वैसे तो आज कल सब लोग एनिमल लवर हो रहे है, सब को क्यूट एनिमल पर बहुत प्यार आता है।लोग आज कल अपने पेट्स का तो अपने बच्चों से भी ज्यादा ख्याल रखने लगे हैं। ये अच्छी बात है क्यों कि मनुष्य को प्रकृति के सभी जीवों के साथ तालमेल बना कर रखना चाहिये, सनातन धर्म भी मानव को प्रकृति प्रेमी होने के लिये प्रेरित करता है, सनातन धर्म मे सब जीवों की मुक्ति की बात कही गई है
हिरण को क्यों नहीं मारना चाहिए
सनातन धर्म में सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों को ही माना गया है।वेदों में हिरण को लेकर कई बातें कही गई हैं। वेदों में बताया गया है कि हिरण एक विचलित मन के समान है।हिरण ही शिव के वैदिक स्वरुप रुद्र को हमारी आकाशगंगा से जोड़ के रखता है। दक्षिण भारत के मंदिरों मे भी शिव ने अपने हाथों मे हिरण को पकड़े हुए दिखाया जाता है। नटराज के हाथ से निकलता मन रुपी हिरण ये बताता है कि भगवान शिव हमारी सारी चिंताओं को दूर कर देते हैं इसलिए हिरण को कभी नहीं मारना चाहिए।
माता सरस्वती बन गईं हिरण
हिन्दू धर्म की मान्यतओं के अनुसार सतयुग के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये एक ऐसा युग था जिसमें हिरण और शेर एक साथ एक ही घाट पर पानी पीते थे। ऐसी मान्यता है कि सतयुग ही एक ऐसा युग था जिसमें किसी भी प्रकार की कोई हिंसा नही होती थी। पुराणों के अनुसार माता सरस्वती ने स्वयं एक लाल हिरण का रुप लिया था। इसलिए आज भी हिरण के पग शुभ माने जाते हैं।
हिरण और श्रीराम की कहानी
हर युग की तरह त्रेतायुग मे भी हिरण ही कई कार्यों का कारण बना था। श्रीराम के पिता राजा दशरथ भी जब शिकार करने वन मे गये थे तो एक हिरण के शिकार करने के धोखे मे उनसे श्रवण कुमार की हत्या हो गई थी। श्रवण कुमार जो अपने माता पिता को काधें पर चारों धाम की यात्रा पर ले जा रहे होते है वो दशरथ जी के एक बाण से मारे जाते हैं। अपने पुत्र की मृत्यु से क्रोधित श्रवण कुमार के मातापिता राजा दशरथ को ये श्राप देते है कि उनकी भी मृत्यु अपने पुत्र के वियोग में होगी। बाद में श्रीराम के वनवास के दुख में ही दशरथ जी की मृत्यु हुई।
इसके अलावा, सीता ने भी स्वर्ण हिरण का रूप धरे हुए मारीच को पाना चाहा था। उसकी तलाश में श्रीराम निकले और तीर से मारीच का शिकार किया। मारीच को जब तीर लगा तो उसने राम की आवाज़ में कराहा जिसके कारण सीता माता ने लक्ष्मण को राम की मदद करने के लिए भेजा। लक्ष्मण रेखा बनाकर वो राम की तलाश में चले गए और उसी समय रावण भिक्षु का रूप बनाकर आया और सीता का हरण किया. एक हिरण के कारण ही रावण सीता माता को अपने साथ ले जा पाया और अंतत: रावण और राम का युद्ध हुआ।
महाभारत में हिरण की कहानियाँ
धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे इसलिए उनकी जगह पर पांडु को राजा बनाया गया। पांडु ने संपूर्ण भारतवर्ष को जीतकर कुरु राज्य की सीमाओं का यवनों के देश तक विस्तार कर दिया।
हिरण के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि एक बार राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों कुंती तथा माद्री के साथ शिकार के लिए वन में गए। वहां उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दिखा। पांडु ने तुरंत अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुए मृगरूपधारी निर्दोष ऋषि ने पांडु को शाप दिया, ‘राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है। इसलिए जब कभी भी तू मैथुनरत होगा, तेरी मृत्यु हो जाएगी।’
कुछ समय व्यतीत होने पर एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में नदी के तट पर घूम कर रहे थे। तभी पांडु का मन चंचल हो उठाता है माद्री को देखकर और वे उनसे जैसे ही प्रेम करने लगे तभी श्राप की वजह से उनकी मृत्यु हो जाती है।
राजा भरत और हिरण का प्यार
भरत प्राचीन भारत के एक प्रतापी राजा थे। वे भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है।
ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने संन्यास लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।
श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध के सप्तम अध्याय में भरत चरित्र का वर्णन है। कई करोड़ वर्ष धर्मपूर्वक शासन करने के बाद उन्होंने राजपाट पुत्रों को सौंपकर वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया तथा भगवान की भक्ति में जीवन बिताने लगे। एक बार नदी में बहते मृग को बचाकर वे उसका उपचार करने लगे। धीरे-धीरे उस मृग से उनका मोह हो गया। मृग के मोह में पड़ने के कारण अगले जन्म में उन्होंने मृगयोनि में जन्म लिया। मृगयोनि में जन्म लेने पर भी उन्हें पुराने पुण्यों के कारण अपने पूर्वजन्म की याद थी। इसलिएमृगयोनि में रहते हुये भी वे भगवान का ध्यान करते रहे। अगले जन्म में उन्होंने एक ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। पुराने जन्मों की याद होने से इस बार वे संसार से पूरी तरह विरक्त रहे। उनकी विरक्ति के कारण लोग उन्हें पागल समझने लगे तथा उनका नाम जड़भरत पड़ गया। जड़भरत के रूप में वे जीवनपर्यन्त भगवान की आराधना करते हुये अंत समय में मोक्ष को प्राप्त हुये।
बिश्नोई समाज करता है हिरण की पूजा
जोधपुर का बिश्नोई समाज काले हिरण को अपने गुरु भगवान जंबाजी उर्फ जंबेश्वर का अवतार मानते हैं। वे काले हिरण और वृक्षों के लिए अपनी जान तक दे सकते हैं। 1451 में जन्मे जंबाजी उर्फ जंबेश्वर भगवान ने सभी जीव-जंतुओं के प्रति दयाभाव, साफ-सफाई, समर्पण, शाकाहार और सच्चाई समेत अपने अनुयायियों के लिए 29 धर्मादेश दिए थे।