क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण के पूरे वँश का समूल नाश किसकी वजह से हुआ था। क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण के ही एक बेटे की वजह से उनके पूरे परिवार का नाश हो गया। आप कहेंगे कि हमने तो सुना है कि गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया था कि महाभारत के युद्ध के 36 वर्ष बाद श्रीकृष्ण के समूचे कुल का नाश हो जाएगा। तो हम आपको बता दे कि आप सत्य कह रहे हैं लेकिन इसके अलावा श्रीकृष्ण का एक बेटा भी था जिसकी वजह से उनके पूरे कुल का नाश हो गया। लेकिन उस कहानी को जानने से पहले हमें गांधारी के उस श्राप की कहानी भी जान लेनी चाहिए जो उन्होंने श्रीकृष्ण को दी थी। महाभारत के स्त्री पर्व में महाभारत के युद्ध के बाद जब श्रीकृष्ण पांडवों के साथ गांधारी से मिलने के लिए जाते हैं तो गांधारी इस युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को कसूरवार ठहरा देती है और उन्हें श्राप दे देती है-
यस्मात् परस्परं घ्नन्तो ज्ञातय: कुरुपाण्डवा: ।
उपेक्षितास्ते गोविन्द तस्माज्ज्ञातिन् वधिष्यसि ।। 43।।
गांधारी कहती हैं। तुमने आपस में मारकाट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवों की उपेक्षा की है। इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुऔं का विनाश का डालोगे । आज से छत्तीसवाँ वर्ष बीतने बाद तुम्हारे कुटुम्ब और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेगें । तुम सब की आँखो से अपरिचित और दूर होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे औऱ निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे ।
दरअसल गांधारी ही नहीं महाभारत में कई लोगों को लगता था कि श्रीकृष्ण चाहते तो महाभारत का युद्ध ही नहीं होता। लेकिन आपको तो पता ही है कि भगवान श्रीकृष्ण का अवतार ही दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। इसलिए दुष्ट कौरवो का नाश तो होना तय ही था। फिर भी गांधारी के इस श्राप को श्रीकृष्ण पूरे आदर के साथ स्वीकार कर लेते हैं।
कैसे हुआ अंत श्री कृष्ण के वंश का
अब बारी थी इस श्राप के सत्य होने की जो महाभारत के युद्ध के 36वें साल में होना था। इसके लिए कोई न कोई वजह तो बननी ही थी। तो यदुवँश के नाश की वजह कोई और नहीं बल्कि श्रीकृष्ण का बेटा साम्ब बन गया। साम्ब भगवान श्रीकृष्ण और उनकी एक पत्नी जाम्बवंती का पुत्र था। महाभारत, हरिवँश पुराण और दूसरे ग्रँथों से पता चलता है कि श्रीकृष्ण ने जाम्बवंती के कहने पर पुत्र प्राप्ति के लिए 12 वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी। भगवान शिव ने श्रीकृष्ण को वरदान देते हुए कहा था कि मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रुप में जन्म लूँगा।
अब भगवान शिव तो संहार के देवता हैं। जैसे ही भगवान शिव ने भगवान श्रीकृष्ण को ये वरदान दिया , तो भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि शिव यदुवँश के संहार के लिए ही उनके पुत्र के रुप में जन्म लेंगे। लेकिन यहाँ भी भगवान श्रीकृष्ण ने शिवजी के इस वरदान को स्वीकार कर लिया, भले ही उन्हें पता था कि इससे यदुवँश के संहार की शुरुआत हो जाएगी।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव अपने अँशावतार से श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब के रुप में जन्म लेते हैं। साम्ब बचपन से ही बहुत चंचल स्वभाव के थे। हरिवँश पुराण की कथा के अनुसार साम्ब अक्सर भगवान श्रीकृष्ण की तरह वेश भूषा पहन कर अपनी माताओं के साथ मजाक करते रहते थे। वो कई बार स्त्रियों का वेश धारण कर श्रीकृष्ण की पत्नियों के महल में घुस जाते थे जिसकी वजह से श्रीकृष्ण की पत्नियाँ नाराज़ हो जाती थी। उन्होंने कई बार श्रीकृष्ण से इसकी शिकायत भी की ।
एक बार तो भगवान श्रीकृष्ण ने साम्ब को उनकी हरकतों की वजह से कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप भी दे दिया था। बाद में साम्ब ने जब माफी मांगी तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान सूर्य की अराधना का उपाय बताया था। साम्ब ने सूर्य की तपस्या कर अपने कुष्ठ रोग को दूर किया था। इसके बावजूद साम्ब के नटखट स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया। श्रीकृष्ण जानते थे कि साम्ब ही उनके पूरे यदुवंश के नाश की वजह बनने वाला है। महाभारत के युद्ध के पैंतीस साल बीत चुके थे और गांधारी के श्राप के अनुसार यदुवंश के विनाश में सिर्फ एक साल बचा हुआ था। उसी वक्त साम्ब ने कुछ ऐसा कर दिया जिसने यदुवँश के विनाश को निश्चित कर दिया।
श्री कृष्ण अपने वंश का विनाश क्यों नहीं रोक पाये था
हुआ ये था कि जब श्रीकृष्ण और बलराम भैया द्वारिका से बाहर थे तो उसी वक्त महर्षि विश्वामित्र , कण्व और तपस्या के धनी देवर्षि नारद द्वारका में पहुंचते हैं। साम्ब की तो आदत थी कि वो किसी के साथ भी मजाक करने लगते थे। तो उन्होंने इन महान ऋषियों के साथ भी कुछ मजाक करने की ठान ली । साम्ब ने एक बार फिर स्त्री का वेष बना लिया और अपने दोस्तों के साथ घूँघट डाल कर इन ऋषियों के पास चले गए। इस बार साम्ब ने अपने पेट के उपर एक लोहे का मूसल भी बांध कर उसे कपड़ों से ढक लिया था ताकि वो एक गर्भवती औरत की तरह दिखें। इसके बाद साम्ब के दोस्तों ने श्राप और वरदान देने की शक्ति रखने वाले ऋषियों के साथ मजाक करना शुरु कर दिया। साम्ब के एक मित्र ने ऋषियों से पूछा कि गर्भवती के वेष में खड़े साम्ब को पुत्र होगा या पुत्री।
अंतर्यामी ऋषिगण इस उपहास को समझ गए और उन्होंने इसे अपना अपमान मान लिया। ऋषियों ने साम्ब को श्राप दे दिया कि इसके पेट से एक लोहे का मूसल पैदा होगा जो यदुवँश के नाश की वजह बनेगा। कुछ महीनों के बाद साम्ब के पेट से एक मूसल पैदा हुआ। तब यादवों में भयंकर डर समा गया और वो सभी यादवों के राजा उग्रसेन के पास पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई। उग्रसेन ने इस मूसल को जला कर इसकी राख को समुद्र के किनारे फिंकवा दिया।
जब श्रीकृष्ण द्वारिका लौटे तो उन्हें ये सारी कहानी पता चली। श्रीकृष्ण जानते थे कि अब गांधारी के श्राप के सच होने का वक्त आ चुका है। यदुवंश को ऋषियों का शाप भारी पड़ गया। श्रीकृष्ण ने इस श्राप के प्रभाव को कम करने के लिए द्वारिका में मदिरा पीने पर रोक लगवा दी क्योंकि श्रीकृष्ण जानते थे कि शराब की वजह से ही अक्सर लड़ाइयाँ शुरु हो जाती हैं।
लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, एक दिन सभी यादव राजकुमार द्वारिका के पास प्रभास क्षेत्र में तीर्थ करने के लिए गए थे तभी वहाँ सभी ने श्रीकृष्ण के आदेश को भुला कर चोरी चुपके मदिरा पी ली। मदिरा के नशे में सभी यादव कुमार आपस में एक दूसरे के साथ लड़ाई करने लगे। समुद्र किनारे प्रभास क्षेत्र में उसी जगह पर ये लड़ाई शुरु हुई जहाँ साम्ब के पेट से निकले मूसल को जला कर उसकी राख को बिखेर दिया गया था। जिस जगह पर उस राख को बिखेरा गया था वहाँ अब लंबी-लंबी घास पनप गई थी। यादवों के पास उस वक्त हथियार नहीं थे तो उन्होंने उन्हीं घास के पौधों को उखाड़ कर एक दूसरे को मारना शुरु कर दिया। ऋषियों के श्राप की वजह से घास के वे पौधे चमत्कारिक रुप से लोहे की मूसल के रुप में परिवर्तित हो गए और इसके बाद सभी यादवों ने एक दूसरे को उन मूसलों से मार डाला।
इसके बाद लोहे के मूसल के एक टुकड़े को एक मछली खा लेती है। इस मछली को एक मछुआरा जाल में फंसा लेता है और उसे एक शिकारी को बेच देता है। इस शिकारी ने जब मछली को खाने के लिए काटा तो उसके पेट से मूसल का टुकड़ा मिला । इसके बाद शिकारी ने उस मूसल के टुकड़े से अपना एक बाण बना लिया।
इधर जब यादवों के विनाश की खबर बलराम भैया और श्रीकृष्ण को मिलती हैं तो बलराम भैया समाधि के जरिए अपनी देह का त्याग कर देते हैं। इस विनाश से दुखी श्रीकृष्ण एक जंगल के पेड़ के नीचे बैठे होते हैं तो वहाँ वही शिकारी आ जाता है जिसने मूसल के टुकड़े से बाण का निर्माण किया था । दूर से उस शिकारी को श्रीकृष्ण के कोमल पैर किसी हिरण के बच्चे की तरह दिखते हैं। शिकारी अपने उसी बाण तो अपने धनुष से चला देता है जो श्रीकृष्ण के पैरों में लग जाते हैं। इसके बाद श्रीकृष्ण अपने इस सांसारिक देह का त्याग कर अपने परमधाम चले जाते हैं।