Menu

  • Home
  • Trending
  • Recommended
  • Latest

Categories

  • Dharm Gyan
  • Hindu Mythology
  • Myth & Truth
  • Sanatan Ecosystem
  • Sanatan Glory
  • Sanatan Lifestyle
  • Science & Spirituality
  • The Karma English
  • Video
The Karmapath
  • English
No Result
View All Result
The Karmapath
No Result
View All Result
Home Hindu Mythology

महाभारत में भी है श्रीराम की रामायण कथा

admin by admin
December 20, 2024
0 0
0
0
SHARES
162
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

महाभारत को एक संपूर्ण ग्रंथ कहा जाता है। महाभारत में ही कहा गया है कि इस ग्रंथ में वो सारी घटनाएं दर्ज हैं जो महाभारत ग्रंथ के लिखे जाने के पूर्व घटित हो चुकी है। इसलिए इस ग्रंथ में हमें श्रीराम के जीवन की कथा यानि रामायण की कथा भी मिलती है। महाभारत ग्रंथ में कम से कम तीन स्थानों पर श्रीराम के जीवन से जुड़ी घटनाएं सामने आती हैं। इसमें भी मुख्य रुप में महाभारत के वन पर्व में पहली बार उस स्थान पर श्रीराम की कथा आती है जब भीमसेन और महावीर हनुमान जी की मुलाकात होती है। इस मुलाकात में हनुमान जी भीम को श्रीराम रावण की कथा सुनाते हैं।

महाभारत की रामायण है ‘रामोपाख्यान’

महाभारत में ही रामायण की विस्तृत कथा वन पर्व   के सर्ग 273 से 2929( गीता प्रेस संस्करण) तक मिलती है। जब पांडव वनवास के दौरान वन में भटक रहे थे और दुर्योधन के जीजा जयद्रथ ने द्रौपदी का अपहरण करने की कोशिश की थी। इस घटना से दुखी होकर युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय ऋषि से पूछा था कि क्या उनसे भी ज्यादा दुर्भाग्यशाली व्यक्ति संसार में अब तक कोई हुआ है ? तब मार्कण्डेय मुनि उन्हें श्रीराम की कथा सुनाते हैं जिसे महाभारत में ‘रामोपाख्यान’ के नाम से जाना जाता है  इस कहानी में रामायण में दी गई श्रीराम की कथा के अलावा भी बहुत सारी चौंकाने वाली बाते हैं जिन्हें पढ़ कर आपको आनंद आ जाएगा। रामोपाख्यान का आरंभ श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के जन्म की कथा से होता है। इस कथा में ये नहीं बताया गया है कि श्रीराम के पिता ने उनके जन्म हेतु किसी यज्ञ का आयोजन किया था।

महाभारत में कुबेर के जन्म की कहानी

‘रामोपाख्यान’ की कहानी कुबेर के जन्म की कथा भी दी गई है। इस कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी की रावण के पितामह थे। ब्रह्मा जी के एक परम प्रिय मानस पुत्र पुलस्त्य जी थे। उनसे उनकी गौ नाम की पत्नी से वैश्रवण नामक एक महाशक्तिशाली पुत्र पैदा हुआ। लेकिन वैश्रवण ने अपने पिता पुलस्त्य का त्याग कर दिया और ब्रह्मा जी की सेवा में चले गए। इसे देख कर पिता पुलस्त्य को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपने ही शरीर से एक ऋषि को उत्पन्न किया। पुलस्त्य के आधे शरीर से जो दूसरा द्विज उत्पन्न हुआ वो ऋषि विश्रवा के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ।

पुलस्त्य का आधा भाग विश्रवा और पुलस्त्य के पुत्र वैश्रवण के बीच शत्रुता भी शुरु हो गई। वैश्रवण चूंकि अपने पिता पुलस्त्य का त्याग कर चुका था और अपने दादा ब्रह्मा जी की सेवा करता था , तो ब्रह्मा जी ने उस पर प्रसन्न होकर उसे अमरत्व प्रदान कर दिया। ब्रह्मा जी ने अपने पोते वैश्रवण को धन का स्वामी और लोकपाल भी बना दिया। ब्रह्मा जी ने वैश्रवण की मित्रता ब्रह्मा जी से करा दी और वैश्रवण संसार में कुबेर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ब्रह्मा जी ने अपने पोते वैश्रवण यानि कुबेर को इच्छानुसार संसार में कहीं उड़ कर जाने वाला पुष्पक विमान भी दे दिया। ब्रह्मा जी ने वैश्रवण को यक्षों का स्वामी बना कर उसे ‘राजराज’ की पदवी भी दे दी।

महाभारत में रावण के जन्म की कथा

महाभारत के वन पर्व में रावण के जन्म की कथा भी दी गई है। जब ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र ऋषि पुलस्त्य के पुत्र वैश्रवण या कुबेर को धन का स्वामी बना कर उसे लंका का राजा बना दिया और पुष्पक विमान भी दे दिया। तब ऋषि पुलस्त्य के शरीर के आधे भाग से प्रगट हुए ऋषि विश्रवा की कुबेर या वैश्रवण से शत्रुता हो गई। लेकिन कुबेर के लिए तो ऋषि विश्रवा ऋषि पुलस्त्य के शरीर के आधे भाग ही थे इसलिए पिता के समान थे। अपने पिता विश्रवा से अपनी शत्रुता समाप्त करने के लिए वैश्रवण ने उनकी सेवा में तीन राक्षसियों को भेजा जिनके नाम थे – पुष्पोत्कटा, राका और मालिनी।

महाभारत ग्रंथ के अनुसार ऋषि विश्रवा इन तीनों राक्षसियों की सेवा से प्रसन्न हो गए और पुष्पोत्कटा से रावण और कुंभकर्ण का जन्म हुआ। मालिनी से विश्रवा को विभीषण जैसा धर्मात्मा पुत्र पैदा हुआ जबकि राका से शूर्पणखा नामक राक्षसी पुत्री और खर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।

रावण की माँ का नाम क्या था?

महाभारत ग्रंथ और वाल्मीकि रामाय़ण मे दी गई कुबेर और रावण की कथाओं में बहुत अंतर दिखता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कुबेर ऋषि विश्रवा का ही पुत्र था। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋषि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा थे न कि उनके शरीर  के आधे भाग से उत्पन्न ऋषि। रामायण के अनुसार कुबेर या वैश्रवण ऋषि विश्रवा के ही पुत्र थे और रावण कुबेर का सौतेला भाई था। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में दी गई कथा के अनुसार रावण की माँ का नाम कैकसी था और वो राक्षस सुमाली की पुत्री थी। सुमाली ने अपनी पुत्री को विश्रवा के पास भेजा था जिससे कैकसी से विश्रवा को रावण , कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण जैसी संतानें प्राप्त हुईँ। वाल्मीकि रामाय़ण के अनुसार ये सभी कैकसी के ही पुत्र थे। कुबेर या वैश्रवण विश्रवा की पहली पत्नी से उत्पन्न संतान थे।

महाभारत में रावण के तपस्या की कहानी

महाभारत के रामोपाख्यान में रावण , कुंभकर्ण और विभीषण के द्वारा तपस्या कर वरदान पाने की कथा भी आती है। महाभारत के वन पर्व के सर्ग 274(गीता प्रेस संस्करण) में ये कथा आती है कि एक बार रावण, कुंभकर्ण और विभीषण अपने पिता विश्रवा के साथ गंधमादन पर्वत पर बैठे हुए थे तभी कुबेर वहाँ पुष्पक विमान से आए। ये देख कर इन तीनों ने भी ब्रह्मा जी से वरदान मांगने के लिए तपस्या की।

रावण ने कठोर तपस्या कर अपने सिरों की आहुति अग्नि में दे दी जिससे ब्रह्मा प्रसन्न हो गए और रावण से वरदान मांगने के लिए कहा। रावण ने ब्रह्मा से वरदान मांगा कि गंधर्व, देवता, असुर, यक्ष, राक्षस, सर्प, किन्नर तथा भूतों से उसकी कभी पराजय न हो। इस वरदान को देते हुए ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें मनुष्यों को छोड़कर किसी से भी भय नहीं होगा क्योंकि तुम्हारे लिए मनुष्यों से होने वाले भय का विधान मैंने पहले ही कर दिया है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा जी ने रावण को इच्छानुसार रुप धारण करने का भी वरदान दिया।

महाभारत में रावण की शक्ति को लेकर एक और विशेष बात बताई गई है कि वो इच्छानुसार अपनी शक्ति को भी बढ़ा लेता था। इस शक्ति के बल पर ही वो देवताओं और दैत्यों पर हमला कर उन्हें आतंकित करता था। कुंभकर्ण ने ब्रह्मा जी से बहुत काल तक सोने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी से विभीषण ने ये वरदान मांगा कि किसी भी संकट के समय भी उसके मन में पाप का विचार कभी न आए और उसे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने की शक्ति भी प्राप्त हो जाए। ब्रह्मा जी ने विभीषण को इसके अतिरिक्त अमरता का वरदान भी दे दिया।

रावण को कुबेर का शाप

महाभारत में रावण और कुबेर की शत्रुता का वर्णन वन पर्व के सर्ग 274 ( गीता प्रेस संस्करण) में मिलता है। ब्रह्मा से वरदान पाने के बाद रावण ने कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया। इसके बाद कुबेर गंधमादन पर्वत पर रहने लगे। रावण ने वहाँ भी जाकर कुबेर पर हमला किया और उनसे पुष्पक विमान छीन लिया। कुबेर ने रावण को शाप दिया कि वो कभी भी पुष्पक विमान की सवारी नहीं कर सकेगा। कुबेर ने ये भी शाप दिया कि जो रावण का वध करेगा वही पुष्पक विमान की सवारी करेगा। कुबेर ने कहा कि “तुमने अपने बड़े भाई का अपमान किया है, इसलिए तुम्हारा जल्द ही नाश हो जाएगा।“ वाल्मीकि रामायण में कुबेर के द्वारा रावण को ऐसे शाप दिये जाने की कथा नहीं मिलती है। न ही कुबेर के द्वारा रावण के विनाश के शाप की कोई कथा मिलती है।

महाभारत में मंथरा की कहानी

महाभारत के वन पर्व के सर्ग 275( गीता प्रेस संस्करण) के अनुसार रावण के अत्याचारों से त्रस्त होकर अग्निदेव को आगे कर देवतागण ब्रह्मा जी से पहुंचे और उनसे रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने का अनुरोध किया। ब्रह्मा जी ने कहा कि “मैंने चतुर्भुज भगवान विष्णु से अनुरोध किया था और मेरी प्रार्थना से भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार ले भी लिया है।“ इसके बाद ब्रह्मा जी  के आदेश से सभी देवता वानरों और रीक्षों की स्त्रियों से संतान पैदा करने का आग्रह किया।

वाल्मीकि रामायण के बालकांड में जब श्रीराम के जन्म के लिए दशरथ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कर रहे थे तब देवतागण ब्रह्मा के पास पहुंचे थे और वहाँ विष्णु जी भी आए थे और उन्होंने देवताओं को आश्वासन दिया था कि वो रावण का वध करने के लिए जन्म लेंगे। लेकिन महाभारत के अनुसार श्रीराम का जन्म पहले ही हो चुका था। ब्रह्मा जी ने दुदुंभी नाम की एक गंधर्वी को आज्ञा दी कि वो भी देवताओं के कार्य की सिद्धि के लिए मनुष्य लोक में जन्म ले। यही दुदुंभी पृथ्वी पर कुबड़ी मंथरा दासी के रुप में जन्मी। दुदुंभी को ब्रह्मा जी ने मन के समान गति से चलने का वरदान भी दिया और उसे वैर की आग फैलाने का काम सौंप दिया।

महाभारत में राम सीता विवाह और राम का वनवास

महाभारत के रामोपाख्यान में जो चौंकाने वाली बातें हैं वो हैं श्रीराम और सीता के विवाह के प्रसंग को इसमें नहीं बताया गया है। संक्षेप में सीधे श्रीराम के राज्याभिषेक और उनके वनवास जाने की कथा मिलती है जबकि रावण के जन्म की कथा और उसके पूर्वजों के बारे में विस्तार से बताया गया है। रामोपाख्यान में सीधे श्रीराम के राज्याभिषेक को योजना को मंथरा की सलाह से कैकयी विफल कर देती है और श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास चले जाते हैं। शूर्पणखा के नाक कान काटने की घटना और खर दूषण के वध को भी संक्षेप में दिखाया गया है।

शूर्पणखा के कहने पर रावण मारीच को स्वर्ण मृग बना कर जंगल ले जाता है और सीता का अपहरण कर लेता है। इस प्रसंग को महाभारत में थोडा विस्तार से बताया गया है। महाभारत के रामोपाख्यान पर्व के सर्ग 279 में रावण के द्वारा जटायु के वध की कथा दी गई है। लेकिन जहाँ वाल्मीकि रामाय़ण में जटायु श्रीराम को ये बताते हैं कि रावण ने उनकी पत्नी का हरण किया है वहीं महाभारत के रामोपाख्यान में वो सिर्फ दक्षिण दिशा का संकेत कर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

महाभारत में श्रीराम को कबंध राक्षस के द्वारा ये जानकारी मिलती है कि रावण ने उनकी पत्नी सीता का अपहरण किया है। कबंध ही श्रीराम को सुग्रीव की सहायता लेने के लिए सलाह देता है। कबंध पूर्व जन्म में विश्वावसु नामक गंधर्व था जो एक शाप की वजह से राक्षस में बदल गया था।

महाभारत मे वाली वध की कथा

महाभारत के रामोपाख्यान पर्व के सर्ग 279  280(गीता प्रेस संस्करण) में श्रीराम और हनुमान जी की मुलाकात और उनसे सुग्रीव की मित्रता के अलावा श्रीराम के द्वारा वाली के वध का वर्णन मिलता है। इसमें ये भी वर्णन मिलता है कि वाली के वध के बाद वाली की पत्नी सुग्रीव की पत्नी हो जाती है। महाभारत मे वर्णित रामायण कथा रामोपाख्यान में सीता की सहायता करने वाले एक राक्षस अविंध्य का भी वर्णन आता है जो समय समय पर सीता को श्रीराम के बारे में सूचित करता रहता है। अविंध्य सीता को त्रिजटा के द्वारा संदेश पहुंचाता है कि रावण बिना उनकी इच्छा के उन्हें अपनी पत्नी नहीं बना सकता है क्योंकि उसे कुबेर के पुत्र नलकूबर ने शाप दिया है।

महाभारत की रामायण कथा में त्रिजटा के स्वप्न की भी विशेष रुप से चर्चा है जिसमें वो बताती है कि किस प्रकार समय आने पर रावण श्रीराम के हाथों मारा जाएगा और लंका के सारे राक्षसों का वध श्रीराम की सेना करेगी।

महाभारत में रावण सीता संवाद

जहाँ वाल्मीकि रामाय़ण में रावण और सीता का संवाद विशेष रुप से सुंदरकांड में उस स्थान पर दिखाया गया है जब हनुमान जी अशोकवाटिका में पहुंच चुके होते हैं, लेकिन महाभारत में रावण सीता संवाद रामोपाख्यान के सर्ग 281(गीता प्रेस संस्करण) में पहले ही दिखा दिया गया है। महाभारत की रामाय़ण में रावण सीता जी को बताता है कि उसके पास 14 करोड़ पिशाचों की सेना है। 42 करोड़ यक्ष उसकी सेवा करते हैं। रावण के पास अप्सराएं भी नृत्य दिखाने आती थी। रावण स्वयं को पांचवां लोकपाल बताता है।

महाभारत में हनुमान जी द्वारा लंका दहन

महाभारत के वन पर्व के सर्ग 148( गीता प्रेस संस्करण) में हनुमान जी और भीमसेन की मुलाकात में हनुमान जी संक्षिप्त रुप से रामायण की कथा सुनाते हैं। हनुमान जी भीम को बताते हैं कि उन्होंने लंका दहन किया था। लेकिन न तो वन पर्व के सर्ग 148 और न ही रामोपाख्यान में हनुमान जी और सुरसा के प्रसंग का वर्णन मिलता है। रामोपाख्यान में तो हनुमान जी के द्वारा लंका दहन का वर्णन भी नहीं मिलता है। महाभारत के रामोपाख्यान में हनुमान जी जब लंका से लौट कर आ जाते हैं तब श्रीराम को ये बताते हैं कि उनकी मुलाकात सीता जी से हुई है और उन्होंने पहचान के रुप मे एक मणि भी दी है। रामोपाख्यान में हनुमान जी और रावण की मुलाकात का कोई वर्णन नहीं मिलता है।

महाभारत में विभीषण का वर्णन

महाभारत में विभीषण का वर्णन दो प्रसंगों में मिलता है। पहला प्रसंग महाभारत के सभा पर्व में मिलता है जब युधिष्ठिर के द्वारा आयोजित किये जाने वाले राजसूय यज्ञ से पूर्व राजाओं को युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार कराने के लिए अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव विभिन्न दिशाओं में दिग्विजय के लिए निकलते हैं।

दक्षिण दिशा में दिग्विजय का कार्य सहदेव और घटोत्कच को मिला था। घटोत्कच भीमसेन का पुत्र था जो राक्षसी हिंडिंबा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। घटोत्कच हनुमान जी की तरह आकाशमार्ग से समुद्र पार कर लंका जाता है  और वहां के राजा विभीषण के साथ मुलाकात करता है। विभीषण घटोत्कच को रावण का एक दिव्य धनुष देते हैं। महाभारत काल में भी लंका सोने की थी और घटोत्कच के वक्त भी लंका जाने के लिए रामसेतु मौजूद था।

महाभारत के रामोपाख्यान में विभीषण श्रीराम के द्वारा रामसेतु के निर्माण के बाद उनकी शरण में जाता है। वाल्मीकि रामायण में भी विभीषण श्रीराम के द्वारा रामसेतु का निर्माण करने के बाद लंका पहुंचने के बाद ही शरण में आता है। जबकि तुलसीदास रचित रामचरितमानस में विभीषण रामसेतु के निर्माण से पहले ही राम की शरण में जाते हैं। महाभारत के रामोपाख्यान में भी श्रीराम के द्वारा अगंद को रावण की सभा मे शांतिदूत बना कर भेजने की कथा मिलती है। वाल्मीकि रामाय़ण मे भी ये कथा आती है।

महाभारत में राम रावण का युद्ध

महाभारत के रामोपाख्यान में राम  रावण युद्ध का विस्तार के साथ वर्णन मिलता है। महाभारत के रामोपाख्यान पर्व से सर्ग 285 290 सर्गों ( गीता प्रेस, गोरखपुर संस्करण) में राम रावण युद्ध का वर्णन मिलता है।  रामोपाख्यान में कुछ ऐसी घटनाएं भी दी गई हैं जो वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलती हैं। महाभारत के रामोपाख्यान पर्व के अनुसार कुंभकर्ण का वध श्रीराम नहीं बल्कि लक्ष्मण जी करते हैं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार कुंभकर्ण का वध श्रीराम के द्वारा किया गया था।

महाभारत के रामोपाख्यान में इंद्रजीत मेघनाद के द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण को अपने बाणों से मूर्छित करने की कथा आती है। इस कथा में विभीषण श्रीराम और लक्ष्मण को अपने प्रजास्त्र के द्वारा होश में लाते हैं। जबकि वाल्मीकि रामायण में मेघनाद राम लक्ष्मण को नागपाश में बांध कर मूर्च्छित करता है और गरुड़ उन्हें नागपाश से मुक्त करते हैं। महाभारत की रामायण के अनुसार मेघनाद अपनी माया से अदृश्य हो जाता था और उसके बाणों को आते हुए कोई देख नहीं पाता था। इस समस्या का निराकरण विभीषण करते हैं जब वो कुबेर के द्वारा दिये गए अभिमंत्रित जल से वानरो और श्रीराम लक्ष्मण के नेत्रों को धोते हैं। इसके बाद राम लक्ष्मण और वानरगण  मेघनाद को अदृश्य अवस्था में भी देख लेते हैं।

महाभारत में रावण वध की कथा

महाभारत की रामायण रामोपाख्यान के सर्ग 290 में रावण वध की कथा आती है। श्रीराम ब्रह्मास्त्र से रावण का वध करते हैं। श्रीराम के बाण से रावण का सारा शरीर जलने लगता है और श्रीराम के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से रावण के शरीर के धातु, मांस और रक्त भी जल कर भस्म हो जाते हैं। रावण की राख का भी पता नहीं चलता है। जबकि वाल्मीकि रामायण में श्रीराम रावण का वध ब्रह्मास्त्र से करते तो हैं लेकिन उसका शरीर जलता नहीं है। बाद में श्रीराम के कहने पर विभीषण रावण के शरीर का दाह संस्कार करते हैं।

महाभारत में सीता की अग्नि परीक्षा

महाभारत के रामोपाख्यान पर्व के सर्ग 291( गीता प्रेस संस्करण) में सीता की अग्नि परीक्षा का वर्णन नहीं मिलता है। महाभारत में भी श्रीराम सीता के चरित्र पर संदेह करते हैं और सीता इस अपमान को सह नहीं पाती हैं। महाभारत के रामोपाख्यान में सीता अपने चरित्र की सत्यता की गवाही के लिए पंचतत्वों को साक्षी बनाती हैं। सीता कहती हैं कि अगर मैंने कोई पाप किया है तो वायुदेव मेरे प्राण ले लें। यदि मैंने कोई पाप किया है तो जल , आकाश, पृथ्वी .अग्नि और वायु मेरे प्राण ले लें। सीता के ऐसा कहने के बाद वायुदेवता, वरुण देवता, ब्रह्मा और दशरथ जी सीता के चरित्र की पवित्रता की गवाही देते हैं।

महाभारत में श्रीराम का राज्याभिषेक

महाभारत की रामायण में भी 14 वर्ष बाद श्रीराम वन से अयोध्या लौटते हैं और 11 हजार वर्षों तक अयोध्या का शासन संभालते हैं। महाभारत के अनुसार श्रीराम ने 10 अश्वमेध यज्ञ किये थे। महाभारत में रामायण की कथा वाल्मीकि रामायण के बाद कही जाने वाली सबसे प्राचीन रामकथा मानी जाती है।

author avatar
admin
See Full Bio

Recommended videos

इंडोनेशिया को ब्रह्मा के ज्वालामुखी से बचाने वाले गणेश: एक चमत्कारी सनातन रहस्य

इंडोनेशिया को ब्रह्मा के ज्वालामुखी से बचाने वाले गणेश: एक चमत्कारी सनातन रहस्य

25 VIEWS
September 8, 2025
मोदी की सत्ता अमरता की आयुर्वेदिक औषधि: पुतिन और शी जिनपिंग को मिला प्राचीन ज्ञान

मोदी की सत्ता अमरता की आयुर्वेदिक औषधि: पुतिन और शी जिनपिंग को मिला प्राचीन ज्ञान

9 VIEWS
September 8, 2025
बाबासाहेब अंबेडकर और हिंदू धर्म: एक अनकहा सच

बाबासाहेब अंबेडकर और हिंदू धर्म: एक अनकहा सच

3 VIEWS
September 8, 2025
श्री नारायण गुरु: सनातन धर्म के सुधारक और संरक्षक

श्री नारायण गुरु: सनातन धर्म के सुधारक और संरक्षक

8 VIEWS
September 8, 2025
भारत के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और मोदी की रणनीति

भारत के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और मोदी की रणनीति

11 VIEWS
August 29, 2025
Osho

Osho और America: एक दार्शनिक की अनकही कहानी

61 VIEWS
August 29, 2025
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms of Use

Copyright 2024

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • Home
  • Categories
    • Dharm Gyan
    • Hindu Mythology
    • Myth & Truth
    • Sanatan Ecosystem
    • Sanatan Glory
    • Sanatan Lifestyle
    • Science & Spirituality
    • The Karma English
  • Contact Us
  • About Us

Copyright 2024