7 जून 2025 को, पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में, द्वारकेश्वर नदी के किनारे खुदाई के दौरान Bhagwan Vishnu की एक 12 भुजाधारी वाली अद्वितीय मूर्ति प्राप्त हुई। यह मूर्ति लगभग 3 फीट ऊंची है और अखंडित अवस्था में मिली है, यानी इसमें कोई भी क्षति नहीं है। पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि यह मूर्ति भगवान विष्णु के लोकेश्वर रूप की हो सकती है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि शिल्प और स्थापत्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। मूर्ति की शैली और संरचना इसे एक हजारों साल पुरानी धरोहर बनाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मूर्ति इस्लामी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए नदी में छिपा दी गई थी, और अब जब समय आया तो स्वयं ही बाहर आ गई।
विष्णु जी के 12 भुजाधारी वाला दुर्लभ रूप
हिंदू ग्रंथों में भगवान विष्णु को चार भुजाओं वाले रूप में दर्शाया जाता है, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म होते हैं। ये चार भुजाएं सृष्टि के चार प्रमुख कार्यों,सृजन, संरक्षण, विनाश और पुनःस्थापन का प्रतिनिधित्व करती हैं। लेकिन कुछ पुराणों में विष्णु जी का 12 भुजाओं वाला दिव्य रूप भी वर्णित है, जो उनके परम ब्रह्मांडीय और बहुशक्ति स्वरूप का संकेत देता है। इस रूप का उल्लेख महासांहिता और तंत्र ग्रंथों में भी मिलता है, जो उन्हें लोकेश्वर या त्रैलोक्यनाथ कहकर संबोधित करते हैं।
बांग्लादेश में मिले राजमहलों के अवशेष और धार्मिक इतिहास
2025 में दिनाजपुर में मिली मूर्ति जिस स्थान से प्राप्त हुई है, वहां कभी एक राजमहल था। माना जाता है कि यह महल किसी हिंदू राजा का था जो विष्णु भक्त था। समय के साथ मुस्लिम शासन आने और हिंदू जनसंख्या के पलायन के कारण, कई मंदिर नष्ट हो गए और उनकी मूर्तियां मिट्टी और पानी के नीचे दबा दी गईं। अब जब ये मूर्तियां बाहर निकल रही हैं, तो यह केवल एक पुरातात्विक घटना नहीं बल्कि धार्मिक पुनर्जागरण का संकेत मानी जा रही है।
शक्तिपूजक भूमि में विष्णु का पुनरागमन,क्या संकेत है यह?
पश्चिम बंगाल, जहां मां काली, दुर्गा, तारा आदि की पूजा का वर्चस्व रहा है, वहां विष्णु जी की मूर्तियों का एक के बाद एक प्रकट होना एक बड़े सांस्कृतिक बदलाव का संकेत दे रहा है। कुछ धार्मिक विद्वानों और संतों का मानना है कि, यह संकेत है कि सनातन धर्म का पुनरुद्धार हो रहा है। मां काली और दुर्गा स्वयं जाग्रत होकर इस भूमि से विष्णु चेतना का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं यह भी कहा जा रहा है कि वैष्णव, शैव और शाक्त – ये तीनों संप्रदाय अब एकता की ओर लौट रहे हैं। यह भारतीय दर्शन की उस अद्वैत परंपरा का पुनःप्रकाशन है जिसमें कहा गया है कि, विष्णु और शिव में कोई भेद नहीं, दुर्गा और लक्ष्मी एक ही शक्ति हैं।
राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण
इस चेतना का प्रभाव सिर्फ धार्मिक नहीं, राजनीतिक स्तर पर भी महसूस किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल की कुछ पार्टियों ने अब तक यह मानकर चलना शुरू कर दिया था कि यहां राम या विष्णु जैसे देवताओं की पूजा नहीं होती — लेकिन यह धारणा अब बदल रही है। बांकुड़ा की मूर्ति को जिस तरह से स्थानीय मंदिर में विधिपूर्वक स्थापित किया गया और श्रद्धालु जुटे , वह बताता है कि बंगाल की जनता अब अपनी सनातन पहचान को फिर से अपनाने को तैयार है।
क्या बंगाल की भूमि सनातन पुनर्जागरण की ओर बढ़ रही है?
एक के बाद एक विष्णु प्रतिमाओं का निकलना सिर्फ पुरातात्विक खोज नहीं है, यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक संकेत है। बंगाल और बांग्लादेश की धरती से निकलती ये मूर्तियां बता रही हैं कि हजारों वर्षों पुरानी परंपराएं फिर से जीवित हो रही हैं। लोग मानते हैं कि यह केवल शुरुआत है, और भविष्य में इस भूमि पर सनातन धर्म का वैभव और गहराई से उभरेगा।