सऊदी अरब ( Saudi Arabia ) के (Al Fao) अल फाओ क्षेत्र में हाल ही में खोजा गया 8000 साल पुराना रहस्यमय शहर और मंदिर इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में वहाँ मूर्ति पूजा प्रचलित थी। यह खोज न केवल अरब के इतिहास को उजागर करती है, बल्कि सनातन धर्म से इसके गहरे संबंधों को भी सामने लाती है। यह एक ऐसा सच है जो लंबे समय तक छिपा रहा, लेकिन अब वैज्ञानिक खोजों ने इसे दुनिया के सामने ला दिया है। आइए, इस सभ्यता के रहस्यों को एक-एक कर खोलते हैं।
अल फाओ में 8000 साल पुराना मंदिर
सऊदी अरब के अल फाओ क्षेत्र में, रियाद के दक्षिण-पश्चिम में, पुरातत्वविदों ने एक 8000 साल पुराने मंदिर और निएलिथिक बस्ती के अवशेष खोजे हैं। यह मंदिर, जो तुवैक पर्वत के किनारे खशेम करियाह के नाम से जाना जाता है, पत्थर से बना है और इसमें पूजा-स्थल, वेदी, और अनुष्ठान से जुड़े अवशेष पाए गए हैं। यह खोज इस बात का प्रमाण है कि उस समय के निवासी व्यवस्थित ढंग से पूजा और संस्कार करते थे।
खेती और जल प्रबंधन की उन्नत तकनीक
रेगिस्तान के कठिन वातावरण में भी, इस सभ्यता के लोग खेती में निपुण थे। उन्होंने जटिल सिंचाई प्रणालियों का निर्माण किया था, जिसमें नहरें, जलाशय, और बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए गड्ढों का उपयोग शामिल था। यह उनकी तकनीकी विशेषज्ञता को दर्शाता है। इसके अलावा, पुरातत्वविदों को इस क्षेत्र में पशुपालन और व्यापार के साक्ष्य भी मिले हैं, जो इस सभ्यता की समृद्धि और संगठित जीवनशैली को दर्शाते हैं।
मूर्ति पूजा और सनातन संबंध
इस सभ्यता में मूर्ति पूजा का प्रचलन था, जो इस्लाम की गैर-मूर्तिपूजक मान्यताओं से पूरी तरह अलग है। अल फाओ में खोजे गए शिलालेखों में स्थानीय देवता कहाल का उल्लेख है, जिसे वहाँ के निवासियों द्वारा पूजा जाता था। इसके अलावा, मक्का में प्राचीन काल में अल-लात, अल-मनात, और अल-उज्जा जैसी देवियों की पूजा होती थी। इनमें से एक देवी की मूर्ति, जो शेर पर विराजमान है, सनातन धर्म की माता दुर्गा से आश्चर्यजनक समानता रखती है। अल-उज्जा को शत्रुओं का नाश करने वाली माना जाता था, जो माता दुर्गा के गुणों से मेल खाता है। अल-लात को भाग्य और ज्ञान की देवी माना जाता था, जो माता लक्ष्मी और सरस्वती से मिलती-जुलती है।
मक्का में मूर्ति पूजा का इतिहास
इस्लाम के आगमन से पहले, मक्का में 360 मूर्तियों की पूजा होती थी, जैसा कि इस्लामी ग्रंथों, जैसे सूरह अन-नस्र, में उल्लेख मिलता है। इन मूर्तियों को बाद में तोड़ दिया गया था, जब मक्का पर इस्लामी विजय हुई। यह दर्शाता है कि अरब में मूर्ति पूजा एक प्रचलित और गहरी परंपरा थी, जो सनातन धर्म की परंपराओं से मिलती-जुलती थी। यह संभव है कि ये परंपराएँ प्राचीन भारत से व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से अरब पहुँची हों।
शेर पर विराजमान देवी: एक रहस्य
शेर पर सवार देवी की मूर्ति का मिलना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। रेगिस्तान में शेर का होना असामान्य है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह मूर्ति किसी अन्य सभ्यता से प्रेरित थी। सनातन धर्म में माता दुर्गा को शेर पर सवार दर्शाया जाता है, जो शक्ति और विनाश की प्रतीक हैं। यह संभव है कि प्राचीन अरब के लोग या तो सनातन धर्म से प्रभावित थे या उनकी अपनी परंपराएँ सनातन धर्म से समानताएँ रखती थीं।
नबातियन सभ्यता और यूनानी प्रभाव
नबातियन सभ्यता, जो लगभग 5000 साल पहले अस्तित्व में थी, मूर्ति निर्माण में निपुण थी। यूनानी लोग, जिन्हें महाभारत में यवन कहा गया, नबातियों को मूर्तियाँ बनाने के लिए अपने देश में बुलाते थे। यह सभ्यता महाभारत काल से समकालीन हो सकती है। महाभारत में कर्ण द्वारा वर्णित एक देश, जहाँ ऊँटों की सवारी होती थी, पानी की कमी थी, और लोग रेगिस्तानी जीवों का भोजन करते थे, अरब से मिलता-जुलता प्रतीत होता है। यह संकेत देता है कि प्राचीन भारत और अरब के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध थे।
सनातन संस्कृति से समानताएँ
- वस्त्र प्रथा: प्राचीन अरब में पुरुष और महिलाएँ अर्धनग्न अवस्था में पूजा करते थे, जो रेगिस्तान की गर्मी के कारण संभव है। महाभारत में भी ऐसी प्रथाओं का उल्लेख है, जहाँ कुछ क्षेत्रों में हल्के वस्त्र पहनने की परंपरा थी।
- देवी पूजा: अल-लात को भाग्य और ज्ञान की देवी माना जाता था, जो माता लक्ष्मी और सरस्वती से मिलती-जुलती है। अल-उज्जा की शत्रु-विनाशक छवि माता दुर्गा से समानता रखती है।
- मंदिर और पूजा पद्धति: अल फाओ का मंदिर और वहाँ की पूजा पद्धतियाँ सनातन मंदिरों की तरह व्यवस्थित थीं, जिसमें वेदी और अनुष्ठान शामिल थे।
सनातन इतिहास का गौरव
यह खोज इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम के आगमन से पहले अरब में एक समृद्ध मूर्तिपूजक सभ्यता थी, जो संभवतः सनातन धर्म से प्रेरित थी। प्राचीन व्यापार मार्ग, जैसे रेशम मार्ग और मसाला मार्ग, भारत और अरब के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के साधन थे। यह संभव है कि सनातन धर्म की मान्यताएँ और प्रथाएँ इन मार्गों के माध्यम से अरब पहुँचीं।
सभ्यता का अंत
यह सभ्यता समय के साथ या तो विलुप्त हो गई, समाप्त कर दी गई, या लोगों ने बाद में अपना धर्म बदल लिया। इस्लाम के आगमन के बाद मूर्ति पूजा को हराम माना गया, और इस तरह की परंपराएँ धीरे-धीरे लुप्त हो गईं। फिर भी, ये पुरातात्विक खोजें इस बात का प्रमाण हैं कि अरब का इतिहास केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें सनातन धर्म की गहरी छाप है।
आधुनिक संदर्भ और सनातन धर्म
आज के समय में, जब अरब में सनातन धर्म की चर्चा हो रही है, तो यह देखना रोचक है कि वहाँ रामायण और महाभारत को पढ़ा और समझा जा रहा है। यह एक संकेत है कि सनातन धर्म की वैश्विक पहुँच बढ़ रही है। सऊदी अरब जैसे देशों में भारतीय संस्कृति के प्रति रुचि बढ़ रही है, जो इस खोज के महत्व को और बढ़ाता है।
निष्कर्ष
8000 साल पुराने मंदिर और मूर्तियों की खोज इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अरब में एक समय मूर्ति पूजा और सनातन धर्म से मिलती-जुलती परंपराएँ प्रचलित थीं। यह सभ्यता न केवल तकनीकी रूप से उन्नत थी, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध थी। यह खोज सनातन धर्म के वैश्विक प्रभाव को दर्शाती है और हमें अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्व करने का अवसर देती है।