सनातन धर्म में श्रीराम भक्त हनुमान जी की विनम्रता की कथाएं न केवल वाल्मीकि रामायण में दी गई हैं बल्कि महाभारत और कई पुराणों में भी महावीर हनुमान जी की राम भक्ति का वर्णन किया गया है । लेकिन एक कथा ऐसी भी है हनुमान जी को अपनी शक्ति का अहंकार हो गया था और श्री राम ने हनुमान जी का अहंकार तोड़ भी दिया था।
जब हनुमान जी ने दी श्री राम को चुनौती
हनुमान चालीसा की एक प्रसिद्ध पंक्ति है – राम काज करिबै को आतुर । यानी हनुमान जी हमेशा श्री राम के हरेक कार्य को करने के लिए आतुर रहते हैं। हनुमान चालीसा की ही एक और पंक्ति है कि दुर्गम काज जगत के जेते , सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते । अर्थात संसार के जितने भी कठिन कार्य हैं वो सब हनुमान जी की कृपा से संभव हो जाते हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा आ गया था जब श्री राम के हर कार्य करने के लिए तैयार हनुमान जी को गुस्सा आ गया था और हनुमान जी ने श्री राम को चुनौति दे दी थी। श्रीराम पर क्रोधित हुए हनुमान दरअसल श्रीराम और हनुमान जी की ये कथा आनंद रामायण में मिलती है। इस कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी को श्री राम के उपर ही क्रोध आ गया था और श्रीराम को उन्हें सबक सिखाने के लिए उनकी पूंछ तक तोड़नी पड़ गई थी ।
श्री राम ने शिवलिंग की स्थापना की
आनंद रामायण की कथा के अनुसार जब श्री राम श्रीलंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पर पुल बंधवा रहे थे, उस वक्त श्रीराम ने सभी वानरों से कहा कि – “अपने नाम से मैं सागर के संगम पर शिवलिंग स्थापित करूंगा।“ इसके बाद श्रीराम ने हनुमान जी को आदेश दिया कि वो काशी जाकर शिव जी से एक उत्तम शिवलिंग लेकर निश्चित मुहूर्त तक आ जाएं-
काशीं गत्वा शिवालिंगंमाननीयमनुत्तमम्।
मुहूर्तमध्ये नोचेनमे मुहूर्तातिक्रमो भवेत्।। 72
आनन्द रामायण, सारकाण्ड, दशम सर्ग
हे हनुमान ! तुम काशी जाकर शिवजी से एक उत्तम लिंग मुहूर्त रहते मांग लाओ, नहीं तो मेरा यह शुभ मुहूर्त टल जाएगा । राम की आज्ञा सुनकर हनुमान क्षण भर में उड़कर आकाश मार्ग से काशी पहुंच गए।
हनुमान जी और शिव जी की मुलाकात
काशी पहुंचकर हनुमान जी ने भगवान शिव को प्रणाम करते हुए राम कार्य के बारे में बताया । भगवान शंकर ने भी प्रसन्नता पूर्वक पवनपुत्र को दो उत्तम शिवलिंग दे दिए। इसके साथ ही भगवान शिव ने हनुमान जी से कहा कि – ‘मेरा भी दक्षिण दिशा में जाने का बहुत दिनों से मन हो रहा है। दण्डकवन में ऋषि अगस्त्य मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। मैं भी जल्द ही वहां दक्षिण भारत आउंगा।’ इतना कहने के बाद भगवान शिव ने हनुमान जी को काशी से विदा कर दिया । इसके बाद बजरंगबली आकाश मार्ग से श्रीराम के पास चल दिए । उस समय वीर हनुमान जी के मन में कुछ अभिमान उतपन्न हो गया। उन्हें लगा कि-
“मैंने तो शिव से दो लिंग प्राप्त कर लिए अब राम जी का निश्चय पूरा हो ही जाएगा।“
हनुमान जी और श्री राम के बीच अद्भुत रिश्ता
हनुमान जी और श्री राम बीच भक्त और भगवान का एक अद्भुत रिश्ता था। हनुमान जी के मन की बात श्री राम तुरंत जान लेते थे। जैसे ही वीर हनुमान के मन में अहंकार उत्पन्न हुआ प्रभु श्री राम को अपने भक्त के गर्व का पता चल गया । दशरथनंदन राम ने वानरों से कहा कि – श्री राम ने शिवलिंग की स्थापना भगवान ने सोचा कि “शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त बीता जा रहा है । इसलिए मैं रेत का ही शिवलिंग बनाकर सेतु के इस छोर पर स्थापित कर देता हूं ।” और
इसके बाद सभी मुनियों और वानरों को बुलाकर श्रीराम ने विधि पूर्वक रेत के शिवलिंग को स्थापित कर दिया। पूजा पूरी होने के बाद जब ऋषि लोग अपने-अपने आश्रम की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हनुमान जी ने देख लिया । तब हनुमान जी ने उन ऋषियों से पूछा कि – “आपकी पूजा किसने की है ?” हनुमान जी के इस प्रश्न पर ऋषियों ने उन्हें बताया कि राम जी ने शिवलिंग की अराधना और स्थापना करके हम लोगों की पूजा की है।
श्रीराम पर क्रोधित हुए हनुमान
ये सुनते ही हनुमान जी के मन में क्रोध उत्पन्न हो गया । उन्होंने सोचा कि श्रीराम ने आज मुझसे व्यर्थ ही इतना परिश्रम कराया । इस तरह विचार करते हुए वो श्रीराम के पास जा पहुंचे और गुस्से से बोले –
हे श्रीराम ! क्या आपको मेरा स्मरण नहीं था? जिस हनुमान ने लंका में सीता जी की खोज की थी और लौटकर आपको उनकी खबर दी थी, उसी हनुमान को आज आपने काशी भेजकर ऐसा उपहास किया? अगर आपके मन में यही था तो फिर मुझे इस तरह व्यर्थ क्यों सताया? अगर मुझे आपका मकसद पता होता तो मैं कभी काशी जाकर ये दो शिवलिंग नहीं लाता । इनमें से एक आपके लिए और दूसरा उत्तम शिवलिंग स्वयं लिए लाया हूं। अब मैं इस शिवलिंग का क्या करूं ?
श्रीराम ने हनुमान जी को क्रोधित देख कर हंसते हुए कहा कि -हे कपि ! तुम्हारा कहना सत्य है। अब तुम अगर इस मेरे स्थापित रेत के शिवलिंग को अपनी पूंछ में लपेटकर उखाड़ लो तो मैं तुम्हारे काशी से लाए हुए विश्वेश्वर लिंग को यहां स्थापित कर दूंगा ।“
जब टूट गई हनुमान जी की पूँछ
श्रीराम के वचन सुनकर हनुमान जी ने गर्व के साथ उस रेत के शिवलिंग को अपनी पूंछ में लपेट लिया और बार-बार खूब जोर से हिलाया। हनुमान ने जब ज्यादा जोर लगाया तो उनकी पूंछ एकदम से टूट गई और वो खुद जमीन पर गिर कर मूर्छित हो गए, लेकिन रेत का शिवलिंग जरा सा भी हिला तक नहीं। ये देख आसपास खड़े सभी वानर जोर जोर से हंसने लगे। हनुमान जी जैसे ही होश में आए उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और वो भक्ति पूर्वक राम से बोले – हे राम ! मेरा जो अपराध हुआ उसे क्षमा करें, क्योंकि आप तो कृपा निधि हैं।“
रामेश्वरम में है श्रीराम और हनुमान द्वारा स्थापित दो शिवलिंग
हनुमान जी का गर्व हरण करने के बाद प्रभु श्रीराम ने रामेश्वरम में हनुमान जी के द्वारा लाए हुए शिवलिंग को स्थापित करने की अनुमति दे दी और कहा – हे मारूति ! तुम मेरे स्थापित लिंग से उत्तर की ओर इस विश्वनाथ नाम के अपने लिंग को स्थापित करो। हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम के आदेश के बाद स्वयं के द्वारा लाए गए शिवलिंग की स्थापना कर दी । तब राम जी ने उस मारुति लिंग को वरदान देते हुए कहा –
‘ हे मारूती ! तुम्हारे द्वारा स्थापित विश्वनाथ लिंग की पूजा किए बिना जो सेतुबंध रामेश्वरम की पूजा करेगा उसकी पूजा व्यर्थ जाएगी । मारुति ! तुम जो मेरे लिए उत्तम लिंग लाए हो वह कई काल तक धरती पर अपूजित ही पड़ा रहेगा। कुछ वक्त बाद इस शिवलिंग को भी मैं ही स्थापित करुंगा।’
इसके बाद श्रीराम ने हनुमान जी से कहा कि “तुम्हारी पूंछ यहीं पर छिन्न हुई है, इसलिए तुम यहीं पर धरती में गुप्तपाद होकर अपने गर्व का स्मरण करते हुए पड़े रहो ।“ तब हनुमान जी ने अपने अंश से वहीं अपनी मूर्ति स्थापित कर दी ।
आज भी वहां हनुमान जी की छिन्नपुच्छ और गुप्त पैर की मूर्ति मौजूद है। इसके बाद श्रीराम ने अपने हाथ से छूकर हनुमान जी की पूंछ को पहले जैसा सुंदर बना दिया ।ये देख पवनपुत्र फिर से प्रसन्न हो गए। इस प्रसंग के बाद से ही हनुमान जी श्रीराम के सामने हमेशा के लिए गर्व रहित हो गए।