आदि गुरु शंकराचार्य ने कैसे कराई धन की वर्षा
कैसे आदि गुरु शंकराचार्य ने एक गरीब औरत के आंवले को सोने के सिक्कों में बदल दिया। भक्ति में अद्भुत शक्ति है ये भक्ति थी कि श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए और शबरी को वैकुँठ मिल गया। ये भक्ति थी कि सुदामा के सूखे चने के बदले श्रीकृष्ण ने उन्हें धनवान बना दिया। ये भक्ति थी जिसने द्रौपदी की साग खाकर श्रीकृष्ण से सारे ब्रह्मांड को तृप्त कर दिया। ये भक्ति थी कि जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने एक गरीब औरत के घर पर धन की बारिश करा दी।
एक गरीब ब्राह्मणी के घर पर साक्षात माँ लक्ष्मी आदि गुरुशंकराचार्य ने कराई धन की वर्षा। कथा ये है कि एक बार शंकराचार्य जी भिक्षाटन के लिए केरल के एक गांव में घूम रहे थे। तभी वो एक झोपड़ी के पास पहुंचे और वहाँ उन्होंने भिक्षा मांगने की पुकार लगाई। उस झोपड़ी से एक गरीब ब्राह्म्णी महिला निकली। उस महिला ने जब युवा जगद्गुरु शंकराचार्य जी को भिक्षा मांगते देखा तो वो शर्मिंदगी से भर गई क्योंकि उसके पास भिक्षा देने के लिए कुछ भी नहीं था। फिर भी उसने अपने घर के एक एक कोने को टटोला। आखिर में उस गरीब औरत को अपने घर में आँवले का एक फल मिला। उसने शर्मिंदगी के साथ शंकराचार्य जी को भिक्षा के रुप में वही आँवला समर्पित कर दिया।
मोह माया से परे रहने वाले महायोगी आदि गुरु शँकराचार्य जी भी उस गरीब ब्राह्म्णी की दरिद्रता को देख कर रो पड़े। उन्होंने तुरंत माँ लक्ष्मी की अराधना शुरु कर दी और उन्होंने उस ब्राह्म्णी के सामने ही 21 श्लोकों से माँ लक्ष्मी की स्तुति की। इस स्तुति से माँ लक्ष्मी प्रसन्न हों गईं और प्रगट होकर उन्होंने शंकराचार्य जी से वरदान मांगने के लिए कहा।
शंकराचार्य जी ने तुरंत माँ लक्ष्मी से उस गरीब औरत की गरीबी दूर करने का वरदान मांग लिया। पहले तो माँ लक्ष्मी ने ऐसा वरदान देने से इंकार कर दिया। माँ लक्ष्मी ने शंकराचार्य जी से कहा कि इस गरीब औरत ने पिछले जन्म में कोई भी दान या पुण्य का कार्य नहीं किया है इसलिए इस जन्म में उसे गरीब ही रहना होगा।
लेकिन आदि गुरु शंकराचार्य जी ने माँ लक्ष्मी से कहा कि इस औरत ने श्रद्द्धा के साथ उन्हें ये एक आंवला दिया है और माता के आशिर्वाद से आदि शकराचार्य ने गरीब औरत के आंवले को सोने के सिक्कों में बदला वो भी इस हालत में जबकि इस औरत के पास खुद खाने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए माँ लक्ष्मी इस गरीब ब्राह्म्णी के इस दान को ही पुण्य कार्य मान कर उसे धन दें।
माँ लक्ष्मी को आदि गुरु शंकराचार्य जी का ये तर्क पसंद आ गया और उन्होंने तुरंत उस स्थान पर सोने के आंवलों की बरसात कर दी। इस सोने के आँवलों की बरसात के बाद वो औरत अचानक अमीर बन गई और उसने आदि गुरु शंकराचार्य जी को अपना गुरु मान लिया।
इस गरीब औरत को अमीर बनाने के लिए आदि गुरु शंकराचार्य जी ने जिस 21 श्लोकों की रचना की थी उसे ही कनकधारा स्तोत्र कहा जाता है। इस स्त्रोत्र को करने से माँ लक्ष्मी अपने भक्तों की सारी गरीबी दूर कर देती हैं और उसके घर कभी भी धन की कमी नहीं होने देती हैं। माँ लक्ष्मी के इस कनकधारा स्तोत्र को करने वाले कभी गरीब नहीं होते हैं ऐसी मान्यता तभी से चल पड़ी।
तो दोस्तों आपने द कर्मा पर जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी की ये अनसुनी कथा सुनी। अगर आपको हमारा ये वीडियो पसंद आया हो तो आप इसे जरुर लाइक करें। अगर आप सनातन धर्म से जुड़ी ऐसी ही अनोखी कथाएं सुनना चाहते हैं तो हमारे चैनल द कर्मा को जरुर सब्सक्राइव कर लें।