श्मशान साधना भारत में अघोरियों के अलावा अन्य कई सम्प्रदायों में भी की जाती है। इसका चलन पूर्वी भारत में ज्यादा दिखता है। आसाम, पूर्वी बिहार या मैथिल प्रदेश, बंगाल तथा उड़ीसा के पूर्वी भाग में ये विशेष रुप से प्रसिद्ध है। आमावस की निशारात्री में अनेक साधक महाश्मशानों में साधनारत रहते हैं। ये तांत्रिक और अघोरी स्वयं जितने रहस्यमयी हैं, उतनी ही आश्चर्यजनक इनकी दुनिया भी है।और ये भी सोचना पड़ता है कि कहां की जाती है श्मशान साधना।
कामरुप कामख्या का श्मशान है सिद्ध?
आसाम को ही पुराने समय में कामरुप कामख्या का श्मशान के रूप में जाना जाता था। कामरुप प्रदेश को तन्त्र साधना के गढ़ के रुप में दुनिया भर में जाना जाता है। पुराने समय में इस प्रदेश में मातृ सत्तात्मक समाज व्यवस्था प्रचलित थी, यानि कि यहां बसने वाले परिवारों में महिला ही घर की मुखिया होती थी। कामरुप की स्त्रियाँ तन्त्र साधना में बड़ी ही प्रवीण होती थीं। कामरुप में श्मशान साधना व्यापक रुप से प्रचलित रही है। इस प्रदेश के विषय में अनेक आश्चर्यजनक कथाएँ प्रचलित हैं। पुरानी पुस्तकों में यहां के काले जादू के विषय में बड़ी ही अद्भुत बातें पढऩे को मिलती हैं। कहा जाता है कि बाहर से आये युवाओं को यहाँ की महिलाओं द्वारा भेड़, बकरी बनाकर रख लिया जाता था।
कौन करते है श्मशान साधना?
आधी रात के बाद का समय। घोर अंधकार का समय। जिस समय हम सभी गहरी नींद के आगोश में खोए रहते हैं, उस समय घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्मशान में जाकर तंत्र-क्रियाएं करते हैं। घोर साधनाएं करते हैं।
अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। कहा जाता है कि शव साधना के चरम पर मुर्दा भी जिंदा हो जाता है और आपकी सारी इच्छाएं पूरी करता है। इस साधना में आम लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है। ऐसी साधनाएं अक्सर तारापीठ के श्मशान, कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में होती है।
श्मशान में शिव साधना
श्मशान में शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।
सामान्य श्मशान साधना
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है सामान्य श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।
कमोबेश श्मशान साधना भारत में अघोरियों के अलावा अन्य कई सम्प्रदायों में भी की जाती है। अनन्दमार्ग बिहार और बंगाल की मिलीजुली माटी की सुगन्ध है आनन्दमार्ग के साधु अवधूत कहलाते हैं और श्मशान साधना करते हैं। । ये अमावस की रात्री में साधना हेतु श्मशान जाते है। ऐसा दावा है कि श्मशान साधना से इन साधुओं को अनेक प्रकार की सिद्धी प्राप्त है।
श्मशान साधना के फायदे औऱ सावधानियां-
ऐसा दावा किया जाता कि जो व्यक्ति इस साधना को करने में सफल हो जाता है उसकी हर मनोकामना तो पूरी ही होती है साथ ही काम, क्रोध, भय, घृणा और जुगुप्सा उसे कभी भी नहीं हरा सकती है। इस साधना को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति को आत्मज्ञान प्राप्त हो जाता है।
कब की जाती है श्मशान साधना?
साधना के लिये साधक को अष्टमी चतुर्दशी, अमावस्या,पूर्णिमा, शनिवार और मंगलवार से करनी चाहिए। यदि पूर्णिमा, अमावस्या के दिन मंगलवार या शनिवार हो तो सबसे उत्तम माना जाता है।
यदि कोई अघोरी आधी रात के बाद श्मशान साधना करता है तो उसे मुहूर्त से कोई लेना देना नही होता है।परंतु सामान्य साधको के लिए खास मुहूर्त में ही साधना करने का विधान है।
साधना के लिये भोग चढ़ाने के लिए कुछ भी लिया जा सकता है, क्योकि श्मशान साधना में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों भोग चढ़ाने की प्रथा है।
श्मशान साधना के पहले इनकी पूजा जरुरी है
श्मशान साधना के पहले इनकी पूजा जरुरी है क्योंकि सभी प्रकार की आसुरी शक्तियों के अलावा गुरु, गणेश बटुक, और योगिनी आदि से आज्ञा लें और प्रणाम करके ही साधना को प्रांरभ करें। साधक आसन लेने के बाद पूर्व की ओर शमशान अधिपति को, दक्षिण में भैरव, पश्चिम में काल भैरव और उत्तर में महाकाल को रखकर साधना प्रारम्भ करें। यदि साधक चिता के समक्ष साधना करता है तो वह काली महाकाली और कालरात्रि का ध्यान कर मन्त्र जाप करे तथा उन्हें भोग लगावे। यदि किसी सामान्य व्यक्ति को श्मशान साधना करनी हो तो वो किसी तांत्रिक या अघोरी गुरु के सान्निध्य में ही करें। क्योंकि एक गलती भी आपके लिए जानलेवा हो सकती है। ऐसा बहुत सारे लोगों का दावा है।
श्मशान साधना के लिए मंत्र सिद्धि?
साधक श्मशान साधना के लिए मंत्र सिद्धि जरूर कर ले जो उसको अदृश्य बाधा- मसान बाधा – हिंसक जीव -जन्तो – पक्षी आदि से उसकी रक्षा करे और उस मंत्र को पढ़ कर जहां उसको आसन लगाना हो वहाँ जल की पतली रेखा खींच दे। इसके बाद ही वो निश्चिंत हो कर बैठे ! शमशान भूमि के पूर्व दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से ज्ञान वृद्धि का विकास होता है, पश्चिम दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से पारिवारिक सुख शांति और उत्तर दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से संतान प्राप्ति और ऋण व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। दक्षिण दिशा में बैठ कर ध्यान लगाने से रोग-शोक आदि का निवारण होता है !
ऐसा दावा है कि शमशान में नियमित रूप से जाने पर और जलती हुई चिताओ पर ध्यान लगाने से मन सबल हो जाता है ! साधक के चेहरे पर एक अपूर्व तेज़ और मन में गहरे आत्मविश्वास की सृष्टि होती है इन सब सावधानियों के बारे मे जानने के बाद भी अगर आपका मन श्मशान की साधना को करने का करता है तो किसी गुरु के सलाह से अपनी साधना प्रांरभ कर सकते है।