डायनासोर जैसा बड़ा जीव दुनिया से विलुप्त हो चुका है। डायनासोर के जीवाश्म से उसके अस्तित्व का पता चला था। डायनासोर की तरह ही पृथ्वी पर कई विशाल जीव हुए हैं जो शेर और हाथी जैसे बड़े जानवरों को भी मार कर खा जाते थे। सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में ऐसे भयंकर जीवों का उल्लेख हुआ है। शायद ऐसे जीव विलुप्त हो चुके हैं, लेकिन सनातन धर्म के ग्रंथों में इनके बारें में जो जानकारी मिलती है वो काफी हैरान करने वाली है।
शरभ पक्षी
शरभ पक्षी एक ऐसा जीव है जो अब नहीं पाया जाता, लेकिन रामायण, महाभारत और पुराणों में इसका खूब उल्लेख हुआ है। शरभ इतना ताकतवर था कि उसकी दहाड़ से शेर और बाघ भी घबराते थे। हैरानी की बात ये है कि वो हिरण की जाति का ऐसा जानवर था जो आधा जानवर और आधा पक्षी था। शरभ एक आठ पैरों वाला प्राणी था जिसके शरीर के उपरी भाग पर पक्षियों की तरह पंख होते थे। इसके दो सिर भी थे। यह क्रौंच और गंधमादन पर्वत के इलाके में पाया जाता था। यह पर्वत और घाटी को एक छलांग में पार कर सकता था।
शैव मत की कथाओ में मिलता है कि जब विष्णु नरसिंह का अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद क्रोधवश संसार का संहार करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो शिव शरभ का रुप लेकर विष्णु से युद्ध करते हैं। शैव कथाओं के अनुसार शिव और विष्णु अवतार नरसिंह के बीच इस युद्ध में शरभेश्वर शिव विष्णु स्वरुप नरसिंह को पराजित कर उनका क्रोध खत्म कर देते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव जिस व्याघ्र चर्म पर बैठते हैं वो दरअसल नरसिंह भगवान के शरीर की खाल ही है।
जातक कथाओं में भगवान बुद्ध को भी उनके एक पूर्वजन्म में शरभ के रूप में दिखाया गया है। दक्षिण भारत की कथाओं में शरभ का विशेष वर्णन मिलता है। वाल्मीकि रामायण में राम की वीरता की तुलना शरभ से की गई है। कर्नाटक की राज्य सरकार के अनेक विभागों में अभी भी शरभ की तस्वीर को राजकीय चिन्ह के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।
भेरुंड पक्षी
भेरुंड को गंदभेरुंड भी कहा जाता है। भेरुंड पक्षी के दो सिर होते थे और मोर की तरह लंबे पंख भी होते थे। इसे मूर्तियों में अपनी चोंच में हाथी को लेकर उड़ते दिखाया गया है। इस पक्षी की मूर्ति शिमोगा जिले के रामेश्वर मंदिर के शीर्ष पर लगाई गई है। विजयनगर साम्राज्य, मैसूर के राजाओं के राजचिन्ह और मुद्राओं में इस पक्षी को अंकित किया गया है।
इस पक्षी को लेकर दक्षिण भारत के अनेक ग्रंथों में कथाएं हैं। एक कथा यह है कि जब हिरण्यकश्यप का वध भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह ने कर दिया तो इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। भगवान नरसिंह अपने क्रोध में इतने बेकाबू हो गए कि वो संसार का संहार करने लगे। उन्हें रोकने के लिए भगवान शिव ने शरभ के रूप में अवतार लिया । भगवान नरसिंह और शरभेश्वर शिव के बीच महायुद्ध शुरु हो गया । भगवान नरसिंह ने इसके बाद अपना स्वरुप बदल लिया और वो भेरुंड या गंदभेरुंड पक्षी के रुप में परिवर्तित हो गए। इसके बाद शरभ नरसिंह युद्ध होने लगा ।
शैव मतों के अनुसार गंदभेरुंड शरभेश्वर युद्ध में गंदभेरुंड के रुप में भगवान नरसिंह की पराजय हुई और शरभेश्वर शिव विजयी हुए। लेकिन वैष्णव मतों के अनुसार विष्णु स्वरुप गंदभेरुंड ने शरभेश्वर शिव को हरा दिया। अब कथा का परिणाम जो भी रहा हो लेकिन गंदभेरुंड नामक पक्षी अब पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है और सिर्फ कर्नाटक राज्य के राजचिन्हों में इसे देखा जा सकता है ।
भेरुंड का जिक्र महाभारत में भी मिलता है लेकिन यहाँ भेरुंड को लाशों को ले कर उड़ने वाला बताया गया है । महाभारत के भीष्म पर्व में संजय धृतराष्ट्र को भेरुंड पक्षी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ये इतना भयानक और ताकतवर पक्षी है कि ये मरे हुए लोगों के शरीरों को लेकर उड़ जाता है और उसे गुफाओं में ले जाकर खाता है । आपको बता दें कि भगवान विष्णु का वाहन गरुण पक्षी भी अब लगभग विलुप्त हो चुके हैं।