सनातन धर्म में हर प्रकार की देवियों का जिक्र आता है सृष्टी की रचना करने वाली, संसार का पलन-पोषण करने वाली, पृथ्वी का संहार करने वाली लेकिन ऐसी कौन सी देवी हैं जिनके मंत्र का ध्यान सभी देवता और भगवान भी करते हैं। सनातन धर्म में गायत्री मंत्र को सबसे पवित्र और सबसे महान मंत्र कहा गया है गायत्री मंत्र जिन देवी को समर्पित है उनको वेद की माता भी कहा जाता है गायत्री माता की कहानी को लेकर ऐसा मानना है कि वेदों की उत्पत्ति गायत्री देवी से ही हुई है वेदों को सभ्यता और संस्कारों की पुस्तकें कहा गया है अर्थात् सभ्यता की शुरुआत वेदों से ही मानी जाती है पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिशक्ति का नाम ही गायत्री है माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना का कार्य शुरु किया तो गायत्री देवी से विवाह किया था ताकि संसार में ज्ञान, संस्कार, सभ्यता भी विकसित हो जो कि वेदों से जगत में आई और गायत्री माता ने वेदों की रचना करके संसार को ज्ञान दिया इसलिए गायत्री माता को वेदमाता कहा जाता है अथर्व वेद में गायत्री को वेदमाता या वेदवाणी कहा गया है-
यास्ते विशस्तपसः संबभूवुर्वत्सं गायत्रीमनु ता इहागुः।
तास्त्वा विशन्तु मनसा शिवेन संमाता वत्सो अभ्येSतु रोहितः ॥10
(अथर्ववेद,काण्ड-13,सूक्त-1)
जो प्रजाएँ तेरे लिये परमेश्वर से उत्पन्न हुई हैं, वे सब बड़े उपदेशक और पूजा योग्य वेदमाता गायत्री के पीछे-पीछे वहाँ आई हैं। वे सब तरह से आनन्दकारी मन से तुझ में प्रवेश करें, माता समान बड़ा उपदेशक सबका उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर सब ओर से प्राप्त हो।
अथर्ववेद के इस मंत्र में कहा गया है कि माता गायत्री वेदों की माता हैं तथा वेद की रचना जिससे हुई है वो गायत्री देवी ही हैं।
गायत्री मंत्र सभी दुखों का निवारण मंत्र और गायत्री को ब्रह्म् के रूप में पूजा जाता है क्योंकि गायत्री मंत्र की उत्पत्ति ब्रह्म के साथ ही ब्रह्माण्ड में उत्पन्न हो गईं थी कहा जाता है कि ब्रम्हा सृष्टि की रचना करने के बाद ही नष्ट हो जाते हैं, उसके बाद उनकी शक्ति गायत्री ही सृष्टि के निर्माण का कार्य अपने हाथो में ले लेती हैं और यज्ञ व्यवस्था को स्थापित करती हैं जिनसे सृष्टि का निर्माण और संचालन आगे बढ़ता है गायत्री मंत्र के तीनों पदों से ही तीनो लोकों और त्रिदेवों का जन्म बताया गया है-
तदेतत् ते समाख्यातं तथ्यं ब्रह्म सनातनम्।
हृदयं सर्वभूतानां श्रुतिरेषा सनातनी। ।76
(महाभारत,अनुशासनपर्व,अध्याय-150)
इस श्लोक से भीष्म जी युधिष्ठिर को बता रहे हैं गायत्री मंत्र की सच्चाई ते ये है कि यह मंत्र सत्य एवं सनातन ब्रह्म का रूप है सभी भूत और वेदों की उत्पत्ति इसी से हुई है।
गायत्री मंत्र की शक्ति वेदों के अनुसार सभी यज्ञों का फल इसीमें ही छिपा हुआ है केवल गायत्री देवी के इस मंत्र का ध्यान कर लेने से ही संसार के सभी दुखों का नाश हो जाता है और त्रिदेव भी इस मंत्र का जाप करते हैं गायत्री मंत्र ऋग्वेद और यजुर्वेद दोनो में देखने को मिलता है-
भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यम्भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयत् ॥3
(यजुर्वेद,अध्याय-36)
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥10
(ऋग्वेद,मण्डल-03,सूक्त-62)
हम लोग कर्मकाण्ड की विद्या उपासनाकाण्ड की विद्या और ज्ञानकाण्ड की विद्या को संग्रहपूर्वक पढ़के जो हमारी धारणावती बुद्धियों को प्ररेणा करे, उस कामना के योग्य समस्त ऐश्वर्य के देनेवाले परमेश्वर के उस इन्द्रियों से न ग्रहण करने योग्य परोक्ष स्वीकार करने योग्य सब दुःखों के नाशक तेजःस्वरूप का ध्यान करें।
गायत्री माता सृष्टि की शुरुआत से ही संसार का पालन–पोषण रही रही हैं और आज भी सर्वश्रेष्ठ देवी के रूप में गायत्री देवी को पूजा जाता है यजुर्वेद में कहा गया है कि गायत्री देवी का गायत्री मंत्र सभी दुखों का नाश करने वाला है।
भागवद्गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है कि-
गायत्रीछन्दसामहम्। ।1-35
छन्दों में मै गायत्री हूं
श्रीकृष्ण के साथ-साथ भगवान राम ने अपनी दिनचर्या में सबसे पहला स्थान गायत्री को ही दिया था। वाल्मीकिरामायण में कहा गया है कि श्रीराम सुबह स्नान करके सबसे पहले गायत्री मंत्र का जाप करते हैं-
तस्यर्षेः परमोदारं वचः श्रुत्वा नरोत्तमौ।
स्नात्वा कृतोदकौ वीरौ जपेतुः परमं जपम्। ।3
(वाल्मीकिरामायण,वालकाण्ड,सर्ग-23)
महर्षि विश्वामित्र के द्वारा जगाए जाने पर तथा उनकी मधुर वाणी सुनने के बाद दोनो भाई ने स्नान करके देवताओं का तर्पण किया और फिर परम उत्तम जपनीय मंत्र गायत्री का जाप करने लगे।
वाल्मीकिरामायण का श्लोक बता रहा है कि भगवान राम और लक्ष्मण भी सुबह स्नान आदि करके सबसे उत्तम गायत्री का जाप किया करते थे।
गायत्री मंत्र का ध्यान और जप करने से भगवान का सामीप्य प्राप्त होता है लेकिन महाभारत में कहा गया है कि गायत्री मंत्र को सुनने से भी परमगति प्राप्त होती है-
न ते विद्यन्ते दुखं गच्छन्ति परमां गतिम्।
ये श्रृण्वन्ति महद् ब्रह्म सावित्रुगुणकीर्तनम्।।72
(महाभारत,अनुशासनपर्व,अध्याय-150)
जिस घर में रहने वाले लोग केवल गायत्री मंत्र के कीर्तन को सुनते भी हैं उन्हे कभी दुख नहीं होता तथा वे परमगति को प्राप्त होते हैं।
वाल्मीकी रामायण के 24 हजार श्लोकों को गायत्री मंत्र के शब्दों पर ही रचा गया है वेदव्यास जी ने भी श्रीमद्भागवतम् की रचना का आधार गायत्री मंत्र से ही लिया है देवीभागवतम् की रचना का आधार भी गायत्री ही है जिस प्रकार मां गंगा हमारे इस लोक के पापों को नष्ट कर देती हैं उसी प्रकार गायत्री मंत्र हमारी आत्मा की अशुद्धियों को दूर कर हमें संसार सागर से मुक्त कर देता है गायत्री मंत्र भगवान सूर्य के आदि स्वरुप सविता को समर्पित किया गया है अर्थात् सूर्य जो इस जगत को उजाला कर सृष्टि की गति को रहने योग्य बनाते हैं उसकी शक्ति भी उन्हें देवी गायत्री से ही मिलती है कहा जाता है कि जो तीनों संध्याओं में गायत्री की उपासना करता है वो अपने पिछले, वर्तमान और अगले जन्मों के सभी पापों से खुद को मुक्त कर लेता है।