सृष्टि की उत्पत्ति के असली वैज्ञानिक हैं भगवान विष्णु
भारत देश को संस्कार और सभ्यता का देश माना जाता है, और देश की यह सभ्यता हमारे अच्छे व्यवहार को जन्म देती है। इतिहासकारों और लेखकों का मानना है कि भारत देश विविधताओं का देश है और केवल विविधता ही नहीं “विविधता में एकता” का देश है। हमारे देश में आज भी सुबह की शुरुआत प्राणायाम, सूर्य को जल देना, मन्दिर में भगवान की पूजा करने से होती है। श्रद्धाभाव से किए जाने वाले पूजन को कुछ-कुछ ठुकराया भी जाता है क्योंकि आधुनिकता की इस दौड़ में प्रयोग और प्रमाण अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं और सनातन धर्म में चली आ रही परंपराओं को रूढिवादिता की दृष्टि देकर पीछे कर दिया जाता है, तथा इसका मुख्य कारण ये बताया जाता है कि इसका कोई प्रमाण सिद्ध नहीं हो रहा है।
भारतीय परंपराओं को आज का आधुनिक और सभ्य समाज क्यों नहीं स्वीकार कर रहा? क्या इसका कारण केवल रूढ़िवादिता है लेकिन चिन्तनीय विषय तो यह है कि भारतीय परंपराओं को मानने वाले या उनका प्रयोग सार्थक है इसे समाज को बताने वाले अपने तथ्यों को प्रमाणित नहीं कर सके क्योंकि अगर गौर किया जाए तो हमारी परंपराओं और ईश्वरीय सत्ताओं में एक गूढ़ रहस्य छुपा हुआ है। दरअसल वैज्ञानिकों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में ये माना जाता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद और इसमें जीवन मिलने के बाद सर्वप्रथम समुद्री जीव ने जन्म लिया यह देश विदेश के वैज्ञानिकों के द्वारा प्रमाणित है और सनातन शास्त्रों में भगवान विष्णु के 10 मुख्य अवतार बताए गए हैं जिस विषय में एक श्लोक आता हैः-
मत्स्य कूर्मो वराहश्च नारसिंहोऽथ वामनः।
रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्किश्च ते दशा:॥
इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि भगवान का सबसे पहला अवतार मत्स्य अर्थात् मछली के रूप में हुआ था और दूसरा कछुआ, तीसरा सुवर, चौथा नरसिंह, पांचवा वामन, छठा परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि (जो कि भविष्य के अवतार हैं।)
भगवान विष्णु का वैज्ञानिक महत्व कुछ इस तरह से है दरअसल भगवान विष्णु के इन अवतारों में एक बहुत ही बड़ा सृष्टि का रहस्य छिपा हुआ है क्योंकि अधिकतर लोग ये तो जानते हैं कि भगवान अवतार सृष्टि की उत्पत्ति और उसमें हमेसा धर्म, सत्य की स्थापना के लिए लेते हैं। कुछ दार्शनिकों का मानना ये भी है कि समस्त ज्ञान भगवान से ही उद्धृत हुआ है तो उनके अवतारों में छिपे ज्ञान को और सृष्टि उत्पत्ति के विषय को समझना होगा।
मछली से चला जीवन
सर्वप्रथम तो हम इस बात पर जोर देते हुए समझते हैं कि आज के विज्ञान का मानना है कि जगत का पहला जीव समुद्र या पानी में पैदा हुआ, तो भगवान विष्णु का सबसे प्रथम अवतार मछली के रूप में हुआ और मछली के रूप में अवतार लेकर सृष्टि के उद्भव का आरंभ हुआ। अर्थात् सनातन ग्रंथों के आधार पर वैज्ञानिकों की आज की खोज को भी पीछे ले जाया जा सकता है। अतः मछली के रूप में सृष्टि के उद्भव का आरंभ हुआ।
जब केवल जल ही था तो भगवान ने मछली का अवतार लिया और जब धीरे-धीरे जल की मात्रा कम होने लगी और भूमी बढ़ने लगी तो भगवान ने जल और भूमी दोनो में रहने वाले कछुआ का अवतार लिया और जल भूमी के मिश्रण से कीचड़ आदि होने पर भगवान विष्णु ने सुवर का अवतार लेकर सृष्टि को अनुकूल स्थिति के अनुसार रहना सिखाया। और सांसारिकता के समझ का स्तर बढ़ाने के लिए सृष्टि में विकास के लिए अवतार लिया।
इसके बाद भगवान ने मनुष्य और जानवरो के रूप में अवतार लेना शुरु कर दिया ताकि सृष्टि का संतुलन बना रहे, यहीं तक थी सृष्टि की उत्पत्ति विषयक विकास की कहानी लेकिन उसके बाद भगवान ने सृष्टि में विकास के लिए अवतार लिया और उसका सबसे बड़ा उदाहरण है वामन अवतार जिसमें भगवान ने मनुष्य की शारीरिक स्थिति को निश्चित कर दिया और जीवन जीने की परंपरा में दान की परंपरा को भी विकसित किया।
उसके बाद भगवान ने मनुष्य का विकास करते हुए अपने अवतार को आधार बनाकर मनुष्य को जंगल से समतल भूमी की ओर लेकर आए जो कि भगवान परशुराम ने किया। भगवान ने अपने इन अवतारों से सृष्टि का संतुलन बना दिया था अब समस्त सृष्टि को अनुशासन, प्रेम, मर्यादा, संस्कार और परंपरा तथा धर्म की शिक्षा संसार तक पहुंचाने के लिए भगवान ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रुप में अवतार लिया और समस्त सृष्टि में केवल प्रेम और मर्यादा ही बची तब भगवान ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर कूटनीति और जैसे को तैसा व्यवहार भी संसार को सिखाया।
भगवान के इस अवतार से हर जगह कूटनीति ,दुर्व्यवहार और जैसे को तैसा की भावना से हो रही अहिंसा को खत्म करने के लिए, शांति का मार्ग दिखाने के लिए शांतिपूर्ण बुद्धावतार लिया जिससे संसार में पुनः शांति को स्थापित किया जा सके। भविष्य में भगवान विष्णु का होने वाले अवतार का रूप कल्कि हैं जिसमें भगवान फिर से संसार में पनप रही इन हिंसावादी विचारधाराओं को नष्ट करेंगे। जगत में चल रही समय की अवधारणा में अपनी सक्रिय सहभागिता को दर्शाते हुए भगवान ने सृष्टि के संतुलन के लिए अवतार लिया।
सनातन शास्त्रों में बताए गए भगवान विष्णु के अवतारों की विवेचना को ठीक तरह से समझना होगा क्योंकि सनातन धर्म पुरातन वैज्ञानिक धर्म है और इस धर्म का दार्शनिक दृष्टिकोण इतना प्रगाढ़ है कि कुछ महत्वपूर्ण बातों को संकेत के माध्यम से कहा गया है। और उन संकेतों को दरकिनार करके हमारे आधुनिक विद्वानों ने उसका संदर्शन ही अन्य बिन्दुओं के माध्यम से किया और अपनी कलम को माध्यम बनाकर अपनी समझ का प्रचार समस्त समाज में कर दिया बल्कि आज कभी-कभी कुछ तथ्य ऐसे मिल जाते हैं जिनको आज के प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर देते हैं कि इन तथ्यों का जिक्र तो सनातन धर्म के वेद उपनिषद आदि ग्रंथों में किया गया है।
धर्म को एक समुदाय विशेष की आंखों से देखने से बेहतर है कि उसको एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया जाए, क्योंकि आज की दी गई दृष्टि ही भविष्य में प्रकाश पहुंचाएगी और एक प्रकाशमान जगत की स्थापना करेगी।