वृत्रासुर दुनिया का सबसे बड़ा असुर
सनातन धर्म के ग्रंथों में अनेक भयंकर राक्षसों का जिक्र हुआ है। ये राक्षस मूवी या वेब सीरीज में दिखाए जाने वाले विलेन और राक्षसों से कई गुना भंयकर हैं। ये राक्षस मनुष्यों ही नहीं देवताओं को भी धूल चटाने की ताकत रखते हैं। हम एक-एक कर इन राक्षसों का सच बताएंगे। कि कौन है दुनिया का सबसे अत्याचारी असुर।
देवराज इंद्र ने की ब्राह्मण गुरू की हत्या
श्रीमद्भागवत पुराण में एक कथा मिलती है। एक बार देवताओं के राजा इंद्र को तीनों लोकों का एश्वर्य पाकर घमंण्ड हो गया। एक दिन देवराज इंद्र अपनी सभा में रानी शची के साथ बैठे हुए थे। अप्सराएं नृत्य कर रही थी इस दैवीय माहौल में देवराज बहुत सुशोभित हो रहे थे। तभी वहां देवताओं के गुरु परम आचार्य बृहस्पति जी आये। उनको देवता- असुर सभी नमस्कार करते थे। लेकिन इंद्र घमंण्ड में न तो खड़े हुए और ना ही उनको कोई आसन प्रदान किया। त्रिकालदर्शी गुरु बृहस्पति ने देखा की ये सब देवेंद्र ने ऐश्वर्य के नशे में अंधा होने के कारण किया है। गुरू ब्रहस्पति नाराज होकर चले आए। बाद में इंद्र को बहुत खेद हुआ लेकिन तबतक गुरु बृहस्पति योग शक्ति से अंतर्ध्यान हो चुके थे। गुरु बृहस्पति के नाराज होने की बात जब असुरो को पता चली तो उन्होनें अपने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से देवताओं पर आक्रमण करके स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया। पराजित होने के बाद देवता ब्रह्मा जी के पास गुहार लगाने पहुंचे। ब्रह्मा जी ने कहा इंद्र तुमने वैभव के मद में अपने ही गुरु का अपमान कर दिया है। अब एक ही उपाय है कि तुम ऋषि त्वष्टा और उनकी पत्नी राक्षसी रचना से पैदा हुए पुत्र को अपना गुरु बनाओ। ब्रह्मा जी ने कहा ऋषि त्वष्टा और राक्षसी रचना से दो पुत्र पैदा हुए हैं- संनिवेश और विश्वरुप। देवराज इंद्र तुम विश्वरुप को अपना गुरु बनाओं और फिर से स्वर्गलोक को अपने अधिकार में लो। तब देवताओं ने ब्राह्मण पुत्र विश्वरुप को काफी मानमनव्वल के बाद अपना गुरु बनाया। विश्वरुप बड़े तपस्वी थे। देवताओं की प्रार्थना पर वो मान गए। शुक्राचार्य ने जब नीतिबल से असुरों की सम्पति को छुपा दिया तो विश्वरूप ने योग साधना के बल पर सम्पति छीनकर देवराज इंद्र को दिला दी।
देवराज ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाया और गुरु बनाकर इंद्र ने दिया धोखा, देवराज इंद्र ने की ब्राह्मण गुरू की हत्या दरअसल देवताओं के नए गुरु विश्वरुप के तीन सिर थे वो एक से सोमरस का पान करते थे, दूसरे से सुरा पीते थे और तीसरे से अन्न खाते थे। उनके पिता त्वष्टा जब यज्ञ में आहूति देते थे तो जोर जोर से मंत्रो का उच्चारण किया करते थे। यज्ञ के दौरान विश्वरुप छिप-छिपकर आसुरों की भी आहुति दिया करते थे। उनकी माता असुरकुल की थी तो वो मां के प्रेमवश यह आहूति देते थे। एक दिन देवराज इंद्र ने उन्हें असुरों को आहूति देते हुए देख लिया। क्रोध में देवराज इंद्र ने गुरु विश्वरूप का सिर काट डाला। जिससे विश्वरुपा के सोमरस पीने वाले सिर से पपीहा ,सुरापान करने वाले से गौरेया और अन्न खाने वाले से तीतर पैदा हुए
गुरु और ब्रह्महत्या से हुआ सबसे बड़े राक्षस का जन्म
वृत्रासुर कैसे पैदा हुआ दरअसल विश्वरुप की मृत्यु का समाचार सुनने के बाद उनके पिता त्वष्टा को बहुत क्रोध आया। क्रोध के वश में होकर उन्होने ऐसे पुत्र की कामना से यज्ञ शुरू कर दिया जो इतना पराक्रमी हो कि इंद्र की हत्या कर सके। यज्ञ की समाप्ति के बाद सबसे बड़े राक्षस का जन्म हुआ। वो दैत्य ऐसा प्रतीत होता था मानों तीनों लोकों को नष्ट कर देगा। उसका शरीर प्रतिदिन सब ओर एक बाण जितना बढ़ जाता था। उसके चलने से प्रथ्वी कांपने लगती थी वो हाथ में त्रिशूल धारण करता था। उसको देखकर तीनों लोकों में हाहाकर मच गया। त्वष्टा के उस पराक्रामी पुत्र ने तीनों लोकों को घेर लिया। इसी वजह से उसका नाम वृत्रासुर पड़ा। सभी देवताओं को उसने परास्त कर दिया। केवल इंद्र की गलती से कांपे देवता और संकट की घड़ी उनके नजदीक आने लगीं।
तपस्वी ऋषि की अस्थि से बना महान अस्त्र
जब देवतओं के राजा इंद्र ऋषि त्वष्टा के यज्ञ से जन्मे राक्षस वृत्रासुर को परास्त नहीं कर सकें तो थक हारकर भगवान विष्णु के पास गये। सभी देवताओं की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने देवराज को संसार के सबसे शक्तिशाली अस्त्र के निमार्ण करने का उपाय बताया। नारायण कहते है कि तुम ऋषि दधीचि के पास जाओं और उनसे उनकी अस्थियों का दान प्राप्त करो। ऋषि दधीचि को ब्रह्म का ज्ञान अश्विनी कुमारों ने दिया था यदि अश्विनी कुमार ये दान मांगेगें तो वो अवश्य प्रदान कर देगें। फिर उस अस्थि से एक श्रेष्ठ अस्त्र का निर्माण करो। उसी अस्त्र से वृत्रासुर का वध हो सकेगा और तपस्वी ऋषि की अस्थि से बना महान अस्त्र। दधिची ऋषि के इस महान दान का वर्णन सभी पुराणों में मिलता है।
विष्णु कृपा से इंद्र ने वृत्रासुर का वध किया
दधिची ऋषि की अस्थियों से विश्वकर्मा ने महान वज्र बनाकर दे दिया। वज्र पाकर देवराज इंद्र और सभी देवता वृत्रासुर के वध के लिये चल दिये। दोनों सेनाओं का युद्ध शुरु हो गया। देवताओं के पराक्रम के सामने असुरों के कोई भी अस्त्र काम ही नही कर पा रहे थे। ये देखकर असुर सेना डर के मारे भागने लगी। वृत्रासुर भी क्रोध के मारे तिलमिला उठा। वो ये बात जान चुका था की देवताओं के संरक्षक भगवान नरायण भी देवताओं की तरफ है। फिर भी वो भागा नहीं और उसने देवराज इंद्र से युद्ध किया। देवराज इंद्र ने उस महान अस्त्र से वृत्रासुर का वध कर दिया। इस तरह से विष्णु कृपा से इंद्र ने वृत्रासुर का वध किया।
अवेस्ता में भी सबसे बलशाली राक्षस का जिक्र
शोधकर्ता मानते हैं कि वृत्रासुर का मूल नाम वृत्र ही था, जो असीरिया का अधिपति था। पारसियों की अवेस्ता में भी उसका उल्लेख मिलता है। वृत्र ने आर्यों पर आक्रमण किया था तथा उन्हें पराजित करने के लिए उसने अद्विशूर नामक देवी की उपासना की थी। इन्द्र और वृत्रासुर के इस युद्ध का सभी संस्कृतियों और सभ्यताओं पर गहरा असर पड़ा था। तभी तो होमर के इलियड के ट्राय-युद्ध और यूनान के जियॅस और अपोलो नाम के देवताओं की कथाएं इससे मिलती-जुलती हैं।