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माँ काली के महान भक्त श्रीरामकृष्ण परमहंस

The Karma by The Karma
March 2, 2025
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Great Saint Sri Ramakrishna Paramahamsa and Mother Kali
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माँ काली के महान भक्त श्रीरामकृष्ण परमहंस

स्वामी विवेकानंद जी के गुरु और बंगाल के महान संत श्रीरामकृष्ण परमहंस के बारे में तो सुना ही होगा। ये वो संत थे जिन्हें प्रतिदिन साक्षात माँ काली दर्शन देती थीं उनसे माँ काली रोज़ बातें करती थीं। कम उम्र में ही श्रीराम कृष्ण परमहंस जी साधना के उस स्तर पर पहुंच गए थे जिस स्तर पर पहुंचने में बड़े बड़े योगियों को हजारों जन्म लग जाते हैं। लेकिन प्रश्न ये है कि रामकृष्ण परमहंस को माँ काली के प्रथम दर्शन कैसे हुए?

कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर के पुजारी श्रीरामकृष्ण परमहंस को माँ काली ने दर्शन दिया था इसका उल्लेख उस वक्त के अंग्रेज शासक भी करते थे। उनके मंदिर दक्षिणेश्वर में रोज़ कोलकाता के बड़े बड़े अंग्रेज ऑफिसर्स भी आते थे और कोलकाता के बड़े बडे विद्वान लोग भी। सभी तेजी से श्रीरामकृष्ण परमहंस की भक्ति को देख कर उनके शिष्य़ बने जा रहे थे। लेकिन श्रीरामकृष्ण परमहंस को माँ काली के दर्शन होने के बाद भी मन की शांति नहीं मिल पा रही थी। वो साधना की उच्च अवस्था पर पहुंचने के बाद भी परम आनंद की प्राप्ति से कोसो दूर थे।

ऐसे में एक दिन अचानक दक्षिणेश्वर में माँ काली के मंदिर के पास एक नागा साधु आए। इन नागा साधु का नाम तोतापुरी जी था। तोतापुरी जी ने जब श्रीरामकृष्ण परमहंस को देखा तो वो पहचान गए कि रामकृष्ण परमहंस परेशान हैं और उनकी परेशानी की वजह क्या है।

श्रीरामकृष्ण ने उन्हें बताया कि उनको माँ काली की छवि उनके सामने प्रकट हुई और रोज उनके दर्शन होते हैं फिर भी उनकी समाधि टूट जाती है। तब तोतापुरी जी ने उन्हें समझाया कि जब तक श्रीरामकृष्ण माँ काली के शरीर रुप का दर्शन करते रहेंगे तब तक उनकी समाधि पूर्ण नहीं होगी।

ऐसे में रामकृष्ण जी ने उनसे समाधि पूर्ण करना तरीका पूछा तो तोतापुरी जी ने कहा कि इसके लिए उनके मन में बसी माँ काली की छवि को काटना पड़ेगा।

मासूम मन वाले श्रीरामकृष्ण जी ने तोतापुरी जी से कहा कि इसके लिए पहले वो अपनी माँ काली से अनुमति लें तभी वो ऐसा कर पाएंगे। तोतापुरी जी हंसने लगे और कहा कि जिस छवि को तू असली ईश्वर मान रहा है वो इस छवि से भी उपर है।

फिर भी रामकृष्ण परमहंस जी अपनी माँ काली के पास ये पूछने के लिए गये कि क्या तोतापुरी जी के अनुसार उनकी छवि को नष्ट करके ही समाधि को पूर्ण किया जा सकता है? तो इस पर माँ काली ने श्रीरामकृष्ण परमहंस जी को कहा कि हाँ जैसा तोतापुरी कहें वैसा ही करो।

इसके बाद श्रीरामकृष्ण परमहंस नागा संत तोतापुरी जी के पास आए। तोतापुरी जी ने उन्हें ध्यान लगाने के लिए कहा। लेकिन ये क्या जैसे ही श्रीरामकृष्ण परमहंस ध्यान में डूबते वो माँ काली से बातें करने लगते। वो माँ काली से बातें करते हुए रोने लगते।

ऐसे करते देख तोतापुरी जी उनसे कहते कि तुम माँ काली का ध्यान करो ही मत। तुम सिर्फ निराकार या बिना किसी आकार पर अपना ध्यान लगाओ। अब श्रीरामकृष्ण फिर बार बार ध्यान लगाते। लेकिन फिर उनका ध्यान माँ काली की छवि पर लग जाता। और वो माँ काली से बातें करने लगते।

तब तोतापुरी जी ने कहा कि तुम्हें अपनी काल्पनिक तलवार से माँ काली की छवि को काटना होगा। तभी तुम साकार से निराकार ब्रह्म तक पहुंचोगे। रामकृष्ण ने ऐसा ही करने की कोशिश की। जैसे वो ध्यान में गए। माँ काली प्रगट हो गईँ और उनसे बातें करने लगी। रामकृष्ण ध्यान की अवस्था में जैसे ही तलवार लेकर माँ काली की तरफ बढ़े। वो रोने लग गए और माँ काली की प्रार्थना करने लगे। एक बार फिर उनकी समाधि टूट गई।

तब तोता पुरी जी ने उनसे पूछा कि तुमने माँ काली की छवि को तलवार से क्यों नहीं काटा। तो इस पर रामकृष्ण कहने लगते कि जब माँ काली की छवि सामने आती है तो वो भूल जाते हैं कि उन्हें माँ काली को तलवार से काटना है। उन्हें याद ही नहीं रहता।

तब तोतापुरी जी ने एक उपाय सुझाया। उन्होंने कहा कि जब तुम ध्यान में जाओगे और माँ काली तुम्हारे सामने प्रगट होंगी। उस वक्त मैं एक शीशे के टुकड़े से तुम्हारे माथे पर कट का निशान लगाउंगा। इस निशान से तुम्हे जो दर्द होगा। उसे फील करते ही तुम याद कर लेना कि मैंने तुम्हें तलवार से माँ काली की छवि को काटने का आदेश दे दिया है।

रामकृष्ण परमहंस ने मां काली के कर दिए टुकड़े दरअसल रामकृष्ण परमहंस जी फिर से ध्यान में चले गए। जैसे ही माँ काली की छवि उनके सामने प्रगट हुई। तोतापुरी जी ने एक शीशे के टुकड़े से उनके माथे पर कट का निशान लगाया। ध्यान में डूबे रामकृष्ण परमहंस को वो ईशारा मिल गया और इसके बाद उन्होंने तलवार से माँ काली की छवि को काट डाला। इसके बाद जो हुआ वो अद्भुत था। श्रीरामकृष्ण परमहंस निराकार ब्रह्म की समाधि में तीन दिनों तक लीन रहे उनकी समाधि पूर्ण हो गई।

जब श्रीरामकृष्ण जी की समाधि पूर्ण हुई तो वो माँ काली के असली निराकार स्वरुप को समझ चुके थे और इसके बाद उन्हें परमहंस की उपाधि दी गई। ये उपाधि उन्हीं लोगों को मिलती है जो निराकार और साकार ब्रह्म दोनों को जान लेते हैं और समाधि की सबसे उंची अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। रामकृष्ण परमहंस और मां काली का प्रसंग भक्ति के भाव को दर्शाता है।

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Tags: महान संतमाँ कालीश्रीरामकृष्ण परमहंस

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