कर्ण को किस-किसने हराया
हम लोग कई कथाओं से ये सुनते आए हैं कि कर्ण कितना महान था कितना बड़ा वीर योद्धा था लेकिन जब हम महाभारत से कर्ण के संपूर्ण चरित्र को देखते हैं तो पता चलता है कि कर्ण की वीरता का सत्य क्या था। कर्ण को कई नामों से पुकारा जाता है कोई सूत पुत्र कहता है तो कोई सूर्यपुत्र तो कोई सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर तो कोई ज्येष्ठ पांडव और कुछ तो ये भी कहते है कि कर्ण दुर्योधन का हितैषी था हमने कई कथाओं के माध्यम से सुना है कि कर्ण तो अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धर था लेकिन जब प्रमाण की बात आती है तब महाभारत में देखने से ये पता चलता है कि कर्ण को अर्जुन ने कई बार हराया था। इसके अलावा केवल अर्जुन ही नहीं और भी कई योद्धाओं ने कर्ण को हार का मुंह दिखाया था केवल हार ही नहीं ऐसी हार जब कर्ण को पीठ दिखा कर भागना पड़ा था।
गंधर्वों ने कर्ण को भागने पर मजबूर कर दिया था
यह प्रसंग महाभारत के उस समय का है जब पांडव अपने 12 वर्ष के वनवास को वन में रहकर शान्ति से व्यतीत कर रहे थे तभी शकुनी के कहने पर दुर्योधन पांडवों को परेशान करने के लिए उसी वन में एक तालाब के पास रहने का फैसला करता है लेकिन जब देखता है कि एक गंधर्व वहां अपने सेवकों के साथ विहार कर रहा होता है और दुर्योधन तथा गंधर्वों में युद्ध होने लगता है गंधर्व से युद्ध में सबसे पहले कर्ण हारा, तथा विकर्ण के रथ में बैठकर भाग गया-
ततो रथादवप्लुत्य सूतपुत्रोSसिचर्मभूत।
विकर्णरथमास्थाय मोक्षयाश्वानचोदयत्।।32 (महाभारत,वनपर्व,अध्याय-241)
जब कर्ण को गंधर्वों ने हराया तब सूतपुत्र कर्ण हाथ में तलवार और ढाल लिए अपने रथ से कूद पड़ा और विकर्ण के रथ पर बैठकर अपने प्राण बचाने के लिए उसके घोड़ी को जोर-जोर से हांकने लगा गंधर्वों के साथ युद्ध में कर्ण के भाग जाने से दुर्योधन की पराजय हुई और गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया फिर युधिष्ठिर के कहने से अर्जुन और भीम ने दुर्योधन को गंधर्वों की कैद से आजाद कराया।
विराटयुद्ध में अर्जुन के डर से भागा कर्ण
पांडवों को मिले बारह वर्ष के वनवास को पूरा करने के बाद पांचो भाई अपनी पत्नी द्रौपदी सहित अपने एक साल के अज्ञातवास को पूरा करने के लिए विराटनगर में भेष बदलकर रहने लगे लेकिन द्रौपदी पर गंदी नजर से देखने के कारण भीम ने कीचक को मार दिया और दुर्योधन को शक हुआ कि कीचक को भीम ने ही मारा है तभी अपनी सेना और अपने मित्र कर्ण को लेकर दुर्योधन ने विराटनगर पर आक्रमण कर दिया द्रौपदी के कहने पर विराट नगर के राजकुमार उत्तर अपने साथ बृहन्नला रूप धारी अर्जुन को सारथी बना कर युद्ध में ले गए दुर्योधन की सेना के साथ अर्जुन ने युद्ध किया और कर्ण पर बाणों की बारिश करना शुरु कर दिया तभी विराट युद्ध में भी अर्जुन से हारे कर्ण और युद्ध छोड़कर भाग गए।
स पार्थमुक्तैरिषुभिः प्रणुन्नो गजो गजेनेव जितसेतरस्वी।
विहाय संग्रामशिरः प्रयातो वैकर्तनः पाण्डवबाणतप्तः। ।36
(महाभारत,विराटपर्व,अध्याय-54)
अर्जुन के छोड़े हुए बाणों की चोट खाकर सूर्यपुत्र कर्ण तिलमिला उठा और एक हांथी से पराजित हुए दूसरे हांथी की तरह वह अर्जुन के बाणों से डरकर युद्ध का मुंह छोड़ कर भाग गया कर्ण केवल युद्ध में भागने में वीर था कर्ण के डर और दुर्योधन की सेना की हार से खुश होकर अर्जुन और राजकुमार उत्तर विराटनगर को चले गए।
महाभारत युद्ध में जयद्रथ को मारने की अर्जुन प्रतिज्ञा के बीच कर्ण आकर खड़ा हो गया और अर्जुन और कर्ण का घोर युद्ध होने लगा दोनो एकदूसरे को घायल करने लगे और आखिर में अर्जुन ने कर्ण को उसके सारथी घोड़ों सहित उसे घायल कर दिया और कर्ण रथ से नीचे गिर पड़ा-
छादयामास स शरैस्तव पुत्रस्य पश्यतः।
संछाद्यमानः समरे हताश्वो हतसारथिः।।
(महाभारत,द्रोणपर्व,अध्याय-145)
दुर्योधन के देखते-देखते अर्जुन ने कर्ण को बाणों से ढक दिया घोड़े और सारथि के मारे जाने पर युद्ध में बाणों से ढके हुए कर्ण को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए तब अश्वत्थामा के रथ में बैठकर भाग गया।
अभिमन्यु ने कर्ण को धूल चटाया
महाभारत के युद्ध में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने कौरव सेना और योद्धाओँ पर ऐसे बाण बरसाए की कोई उसके सामने टिक ही नहीं पा रहा था तभी दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अभिमन्यु का सामना किया और अभिमन्यु ने भी कर्ण को पराजित किया था फिर अभिमन्यु ने पराजित और निहत्थे कर्ण पर वार नहीं किया-
सच्छत्रध्वजयन्तारं साश्वमाशु स्मयन्निव।
कर्णोपि चास्य चिक्षेप बाणान् संनतपर्वणः।। ।34
ततो मुहूर्तात् कर्णस्य बाणेनैकेन वीर्यवान्।।35
(महाभारत,द्रोणपर्व,अध्याय-40)
अभिमन्यु ने कर्ण के रथ के ध्वज, सारथी और घोडों को रथ से अलग कर दिया तथा कर्ण को भी घायल कर दिया और दो ही घड़ी में पराक्रमी वीर अभिमन्यु ने एक बाण मारकर कर्ण के ध्वज सहित धनुष को भी पृथ्वी पर काट गिराया कर्ण को फिर से हार का सामना करना पड़ा कर्ण को इस स्थिति में देखकर उसका भाई अभिमन्यु से युद्ध करने लगा और अभिमन्यु के हांथों से उसका वध भी हो गया।
भीम के डर से युद्ध छोड़कर भागा कर्ण
भीम के डर से युद्ध छोड़कर भागा कर्ण दरअसल अभिमन्यु का वध हो जाने के बाद अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा लेकर उसकी तरफ बढ़ना शुरु किया और युधिष्ठिर के कहने पर भीम अर्जुन की सहायता के लिए आगे बढ़े लेकिन बीच में दुर्योधन के भाइयों के द्वारा रोके जाने पर दुर्योधन के बारह भाइयों का भीम ने वध कर दिया और भीम के साथ कर्ण युद्ध करने के लिए आगे आ गया भीम और कर्ण के युद्ध को सभी योद्धा देखने लगे। भीम और कर्ण का युद्ध भयंकर होता जा रहा था कर्ण भीम को अर्जुन के पास जाने से रोक रहा था लेकिन युद्ध में भीम ने कर्ण को बुरी तरह से घायल कर दिया और उसको मारने के लिए आगे बढ़े तभी कर्ण मरने के डर से वृषसेन के रथ में बैठकर भाग गया-
हतश्वात् तु रथात् कर्णः समाप्लुत्य विशाम्पते।
स्यन्दनं वृषसेनस्य तूर्णमापुप्लुवे भयात्। ।33
(महाभारत,द्रोणपर्व,अध्याय-129)
उस समय कर्ण भीम के डर से अपने रथ से गिरा होने के कारण वृषसेन के रथ में जाकर बैठ गया और घायल होकर भाग गया भीम श्रेष्ठ गदाधारी होने के साथ-साथ अच्छे धनुर्धर भी थे और उन्होंने कर्ण को युद्ध भूमि छोड़कर भागने पर मजबूर भी कर दिया था केवल एक बार ही नहीं बल्कि दूसरे दिन फिर से भीम ने कर्ण को सभी अस्त्रों से हराया और कर्ण को घायल कर दिया जिसके कारण कर्ण फिर से युद्ध छोड़कर भाग गया-
स विह्वलो महाराज कर्णो भीमशराहतः।
प्रादवज्जवनारश्वै रणं हित्वा महाभयात्। ।33
(महाभारत,द्रोणपर्व,अध्याय-134)
भीम के बाण से घायल और डरा हुआ कर्ण युद्ध छोड़कर घोड़ों सहित भाग गया भीमसेन के साथ एक बार फिर कर्ण का युदध हुआ लेकिन फिर कर्ण युद्ध छोड़कर भाग गया और दुर्योधन से कहने लगा की भीम ने मुझे इतना घायल कर दिया है कि मैं आज युद्ध नहीं कर सकता-
दृढ़लक्ष्येण वीरेण भीमसेनेन धन्विना।
भृशं भिन्नतनुः संख्ये शरजालैरनेकशः।।25
(महाभारत,द्रोणपर्व,अध्याय-145)
कर्ण दुर्योधन से कहता है कि अच्छे लक्ष्यवाले वीर धनुर्धर भीमसेन ने युद्ध में अपने बाणों से कई बार मेरे शरीर को क्षत-विक्षत किया है इसलिए मुझे यहीं खड़ा रहने दो।
सात्यकि के द्वारा कर्ण की पराजय
कर्ण को अर्जुन भीम और अभिमन्यु से ही नहीं सात्यकि के द्वारा कर्ण की पराजय भी हुई थी, भूरिश्रवा से परास्त होने पर तथा रथहीन होने पर सात्यकि भगवान श्रीकृष्ण के रथ से युद्ध करने लगे तथा कर्ण पर आक्रमण किया कर्ण को घायल करके उसे पराजित कर दिया पराजित होने पर कर्ण दुर्योधन के रथ में जाकर बैठ गया-
कर्णोंपि विरथो राजन सात्वतेन कृतः शरैः।
दुर्योधनरथं तूर्णमारोह विनिःश्वसन्। ।38
(महाभारत,द्रोणपर्व,अध्याय-147)
सात्यकि के बाणों से घायल और अपनी रथ से गिरा हुआ कर्ण सात्यकि के डर से भागकर दुर्योधन के रथ में जाकर बैठ गया।
कर्ण एक महान योद्धा तो था लेकिन ये नहीं कह सकते कि वो अर्जुन की तरह अजेय था। कर्ण को कई बार हार का मुह देखना पड़ा और युद्ध भूमि छोड़कर भागना भी पड़ा। अर्जुन और भीम ने अनेक बार कर्ण को पराजित किया और जीवन दान भी दिया। अर्जुन भीम के अलावा भी कर्ण कई बार पराजित हुआ और अपनी जान बचा कर भागा, लेकिन अर्जुन महाभारत का इकलौता योद्धा था जिसे आज तक न तो देवता, न राक्षस, न गंधर्व और न ही कोई मनुष्य पराजित कर पाया था। जबकि कर्ण को कई बार युद्ध में पराजय को मुँह देखना पड़ा था।