Mahabharat भारतीय संस्कृति का एक ऐसा महाकाव्य है, जो केवल युद्ध की कहानी नहीं, बल्कि धर्म, कर्म, और मानवीय मूल्यों का गहन दर्शन प्रस्तुत करता है। इसकी कथाएँ और पात्र सनातन धर्म के मूल में हैं, लेकिन समय के साथ कुछ कथाओं के बारे में भ्रांतियाँ फैल गई हैं। ऐसी ही एक भ्रांति है Sanjay की ‘दिव्य दृष्टि’ और उनके द्वारा धृतराष्ट्र को युद्ध का वर्णन करने की कहानी। आम धारणा है कि संजय ने वेदव्यास द्वारा दी गई दिव्य दृष्टि से युद्ध का लाइव प्रसारण जैसा वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाया। लेकिन क्या यह सच है? इस लेख में हम महाभारत के मूल ग्रंथ के आधार पर इस रहस्य को समझेंगे और उन तथ्यों को सामने लाएँगे, जो इस भ्रांति को तोड़ते हैं।
संजय की भूमिका और दिव्य दृष्टि की भ्रांति
महाभारत में संजय का नाम युद्ध के वर्णन के संदर्भ में बार-बार आता है। यह माना जाता है कि उन्होंने वेदव्यास से प्राप्त दिव्य दृष्टि के बल पर धृतराष्ट्र को युद्ध का पल-पल का हाल सुनाया, जैसे कोई आधुनिक टीवी प्रसारण। यह चित्रण टीवी धारावाहिकों और फिल्मों ने और भी नाटकीय बना दिया, जिससे यह धारणा गहरी हो गई। लेकिन क्या महाभारत का मूल ग्रंथ इसकी पुष्टि करता है? भीष्म पर्व के श्लोकों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि कहानी इससे भिन्न है। संजय की दिव्य दृष्टि और उनके युद्ध वर्णन को समझने के लिए हमें महाभारत के मूल श्लोकों पर ध्यान देना होगा। ये श्लोक हमें यह समझने में मदद करते हैं कि संजय की भूमिका क्या थी और उनकी दिव्य दृष्टि का वास्तविक अर्थ क्या है।
भीष्म पर्व के श्लोक: सत्य का आधार
महाभारत के भीष्म पर्व में धृतराष्ट्र और संजय के संवाद कई महत्वपूर्ण श्लोकों में दर्ज हैं। इन श्लोकों को सरल भाषा में समझने से सत्य सामने आता है।
भीष्म पर्व, अध्याय 14, श्लोक 1
कथं करुणामृषभो हतो भीष्म शिखंडिना। कथं रथात् स न्यपतत् पिता में वासमोपमः।।
इस श्लोक में धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि भीष्म पितामह, जो इंद्र के समान शक्तिशाली थे, शिखंडी द्वारा कैसे मारे गए? उनके रथ से गिरने की घटना कैसे हुई? यह सवाल धृतराष्ट्र की उत्सुकता को दर्शाता है। वे युद्ध की एक महत्वपूर्ण घटना को समझना चाहते हैं। यहाँ यह नहीं कहा गया कि संजय युद्ध को तुरंत देखकर बता रहे थे। बल्कि, यह एक सामान्य प्रश्न है, जो संजय से युद्ध की जानकारी माँगता है।
भीष्म पर्व, अध्याय 15, श्लोक 5-6
हयानां च गजानां च राज्ञां चामिततेजसाम। प्रत्यक्षं यन्मया दृष्टं दृष्टं योगबलेन च।।
श्रुणु तत् पृथ्वीपाल मा च शोके मनः कृथाः। दिष्टमेतत् पुरा नूनमिदमेव नराधिपः।।
इस श्लोक में संजय कहते हैं कि उन्होंने युद्ध में घोड़ों, हाथियों, और पराक्रमी योद्धाओं को देखा। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि संजय कहते हैं कि उन्होंने यह सब “देखा” था, न कि “देख रहे हैं।” यह शब्दावली इंगित करती है कि संजय युद्ध का वर्णन अपने पूर्व अनुभव के आधार पर कर रहे थे। वे युद्धभूमि में स्वयं उपस्थित थे, जहाँ उन्होंने ये घटनाएँ देखीं और फिर धृतराष्ट्र को सुनाईं। यह लाइव प्रसारण की धारणा को खारिज करता है।
भीष्म पर्व, अध्याय 2, श्लोक 8
एतस्मिन्नेच्छति द्रष्टुं संग्रामं श्रोतुमिच्छति। वराणामिश्वरो व्यास: संजयाय वरं ददौ।।
इस श्लोक में कहा गया है कि वेदव्यास ने संजय को एक विशेष वरदान दिया। लेकिन यह वरदान युद्ध को देखने के लिए नहीं, बल्कि युद्ध की घटनाओं को सुनाने के लिए था। “श्रोतुमिच्छति” (सुनने की इच्छा) पर बल देता है कि संजय का कार्य धृतराष्ट्र को युद्ध का विवरण सुनाना था। यह वरदान संजय को युद्ध की घटनाओं को स्पष्ट रूप से समझने और व्यक्त करने की क्षमता देता था।
भीष्म पर्व, अध्याय 13
वैशम्पायन उवाच
अथ गावल्गणिर्विद्वान संयुगादेत्य भारत। प्रत्यक्षदर्शी सर्वस्य भूतभव्यभविष्यति।।
ध्यायते धृतराष्ट्राय सहसोत्पत्य दुखित:। आचष्ट निहतं भीष्मं भरतानां पितामहम।।
वैशम्पायन इस श्लोक में बताते हैं कि संजय, जिन्हें गावल्गणि भी कहा गया, युद्धभूमि से लौटकर धृतराष्ट्र को भीष्म पितामह की मृत्यु का समाचार सुनाते हैं। “संयुगादेत्य” (युद्ध से लौटकर) स्पष्ट करता है कि संजय युद्धभूमि में मौजूद थे। उन्होंने वहाँ की घटनाओं को देखा और फिर धृतराष्ट्र को बताया। यह श्लोक इस धारणा को और मजबूत करता है कि संजय युद्ध का प्रत्यक्ष साक्षी थे।
भीष्म पर्व, अध्याय 13 (अन्य श्लोक)
संजयोऽहं महाराज नमस्ते भरतर्षभ। हतो भीष्मः शान्तनवो भरतानां पितामहः।
इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि भीष्म पितामह युद्ध में मारे गए हैं। यहाँ भी यह स्पष्ट है कि संजय युद्ध से लौटकर यह समाचार दे रहे हैं, न कि युद्ध को दूर से देखकर तुरंत बता रहे हैं।
दिव्य दृष्टि का वास्तविक स्वरूप
महाभारत में वेदव्यास द्वारा संजय को दी गई दिव्य दृष्टि का उल्लेख है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि संजय युद्धभूमि से दूर बैठकर सब कुछ देख रहे थे। यह वरदान संजय को युद्धभूमि में सुरक्षित रहने और सभी घटनाओं को स्पष्ट रूप से देखने-समझने की क्षमता देता था। ग्रंथ में यह भी उल्लेख है कि वेदव्यास ने संजय को यह वरदान दिया था कि कोई शस्त्र या अस्त्र उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसका मतलब है कि संजय युद्धभूमि में उपस्थित रहकर भी सुरक्षित थे।वेदव्यास ने धृतराष्ट्र को भी दिव्य दृष्टि देने का प्रस्ताव दिया था, ताकि वे स्वयं युद्ध देख सकें। लेकिन धृतराष्ट्र ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि वे अपने परिजनों को एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते देखना नहीं चाहते थे। इसलिए, वेदव्यास ने संजय को यह जिम्मेदारी दी कि वे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाएँ।
भ्रांति का स्रोत: आधुनिक चित्रण
आधुनिक समय में टीवी धारावाहिकों और फिल्मों ने संजय की दिव्य दृष्टि को एक जादुई शक्ति के रूप में दिखाया है, जिसमें वे युद्ध को दूर से देखकर उसका लाइव वर्णन करते हैं। यह चित्रण न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण है, बल्कि मूल ग्रंथ से मेल नहीं खाता। महाभारत के श्लोक स्पष्ट करते हैं कि संजय युद्धभूमि में उपस्थित थे, उन्होंने घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा, और फिर धृतराष्ट्र को सुनाया। इस भ्रांति का एक कारण यह भी है कि लोग प्राचीन ग्रंथों को उनके मूल रूप में पढ़ने के बजाय, लोकप्रिय संस्कृति के चित्रण पर भरोसा करते हैं। टीवी और फिल्मों ने नाटकीयता बढ़ाने के लिए कई अतिशयोक्तियाँ जोड़ दीं, जिससे मूल सत्य धूमिल हो गया।
सनातन धर्म और इतिहास की सत्यता
महाभारत जैसे ग्रंथ हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर हैं। इनके साथ भ्रांतियाँ फैलाना न केवल इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करता है, बल्कि सनातन धर्म की गहराई को भी कमजोर करता है। संजय की दिव्य दृष्टि की गलत व्याख्या इसका एक उदाहरण है। यह धारणा कि संजय युद्ध का लाइव प्रसारण कर रहे थे, तथ्यात्मक रूप से गलत है और यह दर्शाती है कि हम अपने ग्रंथों को कितने सतही स्तर पर समझते हैं। सनातन धर्म के अनुयायी के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम अपने ग्रंथों को मूल रूप में पढ़ें और उनकी सत्यता को समझें। महाभारत हमें कर्म, धर्म, और जीवन के गहन दर्शन सिखाता है। इसका सही अध्ययन हमें अपने इतिहास और संस्कृति से जोड़ता है और हमें अपने धर्म के प्रति गर्व महसूस कराता है।
सत्य की ओर एक कदम
संजय की दिव्य दृष्टि और उनके युद्ध वर्णन की कथा महाभारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन इसे सही संदर्भ में समझना जरूरी है। संजय ने युद्ध को प्रत्यक्ष देखा और फिर धृतराष्ट्र को उसका विवरण सुनाया। उनकी दिव्य दृष्टि ने उन्हें युद्धभूमि में सुरक्षित रहने और घटनाओं को स्पष्ट रूप से देखने की क्षमता दी थी। यह समझ हमें अपने ग्रंथों के प्रति जागरूक बनाती है और उन भ्रांतियों से बचाती है, जो समय के साथ प्रचलित हो गई हैं।महाभारत का अध्ययन हमें सिखाता है कि सत्य को जानने के लिए मूल स्रोतों की ओर लौटना होगा। सनातन धर्म का सौंदर्य इसकी गहराई और सत्यनिष्ठा में है। इस धरोहर को संजोना और इसके सत्य को समझना हमारी जिम्मेदारी है।