वेदों के बाद पुराणों का काल आया तो कई पौराणिक देवी देवता भी पूजे जाने लगें। विशेषकर त्रिदेवों की संकल्पना इस काल में बहुत प्रसिद्ध हुई। त्रिदेवों में ब्रह्मा ,विष्णु और महेश आते हैं। इनमें भी ब्रह्मा की पूजा कुछ वक्त बाद बंद कर दी गई और प्रमुख रुप में विष्णु और शिव की पूजा प्रचलित हो गई। बाद के काल में विष्णु के कई अवतारों की पूजा भी शुरु हो गई। विष्णु के अवतारों में प्रमुख रुप से भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की पूजा प्रसिद्ध हो गई।
देवताओं के साथ साथ कुछ देवियों की पूजा भी संभवतः पौराणिक काल में शुरु हो गई। इन देवियों में प्रमुख रुप से दुर्गा, काली ,गायत्री ,सरस्वती, लक्ष्मी और गंगा प्रमुख हैं। समय बदला तो इन देवी देवताओं के अलावा कई स्थानीय देवी देवता भी प्रसिद्ध हो गए। इनमें दक्षिण भारत में अयप्प , उत्तर भारत में विश्वकर्मा, गणेश जी, और हनुमान जी प्रसिद्ध हो गए। धीरे धीरे कुछ गुरुओं को भी भगवान के रुप में पूजा जाने लगा। कुछ निर्गुण संप्रदायों में गुरु के साथ साथ निराकार ब्रह्म की भी पूजा की जाने लगी।
आज के समय में हम अपने स्वार्थ और लालच के कारण किसी को भी देवता मानकर पूजने लगते हैं। अपने देवताओं को छोडकर अनेक प्रकार के संसारिक प्राकृतिक एंव मानवनिर्मित देवता मानकर ग्रह, नक्षत्र, नदी, नाग, पितर, झाड़ और गुरुओं को पूजने में लग जाते है। शायद यही हमारे पतन का कारण भी है। सनातन संभ्यता संस्करों और धर्म को ना जानने वाले लोग ही हमको अनेक प्रकार की झूठी साधना- समाधि का ज्ञान दे रहें हैं। सड़क के किनारे बैठे कोई भी महाराज को हम माथा टेकते रहते हैं।
कैसे बनाए जाते हैं देवी देवता?
हम अक्सर यात्राओं के दौरान देखते हैं कि रास्ते के किनारे में छोटी छोटी मंदिरों को लोग पूज रहें हैं। अब आप सोच रहें होगें कि ये कौन से देवी देवता होते हैं जिनकी लोग रास्तों में मंदिर बना कर पूज रहे हैं।। तो हम आपको बता दें कि अगर हिंदू धर्म को मानने वाले किसी व्यक्ति की सड़क हादसे में जब मौत हो जाती है तो वहां पर उसके नाम का एक पत्थर रखकर उस पर सिंदूर लगा दिया जाता है। उसके परिवार वाले कुछ समय तक वहां पर अगरबत्ती आदि लगाते रहते हैं। कुछ समय के बाद वो तो आना बंद कर देते हैं। लेकिन स्थानीय लोग जानकारी के अभाव में उस पत्त्थर को भैरों महाराज या कोई लोकल देवता मानकर पूजने लग जाते हैं। बाद में वो मंदिर का रुप ले चुका होता है। ऐसा ही मुस्लिमों के साथ भी होता है। कई लोग किसी अनाम लोगों की कब्रों को मजार या दरगाह बना कर उसकी उपासना करने लगते हैं।
क्या हिंदुओं को समाधि, दरगाह या मजार पर जाना चाहिए?
सनातन धर्मं मे मरने वाले लोगों का दाह संस्कार ही होता है। लेकिन सनातन धर्म को मानने वाले संत जैसे- नाथसंप्रदाय, नागा साधु, नंदीसंप्रदाय, बैरागी समाज और भी बहुत सारें संप्रदाय को मानने वालें मृतकों का दाह संस्कार नहीं होता है। उनको अग्नि में जलाने के बजाय समाधि प्रदान की जाती है। कुछ समय पहले तक उनको सरकार द्वारा भूमि भी प्रदान की जाती थी, पर अब ये सुविधा सिर्फ मुस्लिमों को ही मिलती है। ये नियम भी केवल सरकार का सनातन धर्म को मानने वाले हिंदुओं के लिए ही है।
सनातन को मानने वाले साधु संतों की समाधियाँ अब निजी जमीनों पर भी बनाई जाने लगी हैं। कालांतर में समाधि स्थल के ऊपर कोई मूर्ति या शिवलिंग स्थापित कर दिया जाता है। कुछ साल बीतने के बाद उस समाधि स्थल को लोगों के द्वारा मंदिर का रुप दे दिया जाता है। बहुत से मुस्लिमों की कब्रों को दरगाह का रुप भी दे दिया जाने लगा है जहाँ हिंदू भी पूजा करने पहुंच जाते हैं ऐसी समाधियों और मजारों या दरगाहों पर हरेक वर्ष धार्मिक उत्सवो का भी आयोजन किया जाने लगा है। आजकल बहुत सारे हिंदू मुस्लिम सूफियों की दरगाहों या मजारों पर जाकर पूजा पाठ करने लगे हैं जिसे लेकर हिंदू धर्म की मान्यताओं में बहुत विवाद है।
भूत पिशाचों की पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए?
आज कल लोगों का रुझान तंत्र पर भी बहुत अधिक होने लगा है। तंत्रशास्त्र में कई लोग भूत और पिशाच की पूजा करते हैं।। पिशाच शब्द से ही ये मालूम पड़ता है कि ये कोई खतरनाक और निकृष्ट योनि पूजा है। ये सब तंत्र के अंतर्गत ही आते हैं। इनके अलावा योगिनी, चारण, पितर, यक्षिणी, किन्नर, डाकिनी-शाकिनी, विद्याधर, गुह्यक, दैत्य, दानव, राक्षस, भूत, वेताल, अघोर ग्रह-नक्षत्र, यक्ष, नायिका और नागों की भी लोग पूजने लगें है। जो बिल्कुल भी उचित नही है।
भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार किसकी पूजा करनी चाहिए?
सनातन हिंदू धर्म ग्रंथों में भूतों, पिशाच या मरे हुए लोगों की पूजा को बहुत निकृष्ट माना गया है। पुराणों और गीता के अनुसार सनातन धर्म मे मरे हुए व्यक्ति या भूतों की पूजा करने वाले को तामसी या बहुत ही निकृष्ट माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों को ईश्वर की शरण में जाने को कहा गया है। तभी मुक्ति मिल सकती है। मोक्ष तो बिल्कुल नही मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि –
भूतान्प्रेत गणान्श्चादि यजन्ति तामसा जना ।
तमेव शरणं गच्छ सर्व भवाने भारत : ।।
अर्थात् भूत प्रेत की उपासना तामसी लोग करते हैं। इसलिए संसारिक इच्छाओं के अधीन न होकर ईश्वर भक्ति करनी चाहिए। झूठे उपासको की पूजा बिल्कुल नही करनी चाहिए ।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में गीता में किसकी पूजा करनी चाहिए इसके बारे में विस्तार से बताया है –
यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रता : ।
भूतानियान्तिभूतेज्या यान्ति मद्याजिनोsपि माम् ।।
यहां पर नारायण श्रीहरि के अवतार भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूत, प्रेत या कोई ऐसी नकारात्मक शक्ति को पूजने वाले भी उसी गति को प्राप्त होते हैं। बहुत काल तक नरक योनि मे रहते हैं। और फिर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मुझे पूजने वाला मुझको ही प्राप्त होता है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को पूजने वाले भक्तों का पुनर्जन्म नही होता है।
ये स्पष्ट है कि पूजा सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण या फिर भगवान विष्णु और उनके अवतारों की ही करनी चाहिए तभी श्रीकृष्ण के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति संभव है।