आज हम एक ऐसे सत्य को उजागर करने जा रहे हैं, जो शायद आपको हैरान कर दे। चीन (China), जो आज नास्तिकता का प्रतीक बन चुका है, कभी सनातन धर्म (Sanatan Dharma) और बौद्ध धर्म का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था। जी हाँ, वह चीन, जो आज दलाई लामा और बौद्ध धर्म के खिलाफ खड़ा है, कभी हिंदुओं और बौद्धों के एक साथ पूजा करने का गवाह था। इस आर्टिकल में हम खुलासा करेंगे कि कैसे चीन ने अपनी सनातनी और बौद्ध विरासत को छिपाया, और कैसे भारत ने अपनी सांस्कृतिक ताकत से दुनिया को जवाब दिया है। तो चलिए, इस रोमांचक सफर को शुरू करते हैं!
चीन ( China ) का आध्यात्मिक अतीत: सनातन धर्म ( Sanatan Dharma ) का संगम
क्या आप विश्वास करेंगे कि जिस चीन को आज हम एक नास्तिक देश के रूप में जानते हैं, वह कभी आध्यात्मिकता का गढ़ था? हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी यहाँ एक साथ रहते थे, अपने-अपने ईश्वर की पूजा करते थे, और एक साझा सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा थे। हमारे प्राचीन ग्रंथ, जैसे महाभारत, में चीन का उल्लेख मिलता है, जो इसे एक आध्यात्मिक महत्व के स्थान के रूप में दर्शाता है। ये ग्रंथ केवल कहानियाँ नहीं, बल्कि इतिहास के दस्तावेज हैं, जिन्हें पुरातात्विक साक्ष्य भी समर्थन देते हैं।
चीन के क्वानझोउ (Quanzhou) शहर में मौजूद मंदिर और पुरातात्विक स्थल इस सत्य के जीवंत प्रमाण हैं। यहाँ के मंदिरों में भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान नरसिंह और भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ एक साथ देखने को मिलती हैं। यह दर्शाता है कि हिंदू और बौद्ध धर्म के लोग यहाँ शांति और एकता के साथ रहते थे। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन मंदिरों में एक ऐसी मूर्ति भी है, जो चार भुजाओं वाली माता दुर्गा से मिलती-जुलती है। चीन में इसे बौद्ध बोधिसत्व गुआनयिन (Guanyin) के नाम से जाना जाता है, जो करुणा और अहिंसा का प्रतीक है। लेकिन मूर्ति की बनावट कुछ और कहती है—यह एक देवी है, जो असुर का विनाश कर रही है, जो माता दुर्गा का शक्तिशाली स्वरूप है। सनातन धर्म में माता दुर्गा असुरों का नाश करने वाली शक्ति हैं, जबकि बौद्ध धर्म में हिंसा वर्जित है। यह अंतर यह सवाल उठाता है कि क्या यह हिंदू जड़ों को छिपाने की कोशिश है?
पुरातात्विक साक्ष्य: क्वानझोउ का समुद्री संग्रहालय
क्वानझोउ समुद्री संग्रहालय (Quanzhou Maritime Museum) इस इतिहास का खजाना है। यहाँ एक ऐसी मूर्ति प्रदर्शित है, जिसमें एक हाथी शिवलिंग पर जल चढ़ा रहा है, और एक मकड़ी उसकी सूँड में घुस रही है। यह दृश्य दक्षिण भारत के मंदिरों में प्रचलित शिव भक्त हाथी की कथा से मिलता-जुलता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह 14वीं शताब्दी में दक्षिण भारत, खासकर चोल वंश, और चीन के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों का परिणाम है। ये मूर्तियाँ और प्रतीक साबित करते हैं कि हिंदू और बौद्ध सभ्यताएँ यहाँ एक साथ फली-फूलीं।
भारत की ताकत: तिब्बत और दलाई लामा का समर्थन
आज भारत ने अपनी सनातनी और बौद्ध विरासत को गर्व के साथ अपनाया है। भारत का रूख साफ है कि चीन के साथ हमारी सीमाएं साझा नहीं होती है । भारत की सीमा साझा होती है तो दलाई लामा के देश, यानी तिब्बत के साथ होती है। चीन, जो आज दलाई लामा और बौद्ध धर्म को दबाने की कोशिश करता है, कभी खुद इन परंपराओं का हिस्सा था। लेकिन कम्युनिस्ट शासन ने इस इतिहास को दबाने की हर संभव कोशिश की है। वे नहीं चाहते कि दुनिया को भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताकत का पता चले।
चीन की साजिश: हिंदू-बौद्ध एकता को तोड़ने का प्रयास
चीन का कम्युनिस्ट शासन न केवल अपनी सनातनी और बौद्ध विरासत को छिपाता है, बल्कि हिंदुओं और बौद्धों के बीच फूट डालने की कोशिश भी करता है। माता दुर्गा को गुआनयिन के रूप में प्रस्तुत करना इसका एक उदाहरण है। माता दुर्गा, जो असुरों का विनाश करती हैं, और गुआनयिन, जो अहिंसा का प्रतीक हैं, एक ही मूर्ति में कैसे समा सकती हैं? यह एक सोची-समझी रणनीति है, जिसका मकसद हिंदू और बौद्ध धर्मों की एकता को कमजोर करना है।
चीन के कम्युनिस्ट शासन का इतिहास भी यही बताता है। कई चीनी लेखकों ने लिखा है कि चीन का कम्युनिज्म नकली है। यह विचारधारा वहाँ की मूल संस्कृति के खिलाफ है, क्योंकि अधिकांश लोगों ने बौद्ध धर्म को अपनाया था। कम्युनिस्ट शासन ने न केवल हिंदू धर्म, बल्कि भारतीयता और बौद्ध धर्म को भी दबाने की कोशिश की। यही कारण है कि चीन उन देशों का समर्थन करता है, जो हिंदुओं पर अत्याचार करते हैं, जैसे पाकिस्तान और वर्तमान बांग्लादेश। यह चीन के कम्युनिस्ट चेहरे का असली सच है।
सनातन धर्म की शक्ति: भारत का गर्व
भारत ने हमेशा अपनी सनातनी और बौद्ध विरासत को गर्व के साथ अपनाया है। आज भारत न केवल अपने देश में, बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी सांस्कृतिक पहचान को मजबूती से प्रस्तुत करता है। पेमा खांडू जैसे नेताओं के बयान और भारत का तिब्बत के प्रति समर्थन यह दर्शाता है कि हम अपनी विरासत को छिपाते नहीं, बल्कि उसे गर्व के साथ दुनिया के सामने लाते हैं। चीन, जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों को दबाने की कोशिश करता है, आज एक ऐसे रास्ते पर है, जहाँ उसे अपनी ही पहचान को छिपाकर जीना पड़ रहा है। दूसरी ओर, भारत अपनी सनातन संस्कृति और बौद्ध विरासत को बढ़-चढ़कर अपनाता है। यह हमारी ताकत है, जो हमें दुनिया में एक अलग पहचान देती है।
चीन का इतिहास सनातन धर्म और बौद्ध धर्म की एकता का गवाह है। क्वानझोउ के मंदिर, शिवलिंग पर जल चढ़ाता हाथी, और माता दुर्गा की मूर्तियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध सदियों पुराने हैं। लेकिन कम्युनिस्ट शासन ने इस सत्य को छिपाने की हर कोशिश की। फिर भी, भारत अपनी सनातनी और बौद्ध विरासत को गर्व के साथ दुनिया के सामने लाता है, और यह हमारी शक्ति है।