सनानत हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। और भगवान शिव को सृष्टि का संहारकर्ता माना जाता है। महाभारत में श्रीकृष्ण को भगवान शिव की स्तुति करते भी दिखाया गया है। भगवान शिव भी श्रीकृष्ण से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन एक बार कुछ ऐसा हो गया जिससे भगवान शिव और श्रीकृष्ण का महायुद्ध छिड़ गया।
शिव का पुत्र बाणासुर बना महायुद्ध की वजह
हम आपको कई युगों पहले हुए उस शिव और कृष्ण युद्ध की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसने पूरी सृष्टि को हिलाकर रख दिया था। बाणासुर की वजह से हुआ महायुद्ध दरअसल एक समय की बात है राजा बलि के ज्येष्ठ पुत्र बाणासुर ने शिव पुत्र कार्तिकेय की सुन्दरता से मोहित होकर भगवान शिव का पुत्र बनने की इच्छा की। बाणासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। महादेव ने भी प्रसन्न होकर उसे अपने पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया। उसे उपहार स्वरूप शोणितपुर राजधानी भी दी। कुमार कार्तिकेय ने भी अपने छोटे भाई बाणासुर को अग्नि के समान तेजस्वी ध्वज और वाहन स्वरूप मोर दिया। बल के घमंड में चूर बाणासुर ने देवताओं को बार बार युद्ध में हराया।
श्रीकृष्ण का पुत्र बना शिव और कृष्ण के युद्ध की वजह
एक समय ऐसा आया जब सहस्त्रबाहु बाणासुर की पुत्री ऊषा को श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युमन के बेटे अनिरुद्ध से प्रेम हो गया। उषा की सहेली, अप्सरा चित्रलेखा सीधे द्वारका जाकर अनिरुद्ध को बाणासुर के नगर ले आई और दोनों का गंधर्व विवाह करा दिया। बाणासुर को जब यह पता चला तो उसने युद्ध करके अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। बस फिर क्या था श्रीकृष्ण ने अपनी पूरी सेना के साथ बाणासुर की नगरी पर धावा बोल दिया।
श्रीकृष्ण और बाणासुर का युद्ध
युद्ध मैदान में एक तरफ थी श्रीकृष्ण की नारायणी सेना और दूसरी तरफ थी बाणासुर की सेना, जिसका साथ दे रहे थे भगवान शिव और कुमार कार्तिकेय। गरूड़ पर सवार होकर भगवान श्रीकृष्ण, बलराम जी और प्रद्युमन, बाणासुर की सेना का विनाश करते जा रहे थे। लेकिन जैसे ही भगवान शंकर ने देखा कि श्रीकृष्ण दानव सेना का संहार कर रहे हैं और उनकी सेना में भगदड़ मच गई है, तो वो गुस्से से लाल हो गए और श्रीकृष्ण और बाणासुर का युद्ध केवल दानव और श्रीकृष्ण का नहीं रह गया अब उस युद्ध में नन्दी से सजे हुए रथ पर भगवान शंकर सवार होकर श्रीकृष्ण की तरफ दौडे।
शिव और श्रीकृष्ण के बीच युद्ध
शिव जी के गणों में कोई सिंह के समान मुंह वाला था तो कोई हाथी के समान मुंह वाला… लेकिन ये सभी श्रीकृष्ण के बाणों से पीडित हो रहे थे। ऐसे में नन्दी रथ पर सवार शिव जी ने गरूड पर सवार श्रीकृष्ण से युद्ध आरंभ कर दिया। श्रीहरि ने जैसे ही पार्जन्यास्त्र हाथ में लिया पृथ्वी थर थर कांपने लगी। बहुत से पर्वत जल की धाराओं की तरह धराशायी हो गए। भूतल पर सब तरफ से वज्रपात होने लगा। इंद्र घोर गर्जना करते हुए रक्त पात करने लगे। इसी बीच सभी देवताओं से घिरे हुए ब्रह्मा जी आकाश मार्ग से इस युद्ध को देखने लगे।
जैसे ही श्रीकृष्ण ने पार्जन्यास्त्र छोड़ा, भगवान शंकर ने उन पर आग्नेयास्त्र से प्रहार कर दिया। इस अस्त्र से इतनी अग्नि निकली की युद्ध मैदान में सभी को लगा गरूड़ पर सवार श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युमन मारे गए,लेकिन तभी श्रीकृष्ण ने वरुणास्त्र का प्रयोग कर दिया। इस अस्त्र से महादेव का अग्नेयास्त्र शांत हो गया फिर भगवान शिव ने पैशाच, राक्षस, रौद्र और आङ्गिरस नाम के चार अस्त्र छोडे, जो प्रलय की भांति नजर आते थे, तब श्रीकृष्ण ने वायव्यास्त्र, सावित्रास्त्र, ऐन्द्रास्त्र और मोहनास्त्र का प्रयोग किया जैसे ही शिव के चारों अस्त्र शांत हुए श्रीकृष्ण ने वैष्णवास्त्र का प्रयोग कर दिया।
जब शिव सो गए
सम्पूर्ण जगत जब इस अस्त्र से अंधकार में डूब गया तो भगवान शिव का शरीर उसके तेज से जलने लगा। क्रोध में भगवान शंकर ने चार फनवाला बाण अपने हाथ में ले लिया। इसी बीच श्रीकृष्ण ने जृम्भणास्त्र उठाया और महादेव को जंभाई से पीडित कर दिया। मतलब की अब भगवान शंकर आलस में आ गए और उनका सारा गुस्सा शांत हो गया। ये देख सभी प्राणी थर्रा उठे। उस समय पृथ्वी देवी कांपती हुई ब्रह्मा जी के पास पहुंची और इस युद्ध को शांत करवाने का निवेदन करने लगीं।
ब्रह्मा जी ने किया भगवान शिव और श्रीकृष्ण के युद्ध का अंत
शिव कृष्ण के युद्ध के बीच में आए ब्रह्मा और उन्होने दोनो को समझाया कि आपके युद्ध से सृष्टि में हाहाकार मच गई हैं फिर ब्रह्मा जी के समझाने पर महादेव का क्रोध बिल्कुल शांत हो गया और वो श्रीकृष्ण से वैर भुलाकर युद्ध मैदान से चले गए, लेकिन कार्तिकेय भगवान श्रीकृष्ण से पराजित होने के बाद ही युद्ध मैदान से पीछे हटे। इसके बाद बारी आई बाणासुर की। बाणासुर एक के बाद एक श्रीकृष्ण से युद्ध करता रहा।
श्रीकृष्ण ने किया बाणासुर को पराजित
आखिरकार भगवान श्रीकृष्ण ने किया बाणासुर को पराजित युद्ध में श्रीहरि ने सुदर्शन चक्र से उसकी सहस्त्रों भुजाओं को काट डाला। जैसे ही श्रीकृष्ण अपने चक्र से उसका वध करने चले तभी कार्तिकेय के साथ महादेव वहां फिर से पहुंच गए ,लेकिन इस बार उन्होनें श्रीकृष्ण से बाणासुर को माफ करने का निवेदन किया। महादेव ने श्रीकृष्ण से कहा कि मैंने इसे अभयदान दिया हुआ है। मेरा वचन व्यर्थ ना हो इसके लिए मैं आपसे इसे क्षमा करने की प्रार्थना करता हूं। श्रीहरि ने भी शिव जी की प्रार्थना स्वीकर कर उसे क्षमा कर दिया और अपनी पूरी सेना सहित अनिरुद्ध-ऊषा को लेकर वहां से चले गए।
भगवान शिव ने बाणासुर को दिया वरदान
भगवान शिव ने बाणासुर को दिया वरदान और वरदान भी एक नहीं भोलेनाथ ने वाणासुर को पांच वरदान दिये
- शिव ने बाणासुर को अजर अमर रहने का वरदान दिया।
- जो भक्त शिव की प्रसन्नता के लिए बाणासुर की तरह नृत्य करेंगे उन्हें पुत्र प्राप्ति होगी।
- बाणासुर के शरीर की सारी पीड़ा शांत हो जाने का वरदान
- शिव जी ने बाणासुर को महाकाल नाम की उपाधि दे दी।
- शिव जी ने बाणासुर को हमेशा सुंदर रहने का वरदान दिया।
बाणासुर को वरदान देने के बाद भगवान शिव अपने सभी गणों के साथ देखते ही देखते अंतर्धान हो गए और इस तरह सृष्टि के उस सबसे प्रलयंकारी युद्ध की समाप्ति हो गई। बाणासुर को आज भी अजर अमर माना जाता है और भगवान शिव के गणों में शामिल किया जाता है। भगवान शिव ने बाणासुर को एक प्रमुख गण की पदवी दी और उसे हमेशा कैलाश में रहने की अनुमति भी दी।