ईसा मसीह के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म बेथलेहम इसराइल के एक फिलिस्तीनी शहर में हुआ था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ईसा मसीह का एक गहरा संबंध भारत देश से भी रहा है। ईसा मसीह के भारत में आने को लेकर सनातन धर्म के एक प्रमुख ग्रंथ भविष्यत पुराण में जिक्र मिलता है। कई विदेशी विद्वानों ने भी ईसा मसीह के भारत आने के संबंध में लिखा है। कहा जाता है कि ईसा मसीह ने अपनी युवावस्था और अपने पुनर्जीवित होने के बाद अंतिम कई वर्ष भारत में ही बिताए थे।
क्या है ईसा मसीह का भारत से संबंध
कहते हैं कि ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाने से ठीक कुछ दिनों पहले एक औरत ने उन पर जटामसी का इत्र फेंक दिया था। इस कथा का वर्ण लूका, मारकुस और युहन्ना के सुसमाचारों में मिलता है। आपको बता दें कि उस वक्त जटामसी इत्र सिर्फ भारत में बनता था। ग्रीक और रोमन परम्पराओं में भी मरने वाले शख्स की चिता पर सम्मान के साथ इसे डाला जाता था। यूहन्ना, मारकुस, मत्ती और लूका के सुसमाचारों में इस बात पर मतभेद है कि जटामांसी का इत्र उस वक्त ईसा मसीह पर किसने डाला ? कुछ का कहना है कि वो मरियम ही थीं, जिन्होंने ईसा के ऊपर इत्र डाला था। लेकिन जो भी हो ईत्र डालने के बाद ही ईसा मसीह ने ये संकेत दे दिए थे कि यह काम उनकी मृत्यु के बाद दफनाने की निशानी के रूप में हुआ है। गौरतलब है कि जटामसी का सीधा संबंध भारत से रहा है।
क्या है ईसा मसीह का तुलसी से रिश्ता
ग्रीक आर्थोडॉक्स चर्च का प्रभाव आज भी ग्रीस, बुल्गारिया, सर्बिया आदि देशों में है। ग्रीक ऑर्थोडोक्स चर्च की मान्यता के अनुसार तुलसी या होली बासिल एक पवित्र पौधा है। ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च की मान्यता के मुताबिक जब ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाया गया तो उस क्रॉस के नीचे मरियम के आंसू और ईसा मसीह का खून गिरा था।
जिस स्थान पर ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाया गया था उस स्थान पर ही तुलसी के पौधे उगे थे। इसके अलावा ये भी माना जाता है कि जिस गुफा में यीशू को क्रॉस से उतार कर रखा गया था वहां भी तुलसी के पौधे का बगीचा था। जब किंग कांटिस्टैनपोल की माता हेलेना यरुशलम की तीर्थ यात्रा पर आई थीं, तब उन्होंने उस पवित्र गुफा की खोज की थी जिसमें यीशू को रखा गया था। इसके साथ ही उस स्थान की खोज भी की थी जहां यीशू को क्रॉस पर लटकाया गया था।
ईसाई धर्म में तुलसी के पौधे को पवित्र माना जाता है
इन दोनों स्थानों की पहचान होली बॉसिल या तुलसी के बागीचे से की गई थी। आज भी ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च में तुलसी के पौधे से ही होली वाटर( पवित्र जल) बनाया जाता है। होली बासिल या तुलसी के पौधे से ही क्रॉस पर लगाने के लिए सुगंधित तेल भी बनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार तुलसी के पौधों से ही ईसा की चिकित्सा की गई थी और वो फिर से स्वस्थ हो कर ईस्टर के दिन प्रगट हुए थे। ईसा ने उसके बाद गलीली में जाकर अपने भक्तों को दर्शन भी दिए थे। यूहन्ना के सुसमाचार के मुताबिक गुफा में ही यीशू ने मरियम को दर्शन दिए थे। यूहन्ना के सुसमाचार के अनुसार ये मरियम मदर मैरी नहीं बल्कि ईसा की करीबी मैरी मगदलीन थीं
ईसा मसीह का श्रीकृष्ण से रिश्ता
ईसा मसीह का एक रिश्ता भगवान श्रीकृष्ण से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि त्रिदेवों की संकल्पना में जिस तरह ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, उसी तरह होली ट्रीनिटी की संकल्पना ईसाइयत में भी है। जिस तरह त्रिदेव में दूसरे स्थान पर आसीन विष्णु के अवतार हैं, उसी तरह ट्रीनिटी के सिद्धांत के अनुसार परमेश्वर के बाद दूसरे स्थान पर परमेश्वर के पुत्र यानी यीशु आते हैं।
कुछ आधुनिक मान्यताओं के अनुसार गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने खुद को जगत और ब्रह्मांड का पिता कहा है। यीशू ने भी खुद को परमेश्वर का पुत्र कहा है। इस तरह देखा जाए तो कृष्ण परमेश्वर हुए और यीशू उनके द्वारा भेजे गए पुत्र। ग्रीक माइथोलॉजी में कृष्ण और यीशू दोंनों शब्दों का अर्थ एक ही है। कृष्ण का ग्रीक समानार्थी शब्द क्रिस्टो होता है। इसका अर्थ दिव्य होता है। क्रिस्टो शब्द से ही क्राइस्ट निकला है।इसका अर्थ भी वही होता है जो कृष्ण का होता है।
ईसा मसीह कब आए थे भारत
कहते है कि ईसा मसीह 13 साल की उम्र में भारत भी आए थे। बाईबल के न्यू टेस्टामेंट में उनकी ज़िंदगी के 17 सालों का कोई ब्यौरा नहीं दिया गया है।उसी दौरान उन्होंने हिंदुस्तानी सभ्यता और धर्म का ज्ञान हासिल किया था। इसी ज्ञान से प्रेरित होकर ईसा मसीह ने अपने भक्तों को उपदेश दिए थे।
1908 में लेवी एच डोलिंग ने ‘एक्वेरियन गॉस्पेल ऑफ जीसस द क्राइस्ट’ प्रकाशित किया था। इस किताब में उन्होंने दावा किया था कि उसे सारी जानकारी सुपरनैचुरल पावर्स से मिली है। इस किताब के मुताबिक युवा जीसस ने भारत, तिब्बत, ईरान, ग्रीस और मिस्त्र देशों का भ्रमण किया था।
ईसा मसीह का बौद्ध धर्म से रिश्ता
बीबीसी ने ‘जीसस वास ए बुद्धिस्ट मोंक’ नाम से एक डॉक्युमेंट्री भी बनाई थीं। इसके मुताबिक जीसस को सूली पर नहीं चढाया गया था। जब वह 30 साल के थे तब वह अपनी पसंदीदा जगह वापस चले गए थे। इस डॉक्युमेंट्री के मुताबिक जीसस की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे।
इस रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की थी कि जीसस ने कश्मीर घाटी में कई साल बिताए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे थे। कुछ लोगों का मानना है कि कश्मीर के श्रीनगर में रोजा बल श्राइन में जीसस की समाधि बनी हई है। हालांकि आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है। एक मान्यता यह भी है कि 13 साल की उम्र में जीसस 3 विद्वानों के साथ भारत आए थे और एक बौद्ध की तरह भारत में उनकी परवरिश हुई।
भारतीय दार्शनिक ओशो ने भी ईसा मसीह के भारत से संबंधित होने की बात कही है ओशो के मुताबिक – “जब भी कोई सच जानने के लिए उत्सुक होता है तो वो भारत की तरफ बढ़ता है तब वो अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है और यह केवल आज की बात नहीं है।आज से 2500 साल पूर्व सत्य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था।ईसा मसीह भी भारत आए थे। ईसा के 13 से 30 साल की उम्र के बीच का बाईबिल में कोई उल्लेख नहीं है और यही उनकी लगभग पूरी ज़िंदगी थी क्योंकि 33 साल की उम्र में तो उन्हें सूली पर ही चढ़ा दिया गया था। 13 से 30 तक यानि 17 सालों का हिसाब बाईबिल से गायब है। इतने समय वो कहां रहे? आखिर बाईबिल में उन सालों को क्यों नहीं रिकॉर्ड किया गया।उन्हें जानबूझकर छोड़ दिया गया है, ताकि यह साबित ना हो सके कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वो उसे भारत से लाए हैं।“
ईसा मसीह के काल में भारत में बौद्ध धर्म जीवंत था
यहां जानना बेहद जरूरी है कि ईसा जब भारत आए तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था। हालांकि उस वक्त बुद्ध की मृत्यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के 500 साल बाद जीसस यहां आए थे। लेकिन इस काल तक बौद्ध धर्म एक विराट आंदोलन का रुप ले चुका था। माना जाता है कि अपने अंतिम वक्त में जीसस की मृत्यु भी भारत में ही हुई थी और ईसाई रिकॉर्ड्स इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं। 1992 में आई किताब ‘जीसस द मैन’ में कहा गया है कि जीसस सूली पर चढ़ाए जाने के बाद भी ज़िंदा बच गए थे और फिर उन्होंने मैरी मैग्डेलेन से शादी भी की थी।
‘फिफ्थ गॉस्पेल’ नाम की किताब में भी इसी दावे का समर्थन किया गया है कि ईसा मसीह 13 से 39 साल तक भारत भ्रमण करते रहे। 19वीं और 20वीं शताब्दी में कई थ्योरीज सामने आई जिसमें दावा किया गया कि जीसस 17 साल तक भारत दौरे पर थे। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि ईसा मसीह का भारत देश से गहरा नाता रहा है। फिर चाहे सनातन धर्म में पूजनीय तुलसी पौधे की बात हो या फिर श्रीकृष्ण की या फिर बौद्ध धर्म की।