हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की हरी-भरी वादियों में बसा ज्वाला देवी मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थल है, जो भक्तों को स्वर्ग जैसा अहसास कराता है। 51 शक्ति पीठों में से एक, यह मंदिर अपनी स्वयं जलती ज्वालाओं के लिए प्रसिद्ध है, जिन्होंने न केवल भक्तों बल्कि ब्रिटिश शासकों और वैज्ञानिकों को भी आश्चर्यचकित किया है। मुगल सम्राट अकबर से लेकर नासा के वैज्ञानिकों तक, सभी माँ की शक्ति के सामने नतमस्तक हुए। आइए, माँ ज्वाला देवी के इस चमत्कारी धाम के रहस्यों को जानें।
ज्वाला देवी मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है, जहाँ माता सती के अंग गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के निर्जन शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को 51 हिस्सों में विभाजित कर दिया। जहाँ माता सती की जीभ गिरी, वहाँ ज्वाला देवी मंदिर स्थापित हुआ। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ माँ की कोई मूर्ति या पिंडी नहीं है, बल्कि नौ अखंड ज्वालाएँ स्वयं जलती हैं, जो माँ के विभिन्न रूपों का प्रतीक हैं।
स्वयं जलती ज्वालाओं का रहस्य
ज्वाला देवी मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है इसकी स्वयं जलती नौ ज्वालाएँ, जो बिना तेल या बत्ती के प्रज्वलित रहती हैं। ब्रिटिश शासकों ने इन ज्वालाओं के पीछे का वैज्ञानिक कारण जानने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उन्हें केवल निराशा ही हाथ लगी। यहाँ तक कि नासा के वैज्ञानिक भी इस चमत्कार को समझने में असफल रहे। मंदिर के पास एक जलकुंड है, जहाँ पानी उबलता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन छूने पर ठंडा लगता है। यह माँ का एक और चमत्कार है, जो भक्तों को आश्चर्य में डाल देता है।
अकबर और माँ की शक्ति
मुगल सम्राट अकबर की इस मंदिर से जुड़ी एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि अकबर ने माँ की ज्वालाओं को बुझाने की कोशिश की और उन पर पानी डाला, लेकिन ज्वालाएँ वैसे ही जलती रहीं। माँ की शक्ति को देखकर अकबर ने अपनी गलती स्वीकारी और क्षमा माँगते हुए मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया। यह छत्र आज भी माँ की महिमा का प्रतीक है और मंदिर में देखा जा सकता है।
मंदिर की संरचना और पूजा
ज्वाला देवी मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों को माँ चंडी देवी की पहली ज्योति के दर्शन होते हैं। इसके बाद माँ हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महाकाली, अन्नपूर्णा, महालक्ष्मी, सरस्वती और अन्य रूपों की ज्योतियाँ विराजमान हैं। मंदिर का प्रांगण शांत और पवित्र वातावरण प्रदान करता है, जहाँ भक्त ध्यान और भक्ति में लीन हो जाते हैं।
हर दिन सुबह और शाम माँ की आरती होती है, जिसमें भक्त मंत्रोच्चार और भजनों के साथ माँ की महिमा का गुणगान करते हैं। मंदिर में विशेष हवन का आयोजन भी होता है, जिसमें पुजारी स्वयं घी, लकड़ी और विशेष जड़ी-बूटियों से सामग्री तैयार करते हैं। नवरात्रि के दौरान आयोजित नवदुर्गा हवन में माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और भक्त उपवास रखकर लाल चुनरी, नारियल और मिठाई चढ़ाते हैं।
विशेष महायज्ञ और मान्यताएँ
मंदिर में होने वाली महायज्ञ पूजा विशेष अवसरों पर आयोजित की जाती है, जो भक्तों की मुरादों को पूरा करने के लिए जानी जाती है। मान्यता है कि सच्चे मन से माँ के दर्शन करने और हवन में भाग लेने से भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। माँ की ज्वालाएँ आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बनी हुई हैं, लेकिन भक्तों के लिए यह माँ की असीम शक्ति का प्रतीक है।
माँ ज्वाला देवी के दर्शन का अनुभव
ज्वाला देवी मंदिर की यात्रा भक्तों को आध्यात्मिक शांति और अलौकिक अनुभव प्रदान करती है। चारों ओर हरियाली और मंदिर का पवित्र वातावरण इसे स्वर्ग जैसा बनाता है। यहाँ नंगे पाँव चलकर आने वाले भक्त माँ की कृपा से अपनी मुरादें पूरी होते देखते हैं।
ज्वाला देवी मंदिर न केवल एक शक्ति पीठ है, बल्कि यह माँ की असीम शक्ति और चमत्कारों का जीवंत प्रमाण है। यहाँ की ज्वालाएँ, जो बिना किसी ईंधन के जलती हैं, भक्तों के लिए आस्था और वैज्ञानिकों के लिए रहस्य का केंद्र हैं। यदि आप माँ के दर्शन करना चाहते हैं, तो इस पवित्र स्थल की यात्रा अवश्य करें ।