्याण चाहे वही साधु है।
निर्दयी व्यक्ति ही दुष्ट होता है।
वैसे तो यक्ष ने युधिष्ठिर से और भी कई सवाल किये लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर ने एक एक कर यक्ष के सारे प्रश्नो के जवाब दे दिये। इसके बाद यक्ष ने कहा कि युधिष्ठिर किसी भी एक भाई को जीवित करने का वरदान मांग लें।
इस पर युधिष्ठिर ने अपने भाई नकुल को जिंदा करने का वरदान मांगा तो यक्ष को आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि अर्जुन और भीम जैसे महाबलियों के रहते युधिष्ठिर क्यों तुम नकुल को जिंदा करना चाहते हो।
तब युधिष्ठिर ने कहा कि उनके पिता की दो पत्नियाँ कुंती और माद्री थी। वो चाहते हैं कि माद्री का एक पुत्र नकुल जीवित रहे और वो खुद तो कुंती के जीवित पुत्र हैं ही। इसके बाद यक्ष प्रसन्न होकर युधिष्ठिर के सभी चारों भाइयों को जीवित कर देते हैं
तभी अचानक यक्ष का रुप बदल जाता है और वो अपने असली रुप यानि धर्म के देवता के रुप में प्रगट हो जाते हैं। दोस्तों युधिष्ठिर धर्म के ही पुत्र थें। धर्म कहते हैं कि वो युधिष्ठिर से मिलता चाहते थे इसलिए उन्होंने हिरण बन कर ब्राह्मण की अरणी काष्ठ मंथनी को चुराया था और ये सारी लीला रची।
इसके बाद धर्म युधिष्ठिर को वरदान देते हैं कि अज्ञातवास में वो सभी भाइयों के साथ कोई भी रुप बदल कर छिप कर रह सकेंगे और कौरव उनका एक वर्ष तक पता नहीं लगा पाएंगे।