रामायण काल के सबसे खतरनाक और मायावी राक्षस
सनातन हिंदू धर्म में कई ऐसे प्राणियों का जिक्र मिलता है जिनके बारे में पूरी दुनिया को बहुत कम जानकारी है। ऐसे ही प्राणी हैं राक्षस। ये राक्षस कौन थे और रामायण में इनका क्या योगदान था इसके बारे में रामायण में बहुत विस्तार से लिखा गया है।
वैसे रामायण में आपने रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के बारे सुना ही होगा ,लेकिन क्या आप उन राक्षसों के बारे में जानते हैं जिन्हें पराजित किये बिना श्रीराम रावण का वध नहीं कर पाते? जिन्हे रामायण के खतरनाक राक्षस भी कहा जाता है।
हम ऐसे राक्षसों के बारे में आपको बता रहे हैं जिन्होंने श्रीराम की सेना के विरुद्ध भयानक युद्ध किया था और श्रीराम और उनकी सेना के द्वारा मारे गए थे।
रामायण का मायावी राक्षस प्रहस्त
मायावी राक्षस प्रहस्त लंकापति रावण के प्रधान सेनापतियों में से एक था। वह महाशक्तिशाली और मायावी राक्षस था। जब राक्षस अकंपन के मारे जाने के बाद जब रावण शोक के सागर में डूब जाता है और अपने मंत्रियों के साथ युद्ध की नीति बनाकर महाबली प्रहस्त को युद्ध में जाने की आज्ञा देता है।
अपने राजा की आज्ञा पाकर प्रहस्त लंका की विशाल राक्षसी सेना के साथ युद्ध भूमि में जाकर वानर सेना पर टूट पड़ता है। उसकी सेना और विशाल शरीर को देखकर भगवान राम ने विभीषण से पूछते हैं कि यह कौन है? श्रीराम के इस प्रश्न पर विभीषण बताते हैं यह महाबली प्रहस्त है, जो लंका का प्रधान सेनापति है। यह अस्त्र-शस्त्रों को जानने वाला है।
इसके बाद श्रीराम के देखते ही देखते प्रहस्त ने अपने प्रहार से असंख्य वानर सेना को मौत के घाट उतार दिया।
वानराणां शरीरैस्तु राक्षसानां च मिदनी।
बभूवातिचिता घोरै: पर्वरैरिव संवृता।।27
वाल्मीकिरामायण,युध्दकाण्ड,सर्ग-58
इस श्लोक के माध्यम से वाल्मीकि जी ये बताते हैं कि किस तरह से प्रहस्त के प्रहार से सेनाओं की लाशों का पहाड़ पृथ्वी पर दिखाई देने लगा।
अंत में श्रीराम सेना के सेनापति और अग्नि के पुत्र वानरराज नील ने प्रहस्त का वध किया। प्रहस्त इतना बड़ा वीर राक्षस था कि उसके मारे जाने के बाद ही रावण को खुद रणभूमि में आना पड़ा था।
रामायण का मायावी राक्षस महोदर
वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि मायावी राक्षस महोदर रावण का रिश्ते में दूर का भाई था। उसकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह देवराज इंद्र के हाथी ऐरावत के कुल से जन्म लेने वाले हाथी सुदर्शन पर सवार होकर रणभूमि में जाता था। वह अत्यंत वीर और युद्ध कौशल में निपुण था। महाबली वानर नील ने ही महोदर को भी मारा था।
रामायण के मायावी राक्षस नरान्तक और देवान्तक
आपने रावण के पुत्र मेघनाद और अक्ष कुमार के बारे में ही सुना होगा। मायावी राक्षस नरान्तक और देवान्तक भी रावण के ही पुत्र थे। जो अतिबलशाली होने के साथ-साथ कई अस्त्रों-शस्त्रों के ज्ञाता थे। महावीर हनुमान और देवान्तक का भीषण युद्ध हुआ, जिसमें मायावी राक्षस देवान्तक मारा गया और बाद में अंगद ने नरान्तक का वध किया।
रामायण का बलशाली राक्षस कुम्भकर्ण
राक्षस कुम्भकर्ण रावण का छोटा भाई था।बचपन से ही वह अत्यंत बलशाली था। वह एक समय जितना भोजन करता था उतने में लाखों लोगों की भूख मिट सकती थी। कुम्भकर्ण 6 माह सोता था औऱ फिर एक दिन के लिए जागता था।
दरअसल इसकी कहानी ये है कि एक बार वह अपने भाई रावण और विभीषण के साथ ब्रह्मा जी की तपस्या कर रहा था। उन तीनों भाइयों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा। कुम्भकर्ण इंद्रासन मांगना चाहता था ,तभी देवताओं ने माता सरस्वती से प्रार्थना की जब कुम्भकर्ण वरदान माँगे तो वे उसकी जिह्वा पर बैठ जाएं औऱ हमारी सहायता करें।
परिणाम स्वरूप जब कुम्भकर्ण इंद्रासन माँगने लगा तो उसके मुख से इंद्रासन की जगह निंद्रासन निकला। जिसे ब्रह्मा जी ने पूरा कर दिया। परंतु बाद में जब कुम्भकर्ण को इसका पश्चाताप हुआ, तो ब्रह्मा जी ने इसकी अवधि घटा कर एक दिन कर दी जिसके कारण यह छः महीने तक सोता था और फिर एक दिन के लिए उठता था।
वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि उसका शरीर मेरु पर्वत के समान दिखाई देता था। जब वह युद्ध भूमि में गया तो बंदरों को पकड़-पकड़ कर खाने की कोशिश करने लगा। उसके शरीर को देखकर वानर सेना में भगदड़ मच गयी। अंत में भगवान राम के हाथों उसका वध हुआ।
रावण के सेना का शक्तिशाली राक्षस अतिकाय
राक्षस अतिकाय रावण की पत्नी विंध्यमालिनी का पुत्र था। उसने ब्रह्मा जी से अनेक वरदान प्राप्त किए थे। जब वह रणभूमि गया तो वानर सेना उसे देखकर यह समझी कि कुम्भकर्ण फिर से जिंदा होकर आ गया। यह सोचकर श्रीराम की सेना भयभीत होकर भागने लगी थी। अतिकाय राक्षसों में सिंह के समान पराक्रमी था, जिसे देखकर भगवान श्रीराम भी आश्चर्य में पड़ गए।
वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि अतिकाय केवल बलवान ही नहीं बल्कि बहुत बुध्दिमान भी था। लेकिन अंत में वह भी लक्ष्मण के हाथों से मारा गया।
रामायण का चतुर राक्षस अकम्पन
राक्षस अकम्पन लंका के प्रमुख वीरों में से एक था। वह सम्पूर्ण अस्त्र–शस्त्रों का ज्ञाता और कई मायावी शक्तियों को जानने वाला था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार देवता भी उसे नहीं कम्पित कर सकते थे यानि वह किसी से नहीं डरने वाला था,जिसके कारण उसका नाम अकम्पन पड़ा था।
जब वह रणभूमि के लिए निकला तो समुद्र में भी हलचल मच गई एक घनघोर युद्ध में महावीर हनुमान जी ने अकंपन का वध किया था।
रावण का सबसे शक्तिशाली पुत्र मेघनाद
राक्षस मेघनाद राक्षस कुल का सबसे वीर योद्धा था। वह लंकापति रावण और महारानी मंदोदरी का पुत्र था। जन्म के समय उसने मेघ के समान गर्जना की थी। जिसे देख सभी लंकावासी डर गए थे,इसीलिए लंकापति रावण ने खुद उसका नाम मेघनाद रखा था। जन्म से ही उसमें अग्नि के समान तेज दिखता था।
वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता हैं कि एक बार रावण ने अपनी राक्षसी सेना के साथ इंद्रलोक पर आक्रमण कर दिया तो देवराज इंद्र ने रावण को बंदी वना लिया, लेकिन मेघनाद अपनी मायावी शक्ति से अपने पिता को तो आजाद किया ही साथ में उसने देवताओं के राजा इंद्र को भी बंदी बना लिया तभी से उसका नाम इंद्रजीत पड़ा।
वह सभी युद्ध विद्याओं में निपुण था। जैसा कि आप जानते हैं कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में मेघनाद लक्ष्मण जी के बाणों से मारा गया था।
रावण का मामा मारीच
रावण का मामा मारीच ताड़का का पुत्र था। उसके आतंक से ऋषि विश्वामित्र तंग आ गए थे। विश्वामित्र की आज्ञा ने श्रीराम ने मारीच को ऐसा बाण मारा था कि वो कई हजार किलोमीटर दूर समुद्र में जा गिरा था।
ये वही मारीच था जिसने रावण कहने पर स्वर्ण मृग का रुप धरा था ताकि रावण माँ जानकी का अपहरण कर सके।
रावण के भाई खर और दूषण
खर और दूषण महाबलशाली राक्षस थे। ये दोनों रावण के सौतेले भाई थे। शूर्पणखा ने सबसे पहले इन्हीं दोनों से अपने नाक-कान कटने का दुख सुनाया था। शूर्पनखा के अपमान का बदला लेने के लिए ही दोनों ने 14 हजार की सेना लेकर पंचवटी में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण पर आक्रमण किया था।
वे दोनों धनुष-बाण, फरसे, खड़ग, गदा, तलवार और मूसल जैसे अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता थे। श्रीराम ने अपने वनवास काल के दौरान इन दोनों का सेना सहित वध कर दिया था।
रावण के नाना माल्यवान, माली और सुमाली
माल्यवान,माली और सुमाली तीनों सुकेश नामक राक्षस के पुत्र थे। तीनो अत्यंत बलवान और अतिशक्तिशाली थे। वे तीनों कहते थे मैं ही विष्णु हूं !मैं ही रुद्र हूं! मैं ही सृष्टि रचयिता ब्रह्मा हूं! तीनों के आतंक से देवता और ऋषि भी परेशान रहते थे। रामायण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान विष्णु से इनका युद्ध हुआ था। भगवान विष्णु ने अपने पराक्रम से इन तीनों को लंका से भागने के लिए मजबूर किया था।