स्वर्ग जाने वाला कबूतर
किसी ऐसे कबूतर के बारे में पता है जिसने अपने घर आए मेहमान के लिए प्राण दे दिए और कबूतर-कबूतरी कैसे गए स्वर्ग तथा अतिथि देवो भव यानि मेहमान को देवता मानते हुए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया इस कबूतर ने अपने अच्छे कर्म से ना केवल पक्षी योनि से सीधे स्वर्ग को प्राप्त किया बल्कि इससे सबक लेकर एक पापी मनुष्य ने भी स्वर्ग का सुख प्राप्त किया।
महाभारत के शांतिपर्व में स्वर्ग जाने वाला कबूतर जो कि एक पापी को भी स्वर्ग पहुंचा देता है इस कथा का जिक्र हुआ है यह कथा एक साथ कई तरह की नैतिक शिक्षा देती है इस कथा को दिव्य और पापों का नाश करने वाली कथा बताया गया है इस कथा के जरिए भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को कई तरह की शिक्षा दी थी इस कथा में धर्म अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थों का बड़ा ही सुंदर वर्णन मिलता है महाभारत में इस कथा को कितना महत्व दिया गया है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस कथा को 7 अध्यायों में बांट कर बताया गया है
महाभारत के मुताबिक सबसे पहले यह कथा भगवान परशुराम जी ने मुचुकुंद जी को सुनाई थी इस कथा के अनुसार एक बहेलिया था जो बहुत ही क्रूर था लेकिन कबूतर देख बहेलिये की आत्मा जाग गई। दरअसल जंगलों में जब वो घुसता था तो पक्षी भय से कांपने लगते थे बहेलिया देखने में भी बहुत भयानक था उसका रंग काला, आंखे लाल, मुंह बड़ा और पैर छोटे थे वो पक्षियों का बहुत ही बर्बरता से शिकार करता था वह रोज जंगल जाता और बहुत से पक्षियों को जाल में फंसाकर बाजार में बेच देता था कई साल तक वह बहेलिया इसी तरह क्रूरता और बर्बरता से अपना जीवन चलाता रहा उसे अपने पाप का तनिक भी अहसास नहीं था एक दिन बहेलिया शिकार करते हुए घने जंगल में चला गया, तभी भयंकर आंधी आ गई तेज हवा से पेड़ गिरने लगे आंधी के साथ घने बादल छा गए और देखते-देखते हवा के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी दोपहर शुरू हुई तेज बारिश शाम तक चलती रही बहेलिया बारिश में भीग कर ठंड से कांपने लगा बेहोशी जैसी हालत में वह जमीन पर गिर पड़ा जमीन पर पड़े-पड़े उसने आंधी और पानी के थपेड़ों से घायल होकर गिरी एक कबूतरी देखी इस भयंकर पीड़ा में भी उसे पाप ही सूझा और उसने कबूतरी को पकड़ कर पिंजड़े में डाल दिया खराब मौसम को देखते हुए बहेलिये ने जंगल में ही रात बिताने का फैसला किया बहेलिया ने एक बड़े वृक्ष के नीचे कराहते हुए शरण ली उस विशाल वृक्ष पर ही उस घायल कबूतरी का घर था आंधी-पानी के बीच जब कबूतरी घर नहीं लौटी तो उसके पति कबूतर को चिंता हुई वह विलखते हुए कहने लगा मेरी प्राण प्रिए अब तक लौटी क्यों नहीं तुम्हारे बिना ये घोंसला सूना लग रहा है मेरी पत्नी बहुत पतिव्रता थी मुझे बिना खिलाए कुछ खाती नहीं थी ऐसी पतिव्रता को पाकर मैं पति रूप में धन्य हो गया था उसके साथ कहीं कुछ हादसा तो नहीं हो गया विलाप करते हुए कबूतर कहने लगा कि घर में बेटे, बहू, पोते-पोती सब हों लेकिन पत्नी ना हो तो घर सूना हो जाता है घरवाली के बिना तो ये घर जंगल लग रहा है बहेलिए के पिंजड़े में कैद घायल कबूतरी ने जब अपने पति के मुंह से तारीफ सुनी तो जैसे उसके शरीर में ताकत आ गई उसने शक्ति जुटाकर कहा प्रियतम मेरे अहो भाग्य कि मेरे पति मेरा गुणगान कर रहे हैं भले ही मेरे अंदर वो गुण हो या ना हो पति के संतुष्ट रहने पर जो अपार संतोष मुझे मिल रहा है उसका मैं बखान नहीं कर सकती पति के संतुष्ट रहने पर स्त्रियों पर सभी देवता भी संतुष्ट रहते हैं। इतना कहने के बाद कबूतरी ने अपने पति कबूतर से कहा प्राणनाथ अपनी तारीफ तो बहुत हो गई अब हमारे सामने धर्म के अनुसार कर्म करने की घड़ी आ गई है हमारे घर पर इन बेहलिया ने शरण ली है ये आज की रात हमारे अतिथि हैं उनकी हालत ठीक नहीं है ठंड से उनकी तबियत बिगड़ रही है उनके प्राण संकट में हैं इस समय शरणागत के प्राणों की रक्षा करना हमारा परम धर्म है आप इनके लिए कुछ कीजिए पत्नी की बात सुनकर कबूतर की आंखे डबा-डबा गईं उसने पक्षियों को मारकर अपना पेट भरने वाले बहेलिए को प्रणाम किया और कहा आपका स्वागत है बताइये आपकी क्या सेवा करूं इस वक्त आप मेरे घर में हैं धर्म कहता है कि अगर शत्रु भी घर शरण लेने आ जाए तो उसका सत्कार करना चाहिए यूं तो सभी को अतिथि का स्वागत करना चाहिए लेकिन गृहस्थ के लिए ‘अतिथि देवो भव’ है अतिथि का स्वागत उसका परम धर्म है कबूतर की बात सुनकर बहेलिए ने कहा मुझे बहुत ठंड लग रही है इसे दूर करने का कुछ उपाय करो उसके बाद कबूतर दूर से सूखी पत्तियां खोजकर लाया और फिर एक लुहार के यहां से आग ले आया अपने पंख को तेजी से फड़ाफड़ा कर उसने सूखे पत्तों में आग लगा दी आग के पास जाकर बहेलिए को बहुत राहत मिली ठंड दूर होने के बाद बहेलिए ने कहा मुझे भूख लगी है बहेलिए की इस बात को सुनकर कबूतर उदास हो गया उसने कहा हम पक्षी भोजन इकट्ठा नहीं करते ऋषि-मुनियों की तरह ही रोज चुगते हैं और रोज पेट भरते हैं मैं आपको क्या खिलाऊं तभी उसके दिमाग में आया क्यों ना खुद को ही भोजन के लिए अर्पित कर दिया जाए कबूतर ने बहेलिए से कहा आप मेरा भूना हुआ मांस ग्रहण करें यह कहते हुए वो आग में कूद गया। कबूतर का ये कदम देख बहेलिये की आत्मा जाग गई वो कहने लगा ये मैंने क्या कर दिया जिन पक्षियों को मैं रोज पकड़ कर बेचता हूं उन्हीं में से एक ने मेरे भोजन के लिए अपने प्राण त्याग दिए बहेलिया रोने लगा उसे अपने से घृणा होने लगी उसने तय किया कि वो घोर तप करेगा भूखे-प्यासे रहेगा और धीरे-धीरे इस पापी शरीर को त्याग देगा बहेलिए ने पिंजरे में बंद घायल कबूतरी को भी आजाद कर दिया कबूतरी आजाद होकर अपने पति के लिए विलाप करने लगी विपाल करते-करते कबूतरी ने भी खुद को उसी आग में समर्पित कर दिया जिसमें उसका पति कबूतर जला था मृत्यु के बाद कबूतरी ने देखा उसका पति कबूतर एक अत्यंत सुंदर विमान में विराजमान है उसने कबूतरी को भी बुलाया और दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक चले गए,
इधर बहेलिया सबकुछ त्याग कर जंगल में तप करता रहा उसने कबूतर-कबूतरी को स्वर्ग जाते भी देखा तप के दौरान ही एक दिन जंगल में आग लग गई जिसमें जलकर बहेलिए ने प्राण त्याग दिए जीवन के अंतिम समय के दौरान उसके त्याग और तप की वजह से एक पापी बहेलिआ भी स्वर्ग का भागी बना। इस प्रकार धर्म के अनुसार कर्तव्य का पालन के करने के कारण कबूतर और कबूतरी को स्वर्ग मिला और उनकी प्रेरणा से एक पापी बहेलिआ भी स्वर्ग का भागी बना कथा के अंत में भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि शरणागत का वध कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि शरणागत की हत्या का कोई प्रायश्चित नहीं है।
सनातन हिंदू धर्म और संस्कृति में जानवरों और पक्षियों का काफी महत्व है और इन्हें भी सम्मान की नजर देखा जाता है यही नहीं सनातन धर्म में पशु-पक्षियों को स्वर्ग पाने का भी हक है इस बात का प्रमाण कबूतर की प्रेरणादायी कथा से प्राप्त होता है।