महाभारत में हमने देखा था कि माता कुंती ने अपने पुत्र कर्ण को जन्म लेते ही नदी में प्रवाहित कर दिया था लेकिन क्या अकेला कर्ण ही ऐसा था जिसको माता के द्वारा त्याग दिया गया था सनातन धर्म में अनेक ऐसी घटनाएं हुई हैं जब बच्चा पैदा होने पर उसका त्याग कर दिया गया था
कृष्णद्वैपायन व्यास
व्यास जी का नाम आते ही उनके द्वारा लिखित महाभारत नामक ग्रंथ का जिक्र आ ही जाता है क्योंकि अनेकों विद्वानों का ये मानना है कि सनातन इतिहास में जो भी हुआ है वह सबकुछ वेदव्यास की महाभारत में लिखित है। वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ हम आपको बता रहे हैं कि महर्षि वेदव्यास के जन्म की सच्चाई क्या है सबसे पहले तो हम आपको ये बता दें कि व्यास जी की माता एक अप्सरा थी एक शाप के कारण जिनका जन्म एक पछली के पेट से हुआ था और वेदव्यास के पिता का नाम महर्षि पराशर था ये प्रसंग उस समय का है जब पराशर जी को यमुना नदी को पार करके आगे की ओर जाना था तो सत्यवती अपनी नाव में महर्षि पराशर को बिठाकर नदी पार करने के लिए ले जा रही थी तो दैववश पराशर जी सत्यवती पर मोहित हो गए तथा आशिर्वाद के रूप में पराशर जी ने सत्यवती को एक पुत्र दे दिया और पराशर जी यमुना स्नान करके वहां से चले गए।
लेकिन अविवाहित सत्यवती ने समाज के डर से अपने पुत्र को यमुना के तट पर स्थित बालू के द्वीप में छोड़ दिया और उस तेजस्वी बालक ने अपने मां से कहा-
सुषुवे यमुनाद्वीपे पुत्रं काममिवापरम्।
जातमात्रस्तु तेजस्वी तामुवाच स्वमातरम्।।37
तपस्येव मन: कृत्वा विविशे चातिवीर्यवान्।
गच्छ मातर्यथाकामं गच्छाम्यहमत: परम्।।38
(श्रीमद्देवीभागवत,स्कन्द-2,अध्याय-2)
समाज के डर से छोड़े गया उस तेजस्वी पुत्र ने अपने माता से कहा कि मन में तपस्या का हि निश्चय करके महर्षि पराशर ने मुझे आपके गर्भ से उत्पन्न किया है इसलिए अब मैं तपस्या को जाता हूं और आपको जहां जाने की इच्छा हो वहां जा सकती हैं।
अत: महर्षि वेदव्यास जन्म होने के तुरंत बाद ही त्याग दिए गए थे और तपस्या में लीन हो गए थे।
कुन्ती पुत्र कर्ण
महाभारत में एक प्रसंग आता है जब भगवान कृष्ण दानवीर कर्ण का इतिहास बताते हैं वो कर्ण से कहते हैं कि तुम्हारी माता राधा नहीं बल्कि कुन्ती हैं दरअसल जब ये तय हो गया कि युद्ध होना हि है तो भगवान श्रीकृष्ण ने सभी पाण्डवों को एक करना चाहा लेकिन कर्ण ने मना कर दिया क्योंकि उसने अपने मन में सोच लिया था कि अर्जुन का वध करना है लेकिन कर्ण का जन्म कहां हुआ था कैसे हुआ था दरअसल कर्ण के जन्म से जुड़ी जानकारी में ये आता है कि मह्रषि दुर्वासा द्वारा प्राप्त आशिर्वाद से कुन्ती ने भगवान सूर्य को अंश से कर्ण को जन्म दिया लेकिन अपने परिवार और समाज के डर से उस पुत्र को त्याग दिया था।
दृष्ट्वा कुमारं जातं सा वार्ष्णेयी दीनमानसा।
एकाग्रं चिन्तयामास किं कृत्वा सुकृतं भवेत्।।21
गूहमानापचारं सा बन्धुपक्षभयात् तदा।
उत्ससर्ज कुमारं तं जले कुन्ती महाबलम्।।22
(महाभारत,आदिपर्व.अध्याय-110)
महर्षि दुर्वासा के आशिर्वाद और सूर्य के अंश से उत्पन्न अपने पुत्र को देखकर अविवाहित कुन्ती को बड़ा दुख हुआ और वह अपने मन में ही सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए और सोच विचार करके तथा समाज के डर से कुन्ती ने कवच कुंडल से सुशोभित अपने पुत्र को जल में छोड़ दिया।
जरासंध
मगध देश का राजा जरासंध जो कि महाबली था और कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का नाम रणछोड़ जरासंध के कारण ही पड़ा दरअसल कंस का वध करने के लिए जरासंध ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई बार मथुरा मे आक्रमण किया तो भगवान ने मथुरा नगरी ही छोड़ दी और द्वारिका पुरी का निर्माण किया आइये हम जानते हैं कि भगवान को रण छोड़ने पर मजबूर करने वाले जरासंध का जन्म कैसे हुआ था तो महाभारत के अनुसार जरासंध किसी एक मां के गर्भ से नहीं पैदा हुआ हा बल्कि दो अलग-अलग माताओं से आध-आधा पैदा हुआ था और इतने विचित्र ढंग से पैदा हेने के कारण जरासंध की माता ने भी उसे त्याग दिया था।
अथ काले महाप्राज्ञ यथासमयमागते।
प्रजायेतामुभे राजञ्छरीरशखले तदा ।।35
तयोर्धात्र्यौ सुसंवीते कृत्वा ते गर्भसम्प्लवे।
निर्गम्यान्त: पुरद्वारात् समुत्सृज्याभिजग्मतु: ।।38
(महाभारत,सभापर्व.अध्याय-17)
इस श्लोक के माध्यम से भगावन कृष्ण युधिष्ठिर से बताते हैं कि जरासंध को दो मातओं ने आधा-आधा जन्म दिया है तो डरी हुई उन दोनो माताओं ने अपने पुत्र को कपड़े में बांधकर चौराहे में फेंकवा दिया।
और आगे की कथा तो सब जानते हैं कि एक जरा नाम की राक्षसी ने उन दोनो मांस के तुकड़ों को जोड़ दिया और तब जाकर जरासंध अपने बालक रूप में आया अत : जरासंध का भी जन्म लेते ही त्याग हो गया था।
भीष्म के सात भाई
भीष्म पितामा अपनी वीरता और राजनीतिक कुशलता से महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक हैं और इन्होने अपने पिता के प्रेम को पूरा करने के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा भी ली थी लेकिन क्या आपको पता है कि भीष्म के सात भाई भी हुए और इनकी माता गंगा ने इनके सभी भाइयों को जल में प्रवाहित कर दिया था दरअसल कथा ये है कि राजा शान्तनु ने जब गंगा से विवाह किया तो गंगा ने एक शर्त रखी कि मैं विवाह तो कर लूंगी लेकिन मैं जो भी करूं आप मुझे किसी भी स्थिती में रोकेंगे नहीं तो राजा शान्तनु ने हां कर दिया और गंगा ने अपने सात पुत्रों को जन्म दिया।
जातं जातं च सा पुत्रं क्षिपत्यम्भसि भारत।
प्रीणाम्यहं त्वृमित्युक्त्वा गंगा स्त्रोतस्यमज्जयत्।।13
(महाभारत,आदिपर्व.अध्याय-98)
गंगा से जो-जो पुत्र उत्पन्न होता, उसे वह जल में फेंक देती, और कहती मैं तुम्हे शाप से मुक्त कर रही हूं इस प्रकार माता गंगा ने अपने सातों पुत्रों को अपनी ही धारा में बहा दिया।
इस तरह से माता गंगा ने अपने सातों पुत्रों को जन्म लेते ही त्याग दिया।
महाभारत के अनुसार ये भी कहा जाता है कि माता गंगा के सातों पुत्र शापित वसु थे जिनका उद्धार माता गंगा को करना था। अत: उन्होने उनको अपने जल में बहाकर शाप से मुक्त किया।
एकलव्य
एकलव्य का नाम आते ही हमारी आंखें एक ही चित्र देखती हैं कि एक बालक ने द्रोणाचार्य को अपना गुरु मानकर धनुर्विद्या सीखी और जब गुरु से मिला तो गुरू ने गुरुदक्षिणा के नाम पर अंगूठा ही मांग लिया लेकिन आप हैरान रह जाएंगे ये जानकर कि एकलव्य का वंश यदुवंश ही था और वह श्रीकृष्ण का भाई था दरअसल एकलव्य श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के भाई देवश्रवा का पुत्र था जिसका नाम था शत्रुघ्न लेकिन एकलव्य का जन्म होने के बाद ही देवश्रवा ने आकाशवाणी के कहने से अपने पुत्र शत्रुघ्न का त्याग कर दिया था।
देवश्रवा: प्रजातस्तु नैषादिर्य: प्रतिश्रुत:।
एकलव्यो महाराज निषादै: परिवर्धित:।।
(हरिवंशपुराण,हरिवंशपर्व,अध्याय-34)
देलश्रवान के द्वारा त्यागे गए उस पुत्र को निषादों ने पालकर बड़ा किया इसीलिए यह निषादवंशी एकलव्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दों कि एकलव्य के पिता जरासंध के सेनापति थे जो हस्तिनापुर का शत्रु था और द्रोणाचार्य हस्तिनापुर के राजकुमारों को धनुरविद्या की ट्रेनिंग देते थे तो अगर दुश्मन देश का कोई योद्धा हमारे देश में आकर हमारी सैन्य ट्रेनिंग के बारे में सब कुछ छिपकर जानलेगा तो कुछ ना कुछ तो ऐसा करना पड़ेगा ना कि वो हमारी ही दी गई ट्रेनिंग से हमारे देश को नुकसान ना पहुंचा पाए इसीलिए द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा गुरुदक्षिणा में मांग लिया।
सुकेश नाम का राक्षस
अब आप सोच रहे होंगे कि राक्षस तो हमने रावण, कुम्भकर्म ,मेघनाथ इन सबको सुना था। लेकिन ये सुकेश नाम का राक्षस कहां से आ गया तो हम आपको बता दें कि राक्षसराज सुकेश का इतिहास बड़ा ही दिव्य है दरअसल सुकेश राक्षस को भगवान शिव और पार्वती ने अपने पुत्र के सामान माना है और तो और उन्होने सुकेश को अमर होने का वरदान भी दिया था लेकिन हम बात कर रहे सुकेश के जन्म की कहानी के बारे में तो सुकेश राक्षसराज हेती का पुत्र था और उसकी माता का नाम सालकटंकटा था तथा जन्म के बाद ही उसकी माता सुकेश का त्याग करके अपने पति के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थी।
रेमे तु सार्धं पतिना विस्मृत्य सुतमात्मजम्।
उत्सृष्टस्तु तदा गर्भो घनशब्दसमस्वन:।।25
(वाल्मीकिरामायण,उत्तरकाण्ड,सर्ग-5)
सालकटंकटा अपने पुत्र को भुलाकर अपने पति के साथ रमण कर रही थी तो भगवान शिव और पार्वती ने सुकेश को अपने पुत्र की तरह माना और उसका पालन पोषण किया।