रामायण में जहाँ महावीर हनुमान जी को एक महान योद्धा माना जाता है वहीँ महाभारत में सबसे महान योद्धा अर्जुन को माना जाता है । सनातन धर्म में एक ऐसी कथा आती है जब चिरंजीवी हनुमान जी और महान धनुर्धर अर्जुन के बीच एक युद्ध भी हुआ था। जो कि सनातन ग्रंथों में अर्जुन और हनुमान जी के बीच हुए युद्ध का वर्णन विस्तृत रूप से किया गया है।
सनातन हिंदू धर्म की मान्यताओं को अनुसार हनुमान जी चिरंजीवी हैं और वो न केवल श्रीराम के युग त्रेता युग में अपने पराक्रम के लिए जाने गए बल्कि उनके पराक्रम की चर्चा द्वापर युग में भी होती है। महाभारत में भीम की मुलाकात वीर हनुमान जी से होने का वर्णन आता है और महाभारत के अनुसार अर्जुन के रथ पर हनुमान जी विराजमान भी हुए थे।
श्री राम के भक्त हनुमान और श्रीकृष्ण के भक्त अर्जुन
द्वापर युग की एक कथा मिलती है जिसमें हनुमान जी और वीर अर्जुन के बीच युद्ध का वर्णन आता है । एक तरफ थे श्री राम के परम भक्त हनुमान तो दूसरी तरफ थे श्रीकृष्ण के परम प्रिय सखा अर्जुन । यानी भगवान के दो अलग अलग रूप और उन दोनों रूपों के सबसे प्रिय भक्त । जब दोनों भक्तों को अपने बल और विद्या का घमंड हो गया तो ऐसे में युद्ध होना तो तय था ।
रामेश्वरम के धनुषकोटी में अर्जुन और हनुमान जी की मुलाकात
अर्जुन और हनुमान जी के बीच हुए युद्ध का वर्णन सबसे पहले आनंद रामायण में मिलता है। द्वापर युग के अंत की बात है जब एक दिन श्रीकृष्ण को अकेला छोड़कर अर्जुन वन में शिकार करने चले गए। दक्षिण दिशा की तरफ जाते हुए उन्होनें रास्ते में बहुत से जानवरों को मार गिराया । इसके बाद वो स्नान करने की तैयारी करने लगे।
रामेश्वरम के धनुषकोटि तीर्थ पर स्नान करने के बाद अर्जुन गर्व से तट पर ही घूमने लगे, तभी उन्होनें एक पर्वत पर साधारण से वानर को देखा जो कि रामनाम का जप कर रहा था। अर्जुन ने जब उस वानर से उसका परिचय मांगा तो उस वानर ने कहा –
यत्प्रतापाच्च रामेण शिलाभिः शतयोजनम्।
बद्धोSयं सागरे सेतुस्तं मां त्वं विद्धि वायुजम्।।
आनन्द रामायण, मनहोरकाण्डम्, सर्ग 18
अर्थात् हनुमान जी बड़े गर्व से कहते हैं, “जिनके प्रताप से रामचन्द्र जी ने समुद्र पर सौ योजन का सेतु बनाया था, मैं वही वायु पुत्र हनुमान हूं।“ अर्जुन ने किया श्री राम का अपमान
जब वीर हनुमान जी ने श्री राम के पराक्रम का वर्णन करते हुए ये कहा कि श्री राम ने रामसेतु का निर्माण किया था तो अर्जुन ने श्री राम के इस कार्य को एक दम साधारण बताते हुए कहा कि –
“राम ने व्यर्थ इतना कष्ट उठाया, उन्होनें बाणों का सेतु बनाकर क्यों नहीं अपना काम चला लिया”
अपने प्रभु श्री राम के बारे में ऐसी अपमान जनक बात सुन कर वीर हनुमान जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने अर्जुन से कहा कि – ये तो श्री राम की महिमा थी कि उन्होंने ऐसा सेतु बनाया जो आज भी इतना मजबूत है । ये रामसेतु इतना शक्तिशाली और मजबूत है था कि ये हम जैसे बड़े वानरों के बोझ को भी सहन कर गया और नहीं डूबा।“
अर्जुन ने दी हनुमान जी को चुनौती
अर्जुन ने श्री राम के इस कार्य का फिर से मजाक उड़ाते हुए कहा कि –“अगर वानरों के बोझ से सेतु डूब जाने का डर हो तो उस धनुर्धारी की धनुर्विद्या की क्या विशेषता रही? अभी इसी समय मैं अपने कौशल से बाणों का सेतु बनाता हूं तुम उसके ऊपर आनंद से नाचो कूदो । इस तरह मेरी धनुर्विद्या का नमूना भी देख लेना।“
हनुमान जी ने अर्जुन को दी चुनौती
महावीर चिरंजीवी हनुमान जी ने अर्जुन की इस चुनौती का जवाब देते हुए कहा कि तुम एक ऐसा सेतु बना कर दिखाओ जो मेरे पैर के अंगूठे के बोझ को भी सह सके तो मैं तुम्हारी धनुर्विद्या को मान लूँगा।“
अर्जुन ने हनुमान जी के सामने रखी अनोखी शर्त
अर्जुन हनुमान संवाद बढ़ता ही गया। अर्जुन और हनुमान जी युद्ध के लिए तत्पर हो गए।
अर्जुन ने वीर हनुमान जी की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और उन्होंने ये भी कहा कि अगर मैं ऐसा सेतु नहीं बना सका तो मैं आत्महत्या कर लूँगा और चिता पर जल कर अपने प्राण दे दूँगा।“
अर्जुन के इस अहंकार को देख कर हनुमान जी ने भी उन्हें ये वचन दे दिया कि अगर तुम जीत गए तो महाभारत के होने वाले युद्ध में मैं तुम्हारे रथ की ध्वजा पर विराजमान होकर तुम्हारी सहायता करूंगा।
अर्जुन ने बनाया बाणों का पुल
इसके बाद अर्जुन ने अपने बाणों के समूह से सागर के ऊपर एक सेतु बना दिया । वीर बजरंगी ने भी अपने अंगूठे के भार से उसे डूबा दिया । उस समय देवताओं ने हनुमान जी पर फूलों की वर्षा भी की ।
ये देख क्रोधित अर्जुन चिता बनाकर उसमें कूदने लगे। हनुमान जी के रोकने पर भी जब वो नहीं माने तो उसी समय एक ब्रह्मचारी के रूप में भगवान श्रीकृष्ण वहां आ पहुंचे और उन्होंने अर्जुन से कहा “तुम दोनों की बातों का कोई साक्षी नहीं था। अब तुम लोग फिर से प्रतियोगिता करो। विजय और पराजय का निर्णय मैं करूंगा।“
अर्जुन ने एक बार फिर समुद्र पर सेतु बना दिया और जैसे ही हनुमान जी उसे अंगूठे के भार से डूबाने लगे तो श्रीकृष्ण ने उसके नीचे अपने सुदर्शन चक्र को स्थापित कर दिया। सेतु को डूबता न देख बजरंगबली ने अपने पूरे शरीर का जोर लगा दिया। जल्द ही उन्हें समझ आया कि यह ब्रह्मचारी कोई और नहीं बल्कि खुद भगवान श्रीकृष्ण ही हैं।
हनुमान जी को हुआ श्रीकृष्ण का दर्शन
चिरंजीवी हनुमान जी ने जैसे ही श्रीकृष्ण को देखा वो समझ गए कि वो और कोई नहीं बल्कि भगवान श्री राम के ही दूसरे स्वरूप हैं जो पृथ्वी पर धर्म की संस्थापना के लिए फिर से आए हैं।
हनुमान जी ने अर्जुन को कहा कि “स्वयं भगवान तुम्हारी सहायता के लिए यहां आए हैं। यही रूप धारण करके त्रेता युग में श्री राम ने मुझे वरदान दिया था कि द्वापर के अंत में मैं तुम्हें कृष्ण रूप से दर्शन दूंगा।“
ये देख श्रीकृष्ण अपने रूप में आकर अर्जुन से बोले तुमने मेरे ही राम के स्वरूप की शक्ति का मजाक उड़ाया था, इसलिए हनुमान जी ने तुम्हारी धनुर्विद्या को व्यर्थ कर दिया और इसी तरह पवन सुत तुमने भी मेरे राम के स्वरूप से स्पर्धा की तो तुम अर्जुन से परास्त हुए ।“ इस तरह हनुमान जी ने अर्जुन का घमंड तोड़ा।