हम सभी जानते हैं कि महावीर हनुमान जी का अवतार ही राम काज करिबै को आतुर के उद्देश्य से हुआ था। महावीर हनुमान जी एक पल के लिए भी प्रभु श्रीराम से अलग नहीं होते थे। तो आखिर कैसे ये संभव हुआ कि हनुमान जी के रहते काल अयोध्या में आ धमका और प्रभु श्रीराम ने अपने शरीर का त्याग कर वैकुँठ धाम प्रस्थान कर लिया। क्यों हनुमान जी नहीं कर पायें श्रीराम के प्राणों की रक्षा सनातन धर्म के अनुसार जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। क्योंकि मृत्यु शरीर की होती है आत्मा की नहीं। भगवान विष्णु ने भी मनुष्य शरीर ही धारण कर श्रीराम के रुप में अवतार लिया था, इसलिए एक न एक दिन उन्हें भी अपने शरीर का त्याग करना था और उनके शरीर की मृत्यु भी तय थी।
वाल्मीकि रामायण की कथा के अनुसार जब प्रभु श्रीराम ने पृथ्वी पर ग्यारह हजार वर्षों तक शासन किया और पृथ्वी पर धर्म की संस्थापना कर ली तो उनका पृथ्वी पर सारा काम समाप्त हो गया था। ऐसे में ब्रह्मा जी ने प्रभु श्रीराम को उनके मूल स्वरुप यानी विष्णु स्वरुप में लौटाने के लिए योजना बनाई। लेकिन ऐसा तभी संभव था जब प्रभु श्रीराम इसके लिए अनुमति देते। सो ब्रह्मा जी ने बनाया काल को अपना दूत और प्रभु श्रीराम के पास भेजा। जब काल प्रभु श्रीराम के पास पहुंचा तो वो जानता था कि अगर हनुमान जी को ये पता चल गया कि काल प्रभु श्रीराम को वैकुँठ ले जाने लिए आया है तो वो काल को ऐसा करने से रोक देते।
तो ऐसे में काल ने प्रभु श्रीराम से ये प्रार्थना की कि वो ब्रह्मा जी के जिस संदेश को सुनाना चाहता है उसे वो एकांत में सुनाना चाहता है। काल ने प्रभु श्रीराम से प्रार्थना की कि उनके और श्रीराम के बीच के संवाद के दौरान कोई भी उपस्थित न रहे। अगर किसी ने उस संदेश के बीच में कोई बाधा डाली तो प्रभु उसे मृत्युदंड देंगे।
प्रभु श्रीराम जानते थे कि अब उनके शरीर त्याग का वक्त आ गया है। अब वो मृत्यु का वरण करेंगे और अपने मूल स्वरुप यानी भगवान विष्णु के रुप में वापस वैकुँठ में विराजेंगे। सो प्रभु ने तुरंत लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि वो उनके महल का पहरा दें और किसी को भी अंदर आने न दें। अगर कोई इस बीच अंदर आता है तो वो तत्काल उस व्यक्ति को मृत्यु दंड दे देंगे। लेकिन कुछ रामकथाओं के अनुसार लक्ष्मण जी को ऐसा आदेश देने के पहले प्रभु श्रीराम को ये अंदेशा हो गया कि अगर बीच में महावीर हनुमान जी वहाँ आ गए तो कहीं वो काल को ही मृत्यु के मार्ग पर न भेंज दें।
इसलिए प्रभु ने एक लीला रची
यमराज को आने देने के लिये और अपने भक्त हनुमान जी को अयोध्या से दूर भेजने के लिये प्रभु श्रीराम ने अपनी एक अंगूठी को महल के एक छोटे से छेद में गिरा दी। श्रीराम ने दी हनुमान जी को अंगूठी तलाश की आज्ञा। राम आज्ञा के पालन के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले महावीर हनुमान जी तुरंत उस अंगूठी की तलाश में उस छेद के अंदर भंवरे का रुप धारण कर प्रवेश कर जाते हैं जिस छेद में श्रीराम ने माया के द्वारा अपनी अगूँठी गिरा दी थी।
ये कोई मामूली सा छेद नहीं था बल्कि ये नागलोक जाने का मार्ग था जहाँ के राजा नागराज वासुकि थे। हनुमान जी उस छेद के रास्ते से नागलोक पहुंच जाते हैं और वहाँ राजा वासुकि को उस अंगूठी के बारे में बताते हैं। वासुकि हनुमान जी को नागलोक में एक स्थान पर ले जाते हैं जहाँ एक दो नहीं बल्कि श्रीराम नाम की अंगूठियों का एक पहाड़ सा था। यहाँ पर करोड़ों की संख्या में ठीक उसी अंगूठी की तरह अंगूठियाँ थी जिसे श्रीराम ने नागलोक में गिराया था। भगवान शिव के गले में विराजित रहने वाले नागराज वासुकि भी अमर प्राणियों में एक हैं। उन्होंने हनुमान जी से आग्रह किया कि वो इन अगूँठियों में उस अंगूठी को खोज लें जिसकी वो तलाश कर रहे हैं।
अब हनुमान जी उस एक जैसी रामनामी अगूंठियों में उस अंगूठी को ढूंढने लगे तो परेशान हो गए क्योंकि सारी अंगूठियाँ एक जैसी ही थीं। तब नागराज वासुकि ने हनुमान जी के सामने एक रहस्य खोला। उन्होंने कहा कि ब्रह्मा जी का एक दिन एक कल्प कहा जाता है जो अरबों वर्षों का होता है।
हरेक कल्प में 14 मनवंतर होते हैं। हरेक मनवंतर में 71 चतुर्युग होते हैं। हरेक चतुर्युग एक सतयुग, एक त्रेतायुग , एक द्वापर युग और एक कलियुग का सेट होता है। यानि एक ही मनवंतर में 71 त्रेतायुग आते हैं और 71 बार श्रीराम का अवतार होता है। ब्रह्मा जी की उम्र अभी पचास साल ही है। इस हिसाब से अभी तक श्रीराम करोड़ों बार पृथ्वी पर अवतार ले चुके हैं और करोडों बार उन्होंने अपनी अंगूठी इस प्रकार नागलोक में भेजी है और करोड़ों बार हनुमान जी इस स्थान पर श्रीराम की अंगूठी को खोजने के लिए आ चुके हैं।
अब हनुमान जी हैरत में पड़ गए और उन्हें श्रीराम की लीला समझ में आ गई कि प्रभु अब इस संसार का त्याग करने वाले हैं और इसी लिए उन्होंने अपनी लीला के द्वारा उन्हें नागलोक भेज दिया है ताकि वो काल को रोक न सकें। यही हुआ भी। काल ने श्रीराम को ब्रह्मा जी का संदेश सुनाया और श्रीराम ने पृथ्वी पर अपने शरीर का त्याग करने का फैसला कर लिया। लेकिन इसी वक्त दुर्वासा मुनि द्वार पर आ धमके और श्रीराम से मिलने की इच्छा जाहिर कर दी। जब लक्ष्मण जी ने दुर्वासा जी को रोकने की कोशिश की तो दुर्वासा जी ने क्रोध में अयोध्या को भस्म करने की धमकी दे दी।
लक्ष्मण जी ने दुर्वासा जी को श्रीराम के पास भेज दिया। अब श्रीराम के आदेश के अनुसार लक्ष्मण जी को दंड मिलना तय था। लक्ष्मण जी ने श्रीराम के इस आदेश का पालन किया और सरयू में जाकर उन्होंने भी अपने शरीर का त्याग कर दिया। जब तक हनुमान जी लौट कर आते तब तक श्रीराम ने भी अयोध्या की पूरी जनता के साथ सरयू में अपने शरीर का त्याग कर दिया और वो अपनी जनता के साथ वैकुँठ में विष्णु स्वरुप में प्रवेश कर गए। जैसा ही महावीर हनुमान जी को श्रीराम ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। हनुमान जी पृथ्वी पर आज भी अपने प्रभु के नाम का सुमिरन कर श्रीराम नाम को संसार में विस्तारित कर रहे हैं।