सनातन धर्म के ग्रंथों में हमने पढ़ा है कि असुरों और राक्षसों को मारने के लिए भगवान विष्णु अवतार लेते हैं, तो कभी भगवान शिव अपने क्रोध से असुरों को भस्म कर देते हैं। लेकिन एक बार तो भगवान शिव के क्रोध ने सृष्टि को प्रकाश देने वाले भगवान सूर्य की जान ले ली थी।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान शिव ने अपने ही घर के अन्दर जाने से रोकने पर अपने पुत्र गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था। भगवान शिव के द्वारा गणेश का सिर कटने से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से पूछा। कि आदियोगी भगवान शिव से तो कोई कार्य गलत नहीं होता। क्या ये उनसे अनजाने में हो गया या फिर इसका कोई कारण है। तब भगवान विष्णु नारद जी को बताते हैं। कि कोई भी कार्य इस सृष्टि में अनजाने में नहीं होता। औऱ भगवान शिव से तो कदापि नहीं। दरअसल एक समय की बात है जब क्रोधवश भगवान शिव ने सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार किया।
एकदा शङ्कर: सूर्य्यं जघान परमक्रुधा ।
मालिसुमालिहन्तारं शूलेन भक्तवत्सल: ।।6
(ब्रह्मवैवर्तपुराण,गणपतिखण्ड,अध्याय-18)
नारद जी का प्रश्न था कि महादेव ने सूर्य को क्यों मारा तो श्रीहरि बताते हैं कि एकबार भगवान सूर्य की मार से माली-सुमाली को कोढ़ नामक रोग हो गया। अपने भक्तों को कष्ट में देखकर भगवान शिव को क्रोध आ गया और भोलेनाथ ने क्रोधवश सूर्य पर अपने त्रिशूल से वार कर दिया और शिव ने की सूर्य चेतना नष्ट, भगवान शिव के प्रहार से सूर्य की चेतना नष्ट हो गई, अर्थात् भगवान सूर्य की मृत्यु हो गई। ये सब देखकर सभी देवता रोने लगे। सारे संसार में अंधकार छा गया। क्योंकि जब भगवान सूर्य ही नहीं रहेंगे तो इस सृष्टि में अंधकार ही अंधकार होगा। इधर अपने पुत्र सूर्य को इस स्थिति में देखकर उनके पिता महर्षि कश्यप ने भगवान शिव को शाप दे दिया।
निष्प्रभं तनयं दृषट्वा शशाप कश्यप: शिवम् ।
तपस्वी ब्राह्मण: पौत्र: प्रज्वलन्ब्रह्मतेजसा ।।10
(ब्रह्मवैवर्तपुराण,गणपतिखण्ड,अध्याय-18)
ब्रह्मवैवर्तपुराण का ये श्लोक महर्षि कश्यप के शाप का उल्लेख करता है कि अपने पुत्र को मरा हुआ देखकर कश्यप जी ने कहा। कि जिस तरह से क्रोधवस आपने मेरे पुत्र पर घातक त्रिशूल से वार किया है। उसी तरह आपका क्रोध आपके अपने पुत्र पर भी त्रिशूल चलाने के लिए आपको विवश कर देगा।
भगवान शिव को तो सब जानते हैं कि वो कितने भोले हैं। उनको जितनी जल्दी क्रोध आता है उतनी ही जल्दी उनका क्रोध शांत भी हो जाता है। तो जैसे ही भगवान का गुस्सा शांत हुआ उन्होने अपने तपोबल से सूर्य को फिर से जीवन दे दिया। तथा सूर्य की चेतना वापस आई और भगवान सूर्य को जब ये पता चला कि उनके पिता ने भगवान शिव को शाप दे दिया है तो उन्हें बहुत दुख हुआ। और उन्होने सृष्टि के कार्य से संन्यास ले लिया। लेकिन बिना सूर्य के सृष्टि तो प्रकाश विहीन हो जाएगी। तो सभी देवताओं ने बार बार प्रार्थना की। लेकिन तब भी भगवान सूर्य ने अपना इरादा नहीं बदला। तो देवताओं ने ब्रह्मा जी से मदद मांगी। कि बिना सूर्य के सारा संसार। ये सारी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। तो ब्रह्मा जी के समझाने पर सूर्यदेव ने फिर से सृष्टि को प्रकाशित किया।
भोलेनाथ के क्रोध से सारी सृष्टि विनाश की ओर जाने वाली थी। लेकिन भगवान शिव तो करुणा के सागर हैं। जब उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि मेरे कारण सारे संसार का नाश हो जाएगा तो उन्होंने अपने क्रोध को शान्त किया। और सृष्टि को नया जीवन प्रदान किया।