भगवान शिव के इस गण का नाम है कीर्तिमुख। कौन है ये गण और क्यों ये भगवान शिव का सबसे प्रिय है क्या है कीर्तिमुख की कहानी इस भयानक गण की मूर्ति तो आपने अपने घर पर बुरी नज़र से बचाने के लिए लगाई होगी। लेकिन ये कोई बुरा राक्षस नहीं है बल्कि ये एक गण है जो ये भगवान शिव को वैसा ही प्रिय है जैसे नंदी महाराज।
आप तो जानते ही हैं कि भगवान शिव की सेना में भूत, पिशाच, राक्षस, यक्ष और गण रहते हैं जो देखने में बड़े भयानक होते हैं। किसी की तीन आँखे हैं तो किसी के पेट में ही मुँह है तो किसी के हजारों हाथ हैं तो किसी के हजारों पैर हैं। भगवान शिव की सेना में ऐसा ही एक गण है जिसका नाम कीर्तिमुख है। ये भगवान शिव का इतना बड़ा भक्त है कि इसने अपने प्रभु महादेव के आदेश पर कीर्तिमुख ने अपने सारे शरीर को खा लिया और बस इसका ये मुंह ही बच गया था। हुआ ये था कि जब जलंधर नामक राक्षस ने ब्रह्मा जी के वरदान को प्राप्त कर तीनों लोकों को जीत लिया था तो नारद मुनि ने उससे ये कह दिया कि तुम्हारे पास सब कुछ है लेकिन पार्वती देवी की तरह कोई सुंदर स्त्री नहीं है।
वैसे तो जलंधर भगवान शिव से ही उत्पन्न हुआ था और उसे शिवांश या शिव का पुत्र भी माना जाता है लेकिन अहंकार में वो ये भूल गया कि देवी पार्वती रिश्ते में उसकी माँ लगती हैं। अहंकार में उसने अपने एक दूत को भगवान शिव के पास भेजा और पार्वती को उसे दे देने के लिए कहा। दूत ने जैसे ही जलंधर का संदेश भगवान शिव को दिया वैसे ही भोलेनाथ रौद्र रुप में आ गए और शिव कि भौंहों के बीच से उत्पन हुआ कीर्तिमुख और कीर्तिमुख का मुंह सिंह के समान था और उसकी आँखो से आग की ज्वालाएं निकल रही थी और उसकी जीभ लपलपा रही थी।
इस भयानक पुरुष ने तुरंत जलंधर के दूत पर हमला कर दिया औऱ उसे वो खाने ही वाला था कि दूत ने शिव जी से माफी मांग ली। भोलेनाथ तो भोले हैं ही। सो उन्होंने उस दूत को जीवन दान दे दिया और वो दूत वहाँ से भाग निकला। लेकिन शिव जी की भौहों के बीच से जो भयानक पुरुष निकला था उसने भगवान शिव को कहा कि आपने तो मेरा भोजन ही छीन लिया। अब मैं क्या खाउं। तब भगवान शिव ने उसे कहा कि जब तक तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम नहीं हो जाता तब तक तुम अपने शरीर को ही खा लो। उस भयानक पुरुष ने अपने ही शरीर को खाना शुरु कर लिया और अंत में सिर्फ उसका मुंह ही बच गया।
भगवान शिव भी अपने इस गण की भक्ति को देख कर प्रसन्न हो गए और उन्होंने इस भयानक सिर वाले पुरुष का नाम कीर्तिमुख रख दिया। भगवान शिव ने कीर्तिमुख को ये वरदान दिया कि आज से बिना तुम्हारी पूजा किये कोई भी मुझे नहीं पा सकता है। भगवान शिव ने कीर्तिमुख को अपना पहरेदार बना दिया और ये भी वरदान दिया कि कोई भी दुष्ट तुम्हारी नज़रों से बच नहीं पाएगा और वो तुम्हारे सामने आते ही भस्म हो जाएगा।
इसके बाद से भगवान शिव के मंदिरों के दरवाजे पर कीर्तिमुख की ये मूर्ति लगाई जाने लगी। भगवान शिव ने इसे वरदान दिया था कि मुझसे भी पहले तुम्हारी पूजा होगी, तब से दक्षिण भारत के शिव मंदिरों में सबसे पहले कीर्तिमुख की पूजा शुरु हुई। कहा जाता है कि शिवभक्त लंका के द्वार पर भी कीर्तिमुख की मूर्ति दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने लगवाई थी। ये मूर्ति अपने मुँह से आग उगलती थी। बाद में लोगों ने अपने घरों और दुकानो के दरवाजों पर भी कीर्तिमुख की ये मूर्ति लगवानी शुरु कर दी ताकि दुष्टों की बुरी नज़र से अपने घर और दुकानों को बचाया जा सके।