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सनातन धर्म और रक्षाबंधन का महत्व | भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की अनोखी परंपरा

admin by admin
August 7, 2025
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Raksha Bandhan & Sanatan Dharma

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Sanatan Dharma की सबसे बड़ी विशेषता यही रही है कि इसमें विपरीत विचारों को हमेशा बराबर का स्थान मिला है। Raksha Bandhan का पर्व दो विपरीत संस्कृतियों के मिलन और सभ्यता की रक्षा का प्रतीक है। यह पर्व केवल भाई-बहन के बंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और कमजोर की रक्षा का उत्सव है, जो भगवान विष्णु के वामन अवतार से शुरू हुआ। रक्षाबंधन का असली अर्थ है सभ्यता की रक्षा, जिसमें कोई भी—पुरुष हो या महिला—कमजोर की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांध सकता है।

ऋषि कश्यप और दैत्य-देवता वंश

पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्य, दानव, देवता और असुर एक ही पिता, ऋषि कश्यप की संतान हैं। कश्यप की दो प्रमुख पत्नियों, अदिति और दिति, के पुत्रों के बीच संघर्ष रहा। अदिति के बारह पुत्र, जिन्हें आदित्य कहा जाता है, में इंद्र, वरुण, सूर्य, धाता और विष्णु प्रमुख हैं। दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप ने दैत्य वंश की स्थापना की और दक्षिण भारत में विशाल साम्राज्य बनाया। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और उनके पुत्र महाबलि थे।

देवताओं और दैत्यों का संघर्ष

अदिति के पुत्रों, विशेषकर इंद्र और विष्णु, ने दिति, खसा और दनु के पुत्रों से संघर्ष किया। विष्णु ने हिरण्याक्ष को मारने के लिए वाराह अवतार और हिरण्यकश्यप को मारने के लिए नृसिंह अवतार लिया। प्रह्लाद के समय दैत्यों और विष्णु के बीच संधि हुई। प्रह्लाद, विष्णु का परम भक्त था, और उसके अत्याचारी पिता हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया। प्रह्लाद को वरदान मिला कि यदि उसका वंश वैदिक धर्म का पालन करेगा, तो विष्णु उनका संहार नहीं करेंगे।

वामन अवतार और रक्षाबंधन की शुरुआत

रक्षाबंधन का पर्व भगवान विष्णु के वामन अवतार और दैत्यराज महाबलि से जुड़ा है। महाबलि ने धर्म के अनुसार आचरण कर तीनों लोक जीत लिए। देवताओं ने स्वर्ग की वापसी के लिए विष्णु से आग्रह किया। विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और महाबलि के यज्ञ में जाकर तीन पग भूमि मांगी। महाबलि ने यह दान स्वीकार किया। पहले दो पगों में विष्णु ने तीनों लोक जीत लिए और तीसरा पग महाबलि के सिर पर रखकर उन्हें पाताल का राजा बनाया। इस दौरान, विष्णु ने महाबलि को रक्षा सूत्र से बांधा और एक संधि की, जो रक्षाबंधन की शुरुआत बनी।

रक्षा सूत्र का मंत्र और अर्थ

यह रक्षा सूत्र सभ्यता और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। पौराणिक मंत्र, जो इस संधि का आधार है, आज भी रक्षाबंधन के दौरान उपयोग होता है:

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

इसका अर्थ है: “जिस प्रकार विष्णु ने दानवों के राजा महाबलि को बांधा था, उसी प्रकार मैं तुम्हें वचन से बांधता हूँ। हे रक्षा सूत्र, तुम अचल रहना।” यह मंत्र सभ्यता की रक्षा का संकल्प है। रक्षाबंधन में रक्षा सूत्र कमजोर की रक्षा के लिए बांधा जाता है, और यह आवश्यक नहीं कि केवल महिला ही रक्षा सूत्र बांधे; पुरुष भी कमजोर की रक्षा का संकल्प ले सकता है।

महाबलि और पाताल का राज

महाबलि को विष्णु ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया और पाताल का राजा बनाया। इस संधि ने दैत्यों और देवताओं के बीच युद्ध को समाप्त किया। दैत्यों को पाताल, देवताओं को स्वर्ग, और पृथ्वी मानव व अन्य जीवों के लिए आरक्षित की गई। यह संधि रक्षाबंधन के मूल अर्थ को दर्शाती है—विपरीत संस्कृतियों का समन्वय और सभ्यता की रक्षा।

देवासुर संग्राम और सभ्यता का संघर्ष

देवताओं और असुरों के बीच हुए संघर्ष को देवासुर संग्राम कहा जाता है। असुरों के गुरु शुक्राचार्य की संजीवनी विद्या के कारण देवता शुरू में कमजोर पड़ते थे। समुद्र मंथन के बाद, देवताओं ने अमृत प्राप्त किया और असुरों की संस्कृति को समाप्त कर दिया।

राक्षस-यक्ष संस्कृति और देवताओं का संघर्ष

राक्षस और यक्ष भी कश्यप की पत्नी खसा की संतान थे। राक्षसों का कार्य पाताल और जल की रक्षा करना था, जबकि यक्ष धार्मिक और सामाजिक परंपराओं को लागू करते थे। राक्षसों और यक्षों के बीच संघर्ष में देवताओं ने यक्षों का साथ दिया। रावण के उदय के बाद, विष्णु ने राम अवतार लिया और राक्षस संस्कृति को देव संस्कृति में विलय कर दिया।

रक्षाबंधन का संदेश

रक्षाबंधन का पर्व हमें सिखाता है कि रक्षा का दायित्व लैंगिक सीमाओं से परे है। यह सभ्यता, धर्म और कमजोर की रक्षा का उत्सव है, जो भगवान विष्णु और महाबलि की संधि से प्रेरित है।

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