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Home Hindu Mythology

देवताओं के दो से ज्यादा आँखे होने का रहस्य क्या है

The Karma by The Karma
March 2, 2025
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lord shiva eye
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क्यों देवताओं के कई हाथ और कई नेत्रों का वर्णन सनातन धर्म ग्रंथों में आता है देवताओं के दो से ज्यादा आँखे होने का रहस्य क्या है सबसे पहले बात करते हैं भगवान शिव की जिनके तीसरे नेत्र की सबसे ज्यादा चर्चा होती है। इसके बाद हम बात करेंगे माँ काली के तीसरे नेत्र की और फिर हम इंद्र देव के हजार नेत्रों के बारे में धर्म ग्रंथों में खोज करेंगे।

महादेव के तीसरे नेत्र का रहस्य। महाभारत में बताया गया है कि आखिर शिवजी को तीसरी आंख कैसे मिली थी। कथा के अनुसार एक बार हिमालय पर भगवान शिव एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानी जन शामिल थे। तभी सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए अपने दोनों हाथों से भगवान शिव की दोनों आंखों को ढक दिया। माता पार्वती ने जैसे ही भगवान शिव की आंखों को ढका, संसार में अंधेरा छा गया। ऐसा लगने लगा जैसे सूर्य देव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसके बाद धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में खलबली मच गई। संसार की ये दशा भगवान शिव से देखी नहीं गई और उन्होंने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव का तीसरा नेत्र बना। अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं।

वैसे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शंभू का तीसरा नेत्र खुलते ही चारो तरफ प्रलय मच जाता है। भगवान शिव संसार का संहार करने के लिए अपने तीसरे नेत्र को ही खोलते हैं। उनके तीसरे नेत्र से अग्नि की जो ज्वाला निकलती है उसी से ये संसार भष्म हो जाता है। महादेव के तीसरे नेत्र के प्रकोप की कथा वाल्मीकि रामायण और महाभारत सहित कई पौराणिक ग्रंथो में भी मिलती है। भगवान शिव ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से ही भस्म किया था। कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था तो भगवान शिव वैरागी हो गए थे। ऐसे में ब्रह्मा जी को लगा कि वैरागी शिव कहीं संसार को फिर से नष्ट न कर डालें। तब ब्रह्मा जी ने युक्ति लगाई कि अगर भगवान शिव का विवाह हो जाए और उनकी संताने भी हो जाएँ तो अपने बच्चों की खातिर वो कभी भी संसार को नष्ट नहीं करेंगे और फिर से प्रलय नहीं होगा।

उधर माता सती ने माँ पार्वती के रुप में जन्म लिया और वो भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगीं। लेकिन जब भगवान शिव पर माँ पार्वती की इस तपस्या का कोई असर नहीं हो रहा था तब देवताओं ने सोचा कि भगवान शिव के अंदर प्रेम भावना को जगाने के लिए कामदेव को भेजा जाए। कामदेव जब भगवान शिव के अंदर प्रेम भावना को जगाने के लिए अपने काम बाणों को चलाते है तो भगवान शिव क्रोधित हो जाते है और अपने तीसरे नेत्र को खोल कर कामदेव को भस्म कर देते हैं। कामदेव के भस्म हो जाने के बाद कामदेव की पत्नी रति विलाप करने लगती हैं। तब भोलेनाथ को दया आ जाती है और वो कामदेव को सारे संसार में बिना शरीर के ही व्याप्त हो जाने का वरदान दे देते हैं।

लेकिन कामदेव का चलाया हुआ बाण तब तक भगवान शिव पर असर डाल चुका होता है। भगवान शिव माँ पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हो जाते है और माँ पार्वती और भगवान शिव का विवाह हो जाता है। इसके बाद भगवान शिव और माँ पार्वती से गणेश और कार्तिकेय का जन्म होता है। इसके बाद वैरागी शिव सांसारिक शिव के रुप में परिवर्तित हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार महादेव के तीसरे नेत्र की कथा कई ग्रंथों में आती है इसके बाद भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र को हमेशा के लिए बंद कर देते हैं।

भगवान शिव की तरह ही माँ काली और माँ दुर्गा के भी तीन नेत्रों की चर्चा शास्त्रों में आती हैं। मार्कण्डेय पुराण और श्रीदुर्गासप्तशती की कथाओं के अनुसार जब चण्ड – मुण्ड और रक्तबीज का वध करने के क्रम में देवी दुर्गा क्रोधित हो जाती हैं तो उनके तीसरे नेत्र से महाकाली का आविर्भाव होता है। महाकाली चण्ड और मुण्ड का संहार कर चामुण्डा के नाम से जगत में विख्यात होती हैं। महाकाली ही बाद में रक्तबीज का भी संहार करती हैं। इस प्रकार देवी दुर्गा के तीन नेत्रों की दिव्यता की चर्चा ग्रंथों में की गई है। यहाँ भी देवी का तीसरा नेत्र संहार के लिए प्रयुक्त होता दिखाया जाता है।

माँ काली सनातन धर्म की सबसे रहस्यमयी देवी हैं। उन्हें ही आद्या शक्ति भी कहा जाता है। वो कौन हैं और कहां से आती हैं और किस लोक में रहती हैं ये आज भी किसी को नहीं मालूम। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार माँ काली का सबसे पहला स्वरुप उस वक्त प्रगट होता है जब भगवान विष्णु के कानों के मैल से मधु और कैटभ नामक दैत्य प्रगट होते हैं ।मधु कैटभ जब ब्रह्मा जी को मारने के लिए दौड़ते हैं तो ब्रह्मा महामाया देवी या योगमाया देवी की स्तुति करते हैं। तब महामाया या योगमाया देवी भगवान विष्णु की आँखों, भुजाओं और ह्द्य से निकलती हैं और दसपदी महाकाली के रुप में प्रगट होती हैं। इन महामाया काली के तीसरे नेत्र का रहस्य श्रीदुर्गासप्तशती के प्रथम अध्याय के ध्यान श्लोक में मिलता है।

इसके अलावा कुछ पुराणों में मां काली के कई बार प्रगट होने का वर्णन आता है। शिव पुराण के अनुसार जब भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लेती हैं तो भगवान शिव अपनी दो जटाओं को पृथ्वी पर पटकते हैं। इन दोनों जटाओं से वीरभद्र और भद्रकाली प्रगट होते हैं। दोनों दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर डालते हैं। यहाँ भी भद्रकाली को तीन नेत्रों वाली दिखाया गया है।

मां काली तीन नेत्रों के साथ प्रगट होने की एक और कथा मिलती है। शास्त्रों के अनुसार एक बार दारुक नामक दुष्ट दैत्य ने घोर तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर के बहुत से वरदान प्राप्त कर लिये। उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों ही हो। उसके बाद वो दैत्य तीनों लोकों को बहुत परेशान करने लगा। सभी देवताऔं को मारने पीटने लगा,देवराज इंद्र सहित सभी देवताऔ को स्वर्ग लोक से भगा दिया। तब सभी देवी-देवता बह्मा जी के पास गये और अपनी दुख-पीड़ा को बताया तब विष्णु सहित देवता उससे लड़ने गये ।पर वो असुर बहुत पराक्रामी था उसने सब को हरा दिया। चूंकि उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री ही कर सकती थी ऐसा होने के पीछे का कारण बह्मा जी का वरदान था। जब कोई उसको मारने में सक्षम ना रहा तब सभी देवता देवों के देव महादेव के पास गये। फिर उन्होनें अपनी सारी कहानी उनको बाताई कि किस प्रकार उस दैत्य ने तीनों लोकों में उत्पाच मचा रखा है। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला की वो किसी स्त्री द्वारा मारा जायेगा तब उन्होने माता पार्वती को सकेंत किया। उसके बाद माता के शरीर से एक तेज पुजं निकला जो महादेव के कंठ में प्रवेश कर एक शरीर के रुप में परिवर्तित हो गया। वह शरीर भगवान शिव के कंठ में विराजमान विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में बदलने लगा। भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर जब अपना तीसरा नेत्र खोला तब उनके तीसरे नेत्र से भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली मां काली उत्तपन हुई. मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी। कंठ में कराल विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल व नाना प्रकार के आभूषण व वस्त्रों से वह सुशोभित थी। मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे। मां काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत, सभी असुर सेना जल कर भस्म हो गई।

अब बात करते हैं हजार नेत्रों वाले इंद्र देव की। इंद्र की हजार आँखों के होने की वजह उनका कोई पराक्रम नहीं बल्कि उनकी कामवासना थी। वाल्मीकि रामाय़ण की कथा के अनुसार इंद्र गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या पर मोहित हो गए थे। एक बार उन्होंने गौतम ऋषि का वेश धारण कर जब अहल्या के साथ समागम किया तो गौतम ऋषि ने उन्हें ऐसा करते देख लिया। तब गौतम ऋषि ने कामातुर इंद्र के शरीर पर हजार स्त्री गुप्तांगों के होने का श्राप दे दिया। बाद में इंद्र के द्वारा क्षमा मांगने पर गौतम ऋषि ने इंद्र के शरीर पर बने इन स्त्री गुप्तांगों को हजार आँखों में बदल दिया। इसी वजह से इंद्र का एक नाम शतक्रतु भी पड़ा जिसका अर्था होता है हजार आँखो वाला ।

अभी तक तो हमने बात की एक से ज्यादा आँखों वाले देवी देवताओं की। अब बात करते हैं उस देवता और दैत्य गुरु की जिनकी सिर्फ एक आँख ही है। सबसे पहले बात करते हैं धन के देवता कुबेर की। कुबेर को एकाक्ष भी कहा जाता है जिसका अर्थ है एक आँख वाला। पौराणिक कथाओं के अनुसार कुबेर में जब भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर लिया तो भगवान शिव और माँ पार्वती कुबेर को दर्शन देने के लिए प्रगट हुए। कुबेर ने जब माँ पार्वती को देखा तो वो उन्हें देखते ही रह गए। कुबेर का इस तरह देखा जाना माँ पार्वती को सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपने तेज से कुबेर की एक आँख जला डाली। इसके बाद से कुबेर एकाक्ष या एक आँख वाले कहे जाने लगे। कुबेर की एक आँख होने का एक अर्थ ये भी है कि वो धन देने में एक समान व्यवहार करते हैं। वो दुष्टों और अच्छे दोनों लोगों को धन दे सकते हैं।

अब बात करते हैं दैत्य गुरु शुक्राचार्य की जिनकी एक आँख भगवान विष्णु के प्रकोप से नष्ट हो गई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि से तीन पग भूमि मांगने के लिए वामन अवतार लिया तो शुक्राचार्य को भगवान विष्णु की इस योजना का पता चल गया। दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने भगवान वामन की इस योजना को नष्ट करने के लिए अपना रुप छोटा कर लिया और वो खुद कमंडल में घुस गए ताकि दैत्यराज बलि दान देने का संकल्प न कर सकें। भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य की इस करतूत को समझ लिया और घास के एक तिनके से उनकी एक आँख को नष्ट कर दिया। इसके बाद से दैत्य गुरु शुक्राचार्य भी एकाक्ष कहे जाने लगे।

बात नयनों की हो और कमलनयन भगवान विष्णु की चर्चा न हो तो हमारा ये वीडियो अधूरा रह जाएगा। तो हम बात करते हैं कि आखिर भगवान विष्णु को कमलनयन या राजीवलोचन या पुण्डरीकाक्ष क्यों कहा जाता है। तो इसके पीछे कथा ये है कि दैत्यों के अत्याचार से पीड़ित देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने शिवजी की तपस्या शुरु की। इस तपस्या के दौरान भगवान विष्णु ने भगवान शिव को 1000 कमल के पुष्प अर्पित करने का संकल्प लिया। जब भगवान विष्णु ने 999 कमल पुष्प भगवान शिव को अर्पित कर दिए तो भगवान शिव ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए एक आखिरी कमल के पुष्प को गायब कर दिया। भगवान विष्णु समझ गए और उन्होने अपने कमल जैसी आँख को ही भगवान शिव को अर्पित करने का फैसला किया। जब भगवान विष्णु एक बाण से अपनी एक आँख को निकालने ही जा रहे थे कि भगवान शिव प्रसन्न हो गए। भगवान शिव ने न केवल विष्णु जी को सुदर्शन चक्र दिया बल्कि उन्हें कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष की उपाधि भी दी। तभी से भगवान विष्णु को कमलनयन, राजीवनयन और पुण्डरीकाक्ष भी कहा जाने लगा।

ऐसी ही एक कथा भगवान श्रीराम से भी जुड़ी हुई है जिसका वर्णन बंगाल के कृतिवास रामायण में मिलता है। कथा के अनुसार भगवान श्रीराम युद्ध के पहले दिन ही रावण से पराजित हो जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक वरदान के अनुसार माँ दुर्गा रावण के पक्ष में युद्ध करने उतर जाती हैं। माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए श्रीराम माँ दुर्गा की उपासना शुरु करते हैं। श्रीराम माँ दुर्गा को 108 कमल पुष्प अर्पित करने का प्रण लेते हैं। लेकिन आखिरी कमल माँ दुर्गा गायब कर देती हैं। श्रीराम अपनी आँख को मां दुर्गा को अर्पित करने के लिए जैसे ही बाण उठाते हैं , माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और श्रीराम को विजय का वरदान देती हैं।

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Tags: शिव के तीन नेत्र

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