हनुमान ने जलाई लंका ये तो आपने रामायण में पढ़ा ही होगा। जब रावण ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगा दी थी तो हनुमान जी रावण की कैद से निकल कर पूरे लंका में घूमने लगे और उन्होंने रावण के महल से लेकर पूरी सोने की लंका को धू-धू कर जला डाला था। पूरी लंका के दो स्थान जिसको हनुमानजी ने नहीं जलाया, हनुमान जी ने ऐसा क्यों किया था और क्यों उन्होंने पूरी लंका में सिर्फ इन दो स्थानों को छोड़ कर हरेक घर को जला डाला था ये कथा हमें कई राम कथाओं में मिलती है।
राम कथाओं के अनुसार हनुमान जी ने लंका के जिन दो स्थानों को नहीं जलाया था उसमें पहला स्थान तो अशोक वाटिका थी। यह वही अशोक वाटिका थी जहाँ रावण ने माँ सीता को कैद कर रखा था। अब जहाँ माँ सीता रहती वहाँ वो कैसे आग लगा सकते थे? सो कुछ रामकथाओं के अनुसार हनुमान जी ने अशोक वाटिका में अपनी पूँछ से आग नहीं लगाई थी।
लंका में जो दूसरा स्थान था जिसे हनुमान जी ने बख्श दिया था वो था विभीषण का महल। दरअसल जैसे ही हनुमान जी लंका पहुंचें थे और माँ सीता की खोज में एक घर से दूसरे घर में छलांग लगा रहे थे वैसे ही उन्हें वहाँ एक ऐसा घर दिखाई पड़ा जहाँ भगवान विष्णु से जुड़े बहुत सारे पवित्र प्रतीक मौजूद थे। दोस्तों विभीषण शुरु से ही धर्म के रास्ते पर चलने वाले राक्षस थे। बचपन से ही वो भगवान विष्णु की भक्ति करते थे। विभीषण जानते थे कि श्रीराम और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इसलिए विभीषण ने अपने घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा रखा था जो भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा विभीषण के घर के दरवाजे पर भगवान विष्णु के शंख और चक्र के चिन्ह भी अंकित थे। तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस में तो बकायदा ये भी वर्णन मिलता है कि विभीषण जी ने अपने घर के दरवाजे पर भगवान श्रीराम के पवित्र धनुष के चिन्ह को भी अंकित कर रखा था। जैसे ही हनुमान जी ने विभीषण का घर देखा उन्हें पहले तो आश्चर्य हुआ कि आखिर दुष्ट राक्षसों की लंका में ये किस व्यक्ति का घर है जहाँ भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीराम के चिन्ह अंकित हैं।
आश्चर्य से चकित हनुमान जी ने पहले इस बात की पक्की जांच करने की ठानी कि आखिर ये घर है किसका। तब हनुमान जी ने एक साधु का वेष बनाया और विभीषण जी के घर के बाहर खड़े हो गए। विभीषण ने भी जब उन्हें साधु के वेष में देखा तो वो भी आश्चर्यचकित हो गए कि लंका जैसे दुष्ट राक्षसों के स्थान पर ये साधु अचानक कहां से आ गया। दोनों के बीच बात चीत होने लगी। विभीषण जी ने पहले अपना परिचय बताया और ये भी बताया कि वो किन हालातों में अपने दुष्ट भाई रावण की लंका में मजबूरी से रह रहे हैं। विभीषण ने कहा कि काश श्रीराम के पास उन्हें भी जाने का मौका मिलता तो वो श्रीराम की शरण में चले जाते। जब हनुमान जी को विश्वास हो गया कि विभीषण सच में एक अच्छे राक्षस हैं तो उन्होंने अपना साधु वाला रुप त्याग दिया और वो अपने असली रुप में आ गए।
हनुमान जी और विभीषण के बीच दोस्ती हो गई। विभीषण ने ही हनुमान जी को माँ सीता के बारे में बताया। विभीषण ने ही माँ सीता का पता भी बताया। विभीषण के बताने के बाद ही हनुमान जी अशोक वाटिका जाते हैं और वहाँ मां सीता के दर्शऩ कर उन्हें प्रभु श्रीराम का संदेश देते हैं। चूँकि विभीषण जी भी श्रीराम के भक्त थे और उन्होंने ही हनुमान जी को माँ सीता का पता बताया था इसलिए जब रावण ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगवाई तो हनुमान जी ने रावण के महल को पूरी तरह से जला दिया, मेघनाद के घर को भी जला कर नष्ट कर दिया। लेकिन जब उन्हें विभीषण का घर दिखाई दिया तो उन्होंने रामभक्त विभीषण के घर को छोड़ दिया और वापस श्रीराम के पास लौट गए।
हालांकि वाल्मीकि रामायण में ऐसी कोई कथा नहीं मिलती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार तो लंका जलाने के बाद हनुमान जी परेशान हो गए थे कि कहीं उनकी गलती से अशोक वाटिका तो नहीं जल गई? वाल्मीकि रामायण की कथा के अनुसार ये सोच कर हनुमान जी बहुत परेशान हो जाते हैं और आत्महत्या तक करने की सोंचने लगते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी वजह से अशोक वाटिका में माँ सीता भी जल गई होंगी। लेकिन फिर वो हिम्मत करके अशोक वाटिका में दोबारा जाते हैं और जब वो वहाँ मां सीता को जीवित देखते है तो प्रसन्न हो जाते हैं। हनुमान जी माँ सीता से दोबारा मिलते हैं और मां सीता से श्रीराम के लिए संदेश लेकर वापस समुद्र पार कर अपने प्रभु श्रीराम के पास लौट आते हैं।