आत्महत्या क्यों है महापाप- क्या कहता है सनातन हिंदू धर्म
दुनिया के सभी धर्मों में आत्महत्या को सबसे बुरे पापों में एक बताया गया है। ठीक उसी तरह सनातन हिंदू धर्म में आत्महत्या एक महापाप ही है लेकिन कई बार इंसानों के जीवन में कुछ ऐसे पल आ जाते हैं जब उसके मन में आत्महत्या के विचार आने लगते हैं।
सनातन हिंदू धर्म के ग्रंथो में भी ऐसे कई लोगों का वर्णन आता है एक एक वक्त आत्म हत्या करने के लिए तैयार हो गए थे। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने पॉजीटीव एटीटयूड को अपना कर आत्महत्या का विचार त्याग दिया था।
माँ सीता ने किया आत्महत्या का प्रयास
सबसे पहले बात करते जब माता सीता ने आत्महत्या का प्रयास किया। ये कथा वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में मिलती है । हम सभी जानते हैं कि रावण ने माँ जानकी का हरण कर लिया था और माँ सीता लंका में सीता वाटिका में बहुत वक्त तक रही थीं। सुंदरकांड में वर्णित इस कथा के अनुसार जब लंकापति रावण अशोक वाटिका में आकर माता सीता को धमकाता है माता सीता को पटरानी बनाने को कहता है । रावण माँ सीता को ये धमकी भी देता है कि अगर उन्होंने उसकी बात नहीं मानी तो वो 2 महीने बाद उनकी हत्या कर देगा।
रावण की इस धमकी को सुन कर माँ सीता निराश हो जाती हैं और उन्हे ये भी लगता है कि क्या पता श्रीराम इन दो महीनों में उन्हें लंका से आजाद कराएंगे या नहीं। ऐसे में वो डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं और सुसाइड करने का विचार करने लगती हैं। वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक से माँ सीता की इस दशा का पता चलता है –
राक्षसीवशमापन्ना भत्स्यमाना च दारुणम्।
चिन्तयन्ती सुदु: खार्ता नाहं जीवितुमुत्सहे।।
सीता जी इस श्लोक में कहती है “मैं इन सभी पापियों के बीच में आकर इनकी कठोर धमकियां सुनती एवं सहती हूं । इस अवस्था में मैं अपनी प्राण ही त्याग देना चाहती हूं।
इसके बाद माँ सीता ये भी सोचने लगती हैं कि वो सुसाइड कैसे करें। कभी वो अपनी लंबी चोटी को पेड़ से बांध कर सुसाइड अटेंप्ट करने का सोंचती हैं तो कभी वो आग में जल कर मरने का प्लान बनाने लगती हैं।
लेकिन जब वो सोच ही रही होती हैं तब उसी वक्त महावीर हनुमान जी श्रीराम का संदेश लेकर आते हैं और माँ जानकी को ये विश्वास दिलाते हैं कि जल्द ही श्रीराम माँ जानकी का उद्धार करेंगे । इसके बाद सीता जी सुसाइड का विचार त्याग देती हैं।
हनुमान जी ने क्या आत्महत्या का प्रयास
माँ जानकी को दिलासा देने वाले हनुमान जी स्वयं इस घटना के थोड़ी देर पहले ही खुद डिप्रेशन में चले गए थे और हनुमान जी ने आत्महत्या का प्रयास भी किया था ये कथा भी वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में ही मिलती है, प्रसंग ये है कि जब हनुमान जी माँ सीता की खोज में लंका जाते हैं तो वो पहले तो पूरी लंका में माँ सीता को खोजते हैं। रावण के सभी महलो के कोने कोने में माँ सीता को खोजते हैं।
लेकिन जब माँ जानकी उन्हें नहीं दिखती है तो वो बुरी तरह से निराश हो जाते हैं और सोचने लगते हैं कि अब मैं प्रभु श्रीराम को क्या जवाब दूंगा ? अब मैं वानर नरेश सुग्रीव से क्या कहुंगा ? सभी वानर ये सोच रहे है की हनुमान माता जानकी की खबर लेकर आएंगे ।
इन्हीं सभी बातों को सोचकर हनुमान जी अपने प्राण त्याग देने का विचार भी करने लगते हैं। कभी वो समुद्र में डूब कर आत्महत्या करने का विचार करते हैं तो कभी पहाड़ से कूद कर सुसाइड करने का विचार करने लगते हैं।
लेकिन हनुमान जी तो महान ज्ञानी भी हैं। जल्द ही वो खुद को इस डिप्रेशन से निकाल लेते हैं और एक बार फिर मां जानकी की खोज शुरु कर देते हैं। राम कृपा से माँ जानकी उन्हें अशोक वाटिका में दिख जाती हैं और इसके बाद हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैं।
जब वानरों ने किया आत्महत्या का प्रयास
हनुमान जी खुद आत्महत्या करने का विचार कर रहे थे, लेकिन ठीक इसके पहले जब वानरों ने किया आत्महत्या का प्रयास तब हनुमान जी ने ही वानरों को आत्महत्या करने से रोका था। ये कथा हमें किष्किंधाकांड के अंत में मिलती है। जब अंगद और सभी वानर समुद्र के किनारे पहुंचते हैं और तब तक उन्हें माँ जानकी का पता नहीं मिलता है तो वो सभी निराश हो चुके होते हैं।
ऐसे में अंगद और सभी वानर सामूहिक रुप से आमरण अनशन करके आत्महत्या का विचार करने लगते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सुग्रीव ने वानरों को जब माँ सीता का पता लगाने के लिए भेजा था तो य़े धमकी भी दी थी कि अगर वानर माँ सीता का पता लगाए बिना किष्किंधा लौटेंगे तो सुग्रीव उन्हें प्राण दंड देंगे।
सुग्रीव की इस धमकी को याद कर अंगद समेत सभी वानर यही सोचने लगते हैं कि इससे बेहतर तो समुद्र के किनारे उपवास करके प्राण त्याग देना ही बेहतर है । तभी प्रभु कृपा से वहाँ गीधराज संपाती आते हैं और वो बताते हैं कि माँ सीता बस इस समुद्र के पार लंका में रह रही हैं।
इसके बाद भी जब वानरों की निराशा खत्म नहीं होती है। उनको ये लगता है कि इस समुद्र को कैसे पार करें तब हनुमान जी लंका जाने के लिए तैयार होते हैं और सारे वानर आत्महत्या करने का विचार त्याग देते हैं।
सुग्रीव की पत्नी तारा ने किया आत्महत्या का विचार
रामायण में एक और ऐसा वर्णन मिलता है जब श्रीराम वालि का वध कर देते हैं और वालि की पत्नी तारा आत्महत्या करने का विचार करने लगती है। ऐसे में प्रभु श्रीराम उसे आत्महत्या करने से रोकते हैं।
महाभारत में अर्जुन का आत्महत्या का प्रयास
रामायण के अलावा महाभारत में भी कई वीर आत्महत्या करने के मुहाने तक पहुंच गए थे। लेकिन किसी न किसी वजह से वो इस पाप को करने से बच गए।
स्वयं अर्जुन का आत्महत्या का प्रयास विफल हो गया था। ये कथा महाभारत के कर्ण पर्व में आती है। प्रसंग ये है कि जब कर्ण ने युधिष्ठिर को पराजित कर दिया था और अर्जुन कर्ण का वध किये बिना ही पराजित युधिष्ठिर के पास चले गए थे तो दोनों के बीच विवाद हो गया था।
अर्जुन एक वक्त तो युधिष्ठिर को मारने वाले थे, लेकिन श्रीकृष्ण के बीच बचाव करने के बाद अर्जुन को अपनी गलती का अहसास हो गया। इसके बाद अपने भाई के साथ बदतमीजी करने की ग्लानि से अर्जुन आत्महत्या करने के लिए तैयार हो जाते है। एक बार फिर श्रीकृष्ण उन्हें समझा कर आत्महत्या करने से रोक देते हैं।
दुर्योधन ने किया आत्महत्या का प्रयास
बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि एक समय ऐसा भी आया था जब दुर्योधन ने किया आत्महत्या का प्रयास, इसके लिए उसने अन्न-जल भी छोड़ दिया था, लेकिन बाद में अपने सेनापतियों के कहने पर उसने यह विचार छोड़ दिया। ये पूरी घटना कब और कैसे हुई, जानिए ।
महाभारत के वन पर्व में वर्णन मिलता है की जब पांडव द्वैतवन में रह रहे थे.. तब दुर्योधन पांडवों का उपहास उड़ाने के उद्देश्य से अपने दल-बल के साथ वन में गया। वहाँ उसकी लड़ाई चित्ररथ नामक एक गंधर्व से हो गई। उस गंधर्व ने दुर्योधन और दुःशासन को बंदी बना लिया।
जब ये बात युधिष्ठिर को पता चली तो उन्होंने दुर्योधन को बचाने के लिए भीम और अर्जुन को भेज दिया। अर्जुन ने गंधर्व को पराजित कर दुर्योधन को आजाद करा लिया। लेकिन दुर्योधन अर्जुन और भीम के इस अहसान की वजह से ग्लानि में डूब गया और उसने आत्महत्या करने का विचार किया।
दुर्योधन को आत्महत्या करते देख दैत्यों और दानवों के बीच हाहाकार मच गया क्योंकि वो उसे अपना मित्र मानते थे। दैत्यों और दानवो ने दुर्योधन को पाताल लोक ले जाकर बहुत समझाया और कहा कि महाभारत के युद्ध में सभी दैत्य राक्षस और दानव रुप बदल कर उसकी सहायता करेंगे। दुर्योधन इस बात को सुनकर प्रसन्न हो गया और उसने आत्महत्या का विचार त्याग दिया।
सनातन हिंदू धर्म के अनुसार आत्महत्या किसी भी सूरत में महापाप से कम नहीं है। ये जीवन हमें ईश्वर ने दिया है । दुःख और सुख आते जाते रहते हैं । हमें इस जीवन को पोजीटिव तरीके से जीना चाहिए और कभी भी आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाना चाहिए।