राम-सीता और कृष्ण-राधा का प्रेम संसार में अमर हैं लेकिन दोनों प्रेम कहानियां अधूरी रह गई हैं। क्योंकि दोनों प्रेम कहानियों में ब्रेक लगा है उसमें टूटन आई है। श्रीराम ने सीता से विवाह के लिए शिव का धनुष तोड़ दिया था। अपनी प्रिया सीता के लिए उन्होंने समुद्र पर सेतु बांध दिया था। अपनी अर्धांगिनी के प्रेम में उन्होंने त्रिलोक विजयी रावण का वध कर दिया था, फिर भी उन्हें मां सीता का त्याग करना पड़ा। उसी तरह लक्ष्मी स्वरुपा राधा रानी और हमारे कन्हैया के दिव्य प्रेम पर सारी दुनिया कुर्बान हैं। दोनों के प्रेम पर लाखों कविताएं और हजारों ग्रंथ लिखे गए लेकिन राधा कृष्ण की अमर प्रेम की कहानी अधूरी रह गई। राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी भी मंजिल पर नहीं पहुंच पाई और राधा रानी द्वारका की रानी नहीं बन पाईं।
किसने राम को सीता से और कृष्ण को राधा से अलग किया
सवाल है कि राम को सीता से किसने अलग किया, कृष्ण को राधा से किसने अलग किया इन सवालों का जवाब हमें वाल्मिकि रामायण में मिलता है। दरअसल श्रीराम और माँ जानकी की जोड़ी के टूटने और राधा रानी और श्रीकृष्ण के एक न हो पाने की कहानी भगवान विष्णु को मिले एक श्रॉप से जुड़ी है। सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण दोनों ही भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। वाल्मीकि रामायण में भगवान विष्णु को मिले एक शाप की कथा आती है, जिसके अनुसार वो जब-जब अवतार लेंगे उन्हें माँ लक्ष्मी का वियोग सहना पड़ेगा और माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की जोड़ी पृथ्वी पर हमेशा टूटेगी।
भृगु ऋषि का श्रॉप बना कारण
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के सर्ग 49 में जब लक्ष्मण जी मंत्री सुमंत्र से ये पूछते हैं कि आखिर श्रीराम ने माँ जानकी का त्याग करने का अधर्म क्यों किया। तो सुमंत्र जी बताते हैं कि उन्हें दुर्वासा मुनि ने एक कथा सुनाई थी। इस कथा के अनुसार प्राचीनकाल में दैत्यों और देवताओं के संग्राम में जब दैत्यों की हार हुई तो उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए भृगु ऋषि की पत्नी के आश्रम मे शरण ले ली। भृगु ऋषि की पत्नी ने इन दैत्यों को अभयदान दे दिया। जिसके बाद देवताओं से डरे बिना दैत्य निडर होकर वहाँ रहने लगे। ये देख भगवान विष्णु को अचानक क्रोध आ गया और उन्होंने क्रोध में आकर भृगु ऋषि की पत्नी का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया।
भृगु ऋषि को जब ये पता चला कि भगवान विष्णु ने बिना किसी अपराध के ही उनकी पत्नी का वध कर दिया तो ऋषि ने भगवान विष्णु को शाप दे दिया। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के सर्ग 49 के इस श्लोक को देखिए –
यस्माद्वध्यां मे पत्नीमवधीः क्रोधमूर्च्छितः ।
तस्मात् त्वं मानुषे लोके जनिष्यसि जनार्दन ।।
तत्र पत्नी वियोगं त्वां प्राप्यस्यसे बहुवार्षिकम् ।
अर्थात – हे जनार्दन विष्णु ! मेरी पत्नी वध के योग्य नहीं थी। लेकिन आपने क्रोध से मूर्च्छित होकर उसका वध किया है, इसलिए आपको मनुष्य लोक में जन्म लेना पड़ेगा और वहाँ बहुत वर्षों तक आपको अपनी पत्नी यानि लक्ष्मी के वियोग का कष्ट सहना पड़ेगा। इस तरह से भृगु ऋषि का श्राप बना कारण कि माता सीता और राधारानी से भगवान को अलग रहना पड़ा।
भक्तों में वश में रहने वाले भगवान श्री हरि विष्णु ने भृगु ऋषि के इस शाप को स्वीकार किया और इसके बाद से जब भी भगवान विष्णु धर्म की संस्थापना के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं उनके साथ माँ लक्ष्मी भी कभी सीता बन कर तो कभी राधा रानी बन कर अवतरित होती हैं। हर बार विष्णु और लक्ष्मी की जोड़ी पृथ्वी लोक में टूटती है और दोनों एक हो कर भी एक नहीं हो पाते हैं। ऐसी ही एक शाप की कथा नारद मुनि से भी जुड़ी है, जिसमें नारद भगवान विष्णु को शाप देते हैं कि वो जब भी पृथ्वी पर अवतार लेंगे उन्हें अपनी पत्नी यानि लक्ष्मी जी से अलग होना पड़ेगा।