महाभारत के सबसे महान योद्धा अर्जुन नपुंसक थे। क्या पुरुषों में श्रेष्ठ माने जाने वाले अर्जुन नापुरुष थे। क्या श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा के पति और वीर अभिमन्यु के पिता महान अर्जुन किन्नर थे। महाभारत के वन पर्व और विराट पर्व में अर्जुन के नपुंसक होने और किन्नर बन जाने के बारे में जिक्र हुआ है। लेकिन विराटपर्व में ही इस बात का भी जिक्र है कि अर्जुन वास्तव में नपुंसक नहीं थे। अर्जुन नपुंसक नहीं थे इस बारे में आपको प्रमाणों के साथ विस्तार से बताएं उससे पहले महाभारत में अर्जुन के नपुंसक होने की वो कथा आपको बताते हैं जो आम लोगों में काफी मशहूर है।
उर्वशी ने अर्जुन को वरदान दिया
उर्वशी ने अर्जुन को वरदान दिया अर्थात् उर्वशी का शाप ही वरदान बन गया क्योंकि उर्वशी ने अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दिया था। महाभारत के वनपर्व के अनुसार पांडवों के वनवास के दौरान जब यह लगने लगा कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध होकर रहेगा। तब कृष्ण ने अर्जुन से तपस्या कर स्वर्ग लोक जाने के लिए कहा ताकि अर्जुन वहां अस्त्र-शस्त्र की विद्या में पारंगत हो सकें और नए अस्त्र-शस्त्र को पा सकें। अर्जुन ने घोर तप किया और स्वर्ग पहुंच गए। स्वर्ग के स्वामी इंद्र हैं। वहीं इंद्र जिनकी कृपा से कुंती को पुत्र रूप में अर्जुन प्राप्त हुए थे। स्वर्ग में इंद्र ने अर्जुन का पुत्र की तरह स्वागत और सत्कार किया। और उन्हें काफी स्नेह दिया। इंद्र ने स्वर्ग के दरबार में अर्जुन को अपने बगल में बिठाया। इंद्र के दरबार में अप्सराएं अपना कार्यक्रम पेश कर रहीं थी। इसी दौरान अर्जुन ने जब अप्सरा उर्वशी को देखा तो कुछ देर के लिए उन्हें एकटक देखते रह गए। अर्जुन के इस तरह देखने पर उर्वशी भी मोहित हो गईं थीं। स्वर्ग में रहने के दौरान अर्जुन ने कई तरह की युद्ध कलाओं को सीखा और इंद्र की कृपा से अनेक अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा लेने के बाद इंद्र ने अर्जुन से संगीत और नृत्य की शिक्षा लेने को भी कहा। इस पर अर्जुन ने कहा मेरे जैसे योद्धा के लिए संगीत और नृत्य की शिक्षा की क्या जरूरत है। तब इंद्र ने कहा इस शिक्षा को भी ग्रहण करो यह तुम्हारे लिए फायदेमंद साबित होगी। इंद्र ने गंधर्व चित्रसेन को अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा देने की जिम्मेदारी सौंपी। एक दिन इंद्र ने चित्रसेन से कहा कि वो उर्वशी को अर्जुन की सेवा में भेजें ताकि वो स्त्रीसंगविशारद भी हो सकें। चित्रसेन ने उर्वशी ये बात कही जिसके बाद उर्वशी इसके लिए तुरंत तैयार हो गई क्योंकि वो पहले से ही अर्जुन पर मोहित थी। एक रात वो अर्जुन के महल में अकेले पहुंच गई। और उसने अर्जुन से प्रणय का निवेदन किया। उर्वशी की बात सुनकर अर्जुन ने कहा कि आप पुरुवंश की जननी हैं। इस तरह आपका और मेरा माता और पुत्र का संबंध है। जैसे माता कुंती और माता माद्रि हैं उसी तरह आप भी मेरी माता समान हैं। मैंने इंद्र के दरबार में अपने वंश की जननी होने की वजह से आपको देर तक निहारा था। अर्जुन की बात पर उर्वशी नाराज हो गई । उसने अर्जुन से कहा अप्सराएं किसी की माता या पत्नी नहीं होती हैं। पुरुवंश के कितने ही पोते और नाती तपस्या करके यहां आते हैं और हम सब अप्सराओं के साथ रमण करते हैं। अर्जुन इसमें कोई अपराध नहीं। तुम मेरे नजदीक और मेरी इच्छा को पूरी करो। लेकिन अर्जुन नहीं मानते हैं जिसके बाद उर्वशी गुस्से में आकर अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दे देती है। अर्जुन को मिला नपुंसकता का श्राप और अर्जुन इससे परेशान हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि मैं तो स्वर्ग आया था और शक्तिशाली होने लेकिन मैं तो नपुंसक बन गया। उधर श्राप देने के बाद जब उर्वशी इंद्र के पास पहुंचती है तो इंद्र उसे समझाते हैं कि अर्जुन ने धर्म के अनुसार ही व्यवहार किया है। इंद्र के दखल के बाद उर्वशी अपने श्राप को घटाकर सिर्फ एक वर्ष का कर दिया।
इंद्र श्राप की जानकारी अर्जुन को देते हुए कहते हैं। पुत्र ये श्राप आगे तुम्हारे काम आएगा और तब यह श्राप नहीं वरदान बन जाएगा। महाभारत के विराट पर्व में आगे जिक्र है कि 12 वर्ष के वनवास के बाद जब पांडवों का एक वर्ष का अज्ञातवास शुरू हुआ। तब अर्जुन ने विराट नगर में किन्नर बृहन्नला बनकर नपुंसक भाव से एक वर्ष छुपकर बिताए थे।
नपुंसक भाव से अर्जुन ने गुजारे एक वर्ष
महाभारत के विराट पर्व में नपुंसक भाव से अर्जुन ने गुजारे एक वर्ष के प्रसंग जिक्र आता है। जहां खुद अर्जुन ने अपने नपुंसक नहीं होने की बात कही है और नपुंसक भाव से एक वर्ष विराट राज्य में गुजारने की बात बताई है। विराट पर्व के अनुसार जब विराट नगर और हस्तिनापुर का युद्ध हुआ तब विराट कुमार उत्तर के सारथी के रूप किन्नर बृहन्नला लड़ाई के मैदान में उतरी थी। लेकिन जब युद्ध के मैदान में बृहन्नला बने अर्जुन ने अपनी वीरता दिखानी शुरू की तो राजकुमार उत्तर के होश उड़ गए। युद्ध के बाद उत्तर ने अर्जुन से जब इस बारे में पूछा। तब अर्जुन ने खुद को छुपाने के लिए किन्नर का भेष रखकर नपुंसक भाव से रहने का राज़ खोला। अर्जुन ने कहा कि उर्वशी के श्राप से मुझे यह नपुंसक-भाव प्राप्त हुआ। मैं वास्तव में नपुंसक नहीं हूं। बड़े भाई की आज्ञा से मैं एक वर्ष के व्रत का पालन कर रहा हूं। वे राजकुमार उत्तर से कहते हैं कि अब मेरा व्रत खत्म हो गया है और मैं नपुंसक-भाव के कष्ट से भी मुक्त हो चुका हूं। तब राजकुमार उत्तर कहता है कि अच्छा हुआ आपने ये राज़ बता दिया। आप जैसे गुणों वाला व्यक्ति कभी नपुंसक नहीं हो सकता।
महाभारत में दिए गए तथ्यों से यह साफ है कि अर्जुन नपुंसक नहीं थे। बल्कि वे उर्वशी के श्राप की वजह से एक वर्ष किन्नर के भेष में नपुंसक भाव से रहे। उर्वशी का श्राप वास्तव में उनके लिए वरदान ही साबित हुआ क्योंकि इसी बहाने वो अज्ञातवास के दौरान लोगों की निगाहों से छुपकर एक साल गुजार सके।