जब भी पाकिस्तान का नाम लिया जाता है, अक्सर बंटवारे, संघर्ष और धार्मिक असहिष्णुता की छवियां उभरती हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी यही ज़मीन भारत का अभिन्न हिस्सा थी, जहां वेदों की ऋचाएं गूंजा करती थीं, मंदिरों की घंटियां बजती थीं, और सनातन संस्कृति गहराई से जमी हुई थी। 1947 से पहले, सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान जैसे क्षेत्र सनातन धर्म के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र थे। यहीं जन्मे तीन ऐसे महान योद्धा जिनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है – राजा दाहिर, राजा जयपाल (Raja Dahir, Raja Jaipal ), और राजा आनंदपाल Raja Anandpal। इन्होंने इस्लामी आक्रांताओं से संघर्ष किया और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।
राजा दाहिर – सिंध के अंतिम हिंदू सम्राट
राजा दाहिर, ब्राह्मण चच वंश के शासक थे, जिन्होंने 663 से 712 ईस्वी तक सिंध पर शासन किया। उस समय सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब और अफगानिस्तान के कुछ भाग उनके साम्राज्य में आते थे।
अरब आक्रमण और वीरगति
711 ईस्वी में खलीफा वलीद के आदेश पर मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया। इस आक्रमण का उद्देश्य केवल श्रीलंका के राजा द्वारा भेजे गए उपहार लूटना नहीं, बल्कि सिंध की समृद्धि और सनातन संस्कृति को समाप्त करना था।
राजा दाहिर ने देबल और रावर की लड़ाइयों में वीरता से मुकाबला किया। उन्होंने अरब सेनाओं को कई बार पीछे हटाया और कासिम के सेनापति उबैदुल्लाह और बुडैल को युद्ध में पराजित किया। परंतु 712 ईस्वी में अरोर की निर्णायक लड़ाई में स्थानीय राजाओं की गद्दारी के कारण वे शहीद हो गए।
उनकी बेटियों – सूर्या देवी और प्रेमला – ने भी पिता की मौत का बदला कासिम को धोखे से मार कर लिया। राजा दाहिर आज भी सिंधी हिंदुओं की चेतना में जीवित हैं, एक ऐसे योद्धा के रूप में जिन्होंने धर्म और आत्मसम्मान के लिए बलिदान दिया।
राजा जयपाल – हिन्दू-शाही वंश के गौरव
राजा जयपाल ने 964 से 1000 ईस्वी तक हिन्दू-शाही वंश का नेतृत्व किया। उनका राज्य काबुल, पेशावर, मुल्तान और लाहौर तक फैला हुआ था – यानी आज का पाकिस्तान।
तुर्क आक्रमण के विरुद्ध संघर्ष
सबुक्तगिन और फिर उसके बेटे महमूद गजनी ने भारत पर आक्रमण शुरू किया। राजा जयपाल ने इन आक्रमणों का डटकर सामना किया। उन्होंने गजनी पर खुद धावा बोला और कई युद्धों में तुर्कों को मात दी।
परंतु 1000 ईस्वी की पेशावर की लड़ाई में छल और विश्वासघात के चलते उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सम्मान की रक्षा हेतु राजा जयपाल ने आत्मदाह कर लिया। उनका बलिदान केवल एक राजा का नहीं, बल्कि पूरे सनातन समाज की अस्मिता की रक्षा थी।
राजा आनंदपाल – सनातन धर्म के अंतिम प्रहरी
राजा जयपाल के पुत्र आनंदपाल ने 1000 से 1010 ईस्वी तक हिन्दू-शाही साम्राज्य की बागडोर संभाली। उन्होंने अपने पिता के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया।
वैहिंद की ऐतिहासिक लड़ाई (1008 ईस्वी)
पंजाब के वैहिंद (अब पाकिस्तान में) में महमूद गजनी से निर्णायक युद्ध लड़ा गया। आनंदपाल ने विभिन्न हिंदू राजाओं को एकजुट करने का प्रयास किया, लेकिन व्यापक सहयोग न मिलने पर भी वे पीछे नहीं हटे। उन्होंने वीरता से लड़ाई लड़ी, भले ही अंत में हार मिली।
महमूद गजनी भी आनंदपाल की सैन्य कौशल और वीरता से प्रभावित हुआ। राजा आनंदपाल की मृत्यु के बाद हिन्दू-शाही साम्राज्य का धीरे-धीरे अंत हो गया, लेकिन उनकी गाथा आज भी प्रेरणा देती है।
विभाजन की त्रासदी और आज का सच
1947 में भारत के बंटवारे के समय पाकिस्तान में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं, सिखों और बौद्धों को अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी। अनुमानित 14 मिलियन लोग विस्थापित हुए और करीब 10 लाख मारे गए। पाकिस्तान में बचे हिंदुओं को आज भी धार्मिक उत्पीड़न, जबरन धर्मांतरण और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
फिर भी, इन कठिन परिस्थितियों में भी पाकिस्तान में रह रहे हिंदू अपने धर्म, परंपराओं और संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं – और इसके मूल में वही वीर योद्धा हैं जिनकी विरासत आज भी प्रेरणा देती है।
निष्कर्ष: शूरवीरों की गाथाएं, जो आज भी प्रासंगिक हैं
राजा दाहिर, राजा जयपाल और राजा आनंदपाल केवल योद्धा नहीं थे – वे सनातन धर्म के प्रहरी थे। उन्होंने दिखाया कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए जीवन देना भी एक छोटी कीमत है। आज, जब आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं, तब इन वीरों की गाथाएं हमें याद दिलाती हैं कि –
“सनातन केवल धर्म नहीं, एक जीवन दर्शन है – और इसकी रक्षा हर युग की ज़रूरत है।”