महाबलेश्वर शिवलिंग
सबसे पहले हम आपको बता दें कि भारत में लाखों मन्दिर है जहां शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन कर्नाटक के गोकर्ण में स्थित महाबलेश्वर शिवलिंग को सभी शिवलिंगों का सम्राट कहा जाता है ऐसा भी कहा जाता है कि संसार का सबसे बड़ा शिवलिंग यही है कुछ कथाओं का मानना है कि यह शिवलिंग भगवान शिव का आत्मलिंग हैं।
कर्नाटक के गोकर्ण तीर्थ में स्थित महाबलेश्वर शिवलिंग की महिमा को बताते हुए वहां के लोग बताते हैं कि इस मन्दिर में शिवलिंग चालीस फीट के हैं और 40 साल में एक बार होते हैं शिवलिंग के दर्शन ऐसा कहा जाता है कि महाबलेश्वर शिवलिंग पहले बिल्कुल थोड़ा सा दिखते हैं फिर रोज अपने आकार को बढ़ाते जाते हैं और लगभग चालीस साल होने पर ये अपने पूरे आकार से प्रकट होते हैं फिर उसी तरह फिर से नीचे चले जाते हैं भगवान शंकर के इस स्थान को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है।
रावण ने की थी महाबलेश्वर शिवलिंग की स्थापना
ऐसा माना जाता है कि भोलेनाथ ने रावण के साम्राज्य की रक्षा के लिए अपना आत्म लिंग रावण को दिया था कि वह उसे लंका में स्थापित करे लेकिन देवताओं ने रावण को वह शिवलिंग लंका तक ले ही नहीं जाने दिया इसलिए यह शिवलिंग रावण ने मजबूरी वस यहीं स्थापित कर दिया जिसे आज महाबलेश्वर के नाम से जाना जाता है। और ये माना जाने लगा कि रावण ने महाबलेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी।
मन्दिर के नीचे पताल में तपस्या करते हैं भगवान शिव
मन्दिर के नीचे बसे हैं भोलेनथ दरअसल महाबलेश्वर मन्दिर में शिवलिंग मात्र मस्तक के तिलक के समान दिखाई देता है तो लोगों का मानना है कि भगवान शिव मन्दिर के नीचे बैठकर तपस्या कर कर रहे हैं और गाय का रूप धारण करने वाली पृथ्वी के कान की बाली के रूप में अवतरित हुए हैं।
भगवान शिव बने हिरण
एक कथा के अनुसार ये भी माना जाता है कि एक बार भगवान शिव बने हिरण और कैलाश से कहीं चले गए और सभी देवता उनका खोज में परेशान थे तब ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने उनको ढूंढ़ निकाला और हिरण रूपधारी शिव की सींग को पकड़ लिया लेकिन शिव अदृश्य हो गए और ब्रह्मा विष्णु और इन्द्र के हांथ में केवल हिरण का सींग रह गया इन सींगों की स्थापना गोकर्ण तीर्थ में ब्रह्मा जी ने कर दी। तभी से महाबलेश्वर के रूप में भगवान शिव की पूजा यहां होने लगी।
भगवान श्री गणेश ने की थी महाबलेश्वर की स्थापना
कुछ कथाओं का मानना है कि रावण की माता समुद्र के किनारे बार बार बालू के शिवलिंग का निर्माण कर रही थीं लेकिन बहाव आने पर शिवलिंग फिर से नष्ट हो जा रहा था तो रावण ने भगवान शिव की तपस्या करके आत्मलिंग प्राप्त किया था और लंका लेकर जा रहा था तो देवताओं ने रावण के डर से गणेश जी का सहारा लिया और रावण के पास भगवान गणेश एक ब्राह्मण का वेष बनाकर गए और रावण ने आपातकाल में शिव के आत्मलिंग को ब्राह्मण रूप धारी गणेंश को पकड़ा दिया और गणेश जी ने उस लिंग को वहीं स्थापित कर दिया। फिर रावण ने अपनी सारी शक्ति से उस लिंग को उठाने का प्रयास किया लोकिन उठा नहीं पाया और निराश होकर लंका चला गया।
हर युग में रंग बदलते हैं भोलेनाथ
शिव पुराण में एक कथा आती है जब गौतम ऋषि बताते हैं कि गोकर्ण में स्थित महाबलेश्वर शिवलिंग का दर्शन करने से सभी रोग और पापों से मुक्ती मिलती है और हर युग में रंग बदलते हैं भोलेनाथ इसलिए सृष्टि चक्र के अनुसार हर युग में भगवान शिव के दर्शन अलग-अलग रंग में होते हैं-
तत्र स्थितिर्न पापानां महद्भ्यो महतामपि ।
महाबलाभिधानेन शिवः संनिहितः स्वयम् ।।42
सर्वेषां शिवलिंगानां सार्वभौमो महाबलः ।
चतुर्युगे चतुर्वर्णः सर्वपापपहारकः ।।43
(शिवपुराण,रुद्रसंहिता,अध्याय-10)
गौतम जी कहते हैं कि महाबलेश्वर लिंग के दर्शन करने से बड़े से बड़े पाप टिक नहीं सकते भगवान शिव का यह लिंग सभी लिंगों का सम्राट है। जो चार युगों में चार प्रकार के रंग बदलता है और सभी प्रकार के रोग और पाप को नष्ट करता है। भगवान शिव के इस धाम में जाने से आपको सभी पापों का नाश हो जाता है और शरीर के और मन के सभी रोगों का भी नाश हो जाता है।