शिव महापुराण की एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण से हारे विष्णु भगवान दरअसल ऋषि दधिचि के सामने भगवान विष्णु को पराजित होना पड़ा था। कथा ये है कि क्षुव नाम के एक राजा और ऋषि दधिचि में एक बार इस बात को लेकर बहस हो गई कि ब्राह्म्ण और राजा में कौन श्रेष्ठ होता है। दोनों के बीच लड़ाई इस कदर बढ़ गई कि राजा क्षुव ने दधिचि का सिर काट दिया। ऋषि दधिचि ने मरने से पहले ऋषि शुक्राचार्य का स्मरण किया तो अपनी मृतसंजीवनी विद्या से ऋषि शुक्राचार्य ने उन्हें फिर से जीवित कर दिया।
दैत्य गुरु शुक्राचार्य को मृतसंजीवनी विद्या भगवान शंकर ने वरदान में दी थी। इस विद्या से वो महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग कर किसी भी मरे हुए इंसान को जीवित कर देते थे। ऋषि दधिचि को जीवित करने के बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें भगवान शिव की तपस्या करने का आदेश दिया। ऋषि दधिचि ने भगवान शिव को प्रसन्न कर तीन वरदान मांग लिये। पहला वरदान था कि उनकी हड्डियाँ वज्र के समान कठोर हो जाएं। भगवान शिव से ऋषि दधिचि ने दूसरा वरदान ये मांगा कि उन के उपर किसी भी अस्त्र शस्त्र का प्रभाव न पड़े और कोई भी उनका वध न कर सके। भगवान शिव ने दधिचि को तीसरा वरदान ये दिया कि वो कभी भी किसी के सामने कमजोर साबित न हों। ये तीनों वरदान पा कर ऋषि दधिचि ने राजा क्षुव को युद्ध के लिए ललकारा और उसे पराजित कर दिया। राजा क्षुव भगवान विष्णु के उपासक थे। उन्होंने भगवान विष्णु से वरदान मांगा कि वो ऋषि दधिचि को युद्ध में पराजित कर उनका बदला लें।
पहले तो भगवान विष्णु ने राजा को मना किया कि भगवान शंकर के भक्त दधिचि को वरदान मिला है कि वो किसी से पराजित नहीं हो सकते हैं और न ही कोई उनका वध कर सकता है। फिर भी राजा के कहने पर भगवान विष्णु ने दधिचि को कहा कि वो राजा से हार मान लें और राजा को अपने से बड़ा मान लें। इस बात पर दधिचि को क्रोध आ गया और उन्होंने भगवान विष्णु का अपमान भी कर दिया। अपने अपमान से क्रोधित होकर जब विष्णु जी ने ऋषि दधिचि पर अपने सुदर्शन चक्र से प्रहार किया तो ऋषि दधिचि ने विष्णु जी के सुदर्शऩ चक्र को ही रोक दिया। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी नहीं चला इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने माया से अपना विश्वरुप दिखाया तो दधिचि ने भी अपने शरीर को इतना बड़ा कर लिया कि उनके शरीर में सारा ब्रह्मांड समा गया, भगवान विष्णु की माया भी नहीं चली। भगवान विष्णु ने अपने कई अस्त्र शस्त्रों से दधिचि को पराजित करने की कोशिश की लेकिन भगवान विष्णु ब्राह्म्ण ऋषि दधिचि को पराजित करने में असफल हो गए।
बाद में राजा क्षुव ने ही ऋषि से सामने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। लेकिन ऋषि का क्रोध कम नहीं हुआ और भगवान विष्णु को मिला श्राप उन्होंने भगवान विष्णु सहित सभी देवताओं को श्राप दे दिया कि वो भगवान शिव के गणों से भविष्य में पराजित होंगे। यही हुआ भी, जब भगवान शिव की पहली पत्नी देवी सती बिन बुलाए अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में चली गईं थी तो विष्णु भक्त प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव का इसलिए अपमान कर दिया क्योंकि वो भगवान शिव से चिढ़ता था। अपने पति का अपमान देवी सती सह नहीं सकीं और उन्होंने दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया।
अपनी पत्नी देवी सती के आत्मदाह की खबर सुन कर महादेव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने जटा से बाहुबली वीरभद्र को उत्पन्न किया। वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस शुरु कर दिया और सभी देवताओं को पराजित कर उन्हें मारना पीटना शुरु कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर जब भगवान विष्णु वीरभद्र से युद्ध करने के लिए पहुंचे तो उन दोनों के बीच प्रलंयकारी युद्ध शुरु हो गया। शिव के गण वीरभद्र पर भगवान विष्णु ने पहले तो सुदर्शऩ चक्र चलाया जिसे वीरभद्र ने हवा में ही रोक दिया। इसके बाद क्रोध में भगवान विष्णु ने अपने महाशक्तिशाली शारंग धनुष को चलाया तो वीरभद्र ने उसके भी तीन टुकड़े कर दिये। भगवान विष्णु को वीरभद्र से पराजित होना पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि पूर्व काल में ऋषि दधिचि ने उन्हें भगवान शिव के गण से पराजित होने का श्राप दिया था।
बाद में भगवान शिव की कृपा से ये युद्ध रोका गया औऱ भगवान शिव ने प्रजापति दक्ष को फिर से जीवित कर दिया। लेकिन एक शिव भक्त ब्राह्म्ण ऋषि की वजह से भगवान विष्णु को दो बार पराजित होना पड़ा ये सनातन धर्म की प्रसिद्ध कथा जरुर बन गई।