हनुमान चालीसा का हम रोज पाठ करते हैं। जिस हनुमान चालीसा को पढ़ने से भूत-प्रेत और पिशाच दूर से ही भाग जाते हैं, क्या हनुमान चालीसा चार लाइनें गलत हैं क्या जिस हनुमान चालीसा पाठ में आस्था रखकर बहुत से लोगों ने रिद्धियां और सिद्धियां पा लीं। क्या वो गलत है। तुलसीदास रचित जिस हनुमान चालीसा की 40 पंक्तियां हर भारतवंशी और दुनिया के हर हिंदू के मन में रची-बसी हैं। क्या हनुमान चालीसा में हैं 4 गलतियाँ। ये सवाल इस लिए उठ रहे हैं क्योंकि जगदगुरु की उपाधि से विभूषित और पद्म विभूषण से सम्मानित रामभद्राचार्य जी ने तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा में ना केवल गलतियां ढूंढ़ ली हैं। बल्कि वो बाकायदा लोगों से इसे ठीक करने के लिए भी कह रहे हैं। रामभद्राचार्य जी के अनुसार हनुमान चालीसा की चार लाइनें गलत हैं और इन्हें सुधार कर ही लोगों को पढ़ना चाहिए। रामभद्राचार्य जी ने हनुमान चालीसा की जिन पक्तियों को गलत ठहराया है। इसमें से पहली पंक्ति है-
संकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महाजगवंदन
रामभद्राचार्य जी का कहना है कि हनुमान जी तो भगवान शिव के एकादश रुद्रअवतारों में हैं तो वो संकर सुवन यानी कि भगवान शंकर के पुत्र कैसे हो सकते हैं? रामभद्राचार्य जी का कहना है कि ‘संकर सुवन’ की जगह ‘संकर स्वयं’ होना चाहिए क्योंकि हनुमान जी स्वयं शंकर ही हैं।
अब रामभद्राचार्य जी के इस तर्क की हम जांच करेंगे। दोस्तों कई पुराणों में हनुमान जी के भगवान शंकर के पुत्र होने की बात कही गई है। इसमें सबसे अहम है शिव महापुराण। शिव महापुराण के शतरुद्रिय खंड की कथा अनुसार जब विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान मोहिनी अवतार लिया था तो भगवान शंकर उन्हें देख कर मोहित हो गए थे। भगवान शंकर ने अपने तेज यानि वीर्य को पृथ्वी पर बिखेर दिया था। इस तेज को ही बाद में गौतम आदि ऋषियों ने एक पत्ते पर रख कर अंजना देवी के कान के माध्यम से उनके गर्भ से स्थापित कर दिया था। भगवान शंकर के इसी तेज से वीर हनुमान जी का जन्म हुआ। पुराणों के अलावा दक्षिण भारत के ग्रंथो में भी हनुमान जी को शंकर भगवान का पुत्र बताया गया है। दक्षिण भारत की कथाओं के अनुसार जब भगवान शंकर ने अपने तेज या वीर्य को अपने शरीर से बाहर कर दिया तो इसे वायु ने धारण कर लिया और बाद में उसे अंजना देवी के गर्भ में स्थापित कर दिया। जिससे हनुमान जी का जन्म हुआ।
एक पौराणिक कथा ये भी है कि जब विष्णु श्रीराम के रुप मे अवतार लेने वाले थे तो रावण के वध के लिए कई देवताओं को भी रीक्ष और वानरों के रुप में अपने पुत्रों को जन्म देना था। जैसे सुग्रीव सूर्य पुत्र थे तो नील अग्नि के पुत्र थे। तब भगवान विष्णु के आदेश पर सभी देवताओं ने अपने तेज का एक हिस्सा भगवान शिव को समर्पित कर दिया। भगवान शिव ने देवताओं के इस तेज को धारण कर लिया। बाद में जब पार्वती देवताओं के तेज को सहन नहीं कर पाईं। तो शिव ने देवताओं के इस तेज को वायु को सौंप दिया और वायु ने तपस्या कर रही अंजना देवी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इस प्रकार भगवान शिव के पुत्र के रुप में हनुमान जी का जन्म हुआ।
दोस्तों भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी भगवान शंकर के वीर्य स्खलन से ही हुआ था। जिसे अग्नि ने पहले धारण किया और बाद में वायु ने इसे धारण किया। और अंत में गंगा ने इसे धारण कर हिमालय में उत्सर्जित कर दिया। इसलिए जैसे कार्तिकेय भगवान शिव के पुत्र होने के अलावा अग्नि के पुत्र हैं। उसी तरह हनुमान जी संकर सुवन यानी भगवान शंकर के पुत्र होने के अलावा वायु के पुत्र भी माने जाते हैं। महाभारत में पांडवों का जन्म भी कुछ ऐसा ही है। महाभारत के अनुसार सभी पांडव पूर्व जन्म में पांच इंद्र थे जिन्हें भगवान शिव ने कैद कर लिया था। बाद में धर्म, वायु, इंद्र और अश्विनी कुमार के जरिए युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के रुप में पांचो इंद्रों का जन्म हुआ। इनमें सिर्फ इंद्र ने सीधे अपने पुत्र के रुप में अर्जुन को जन्म दिया। लेकिन ये सभी पांडव पूर्व जन्म में पांच इंद्र होने के बावजूद धर्म, वायु , इंद्र और अश्विनी कुमारों के पुत्र भी कहे गए और पांडु के पुत्र भी कहे गए।
पौराणिक ग्रंथों से साफ है कि हनुमान जी शंकर के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही संकर सुवन कहे गए। वो केसरी के दत्तक पुत्र होने की वजह से केसरीनंदन भी कहे गए। और फिर जिस प्रकार अग्नि कार्तिकेय के पिता हुए उसी प्रकार वायु देव भी हनुमान जी के पिता हुए।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस की रचना के पहले ये लिखा है कि उनकी रचना सभी शास्त्रों से प्रमाणित है। रामभद्राचार्य जी ने जिस दूसरी लाइन को गलत बताया है वो है-
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा
रामभद्राचार्य जी के मुताबिक सब पर राम तपस्वी राजा की जगह सब पर रामराज सिर ताजा होना चाहिए उनका कहना है कि राजा तपस्वी कैसे हो सकता है। लेकिन तुलसी ने राम को तपस्वी राजा क्यों लिखा इस पर उन्होंने शायद ध्यान नहीं दिया है। दोस्तों वाल्मीकि रामायण शुरु ही होती है भगवान राम को तपस्वी बताने वाले श्लोक के साथ। ये श्लोक है-
तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्
सनातन हिंदू धर्म के किसी भी धर्मशास्त्र का पहला शब्द ही उसकी पूरी आत्मा को बता देता है। यह उसी तरह है जैसे भारत के संविधान की प्रस्तावना। रामायण तप शब्द से शुरु होती है जबकि गीता धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे यानी धर्म शब्द से शुरु होती है।
श्रीराम का पूरा जीवन एक तपस्वी का जीवन है। संयम का जीवन है। मर्यादा का जीवन है। राम ने अपने जीवन को तप और संयम से जी कर संसार के सामने एक मिसाल पेश की है। उन्होंने उस तपस्वी राजा की तरह जीवन जिया जिसे अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रहता है।
जबकि गीता में श्रीकृष्ण धर्म की संस्थापना की बात करते हैं। वो इसके लिए प्राकृतिक और सामाजिक मर्यादाओं को भी लांघ जाते हैं। लेकिन श्रीराम ऐसा नहीं करते क्योंकि वो संयमी तपस्वी के रुप में अवतरित हुए हैं। इसलिए वो तपस्वी राजा हैं। अब राम तो तपस्वी हैं। मर्यादाओं में बंधे हुए हैं। लेकिन रावण का वध करने के लिए बहुत सारे ऐसे कार्य करने पड़ेंगे जो प्रकृति के नियमों का भी उल्लंघन करेंगे। इसलिए तपस्वी राम के उन सभी कार्यों को हनुमान जी करते हैं । हनुमान हवा मे उड़ कर लंका जाते हैं, कुछ घंटों में संजीवनी बूटी लेकर आते हैं। लंका जला कर आते हैं, जो एक दूत की मर्यादा को तोड़ना है। तभी तो चौपाई बनी सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा।
रामभद्राचार्य जी के अनुसार हनुमान चालीसा की तीसरी पंक्ति जो गलत है वो है-
‘राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा
उनके अनुसार इस पंक्ति में ‘सदा रहो’ की जगह ‘सादर हो’ होना चाहिए यानि ‘राम रसायन तुम्हरे पासा, सादर हो रघुपति के दासा’ अब हनुमान जी को एकलौता ऐसा भक्त माना जाता है जो भगवान राम की केमेस्ट्री को जानते हैं। श्रीराम के स्वभाव और उनकी आत्मा को अंदर से बाहर तक जानते हैं। अगर हम श्रीराम को प्रसन्न करना चाहें तो इसका उपाय भी वही बता सकते हैं। अगर वो श्रीराम के दास बने रहें तभी तो ये संभव हो सकता है। इसलिए तुलसी उन्हें कह रहे हैं कि आप ही राम को जानते हैं, उनके स्वभाव को जानते हैं लेकिन अगर आप उनसे दूर चले गए तो हम रामभक्ति कर ही नहीं पाएंगे। श्रीराम को प्रसन्न कर ही नहीं पाएंगे। इसलिए आप हमेशा उनके दास बन कर उनके साथ रहें। तभी हम सबका कल्याण है। इसमें तुलसी ने क्या गलत लिख दिया समझ से परे है। रामभद्राचार्य जी के अनुसार हनुमान चालीसा की जो चौथी लाइन गलत है वो है-
‘जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बंदि महासुख होई‘
रामभद्राचार्य जी के अनुसार इस चौपाई में ‘जो’ की जगह ‘यह’ होना चाहिए। ’जो’ की जगह ‘यह’ क्यों कर देना चाहिए। इसमें क्या गलत है। इसे भी समझना मुश्किल है।