शनि का रहस्य
भगवान सूर्य के पुत्र शनिदेव जोकि संसार में एक उदंड देवता के नाम से जाने जाते हैं ऐसा कहा जाता है कि उनकी दृष्टि से ही जीवन में कष्ट और समस्याएं आने लगती हैं भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि का रहस्य जानने के लिए अपने पुत्र के बालकपन से उत्सुक हैं और ऐसा बी माना जाता है कि महावीर हनुमान से गुरु दक्षिणा के रूप में अपने पुत्र शनि की उदंडता को ही भगवान सूर्य ने मांगा था।
क्यों करते है शनि पिता से बैर और माता से प्रेम
भगवान शनिदेव का रहस्य और उनके जन्म की कथा हमें पुरणों में अलग अलग वर्णन के साथ मिलती है। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था।
स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं लेकिन इसके पीछे एक कहानी है। दरअसल राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ था। दिन बीतते गए और संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतानों को जन्म दिया। फिर संज्ञा ने निर्णय लिया कि वह तपस्या करेंगी। लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिए उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी ही तरह की एक स्त्री को पैदा किया और उसका नाम छाया रखा। संज्ञा ने छाया से कहा कि अब से मेरे बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी
सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं छाया है। छाया अपने नारीधर्म का पालन करती रही। सूर्यदेव और छाया के संयोग से मनु, शनिदेव और भद्रा तीन संतानों ने जन्म लिया।
कहते हैं कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनिदेव पर भी पड़ा। फिर जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया को अपमानित किया।
मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे। महादेव के समझाने पर सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।
कैसे हुए शनि एक पैर से लंगड़े
शनि एक पैर से लंगड़े कैसे हुए यह कथा ब्रम्हपुराण में उस समय आती है जब महादेव शिवशंकर ने अपने परम भक्त ऋषि दधीचि के घर ऋषि पिप्पलाद बनकर जन्म लिया। पिप्पलाद के जन्म से पूर्व इनके पिता ऋषि दधीचि की मृत्यु हो गई। युवावस्था में पिप्पलाद ने देवगणों से ऋषि दधीचि की मृत्यु का कारण पूछा तो देवगणों ने शनि की कुदृष्टि को इसका कारण बताया।
ऋषि पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने शनि पर ब्रह्मदंड का प्रहार कर दिया। ब्रह्मदंड ने शनिदेव के पैर पर प्रहार किया। शनिदेव ब्रह्मदंड का प्रहार सहन नही कर पाएं। पिप्पलाद की क्रोध भरी मारक दृष्टि के प्रकोप के कारण शनिदेव आकाश से सीधा नीचे जमीन पर आ गिरे और उनका एक पैर टूट गया और वो अपाहिज हो गए। उसी समय ब्रह्मदेव ने ऋषि पिप्पलाद को शांत कर शनिदेव कि रक्षा की।
ब्रह्मदेव ने रुद्रावतार पिप्पलाद को आशीर्वाद दिया कि जो भी भक्त पिप्पलाद अर्थात पीपल की पूजा अर्चना करेगा उसे शनि के कष्टों से मुक्ति मिलेगी तथा शनिदेव शिवभक्तों को कभी कष्ट नहीं देंगे। यदि शनिदेव शिवभक्तों को कभी कष्ट देंगे तो शनिदेव स्वयं भस्म हो जाएंगे।
क्यों भगवान शिव ने 19 साल तक शनि को लटकाया
मान्यताओं के अनुसार सूर्य ने अपने पुत्रों की योग्यतानुसार उन्हें विभिन्न लोकों का अधिपत्य प्रदान किया लेकिन शिव ने 19 साल शनि को क्यों लटकाया दरअसल असंतुष्ट शनि ने उद्दंडता वश पिता की आज्ञा की अवहेलना करते हुए दूसरे लोकों पर कब्जा कर लिया। सूर्य की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने अपने गणों को शनि से युद्ध करने भेजा लेकिन शनिदेव ने उनको परास्त कर दिया। इसके उपरांत भगवान शंकर व शनिदेव में भयंकर युद्ध हुआ। शनिदेव ने भगवान शंकर पर मारक दॄष्टि डाली तो भगवान शंकर ने तीसरा नेत्र खोलकर शनि व उनके सभी लोक का दमन कर त्रिशूल से प्रहार कर दिया जिसके कारण शनिदेव बेहोश होकर गिर गये।
इसके पश्चात शनि को सबक सीखाने के मकसद से महादेव ने उन्हें पीपल के पेड़ से 19 वर्षों तक उल्टा लटका दिया। इन्हीं 19 वर्षों तक शनि शिव उपासना में लीन रहे। इसी कारण शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है लेकिन पुत्रमोह से ग्रस्त सूर्य ने महेश्वर से शनि का जीवनदान मांगा। तब महेश्वर ने प्रसन्न होकर शनि को मुक्त कर उन्हें अपना शिष्य बनाकर संसार का दंडाधिकारी नियुक्त किया।
भारत में सबसे प्रसिद्ध शनि मंदिर शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र में स्थित इस मंदिर की ख्याति देश ही नहीं विदेशों में भी है। कई लोग तो इस स्थान को शनि देव का जन्म स्थान भी मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है, घर है लेकिन दरवाजा नहीं है, वृक्ष है लेकिन छाया नहीं है। शिंगणापुर के इस चमत्कारी शनि मंदिर में स्थित शनिदेव की प्रतिमा है। ये प्रतिमा पांच फीट नौ इंच ऊंची और एक फीट छह इंच चौड़ी है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आकर शनिदेव की इस दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन करकें अपने दुखों को दूर करते है। भारत में सबसे प्रसिद्ध शनि मंदिर शनि शिंगणापुर को माना जाता है।