स्कंद पुराण में चार धाम यात्रा का रहस्य बताया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारका पुरी को चार धाम बताया गया है। और उनकी यात्रा करने की अत्यंत महिमा बताई गई। आदि गुरु शंकराचार्य ने इन चार धामों को ही आधार बनाकर पूरे भारत वर्ष को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता प्रदान की थी। चार धाम यात्रा का लाभ क्या है गौरतलब है कि बाद में हिमालय के चार पवित्र स्थल भी हिमालय क्षेत्र के चार धाम के रूप में स्थापित हुए। सनातन धर्म में दो तरह की चार धाम यात्राएं होती हैं। पौराणिक चार धाम से अलग करने के लिए हिमालय क्षेत्र के चार धाम को छोटा चार धाम कहा गया। छोटा चार धाम में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल हैं। आपको पहले इसी छोटा चार धाम के बारे में बताएंगे। फिर उन स्थलों के रहस्य से भी पर्दा उठाएंगे जिन्हें पौराणिक चार धाम कहा जाता है।
छोटा चारधाम
छोटा चारधाम यात्रा यानि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा को लेकर लोगों में उत्साह तेजी से बढ़ा है। इसका कारण ये है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद राज्य की सरकारों ने इसे अपनी पर्यटन नीति से जोड़ दिया और इसके प्रचार-प्रसार में पूरी सरकारी मशीनरी लगा दी। छोटा चार धाम के एक ही क्षेत्र में होने के कारण लोगों के लिए यात्रा की प्लानिंग करना आसान होता है। साथ ही यात्रा का समय गर्मी की छुट्टियों के दौरान होने से भी इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। आज छोटा चार धाम यात्रा इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि इसके आगे से छोटा शब्द हट गया है। और इसे ही लोग चार धाम यात्रा कहने लगे हैं। लेकिन छोटा चार यात्रा की भी बहुत महिमा है क्योंकि यात्रा के दौरान भगवान विष्णु और भगवान शिव के साथ दो देवियों गंगा और यमुना का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि एक बार में हिमालय क्षेत्र के इन चारों धामों की यात्रा करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। और वो मोक्ष के मार्ग पर चलने का पात्र बन जाता है।
दोस्तों हिमालय क्षेत्र के चारधाम यात्रा के बारे में कहा जाता है कि इसे क्रम में ही करना चाहिए। बहुत कम लोग इस क्रम को जानते हैं। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री धाम से होती है। उसके बाद गंगोत्री धाम फिर केदारनाथ धाम और अंत में बद्रीनाथ धाम पर यह यात्रा संपन्न होती है। और इस तरह चारधाम यात्रा का लाभ प्राप्त होता है। अब हम आपको एक-एक कर हिमालय क्षेत्र के इन चारों धामों के बारे में बताते हैं—
यमुनोत्री धाम
यमुनोत्री धाम यात्रा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। इस धाम में यमुना देवी के दर्शन और पूजन किए जाते हैं। यह धाम यमुना नदी के किनारे स्थित है। कुछ दूरी पर ही यमुना नदी का उद्गम स्थल है। यमुना देवी भगवान सूर्य की बेटी और यमराज की बहन हैं। पुराणों के अनुसार एक दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना को वचन दिया था कि जो कोई भी यमुना नदी में डुबकी लगाएगा उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। इसका मतलब हुआ कि वो मोक्ष को प्राप्त होगा। ऐसी भी मान्यता है कि यमुना नदी में स्नान से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती।
गंगोत्री धाम
गंगोत्री धाम यात्रा भी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। भागीरथी नदी के तट पर देवी गंगा का मंदिर है। मंदिर से करीब 19 किलोमीटर ऊपर भागीरथी नदीं का उद्गम स्थल है। गंगा नदी को सनातन-हिंदू धर्म में सबसे पवित्र नदी माना जाता है। कहा जाता है कि भगीरथ की कठोर तपस्या के बाद जब गंगा नदी पृथ्वी पर उतरीं तो उनका वेग बहुत तीव्र था । पृथ्वी को इस वेग से बचाने के लिए भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटा में धारण किया और उसकी एक धारा को पृथ्वी पर छोड़ा।
केदारनाथ धाम
केदारनाथ धाम यात्रा उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ धाम हिमालय क्षेत्र के पंच-केदार में सबसे प्रमुख है। केदारनाथ में स्थापित शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। प्राचीन काल में केदानाथ मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जिर्णोद्धार किया। ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ में भक्त अपने भगवान से सीधे मिलते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने यहां पर पांडवों को दर्शन देकर उन्हें अपने वंशजों और गुरु हत्या के पाप से मुक्त किया था। यह भी कहा जाता है कि आदिशंकराचार्य इस स्थान से सशरीर स्वर्ग गए थे। स्कंद पुराण के केदारखंड में जिक्र है कि केदारनाथ भगवान के दर्शन किए बिना अगर कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसे यात्रा का पुण्य फल नहीं मिलता।
बद्रीनाथ धाम
ब्रदीनाथ धाम यात्रा उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। बद्रीनाथ धाम हिमालय क्षेत्र की चार धाम यात्रा का अंतिम पड़ाव है। बद्रीनाथ धाम एकमात्र धाम है जो छोटा चार धाम यात्रा और पौराणिक चार धाम यात्रा दोनों में शामिल है। बद्रीनाथ धाम के वर्तमान मंदिर की स्थापना भी आदि शंकराचार्य ने की थी। बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है। इस धाम का विष्णु पुराण, महाभारत, स्कंद पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रंथों में जिक्र हुआ है। 8वीं सदी में आलावर संतों द्वारा रचित दक्षिण भारत के ग्रंथ नालयिर दिव्य प्रंबध में भी बद्रीनाथ धाम की महिमा गायी गई है। इसे पृथ्वी पर स्थित वैकुंठ का दर्जा मिला हुआ है। त्रेता युग में भगवान विष्णु के इस क्षेत्र को “योग सिद्ध”, द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे “मणिभद्र आश्रम” या “विशाला तीर्थ” कहा गया है। जबकि कलियुग में इस धाम को “बद्रिकाश्रम” या “बद्रीनाथ” के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’। इसक मतलब है जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे फिर से उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। कुछ शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करनी चाहिए।
छोटे चारधाम के बाद अब आपको प्राचीन चारधाम के बारे में बताते हैं। प्राचीन चारधाम में बद्रीनाथ धाम, रामेश्वर धाम जगन्नाथ पुरी धाम और द्वारका धाम आता है। इन चारों धाम की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। भारत वर्ष की चार दिशाओं में स्थित इन चारों धामों की यात्रा के दौरान व्यक्ति सनातन हिंदू धर्म के लगभग सभी पवित्र स्थलों के दर्शन कर लेता है। इन चार धामों में से बद्रीनाथ धाम के बारे में आप जान चुके हैं। बाकी के तीन के बारे में आपको बताते हैं
रामेश्वर धाम
रामेश्वर धाम यात्रा भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के किनारे स्थित है। रामेश्वरम में स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने रामेश्वरम् शिवलिंग की स्थापना की थी। शिवलिंग के पूजन के बाद भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की थी। रामेश्वर मंदिर 1 हजार फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है। 40 फुट ऊंचे दो पत्थरों पर इतनी ही बराबरी के एक लंबे पत्थर को लगाकर इसका निर्माण किया गया है। जो स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है। यहां का गलियारा दुनिया का सबसे लंबा मंदिर गलियारा है। कहा जाता है कि मंदिर परिसर में मौजूद सभी कुओं को भगवान राम ने अपने अमोघ बाणों को चलाकर पैदा किया था। मान्यता है कि जो रामेश्वरम के ज्योतिर्लिंग पर पूरी श्रद्धा से गंगाजल चढ़ाता है उसे मोक्ष मिल जाता है।
जगन्नाथ पुरी धाम
जगन्नाथ पुरी धाम यात्रा ओडिसा राज्य के समुद्र तट पर स्थित है। माना जाता है की इस मंदिर की स्थापना वैष्णव संप्रदाय के लोगो ने द्वापर युग में की थी। यह मंदिर भगवान श्री जगन्नाथ जी यानी श्री कृष्ण भगवान को समर्पित है। इस मंदिर में तीन मूर्तियां स्थित है । पहली श्री जगन्नाथ जी की है और दूसरी जगन्नाथ जी के बड़े भाई बलभद्र जी की और तीसरी उनकी बहन सुभद्रा जी की। जगन्नाथ पुरी में हर साल रथयात्रा का आयोजन होता है जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस मंदिर में केवल हिन्दू ही प्रवेश कर सकते हैं।
द्वारका धाम
द्वारका धाम यात्रा गुजरात में स्थित है। महाभारत के अनुसार द्वारका भगवान कृष्ण के राज्य की राजधानी थी। यहां का मुख्य मंदिर द्वारिकाधीश मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के परपोते ने करवाया था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर 2500 वर्ष पुराना है। द्वापर युग में जो द्वारका नगरी थी आज वो समुद्र के अंदर समाहित हो चुकी है। 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने यहां शारदा पीठ की स्थापना की। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ धाम में सरोवर में स्नान करते हैं। स्नान के बाद वो गुजरात के समुद्र तट पर स्थित द्वारिका धाम में अपने वस्त्र बदलते हैं। द्वारिका में वस्त्र बदलने के बाद श्रीकृष्ण ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ धाम में भोजन करते हैं। जगन्नाथ में भोजन करने के बाद प्रभु श्रीकृष्ण तमिलनाडु के रामेश्वरम धाम में विश्राम करते हैं। स्कंद पुराण के तीर्थ प्रकरण में प्राचीन चार धाम यात्रा को बहुत पुण्य देने वाली बताया गया है। इन चारों धाम के दर्शन से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और वह पॉजिटिव एनर्जी से भर जाता है।