सनातन हिंदू धर्म के महान ग्रंथ वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। राम और रावण का युद्ध दस दिनों तक चला था। लेकिन युद्ध के पहले दिन रावण ने श्रीराम को पराजित कर दिया था। बंगाल के महान कवि कृतिवास रचित बंगला रामायण के अनुसार रामायण में माँ दुर्गा का पराक्रम ही एक वजह थी जिससे रावण के समक्ष श्रीराम को पराजित होना पड़ा था। कृतिवास रचित बंगाली रामायण के अनुसार रावण को माँ दुर्गा से ये वरदान मिला था कि प्रत्येक युद्ध में रावण की सहायता के लिए स्वयं युद्ध क्षेत्र में प्रगट होकर रावण की सहायता करेंगी। इस रामकथा के अनुसार श्रीराम और रावण के युद्ध के प्रथम दिन रावण को गोद में लेकर साक्षात देवी दुर्गा प्रगट हो गईं और माँ दुर्गा की शक्ति के आगे श्रीराम को पराजय का सामना करना पड़ा।
रावण को मिला था देवी दुर्गा से वरदान
कृतिवास रचित बांग्ला रामायण के अनुसार रावण महान शिव भक्त था। लेकिन जब भगवान शिव ने श्रीराम के साथ होने वाले युद्ध में रावण की सहायता करने से इंकार कर दिया था तो रावण ने माँ पार्वती से प्रार्थना की थी। रावण की इस प्रार्थना को सुन कर रावण को मिला देवी दुर्गा से वरदान कि वो उसकी युद्ध के दौरान सहायता करेंगी। यही वजह थी कि जब युदध के पहले दिन रावण श्रीराम के सामने युद्ध करने के लिए आया तो मां दुर्गा ने उसकी सहायता की।
रावण से पराजित राम ने की दुर्गा की आराधना
रावण से पराजित होने के बाद चिंतित श्रीराम की सहायता के लिए ब्रह्मा जी आते है और उन्हें सलाह देते हैं कि वो भी देवी दुर्गा की अराधना कर उन्हें अपने पक्ष में कर लें तभी रावण से जीत संभव है। ब्रह्मा जी के बताए अनुसार षष्ठी तिथि के सायंकाल से राम ने की दुर्गा की आराधना। श्रीराम मां दुर्गा की आराधना-पूजा में लीन रहते हैं। धीरे-धीरे सप्तमी, अष्टमी का दिन भी बीत जाता है लेकिन उस पूजा का कोई असर नहीं होता है। श्रीराम को संदेह होने लगता है कि माँ दुर्गा उनकी पूजा को स्वीकार नहीं कर रही हैं। ऐसे में वो फिर से निराश होने लगते हैं।
विभीषण ने की श्रीराम की सहायता
ऐसे समय में विभीषण ने की श्रीराम की सहायता वो कहते हैं कि माँ दुर्गा को नील कमल प्रिय हैं। श्रीराम अगर 108 नील कमलों को माँ दुर्गा की पूजा में अर्पित करें तो देवी दुर्गा प्रसन्न हो जाएंगी। लेकिन दुलर्भ नीलकमल आएंगे कैसे ? यह सोचकर राम जी चिंता में पड़ जाते हैं, तब हनुमान जी सामने आते हैं और 108 नीलकमल का तुरंत इंतजाम कर देते हैं।
श्रीराम ने माँ दुर्गा को किया प्रसन्न
श्रीराम माँ दुर्गा की पूजा करते हुए उनके चरणों में नील कमल समर्पित करने लगते हैं, तभी माँ दुर्गा उनकी परीक्षा लेने के लिए छल करती हैं और एक कमल गायब कर देती हैं। श्रीराम जब 107 कमल समर्पित कर देते हैं और 108 वें नील कमल के लिए हाथ बढ़ाते हैं तो उसे गायब पाते है। राम फिर निराश हो जाते हैं, उन्हें लगने लगता है कि उनकी पूजा कभी सफल नहीं होगी और वो रावण को कभी जीत नहीं पाएंगे।
ऐसा सोच कर श्रीराम की आंखो में आंसू आ जाते हैं। श्रीराम रोते हुए माँ दुर्गा की प्रार्थना करने लगते है और उनसे दया करने की प्रार्थना करने लगते हैं। लेकिन माँ दुर्गा श्रीराम पर करुणा नहीं करती हैं। विलाप करते करते श्रीराम को अचानक एक युक्ति आती है। उन्हें याद आता है कि लोग उन्हें नील कमल जैसे नयनों वाला कहते हैं, तब वे 108वें कमल के रूप में अपनी आंखों की समर्पित करने का मन बना लेते हैं। लेकिन जैसे ही श्रीराम ने अपनी एक आँख निकालने के लिए बाण निकाला। तभी माँ दुर्गा प्रगट हो गईं और उन्होंने श्रीराम का हाथ पकड़ लिया।माँ दुर्गा ने कहा कि – “हे जगत के पालक प्रभु श्री राम आपका संकल्प पूरा हुआ और आपको अपने नेत्र मुझे समर्पित करने की जरुरत नहीं हैं आपकी अब रावण के विरुद्ध विजय होगी।“ तो इस तरह श्रीराम ने माँ दुर्गा को किया प्रसन्न और रावण पर विजय प्राप्त की।
नवमी तिथि को विजय का आशीर्वाद प्राप्त होते ही राम की सेना में खुशी छा जाती है। शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा रावण का पक्ष छोड़कर भगवान राम के पक्ष में आ जाती हैं। और दशमी तिथि को भगवान राम रावण का वध कर देते हैं कहा जाता है कि चंडी पूजा के दौरान रावण ने एक गलती कर दी थी जिससे उससे मां दुर्गा का पूर्ण साथ नहीं मिल पाया। सहस्र चंडी पाठ के दौरान रावण ने गलती से प्रथम मंत्र के ‘हरिणी’ शब्द को ‘कारिणी’ शब्द पढ़ दिया जिससे मंत्र का अर्थ बदल गया। और उसे भगवान राम के हाथों मरना पड़ा।