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सनातन धर्म के सबसे बड़े धनुर्धर

The Karma by The Karma
March 2, 2025
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The biggest archer of Sanatan Dharma.

सनातन धर्म के सबसे बड़े धनुर्धर

सनातन धर्म ग्रँथो की कथाओं में एक से एक धनुर्धरों का वर्णन आता है । कोई ब्रह्मास्त्र चलाने में सिद्ध था तो कोई एक ही बाण से सारी सृष्टि को नष्ट कर सकता था। लेकिन आखिर सनातन धर्म के सबसे बड़े धनुर्धर कौन से हुए जिनकी बराबरी संसार में आज भी कोई नहीं कर सकता है।

हम सभी ग्रंथों को उठाकर पढ़ ले तो यही पता चलता है कि भगवान विष्णु और देवों के देव महादेव से बड़ा योद्धा तो इस ब्रह्मांड में कोई नहीं है। ये तो अपराजेय हैं इनपर विजय पाना सृष्टि में किसी के बस की बात नहीं है। इसलिए हम आपको उन धनुर्धरों के बारे में बताएंगे। जिन्होने पृथ्वी में जन्म लिया और पृथ्वी में ही अपने श्रेष्ठ धनुर्धर होने का प्रमाण दिया।

संसार के सबसे बड़े धनुर्धर भगवान श्रीराम

सबसे बड़े धनुर्धर भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में अनेक युद्ध लड़े।और हर युद्ध में विजय प्राप्त की चाहे वह ताड़का हो या खर-दूषण या फिर राक्षसों का राजा रावण इन सब में विजय प्रप्त करके उन्होंने अपने आपको श्रेष्ठ धनुर्धर बनाया।इन्होने धनुर्विद्या का ज्ञान गुरु वशिष्ट से विश्वामित्र तथा महर्षि अगस्त्य से लिया।दरअसल स्थिति के अनुसार श्रीराम अपनी शिक्षा पूरी करते गए।और शिक्षा के साथ अपनी धनुर्विद्या की परीक्षा में पास भी होते गए।और श्रीराम धनुर्विद्या में इतने श्रेष्ठ हो गए थे कि उनको देवता भी परास्त भी परास्त नहीं कर सकते थे।

गृहातास्त्रोस्मि भगवन् दुराधर्षः सुरैरपि ।
अस्त्राणां त्वहमिच्छामि संहारान् मुनिपुंगव ।।2
(वाल्मीकिरामायण,बालकाण्ड,सर्ग-28)

इस श्लोक के माध्यम से भगवान राम विश्वामित्र से कहते हैं कि भगवन आपकी कृपा से इन अस्त्रों को पाकर मैं देवताओं के लिए भी अजेय बन गया हूं।महर्षि विश्वामित्र ने भगवान राम ऐसे दिव्यास्त्र दिए जो कि केवल उनके ही पास थे इस लिए पूरी पृथ्वी में श्रीराम को परास्त करने वाला कोई नहीं था।इसी तरह भगवान राम ने अपने धनुर्विद्या का परिचय देते हुए त्रिलोक विजयी रावण का वध करके यह सिद्ध कर दिया कि संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर श्रीराम ही हैं।

सनातन धर्म के सबसे गूढ़ और प्रमाणिक ग्रंथ श्रीमदभागवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि योद्धाओं में मैं राम हूं।

रामः शस्त्रभृतामहम्। ।।10-31

शस्त्र धारियों में मैं राम हूं।यह कहकर श्रीकृष्ण ने भी ये संकेत दिया है कि भगवान श्रीराम संसार के सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर हैं।

महान धनुर्धर भगवान श्रीकृष्ण

भगवान विष्णु ने त्रेता में श्रीराम और द्वापर में धर्म की स्थापना के लिए श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया और महान धनुर्धर भगवान श्रीकृष्ण ने अनेकों अधर्मियों को अपनी युद्ध कुशलता से परास्त किया और उनका वध भी किया।

महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने शस्त्र ना उठाने की प्रतिज्ञा ली थी।और पाण्डवों की तरफ से बिना अस्त्र-शस्त्र के अर्जुन के सारथी के रूप में युद्ध में भाग लिया था।भगवान श्रीकृष्ण श्रीविष्णु का शारंग धनुष धारण करते थे। महाभारत और भागवतम् में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे।गीता में तो भगवान ने कहा ही है कि योद्धाओं और धनुर्धारियों में मैं श्री राम के जैसा पराक्रमी हूं।

कृत्वा तत् कर्म लोकानामृषभः सर्वलोकजित् ।
अवधीस्त्वं रणे सर्वान् समेतान् दैत्यदानवान् ।।19
(महाभारत,वनपर्व,अध्याय-12)

महाभारत के इस श्लोक में अर्जुन ने श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहा है कि हे श्रीकृष्ण ! आप सम्पूर्ण लोकों पर विजय पाने वाले हैं।इस संसार में अब कोई ऐसा नहीं है जो युद्ध में आपका सामना कर सके देवता दैत्य राक्षस कोई भी आपको परास्त नहीं कर सकता।

संसार के तीसरे सबसे बड़े धनुर्धर वीर लक्ष्मण

भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के बाद संसार के तीसरे सबसे बड़े धनुर्धर वीर लक्ष्मणजी को रखा है । ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने उस मेघनाद को पराजित किया था जिसे रावण से भी ज्यादा शक्तिशाली माना जाता था और मेघनाद ने इंद्र को भी पराजित किया था। लक्ष्मण जी ने मेघनाद का वध कर श्रीराम का आधा काम आसान कर दिया था। तभी वाल्मीकि रामायण में प्रभु श्रीराम लक्ष्मण जी की वीरता की प्रशँसा करते हुए कहते हैं कि

साधु लक्ष्मण तुष्टोस्मि कर्म चासुकरं कृतम् ।
रावणेर्हि विनाशेन जितमित्युपधारय ।।8
(वाल्मीकिरामायण,युद्धकाण्ड,सर्ग-91)

भगवान राम लक्ष्मण से कहते है कि मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं क्योकि तुमने आज वो कठिन कार्य किया है जो कोई देवता और दैत्य नहीं कर सकता।मेघनाथ को तुम्हारे अलावा कोई परास्त नहीं कर सकता।तुम्हारे पराक्रम से आज हम युद्ध में विजय के बहुत नजदीक आ गए हैं।

संसार का चौथा सबसे बड़ा धनुर्धर अर्जुन

महाभारत में अर्जुन से बड़ा कोई भी धनुर्धर नहीं था। ये हम नहीं कह रहे बल्कि महाभारत के कई स्थानों पर ऐसा ही लिखा गया है। सबसे बड़ा धनुर्धर अर्जुन आज तक किसी से पराजित नहीं हुआ था। अर्जुन ने भगवान शिव के साथ बराबरी का युद्ध किया था और भगवान शिव से उसे प्रशंसा भी मिली थी । इसी श्लोक को देखिए जो महाभारत के वन पर्व से लिया गया है –

भो भोः फाल्गुन चुष्टोस्मि कर्मणाप्रतिमेन ते ।
शौर्येणानेन धृत्या च क्षत्रियो नास्ति ते समः।।38
समं तेजश्च वीर्यं च ममाद्य तव चानघ ।39
(महाभारत,वनपर्व,अध्याय-39)

भगवान शिव अर्जुन के पराक्रम से प्रसन्न होकर कहने लगे।मैं तुम्हारे इस अनुपम पराक्रम, शौर्य, धैर्य से संतुष्ट हूं तुम्हारे जैसा कोई और वीर क्षत्रिय धनुर्धर नहीं है।तुम्हारा तेज और पराक्रम आज मेरे ही समान सिद्ध हुआ।

भगवान शिव के समान पराक्रम और अपने युद्ध कुशलता से महादेव को संतुष्ट करने वाला काम केवल अर्जुन ही कर सकते थे।

अर्जुन ने निवाचकवच और कालखंज जैसे दैत्यों का वध किया था जिसे देवता भी नहीं मार सकते थे। अर्जुन ने महाभारत में चित्ररथ नामक उस गंधर्व को भी पराजित किया था जिसके सामने कर्ण भी पराजित होकर भाग खड़ा हुआ था। विराट के युद्ध में अर्जुन ने अकेले ही भीष्म पितामह, द्रोण, कर्ण और सारी कौरव सेना को पराजित कर दिया था। अर्जुन ने उस द्रुपद को बंदी बना लिया था जिससे कर्ण. दुर्योधन और अश्वत्थामा भी पराजित हो गये थे।

अर्जुन ने महाभारत में द्रोण और भीष्म पितामह सहित कौरव सेना के अधिकांश महावीरों को मौत के मुंह में भेज दिया था।

संसार के पांचवे सबसे बड़े धनुर्धर भीष्म पितामह

बड़े धनुर्धर भीष्म पितामह को संसार का महान धनुर्धर माना जाता है । उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान भी हासिल था। वो श्रीराम के बाद एकमात्र ऐसे योद्धा थे जिनकी शक्ति को स्वयं भगवान परशुराम ने भी स्वीकार किया था। अपने गुरु भगवान परशुराम को युद्ध में हराने वाले भीष्म इकलौते योद्धा थे। कहा जाता है कि जब तक वो युद्ध भूमि में युद्ध करते थे उन्हें संसार की कोई शक्ति उनकी इच्छा के बिना उन्हें पराजित नहीं कर सकती थी।

संसार के छठे महान धनुर्धर भगवान परशुराम

महान धनुर्धर भगवान परशुराम तो अकेले ही लाखों सेना के बराबर थे।उन्होने अकेले ही इक्कीस बार पृथ्वी के सभी क्षत्रियों को परास्त कर दिया था।महर्षि परशुराम ने धनुर्विद्या भगवान शिव से सीखी थी।तथा उन्होने अपनी धनुर्विद्या से पृथ्वी को अनेक वीर योद्धा दिए।

महर्षि परशुराम भगवान विष्णु का शारंग धनुष धारण करते थे। भगवान परशुराम ने उस कार्तवीर्य अर्जुन को पराजित किया था जिसने एक बार रावण को अपने महल में कैद कर लिया था। कार्तवीर्य को भगवान दत्तात्रेय के वरदान से एक हजार भुजाएँ मिली थीं। लेकिन भगवान परशुराम ने उसकी सारी भुजाएं काट डाली और उसका वध कर दिया था। भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन के हैहय वंश का समूल नाश करने के लिए 21 बार फरसा उठाया था और पृथ्वी को हैहय वँशी क्षत्रियों से मुक्त कर दिया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने पराक्रम से पार्वती पुत्र भगवान गणेश से भी युद्ध किया था और गणेश जी एक दांत को तोड़ दिया था जिसके बाद गणेश जी एकदंत के रुप में पूजे जाने लगे ।

संसार का सातवां महान धनुर्धर कार्तवीर्य अर्जुन

कार्तवीर्य अर्जुन अपनी वीरता के कारण ही जाना जाता है क्योंकि उसने दस हजार साल तपस्या करके भगवान दत्तात्रेय से अनेक वरदान प्राप्त किये थे।और अपने पराक्रम से पचासी हजार वर्ष तक पूरी पृथ्वी का अकेला सम्राट बना रहा।

महान धनुर्धर कार्तवीर्य अर्जुन त्रिलोक पर विजय पाने वाले तथा सभी नक्षत्रों को बंदी बनाने वाले रावण को भी परास्त कर दिया था।और अपने राज्य करागार में डाल दिया था।

संसार का आठवां महान धनुर्धर रावण

रावण का वध करने के लिए तो खुद भगवान को पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा। क्योंकि महान धनुर्धर रावण ने अपने पराक्रम से समस्त पथ्वी के साथ स्वर्ग और पाताल में भी आतंक मचा रखा था।रावण को मारने के लिए भगवान और सभी देवताओं ने भी योजना बनाई थी क्योंकि रावण इतना पराक्रमी था कि उसे मारना इतना आसान नहीं था।

रावण इतना बड़ा धनुर्धर था जिसने लक्ष्मण को शक्तिबाण मारकर उनके प्राणों को भी संकट में डाल दिया था।फिर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की । और रावण ने तो भगवान श्रीराम को भी अपने बाणों से घायल कर दिया था।

तदस्त्रं तु हतं दृष्ट्वा रावणो राक्षसाधिपः।
विव्याध दशभिर्बाणै रामं सर्वेषु मर्मसु ।।19
(वाल्मीकिरामायण,युद्धकाण्ड,सर्ग-100)

भगवान राम के द्वारा अपने अस्त्रों को कटा देखकर राक्षसराज रावण ने दस बाणों से श्रीराम की छाती पर गहरी चोट पहुंचाई।

भगवान राम को हराने वाला संपूर्ण पृथ्वी पर कोई नहीं था लेकिन रावण ने अपने पराक्रम से स्वयं भगवान को भी चोटिल कर दिया था।

राक्षसराज रावण को वाल्मीकि जी ने भगवान राम के समान पराक्रमी कहा है।

उभौ हि परमेष्वासावुभौ युद्धविशारदौ ।
उभावस्त्रविदां मुख्यावुभौ युद्धे विचेरतुः ।।32
(वाल्मीकिरामायण,युद्धकाण्ड,सर्ग-99)

वाल्मीकि जी कहते हैं कि दोनो ही महान धनुर्धर हैं और दोनो ही युद्ध की कला के जानकार हैं दोनो ही अस्त्र-शस्त्र के ज्ञान में समान हैं।इसलिए ये युद्ध दोनो समान योद्धाओं में हो रहा है।

संसार का नौवां महान धनुर्धर अभिमन्यु

वीर पराक्रमी अर्जुन का पुत्र महान धनुर्धर अभिमन्यु की वीरता की चर्चा तो महाभारत का हर पेज कर रहा है कि अभिमन्यु ने जो युद्ध किया न कभी किसी ने किया था और ना ही आगे आने वाले समय में कोई कर पाएगा।अभिमन्यु के धनुर्विद्या की प्रशंसा कैरव सेना के हर वीर ने की । भीष्म ने तो कहा कि हमारे कुरुकुल में अभिमन्यु सा वीर कभी पैदा ही नहीं हुआ।

अभिमन्यु ने अपने बाणों से कौरव सेना पर भगदड़ मचा दी थी।ऐसा लग रहा था कि अभिमन्यु अकेला ही सारी कौरव सेना का संहार कर देगा।

संजय ने राजा धृतराष्ट्र से अभिमन्यु के पराक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि।

स तैः परिवृतः शूरैः शूरो युधि सुदुर्जयैः ।
न स्म प्रव्यथते राजन् कृष्णतुल्यपराक्रमः ।।15
(महाभारत,भीष्मपर्व,अध्याय-55)

संजय कहते हैं कि हे राजन अभिमन्यु का पराक्रम भगवान श्रीकृष्ण के समान है।वह युद्ध में अजेय है कौरव सेना के सभी महारथी उससे युद्ध करने में घबराते हैं।

अभिमन्यु ने महाभारत के युद्ध में कर्ण को भी पराजित किया था और इसके अलावा उसने कई बार द्रोणाचार्य और भीष्म को भी युद्ध भूमि में घायल कर दिया था। द्रौणाचार्य के अनुसार तो अभिमन्यु अपने पिता अर्जुन से भी डेढ़ गुना ज्यादा बड़ा वीर था।

संसार का दसवाँ महान धनुर्धर सूर्यपुत्र कर्ण

कर्ण की वीरता के बारे में तो आधुनिक कवियों ने बहुत खूब लिखा है।और ऐसा भी माना जाता है कि महाभारत समय में महान धनुर्धर सूर्यपुत्र कर्ण भी उन वीरों में आता था जो संपूर्ण भारत के राजाओं को अपने धनुर्विद्या के दम पर जीत सकता था।

महाभारत में गुरुद्रोण का वध होने के बाद कौरव सेना में ये सवाल था कि अब हमारा सेनापति कौन बनेगा।तब द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने कर्ण को आगे करके ये बात कही।

एष ह्यतिबलः शूरः कृतास्त्रो युद्धदुर्मदः।
वैवस्वत इवासह्यः शक्तो जोतुं रणे रिपून् ।।17
(महाभारत,कर्णपर्व,अध्याय-10)

हे राजा दुर्योधन सूर्यपुत्र कर्ण अत्यंत बलवान, शूरवीर, सभी अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता युद्ध में पारंगत यमराज के समान शत्रुओं को अपने धनुष से काट डालने वाले शत्रुओं के लिए अजेय हैं।ये रण भूमी में शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं। इसलिए इनको ही सेनापति बनाना चाहिए।

अश्वत्थामा के द्वारा कही गई ये बात ये बताती है कि कर्ण कोई साधारण योद्धा नहीं था।उसका वध कर पाना इतना आसान नहीं था।कर्ण दानवीर होने के साथ-साथ अच्छा धनुर्धर और वीर था। परंतु हमने कर्ण को इसलिए अभिमन्यु और अर्जुन से धनुर्विद्या में नीचे रखा है क्योंकि अर्जुन ने कर्ण को कई बार अलग अलग युद्धो में पराजित किया था। कर्ण जिन चित्ररथ गंधर्व और द्रुपद से पराजित हुआ था उन्हें भी अर्जुन ने युद्ध में पराजित किया था। कर्ण को महाभारत के युद्ध में भीम ने पांच बार पराजित किया था। कर्ण को सात्यिकि और घटोत्कच के अलावा अभिमन्यु से भी महाभारत के युद्ध में हार का मुख देखना पड़ा था। परंतु इन पराजयों के बावजूद कर्ण एक महान वीर था और वो एक महान धनुर्धर था इसमें कोई शक नहीं है।

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